tag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post454894903564903589..comments2023-10-24T17:01:13.971+05:30Comments on निरामिष: वैदिक यज्ञों में पशुबलि---एक भ्रामक दुष्प्रचारAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/04417160102685951067noreply@blogger.comBlogger41125tag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-36558877319491090262013-03-28T20:21:50.856+05:302013-03-28T20:21:50.856+05:30क्या आप 'अश्वमेघ' यज्ञ सम्बन्धी कुछ दुश्प्...क्या आप 'अश्वमेघ' यज्ञ सम्बन्धी कुछ दुश्प्रचारों पर लिखेंगे?बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-88633779535554117482013-03-28T20:19:23.954+05:302013-03-28T20:19:23.954+05:30क्या आप 'अश्वमेघ' यज्ञ सम्बन्धी कुछ दुश्प्...क्या आप 'अश्वमेघ' यज्ञ सम्बन्धी कुछ दुश्प्रचारों पर लिखेंगे?बलराम अग्रवालhttps://www.blogger.com/profile/04819113049257907444noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-49867203574014033712012-06-18T22:36:55.919+05:302012-06-18T22:36:55.919+05:30हिन्दू जन को तो मांस भक्षण किसी भी प्रकार से नहीं ...हिन्दू जन को तो मांस भक्षण किसी भी प्रकार से नहीं करना चाहएdasvaisnawhttps://www.blogger.com/profile/03617790571014800420noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-85205469539767638112012-04-15T21:05:00.636+05:302012-04-15T21:05:00.636+05:30aap gaumans ke sambandh me phailaye ja rahe kuchh ...aap gaumans ke sambandh me phailaye ja rahe kuchh bhramo ke nivaran ke liye is lekh ko padhen <br /><a href="http://nationalizm.blogspot.in/2012/04/blog-post.html" rel="nofollow">महाभारत ,गाय और राजा रन्तिदेव :एक और इस्लामिक कम्युनिस्ट कुटिलता </a><br />http://nationalizm.blogspot.in/2012/04/blog-post.htmlअंकित कुमार पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/02401207097587117827noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-28416345240908783452012-01-02T20:32:20.727+05:302012-01-02T20:32:20.727+05:30सुग्य जी---अनवर जमाल व उन जैसे अन्य को न तो गम्भीर...सुग्य जी---अनवर जमाल व उन जैसे अन्य को न तो गम्भीर भाषा समझ में आती है न तर्क ही....जिनका मूल अभिप्रायः सिर्फ़ ईश्वरं अल्लां का मन्त्र ही गुनगुनाना हो...वह कभी कभी दिखाने के लिये राम की वेदों की प्रसन्शा कर दिया करते हैं....उन्हें कुछ भी समझाना व्यर्थ है...<br /> ---गाय के वैदिक अर्थ= गाय, प्रथ्वी, बुद्धि ,प्रक्रिति,समष्टि-भाव, भी होता है.....<br /> ---मांस का अर्थ...= फ़लों का गूदा अर्थात छिले हुए फ़ल,किसी भी वस्तु क मूल प्रयुक्त होने वाला भाग...जैसे ..<br /> एक प्रचलित पहेली है...<br /> --एक चिडिया चट, उसका पन्ख बोले पट,<br /> उसकी खाल उतार खा मांस मजेदार ।..उत्तर है...गन्ना.<br /> --.अर्थात गन्ना छीलने पर छिलका प्राय चट-चट आवाज़ से खुलता है, उसकी खाल (छिलका) उतार कर मजेदार मांस( गूदा) खायें...<br /> इसीप्रकार सारे वैदिक अर्थ हैं..जो आजकल भी प्रचलित हैं सारे भारत भर में..<br /> --------वैदिक युग मे भी असुर, राक्षस, दुष्ट हुआ करते थे ...वे मांस-भक्षण भी करते होंगे...इसका अर्थ यह नहीं है कि वैदिक लोग मास-भक्षी थे...<br /> २ जनवरी २०१२ ८:२८ अपराह्न shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-15344618445769427492012-01-02T20:28:50.006+05:302012-01-02T20:28:50.006+05:30सुग्य जी---अनवर जमाल व उन जैसे अन्य को न तो गम्भीर...सुग्य जी---अनवर जमाल व उन जैसे अन्य को न तो गम्भीर भाषा समझ में आती है न तर्क ही....जिनका मूल अभिप्रायः सिर्फ़ ईश्वरं अल्लां का मन्त्र ही गुनगुनाना हो...वह कभी कभी दिखाने के लिये राम की वेदों की प्रसन्शा कर दिया करते हैं....उन्हें कुछ भी समझाना व्यर्थ है...<br />---गाय के वैदिक अर्थ= गाय, प्रथ्वी, बुद्धि ,प्रक्रिति,समष्टि-भाव, भी होता है.....<br />---मांस का अर्थ...= फ़लों का गूदा अर्थात छिले हुए फ़ल,किसी भी वस्तु क मूल प्रयुक्त होने वाला भाग...जैसे ..<br />एक प्रचलित पहेली है...<br />--एक चिडिया चट, उसका पन्ख बोले पट,<br /> उसकी खाल उतार खा मांस मजेदार ।..उत्तर है...गन्ना.<br />--.अर्थात गन्ना छीलने पर छिलका प्राय चट-चट आवाज़ से खुलता है, उसकी खाल (छिलका) उतार कर मजेदार मांस( गूदा) खायें...<br />इसीप्रकार सारे वैदिक अर्थ हैं..जो आजकल भी प्रचलित हैं सारे भारत भर में..<br />--------वैदिक युग मे भी असुर, राक्षस, दुष्ट हुआ करते थे ...वे मांस-भक्षण ्भी करते होंगे...इसका अर्थ यह नहीं है कि shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-73384020354730504182011-12-05T11:20:51.816+05:302011-12-05T11:20:51.816+05:30डा. अनवर जमाल साहब ने अपनी टिप्पणियों में वैदिक सभ...डा. अनवर जमाल साहब ने अपनी टिप्पणियों में वैदिक सभ्यता का वह पक्ष भी यहां रख दिया है जिसे आम तौर पर शाकाहारी सामने आने नहीं देना चाहते।<br />इस से चर्चा की क्वालिटी में इज़ाफ़ा हुआ है और पता चला है कि असल बात को कैसे बदलने की कोशिश की गई है ?<br /><br />हम पिछली पोस्ट पर भी दो-तीन टिप्पणियां कर चुके हैं मगर उन्हें पब्लिश होने के बाद हटा दिया गया।<br />यह तो कोई अच्छी बात नहीं है कि अपने पक्ष के हरेक तरह के आदमी की टिप्पणियां प्रकाशित की जाएं चाहे उसमें ऐसी बात भी हो जिसे औरतें पढ़ते हुए शर्म महसूस करें और हमारी ठीक ठाक टिप्पणियां भी हटा दी जाएं।<br /><br />इसे हटाना मत,<br />वर्ना इसे कहीं और दिखाया जाएगा और वह आपको पसंद न आएगा।Ayaz ahmadhttps://www.blogger.com/profile/09126296717424072173noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-37341738587004702052011-12-01T08:26:23.114+05:302011-12-01T08:26:23.114+05:30तथ्य - मंत्र में बताया गया है कि शीत ऋतु ............तथ्य - मंत्र में बताया गया है कि शीत ऋतु ...............भला सर्दियों में मारी गई गाय दोबारा वसंत ऋतु में पुष्ट कैसे हो सकती है ?<br />सुज्ञ जी ! समयाभाव के कारण ब्लाग्स पर जाना नहीं हो पाता । और अभी मैंने यहाँ कुछ आलेख टिप्पणी सहित सरसरी तौर पर ही देखे हैं । तब आपकी इस टिप्पणी ने आकर्षित किया । इस सम्बन्ध में जो ठोस जानकारी मुझे हैं । वो ये कि - समस्त गृन्थों में ’गो’ शब्द का प्रयोग इन्द्रियों के लिये ही किया गया है । किसी भी रूप में गाय के लिये नहीं । कहीं भी नहीं । गाय के लिये गौ ही है । गोचर शब्द का प्रयोग - इन्द्रियों के विचरण क्षेत्र हेतु है । क्योंकि आपने पूरा मन्त्र नहीं लिखा । अन्यथा मैं उसका गूढ अर्थ आपको बताने की कोशिश करता । हनुमान शब्द में भी हनु का अर्थ मारना । यानी अपने मान रखने की इच्छा को मारना । इसी प्रकार ‘हन्यते’ शब्द का आशय इन्द्रियों के निरन्तर भोग विलास की चेष्टा को हनन करना है । अब आप गो - इन्द्रिय । अर्थ से इस मन्त्र को आसानी से समझ सकते हैं । शीत ऋतु में सभी जीवधारी इन्द्रिय स्तर पर शिथिल हो जाते हैं । और बसन्त में पुष्टता को प्राप्त होते हैं । ध्यान रहे । ये बात सिर्फ़ मनुष्य नहीं । पशु पक्षी और वृक्षों पर भी लागू होती है ।<br />एक निवेदन और भी है । मैं अब अध्ययन नहीं करता । यदि आप या अन्य सज्जन गृन्थों से उदाहरण दें । तो सिर्फ़ उस अंश को मुझे भी मेल कर दें । तो मैं भी अपना मत यहाँ रख सकूँ । यह मेरी सहयोग भावना है । बाकी पूरे लेख का अध्ययन और उस पर अपना दृष्टिकोण मेरे लिये सम्भव नहीं हैं । जबकि ऐसी चर्चाओं में मेरी रुचि है ।सहज समाधि आश्रमhttps://www.blogger.com/profile/12983359980587248264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-42858658529005604952011-11-30T23:33:14.119+05:302011-11-30T23:33:14.119+05:30रंजना जी का दूसरा कमेंट बहुत अच्छा लगा।रंजना जी का दूसरा कमेंट बहुत अच्छा लगा।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-60809168989843263182011-11-30T23:02:10.742+05:302011-11-30T23:02:10.742+05:30कुतर्कियों को किसिकर भी संतुष्ट नहीं किया जा सकता,...कुतर्कियों को किसिकर भी संतुष्ट नहीं किया जा सकता, अतएव मेरी प्रार्थना है कि इन्हें प्रत्युत्तर दे नाहक श्रम का अपव्यय न किया जाय...<br /><br />स्पष्ट तो है, इनका अपना एक मिशन है...<br /><br />सार्थक सकारात्मक बातें, जिनके ह्रदय में सत रूपी वह परमात्मा है, वहां तक पहुँच ही जायेंगी...और जहाँ वो हैं ही नहीं, वहां तक सत का प्रकाश पहुँच सकता है...???रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-74965170244633001792011-11-30T22:43:13.978+05:302011-11-30T22:43:13.978+05:30युक्तियुक्त इतनी सारगर्भित, सुन्दर विवेचना...किन श...युक्तियुक्त इतनी सारगर्भित, सुन्दर विवेचना...किन शब्दों में आभार व्यक्त करूँ, समझ नहीं पड़ रहा...<br />कोटि कोटि आभार...रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-65708496129256569612011-11-30T19:31:26.652+05:302011-11-30T19:31:26.652+05:30डॉ अनवर जमाल साहब,
इस आलेख की भावना के अनुसार, हम...<b>डॉ अनवर जमाल साहब,</b><br /><br />इस आलेख की भावना के अनुसार, हमारा यह प्रमाणित करना ही पर्याप्त है कि कि <b>“वेद जैसे धर्म शास्त्रों में पशुबली का कोई विधान नहीं है।“</b> वेद भी पवित्र अहिंसा की ही शिक्षा देते है। आपके असंदर्भित कथन से मान भी लें कि शंकराचार्य जी मानते ही हैं कि ‘वैदिक यज्ञों में पशु बलि हुआ करती थी।‘ तो इसमें भी कोई विचित्र स्थापना नहीं है। कथ्य-कथन से विदित ही है कि बाद के समय में कभी यह कुरीति चली भी आई हो, तब भी यह कभी जन-सामान्य के धर्म-जीवन का अंग नहीं रही। प्रथा कुरिति आदि जैसी घटनाओं से किसे इन्कार है। पर यह स्पष्ट है कि धर्म में हिंसक उपदेश हो ही नहीं सकते। ऐसे कर्मकाण्ड़ कुरीतियां ही होती है वे किसी भी काल में धर्म का अंग नहीं बन सकती। और <b>कुरीतियां मिटाना ही तो धर्म संस्कृति सभ्यता का कार्य और लक्षण है।</b>सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-91547445079985129882011-11-30T16:45:28.761+05:302011-11-30T16:45:28.761+05:30इतनी जल्दी भी न मचाईए, अभीष्ट सिद्ध करनें मे ???
...इतनी जल्दी भी न मचाईए, अभीष्ट सिद्ध करनें मे ???<br /><br />@ भाई सुज्ञ जी ! अगर आपकी सलाह है तो हम आपकी सलाह का सम्मान करते हैं और थोड़ी देर के बाद मान लेंगे जो कि शंकराचार्य जी मानते ही हैं कि <b><br />♥ ♥ ♥ ‘वैदिक यज्ञों में पशु बलि हुआ करती थी।‘ ♥ ♥ ♥</b><br /><br />♠, ♥, ♥ धन्यवाद !<br />वंदे ईश्वरम् !!!DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-36570377704720370292011-11-30T16:20:56.048+05:302011-11-30T16:20:56.048+05:30आर्य समाज पशु बलि का विरोधी है और वेदों में भी नही...आर्य समाज पशु बलि का विरोधी है और वेदों में भी नहीं मानता.<br />सहमत .PARAM ARYAhttps://www.blogger.com/profile/07013544056473438992noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-21007165856585778392011-11-30T15:16:16.542+05:302011-11-30T15:16:16.542+05:30अनुराग जी,
दुष्प्रचार के हेतु से अक्सर प्रस्तुत कि...<b>अनुराग जी,<br />दुष्प्रचार के हेतु से अक्सर प्रस्तुत किए जाने वाले, परम सात्विक ॠग्वेद के इन दो मंत्रो को, आपने उसके मूल स्वरूप के साथ ही पवित्र वेद के आशय को अखंड रखते हुए जो भावार्थ प्रस्तुत किए है, वह अज्ञान तिमिर का नाश और मिथ्या प्रचार को विनिष्ट करने में सहायक सिद्ध हुए है।<br />आपका यह प्रकटीकरण, इस भ्रम निकंदन चर्चा में मील का पत्थर सिद्ध होगा।<br />और परम् पावन वेदों को ‘हिंसा’ के मिथ्या आरोपण से मुक्ति मिलेगी।</b>सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-52632250985443514092011-11-30T14:49:17.103+05:302011-11-30T14:49:17.103+05:30अनवर जमाल साहब,
इतनी जल्दी भी न मचाईए, अभीष्ट सिद...अनवर जमाल साहब,<br /><br />इतनी जल्दी भी न मचाईए, अभीष्ट सिद्ध करनें मे???<br /><br />"कोई भी आर्यसमाजी हो या सनातनी 'वैदिक यज्ञों में पशुबली' को नहीं मानता और न वेदों में है ऐसा स्वीकार सकता है" सायण को मात्र पढ़ने से कोई भी सायण के पशुबलि अर्थों का समर्थक नहीं हो जाता।<br /><br />मिथ्या आलाप करें आप और साबित करने के लिए पूछने जाएं हम? आपके पास तो अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए कोई निर्देशतात्मक हवाला भी नहीं है।<br /><br />जबकि अनुराग जी ने आपके द्वारा दुष्प्रचार में प्रस्तुत ॠग्वेद के दो मंत्रो को मूल स्वरूप एवं भावार्थ सहीत रखकर, सत्य उजागर किया है, आप तो उसी समय निरूत्तर हो गए थे। भ्रम खण्ड़न तो तभी ही हो गया था।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-33481494252204550632011-11-30T13:24:25.858+05:302011-11-30T13:24:25.858+05:30@ भाई सुज्ञ जी !
देश की सनातनी जनता आदि शंकराचार्...@ भाई सुज्ञ जी ! <br /><b>देश की सनातनी जनता आदि शंकराचार्य को और उनकी पीठों को मानती है और वर्तमान पीठों के शंकराचार्य सायण के वेदभाष्य को मानते हैं।</b><br />यह एक स्थापित सत्य है।<br />इसे साबित करने के लिए किसी हवाले की ज़रूरत नहीं है।<br />आपको हमारे कथन में शक हो तो शंकराचार्यों से या बीएचयू आदि किसी भी संस्था से पत्राचार करके पता कर लीजिए।<br />बीएचयू में आज भी सायण भाष्य ही पढ़ाया जाता है।DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-83787064206102660942011-11-30T13:17:02.255+05:302011-11-30T13:17:02.255+05:30डॉ अनवर जमाल साहब,
आप पूरी टिप्पणी तो गहनता से पढ़...डॉ अनवर जमाल साहब,<br /><br />आप पूरी टिप्पणी तो गहनता से पढ़िए…………<br /><br />हां, इतना सब होते हुए भी कोई अन्तर नहीं पड़ता, क्योंकि सत्यसाधक तो सत्यान्वेषण कर सत्य-तथ्य ही प्राप्त करेगा।<br /><br />मैने कहा ही था कि…… "प्रज्ञावान को चाहिए कि वह वेद के मूल आश्य को हृदयगम रखकर विवेचना करे।" और "वेदविद्यार्थी को चाहिए कि भाष्य का भी युक्तियुक्त सार्थक मूल आशय का अर्थाभिगम ग्रहण करे।"<br /><br />@ जबकि देश के समस्त शंकराचार्य और सनातनी जनता उसे प्रामाणिक मानते हैं और दयानंदी भाष्य को भ्रष्ट और परंपरा के विपरीत मानते हैं।<br /><br />अनवर जमाल साहब,<br /><br />आप प्रतिनिधि तो नहीं है सनातनी जनता के? और न आपने रायशुमारी करवाई हो ऐसा ज्ञात होता है। फिर कैसे इतने विश्वास से कह सकते है कि 'सनातनी जनता' क्या मानती है?<br /><br />क्या आपके पास, देश के समस्त शंकराचार्यों के कथन का कोई 'अधिकारिक सन्दर्भ' है कि वे सब किसी एक भाष्य को ही एकमेव प्रमाणित मानते है?सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-2631235278600340992011-11-30T13:11:39.014+05:302011-11-30T13:11:39.014+05:30आर्य समाजी साहित्य और सनातनी साहित्य ही बताता है क...<b>आर्य समाजी साहित्य और सनातनी साहित्य ही बताता है कि </b>कौन क्या मानता है ?<br />ख़ैर आपने यह तो मान ही लिया है कि सायण वैदिक यज्ञ में बलि देने के समर्थक हैं।<br />बस इतना ही काफ़ी है कि <br /><b>नवीन भाष्यों के वुजूद में आने और विरोध होने से पहले देश में वैदिक यज्ञों में बलि दी जाती थी।</b><br />इतना ही सिद्ध करना अभीष्ट था।<br />बाद के भाष्य क्या कहते हैं ?<br />उनके विचार भी यहां दिए गए हैं तो हम उनका भी स्वागत करते हैं।<br />इससे पोस्ट समृद्ध ही हुई है।DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-55910047706602853902011-11-30T12:29:02.392+05:302011-11-30T12:29:02.392+05:30@ भाई सुज्ञ जी ! आप बता रहे हैं कि
सायण के भाष्य ...@ भाई सुज्ञ जी ! आप बता रहे हैं कि <br /><b>सायण के भाष्य में कर्मकाण्ड को प्रधानता दी गई है, और ‘बहुदेववादी असर दिखाई देता है, वहां दयानन्द के भाष्य में एकेश्वरवाद प्रमाणित किया गया है। सायण जिस शब्दों से कर्मकाण्ड़ी मानसिकता से यज्ञों में पशुबलि का अर्थ करते है, दयानन्द उन्ही शब्दो से प्रकृति के प्रति निष्ठा भाव और अहिंसा का निरूपण करते है।</b><br /><br />यह बताने के बाद भी आप कहते हैं कि कोई अंतर नहीं पड़ता ?<br /><br />लोग सायणभाष्य को मानेंगे तो उन्हें बहुदेववाद में आस्था रखनी पड़ती है और यज्ञों में पशु बलि करनी पड़ती है जबकि दयानंदी भाष्य को मानते ही बहुदेववाद में भी आस्था ख़त्म हो जाती है और पशु बलि भी नहीं करनी पड़ती। <br /><b>आकाश पाताल का अंतर आ रहा है और आप कहते हैं कि कोई अंतर ही नहीं पड़ता।</b><br />अगर वास्तव में ही कोई अंतर नहीं पड़ता तो आप सायण भाष्य को स्वीकार क्यों नहीं करते ?,<br />जबकि देश के समस्त शंकराचार्य और सनातनी जनता उसे प्रामाणिक मानते हैं और दयानंदी भाष्य को भ्रष्ट और परंपरा के विपरीत मानते हैं।DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-34287418611671705522011-11-30T12:06:48.748+05:302011-11-30T12:06:48.748+05:30डॉ अनवर जमाल साहब,
भाष्यकारों का महत्व मात्र इसलि...डॉ अनवर जमाल साहब,<br /><br />भाष्यकारों का महत्व मात्र इसलिए है कि वे हमें वेद समझने में सहायता करते है। उनका भाष्य अभिप्रायः ही होता है। वेदों के गूढार्थ को प्रकट करने के लिए उनका सम्मान तो किया जा सकता पर भाष्यकारों के प्रति अंध आस्था को कोई स्थान नहीं है।<br /><br />वेदों का भाष्यकार वेदभाष्यकार ही होता है, आर्यसमाजी या सनातनी नहीं। यह बात अलग है कि भाष्यकार का न्यूनाधिक पूर्वाग्रह भाष्य पर अपनी छाप छोडता है। पर वेदविद्यार्थी को चाहिए कि भाष्य का भी युक्तियुक्त सार्थक मूल आशय का अर्थाभिगम ग्रहण करे।<br /><br />सायण के भाष्य में कर्मकाण्ड को प्रधानता दी गई है, और ‘बहुदेववादी असर दिखाई देता है, वहां दयानन्द के भाष्य में एकेश्वरवाद प्रमाणित किया गया है। सायण जिस शब्दों से कर्मकाण्ड़ी मानसिकता से यज्ञों में पशुबलि का अर्थ करते है, दयानन्द उन्ही शब्दो से प्रकृति के प्रति निष्ठा भाव और अहिंसा का निरूपण करते है।<br /><br />दयानन्द के भाष्य से अमूर्तिपूजा, जातिप्रथा आदि के लिए आलोचना की जाती है तो अहिंसा और एकेश्वरवाद के आर्य तरीके से निरूपण के लिए आदर व्यक्त किया जाता। अतः भाष्यकार को भाष्यकार की तरह ही लेना चाहिए, ईशवाणी के समकक्ष आस्था की तरह नहीं।<br /><br />एक भाष्यकार के सभी निष्कर्ष सही नहीं हो सकते उसी प्रकार उनके सभी निष्कर्ष गलत भी नहीं हो सकते। प्रज्ञावान को चाहिए कि वह वेद के मूल आश्य को हृदयगम रखकर विवेचना करे।<br /><br />इसलिए भाई अग्निवीर जी आर्य समाजी होने से सत्य में कोई अन्तर नहीं पड़ता, सत्य तो सत्य ही रहता है।विश्व भर में तो मेक्समूलर का वेदभाष्य भी स्वीकृत है, जिन्हें वैदिक संस्कृत का आवश्यक ज्ञान भी न था। आज मेक्समूलर के निष्कर्षों को पक्षपाती संदेह से देखा जाता है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-44819628687579311542011-11-30T05:50:25.604+05:302011-11-30T05:50:25.604+05:30पहले वेदमंत्र की तरह ही अगले सन्दर्भित मंत्र में भ...पहले वेदमंत्र की तरह ही अगले सन्दर्भित मंत्र में भी पशुधन देने की नहीं, (देवताओं को प्रसन्न करके) लेने की बात हो रही है।<br /><b>यस्मिन्नश्वास ऋषभास उक्षणो वशा मेषा अवसृष्टास आहुताः।<br />कीलालपे सोमपृष्ठाय वेधसे हृदा मतिं जनये चारुमग्नये॥<br />ऋग्वेद (मण्डल १० सूक्त ९१ मंत्र १४)</b><br />अन्न-रस का पान करने वाले, सोम की आहुति ग्रहण करने वाले, श्रेष्ठमति वाले अग्निदेव के लिये अपने मन और बुद्धि शुद्ध करो; तभी तो अश्व, गौ, मेष और वृषभ की सज्जित भेंट प्राप्त होगी।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-17818624600151501372011-11-30T05:41:12.506+05:302011-11-30T05:41:12.506+05:30@ मांसाहार के नाम से प्रचारित किये जा रहे मौलिक वे...@ मांसाहार के नाम से प्रचारित किये जा रहे मौलिक वेदमंत्र में मांस, बैल या वसा का कोई सन्दर्भ नहीं है। यह रहे मंत्र और उनका अर्थ:<br /><b>उक्ष्णो हि मे पंचदश साकं पचन्ति विंशमित्।<br />उताहमद्मि पवि इदुभा कुक्षी पृणन्ति मे विश्वस्मादिन्द्र उत्तरः।।<br />ऋग्वेद (मंडल १० सूक्त ८६ मंत्र १४)</b> <br />विश्व में इन्द्र ही सर्वोपरि है। शची द्वारा प्रेरित 15-20 औषधियाँ एक साथ मेरे लिये परिपक्व होती हैं। उनके सेवन से मेरे दोनों कोख पुष्ट होते हैं। <br /><br />मज़े की बात यह है कि इसके अगले ही मंत्र (10/86/15) में इन्द्र को गोयूथ के बीच प्रसन्न वृषभ की तरह कल्याणकारी होने की प्रार्थना करते समय बैल के लिये स्पष्ट रूप से वृषभ शब्द का प्रयोग किया गया है। यदि उपरोक्त मंत्र में भी मंत्रदृष्टा ऋषि का आशय वृषभ होता तो उन्हें शब्द छिपाने की कोई आवश्यकता नहीं थी। इस एक उदाहरण से भी स्पष्ट है कि वेदों मंत्रों का मंतव्य क्या है।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-88856611972014622562011-11-29T22:32:20.545+05:302011-11-29T22:32:20.545+05:30भाई अग्निवीर जी आर्य समाजी हैं।
आर्य समाजी तो सायण...भाई अग्निवीर जी आर्य समाजी हैं।<br />आर्य समाजी तो सायण, उव्वट और महीधर आदि सनातनी विद्वानों को धूर्त, भांड और निशाचर कहते हैं और उनके भाष्य को नकारते हैं।<br />उनके कहने से इन विद्वानों के कथन की महत्ता समाप्त नहीं हो जाती।<br />जो करोड़ों सनातनी भाई बहन इन विद्वानों में आस्था रखते हैं। वे इनके लिखे को सही मानते हैं। उनके लिए इनका साहित्य आज भी प्रमाण की हैसियत रखता है और विश्व भर में इन्हीं लोगों का वेदभाष्य स्वीकृत है।<br />अतः अग्निवीर के नकारने से कोई अंतर नहीं पड़ता।DR. ANWER JAMALhttps://www.blogger.com/profile/06580908383235507512noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-22570468150713935232011-11-29T21:50:46.335+05:302011-11-29T21:50:46.335+05:30सुज्ञ भैया - आपने ठीक कहा | आगे प्रयास रखूंगी कि ऐ...सुज्ञ भैया - आपने ठीक कहा | आगे प्रयास रखूंगी कि ऐसा न हो |Shilpa Mehta : शिल्पा मेहताhttps://www.blogger.com/profile/17400896960704879428noreply@blogger.com