tag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post6113336590474487059..comments2023-10-24T17:01:13.971+05:30Comments on निरामिष: आदिमानव शाकाहारी थें, नवीनत्तम जानकारीAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/04417160102685951067noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-62204251477337307532012-01-13T16:20:31.519+05:302012-01-13T16:20:31.519+05:30सुज्ञJan 31, 2011 10:15 PM
ठीक कहा प्रतुल जी,...सुज्ञJan 31, 2011 10:15 PM<br /><br /> ठीक कहा प्रतुल जी,<br /> मांसाहार का प्रचलन, हमारा सभ्यता से असभ्यता की ओर पतन है।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-59616749372506636202011-02-01T12:11:44.680+05:302011-02-01T12:11:44.680+05:30.
सुज्ञ जी, आपने इस पोस्ट को लगाकर पढाये जा रहे ब....<br /><br />सुज्ञ जी, आपने इस पोस्ट को लगाकर पढाये जा रहे बिगड़े और भ्रमपूर्ण इतिहास पर प्रश्न चिह्न लगा दिया है. <br />मैं बचपन से सोचता था कि क्या हमारा विकास क्रमतर हुआ है?.. फिर सोचता था कि क्या हमारे पूर्वज पशुवध करते थे? यदि ऐसा था तो बहुत बुरा था हमारा अतीत. फिर मैं आर्य-विद्वानों के संपर्क में आया तो समझ आया कि हमारा विकास व्यतिक्रम में अधिक हुआ है. भाषा की दृष्टि से, साहित्य की दृष्टि से, पर्यावरण की दृष्टि से, अध्यात्मिक उन्नति के दृष्टि से, स्वास्थ्य की दृष्टि से, सुख-ऐश्वर्य की दृष्टि से, नियम-संयम-आचार वाले जीवन की दृष्टि से हर दृष्टि से पतन ही तो देखा है हमने. खानपान की दृष्टि से भी पतन का लक्षण ही तो है मांसाहार. भौतिक उन्नति तो लुक्का-छिप्पी का खेल ही है. <br /><br />[ एक 'तो' अतिरिक्त आ गया था इस कारण उसे निकालने के चक्कर में टिप्पणी डिलिट कर बैठा. तब तक देर हो चुकी थी. सुज्ञ जी हामी भर चुके थे. ]<br /><br />.प्रतुल वशिष्ठhttps://www.blogger.com/profile/00219952087110106400noreply@blogger.com