tag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post4403063381109778077..comments2023-10-24T17:01:13.971+05:30Comments on निरामिष: सूरज को दिया दिखाने की जिद।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04417160102685951067noreply@blogger.comBlogger24125tag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-57033199806261549472012-04-23T12:21:17.157+05:302012-04-23T12:21:17.157+05:30just awesome...insaan apni suvidha ke liye kisi bh...just awesome...insaan apni suvidha ke liye kisi bhi galat baat ko sahi thahrane se nahin chukta.... hinsa chahe vo bhojan ke liye ki jaye chahe dharm ke naam par use kisi bhi roop mein sahi nahi kaha ja sakta...kisi ki swatrantta, uski jindgi cheenen ka adhikar hame kaise mil sakta hai..jagat ka har prani jeena chahta hai aise main hum kaise uske is adhikar ko cheen sakte hai...Monika Jainhttps://www.blogger.com/profile/18206634037142003083noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-11652587297056353632012-04-21T08:24:49.098+05:302012-04-21T08:24:49.098+05:30आसमान की और थूकने वाले और भी कई हैं -क्या कीजे ऐसे...आसमान की और थूकने वाले और भी कई हैं -क्या कीजे ऐसे लोगों का जिनकी फितरत ....<br />अब कैंसर के इलाज़ के लिए अतिस्वर चिकित्सा (अल्ट्रा साउंड वेव्ज़).<br /><br />जानकारी :लेटेन्ट ऑटो -इम्यून डायबिटीज़ इन एडल्ट्स<br /><br />http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-58178989217064741762012-04-20T21:08:32.773+05:302012-04-20T21:08:32.773+05:30बहुत से सवालों को हल करते हुए ख़ुद सवाल खड़ा करती ...बहुत से सवालों को हल करते हुए ख़ुद सवाल खड़ा करती हुई बेहतरीन नज़्म.शेखचिल्ली का बापhttps://www.blogger.com/profile/04849047189746971974noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-64973191565956516352012-04-19T14:31:41.918+05:302012-04-19T14:31:41.918+05:30जुगनुओं की टिमटिमाती रौशनियों में,
खलिहान म...जुगनुओं की टिमटिमाती रौशनियों में, <br /> खलिहान में सुई खोज लाने की जिद। <br />कबसे देख रही हूँ बारम्बार दुनिया में , <br /> सूरज को दिया दिखाने की जिद।<br /><br />u r great , awaysome creation ek lekh ko is tarah kavy mein kahna bahut muskil hai aapki rachna yakinan tariiff ke haqdaar hai ,<br /><br />शिल्पा जी! Bandhaii swikaren .निर्झर'नीरhttps://www.blogger.com/profile/16846440327325263080noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-17181043714345353662012-04-19T00:01:57.916+05:302012-04-19T00:01:57.916+05:30मैंने(हमने ) देखी है बुंदु ज़र्राह में खुद को ,
खु...मैंने(हमने ) देखी है बुंदु ज़र्राह में खुद को ,<br /><br />खुद को डॉ .कहलवाने ,लिखने लिखवाने की जिद .<br /><br />बे -नूर हो चुके हुस्न को ज़माल कहलवाने की जिद .<br /><br />कृपया यहाँ भी दस्तक देवें -<br />मंगलवार, 17 अप्रैल 2012<br />कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र<br />कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र <br /><br /> -- भाग एक --<br />http://veerubhai1947.blogspot.in/search?updated-max=2012-04-18T04:31:00-07:00&max-results=7<br />बुधवार, 18 अप्रैल 2012<br />कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र -- भाग दो<br />http://veerubhai1947.blogspot.in/<br />कोणार्क सम्पूर्ण चिकित्सा तंत्र <br /> <br /><br />-- भाग दो –virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-7974879110599160752012-04-17T22:55:42.978+05:302012-04-17T22:55:42.978+05:30बहुत ही संवेदनशील कविता और ऐसी कविता जो सिर्फ शाका...बहुत ही संवेदनशील कविता और ऐसी कविता जो सिर्फ शाकाहार की वकालत या मांसाहार की मलामत नहीं करती, बल्कि तार्किक आधार पर तथ्यों को प्रस्तुत कर रही है!! मन को छूती है!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-30283966267374820462012-04-17T17:45:12.661+05:302012-04-17T17:45:12.661+05:30बहुत सटीक और सार्थक!बहुत सटीक और सार्थक!डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'https://www.blogger.com/profile/09313147050002054907noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-34751584160140288992012-04-17T16:56:09.976+05:302012-04-17T16:56:09.976+05:30संतुलित आहार के लिये मांसाहार की कोई आवश्यकता नहीं...संतुलित आहार के लिये मांसाहार की कोई आवश्यकता नहीं। शाकाहार में ही बेहतर विकल्प उपलब्ध हैं। पश्चिमी देशों में मांसाहार का विरोध प्रारम्भ हो चुका है। सबसे बड़ी बात तो सभी जीवों के जीवन जीने के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा की है। मनुष्य सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है इसलिये अधिकारों की रक्षा का सबसे बड़ा उत्तरदायित्व भी उसी का है। एस्कीमोज की उम्र सबसे कम होती है क्योंकि वे केवल मांसाहार ही करते हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों के शोध विवादास्पद भी होते हैं, वे कभी चाय को हितकारी मानते हैं तो कभी हानिकारक......एक वैज्ञानिक दूसरे वैज्ञानिक की रिपोर्ट को कुछ समय बाद असत्य प्रमाणित कर देता है। हमें उन सत्यों की ओर ध्यान देना चाहिये जो निर्विवादित हैं।बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-7050538629441046882012-04-17T15:46:25.330+05:302012-04-17T15:46:25.330+05:30@ ज़िद बहुत बुरी चीज़ होती है। इंसान ज़िद में अंधा...@ ज़िद बहुत बुरी चीज़ होती है। इंसान ज़िद में अंधा हो जाता है। .....बिलकुल सच कह रहे हैं आप - इस सत्य वचन का स्वागत है | blind ज़िद नहीं करनी चाहिए।<br /><br />@ न तो शाकाहारियों को शाकाहार की ज़िद करनी चाहिए और न ही मांसाहारियों को मांसाहार की ज़िद करनी चाहिए। ........यह कहना ही तो जिद है - हम "शाकाहार की जिद" नहीं कर रहे , बल्कि जीव हिंसा के विरुद्ध खड़े हैं | यदि आप बिना जीव हिंसा के मांसाहार कर सकते हों, तो हमें भी वह तरीका बताएं कि कैसे बिना हिंसा के मांसाहार संभव है ? <br /><br />@ मांसाहारियों को शाक भी खाना चाहिए ..... शाक के बिना मांसाहार संभव ही नहीं है - मांस को पकाने में शाक (tomatoes, spices, onions, oil etc) का उपयोग अनिवार्यतः होता ही है | साथ ही रोटी / चावल आदि अन्नाहार भी लिया ही जाता है | आप कोई एक भी ऐसा उदाहरण नहीं दे सकते जिस में कोई मनुष्य "शुद्ध मांसाहार" पर जीवित रह सकता हो !!! जबकि शुद्ध शाकाहार पर सदियों से लोग जिए हैं, आज भी जी रहे हैं, और आगे भी जियेंगे |<br /><br />@ शाकाहारियों को भी कभी कभार मछली आदि ले लेनी चाहिए। श्रेष्ठ भोजन संतुलित भोजन है। ..... संतुलित भोजन के लिए मछली आदि की कोई आवश्यकता नहीं है | वैज्ञानिक तालिकाएँ उपलब्ध हैं - जो साफ़ दिखाती हैं कि शुद्ध शाकाहार से पूर्ण संतुलित भोजन प्राप्त होता है | उसके लिए दुसरे प्राणियों के प्राण हरने की कोई आवश्यकता नहीं होती | इसीलिए मैंने ऊपर यह कहा है <br />"पोषण की झूठी, घुमावदार बातों के झांसों में,.... "Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-75417332159362801642012-04-17T15:29:05.511+05:302012-04-17T15:29:05.511+05:30बिलकुल सही कहा आपने, "ज़िद बहुत बुरी चीज़ होत...बिलकुल सही कहा आपने, <b>"ज़िद बहुत बुरी चीज़ होती है। इंसान ज़िद में अंधा हो जाता है।"</b><br />फिर "शाकाहारियों को भी कभी कभार मछली आदि ले लेनी चाहिए" <b>की जिद क्यों?</b><br />"तालिका" पर स्वयं विज्ञान की भी जिद नहीं न किसी वैज्ञानिक नें जड़तापूर्वक कहा कि मांसाहार के सम्मिश्रण से ही संतुलन सम्भव है, फिर <b>इसपर सहमति की जिद का अंधापन क्यों?</b><br />सही मनोमंथन है <b>"ख़ुद ज़िद पर अड़ा रहेगा और दूसरे के ज़िद की शिकायत करता रहेगा।"</b>सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-9603609688800112602012-04-17T15:05:25.614+05:302012-04-17T15:05:25.614+05:30ज़िद बहुत बुरी चीज़ होती है। इंसान ज़िद में अंधा ह...ज़िद बहुत बुरी चीज़ होती है। इंसान ज़िद में अंधा हो जाता है।<br />ज़िद किसी को भी नहीं करनी चाहिए।<br />न तो शाकाहारियों को शाकाहार की ज़िद करनी चाहिए और न ही मांसाहारियों को मांसाहार की ज़िद करनी चाहिए।<br />दोनों को ही अपने अपने भोजन को श्रेष्ठ मानने की ज़िद भी नहीं करनी चाहिए।<br />मांसाहारियों को शाक भी खाना चाहिए और शाकाहारियों को भी कभी कभार मछली आदि ले लेनी चाहिए। श्रेष्ठ भोजन संतुलित भोजन है।<br />आज विज्ञान का युग है। वैज्ञानिकों ने अपने शोध से जो भी भोजन तालिका बनाई हो उस पर दोनों को सहमत हो जाना चाहिए।<br />हरेक अपने ही पक्ष में ज़िद करता रहेगा तो बस ज़िद ही रह जाएगी।<br />ख़ुद ज़िद पर अड़ा रहेगा और दूसरे के ज़िद की शिकायत करता रहेगा।Ayaz ahmadhttps://www.blogger.com/profile/09126296717424072173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-84931551461048728942012-04-17T12:38:06.144+05:302012-04-17T12:38:06.144+05:30त्रिपाठी जी! सभी प्राणियों मे श्रेष्ठ होने के नाते...त्रिपाठी जी! सभी प्राणियों मे श्रेष्ठ होने के नाते और हर प्राणी को जीवन का अधिकार नैसर्गिक रूप से प्राप्त होने के कारण हम हिंसा की वकालत नहीं कर सकते....मनुष्य को भोजन के लिये बहुत कुछ दिया है प्रकृति ने ....अन्य जीवों के प्राण हरण करके अपने उदर की पूर्ति करने को कुत्सित विचार की ष्रेणी में ही रखा जा सकता है ।<br />शिल्पा जी की वैचारिक छटपटाहट इस रचना में प्रकट हुई है...हम उनके विचारों का सम्मान करते हैं।बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-31565793866312110312012-04-17T10:54:22.884+05:302012-04-17T10:54:22.884+05:30त्रिपाठी जी - जिन्हें खाना है वे खायेंगे ही - यह स...त्रिपाठी जी - जिन्हें खाना है वे खायेंगे ही - यह सोच कर क्या हम cannibalism (मानव भक्षण) के भी साथ हो सकते हैं ?<br /><br />और फिर - जिद हम सिर्फ खाने को नहीं कह रहे - उन कुतर्कों को कह रहे हैं जो मांसाहार को शाकाहार से श्रेष्ठ, अत्यावश्यक, इश्वर की आज्ञा आदि कहे हैं |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-10704866428033066002012-04-17T08:48:14.201+05:302012-04-17T08:48:14.201+05:30@सबकी अपनी दुनिया है...।
सिद्धार्थ जी,
सबकी अपनी ...@सबकी अपनी दुनिया है...।<br /><br />सिद्धार्थ जी,<br />सबकी अपनी दुनिया है, किन्तु दुनिया सबकी साझा है, समस्त जीव-जगत की। असंयमी शोषण को प्रोत्साहन तो न मिलना चाहिए।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-6615874442216424722012-04-17T05:53:26.922+05:302012-04-17T05:53:26.922+05:30सार्थक पंक्तियाँ रची हैं.....सार्थक पंक्तियाँ रची हैं..... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-43595844370432553322012-04-17T05:42:44.183+05:302012-04-17T05:42:44.183+05:30त्रिपाठी जी, भोजन तो सबको ही चाहिये, उसका बुरा तो ...त्रिपाठी जी, भोजन तो सबको ही चाहिये, उसका बुरा तो कोई भी नहीं मानता। हाँ जब हम जीवहत्या से बचने की, या अहिंसा, करुणा अपनाने की बात करते हैं तब ज़रूर कई लोग बुरा मान जाते हैं।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-87988791312148476892012-04-17T05:41:22.588+05:302012-04-17T05:41:22.588+05:30बधाई हो शिल्पा जी! इस कविता की हरेक पंक्ति सारपूर्...बधाई हो शिल्पा जी! इस कविता की हरेक पंक्ति सारपूर्ण है।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-17204025609326501292012-04-16T21:22:47.656+05:302012-04-16T21:22:47.656+05:30आदमी अपने पक्ष में तर्क ढूँढ ही लेता है। जिन्हें ब...आदमी अपने पक्ष में तर्क ढूँढ ही लेता है। जिन्हें बकरा खाना है वे खाएंगे ही, आप इसे जिद मानें तो भी...। मैं शुद्ध शाकाहारी हूँ, लेकिन जो नहीं हैं उनका बुरा नहीं मानता। सबकी अपनी दुनिया है...।<br /><br />आपने इस मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष की दलीलों कों कविता में बखूबी पिरोया है।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-75176946740310384902012-04-16T18:59:55.642+05:302012-04-16T18:59:55.642+05:30किसी महापुरुष के प्रिय पुत्र कुर्बान करने को,
...किसी महापुरुष के प्रिय पुत्र कुर्बान करने को,<br /> बकरों की कटवाई की आज्ञा बनाने की जिद। <br />जीभ के स्वाद के क्रूर आनंद की पूर्ति के लिए, <br /> परमपिता को ही क्रूर साबित कराने की जिद। <br /><br />सटीक इंगित!!सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-49004751253417917912012-04-16T18:29:58.891+05:302012-04-16T18:29:58.891+05:30तुड़े मुड़े से तर्क हैं ये।तुड़े मुड़े से तर्क हैं ये।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-21967125713329423152012-04-16T17:55:31.787+05:302012-04-16T17:55:31.787+05:30aapki is rachna ko salaam bahut hi sateek baate ka...aapki is rachna ko salaam bahut hi sateek baate kahi gai hai rachna me ....laajabbab.Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-14378141518595010612012-04-16T17:32:34.475+05:302012-04-16T17:32:34.475+05:30अद्भुत तरीके से समेटा है आपनें "निरामिष"...अद्भुत तरीके से समेटा है आपनें "निरामिष" पर ही पेश आयी कुतर्कों की जिद को!!!<br /><br />सत्य ही है………"सूरज को दिया दिखाने की जिद।"<br /><br />साधुवाद!!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/04417160102685951067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-87491359594700668892012-04-16T17:24:19.533+05:302012-04-16T17:24:19.533+05:30वाह! स्वाद के लिए पशु हत्या के शौक़ीन कैसे कैसे तर...वाह! स्वाद के लिए पशु हत्या के शौक़ीन कैसे कैसे तर्क देते हैं. समस्या तब होती है जब वे हमारे अपने हों. :(<br />घुघूतीबासूतीghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-19835852548077059232012-04-16T17:11:06.915+05:302012-04-16T17:11:06.915+05:30बहुत समय से आंदोलित करने वाली पोस्ट पढ़ने को नहीं म...बहुत समय से आंदोलित करने वाली पोस्ट पढ़ने को नहीं मिल रही थी. आज मिल ही गयी.<br /><br />एक तो कविता का असर बहुत प्रभावी होता है. दूसरे, आपने व्यंग्यात्मक स्वर में आधुनिक हठीले विद्वानों के प्रयासों की पोलखोलकर रख दी. <br /><br />..........पढ़कर मुझे लगा कि.... काफी देर तक जब बात बर्दाश्त से बाहर हो जाये तो ही कुतर्कियों के कान पर ये झन्नाटेदार पड़ता है.<br /><br />शिल्पा जी, कविताई बहुत भाई..... कविताई से ज़्यादा अंदाज़े-बयाँ.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.com