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गुरुवार, 8 नवंबर 2012

क्या मांसाहार से मनोवृति पर कोई प्रभाव नहीं पडता?

यह सत्य है कि इंसान का अच्छा या बुरा, हिंसक अहिंसक होना उसकी अपनी प्रवृत्ति है। कोई जरूरी नहीं आहार के कारण ही एक समान प्रवृति दिखे। किन्तु यह प्रवृत्तियाँ भी उसकी क्रूर-अक्रूर वृत्तियोँ के कारण ही बनती है. दृश्यमान प्रतिशत भले ही कम हो फिर भी वृत्तियों का असर मनोवृति पर पडना अवश्यंभावी है। भाव के शुभ अशुभ चिंतन से ही व्यवहार और वर्तन का निर्माण होता है.व्यक्ति की मनोदशा का प्रभाव उसके व्यवहार और व्यक्तित्व में आए बिना नहीं रहता। यह एक वैज्ञानिक सत्य है कि मन की भावनाओं के अनुरूप मानव-शरीर में हार्मोन्स स्राव होता है और उन हार्मोन्स का प्रभाव, मन की भावनाओं और प्रवृतियों को बदलने में समर्थ होता है।

मांस प्राप्त करने के लिए जब प्राणी की हिंसा की जाती है। निसहाय होते हुए भी मरणांतक संघर्ष करता है। जैसे भय विवशता दुख हर्ष विषाद तनाव के समय प्रत्येक जीव के शरीर में उन भावनाओं को सहने योग्य अथवा प्रतिकार योग्य रसायनों का स्राव होता है। उसी प्रकार प्राणी मरने से पहले भयक्रांत होता है, जीवन बचाने की जिजीविषा में संघर्ष करता है। तड़पता है। उसके शरीर में भी तदनुकूल हार्मोन्स का स्राव होता है वे हार्मोन्स क्षण मात्र में रक्तप्रवाह के माध्यम से मांस-मज्जा तक पहुँच कर संग्रहित हो जाते है। इन हार्मोन्स का प्रभाव भय, आवेश, क्रोध, दुस्साहस आदि पैदा करना होता है। ऐसे संघर्षशील प्राणी के मरने के उपरान्त भी ये हार्मोन उसके मांस-मज्जा में सक्रीय रहते है। ऐसा मृत प्राणी-मांस जब मनुष्य आहार द्वारा अपने शरीर में ग्रहण करता है, वे हार्मोन्स मानव शरीर में प्रवेश कर सक्रिय होते है। परिणाम स्वरूप मांसाहारी भिन्न- भिन्न आवेशों को महसुस करता है।(शायद, अपराधी अपराध के समय अक्सर मांस शराब आदि का सेवन इन्ही दुस्साहस युक्त आवेशों को पाने के लिए करता होगा) वे आवेग कुछ पल के लिए नशे की तरह आवेश आक्रोश उत्पन्न करते है जो प्रथमतः स्फूर्तिवर्धक प्रतीत हो सकते है। हमें भ्रम होता है कि शरीर में अतिरिक्त उर्जा का संचार हुआ है जबकि वह आवेग मात्र होता है।

ग्वालियर के दो शोधकर्ताओं, डॉ0 जसराज सिंह और सी0 के0 डेवास ने ग्वालियर जेल के 400 बन्दियों पर शोध कर ये बताया कि 250 माँसाहारियों में से 85% चिड़चिड़े व लडाकू प्रवृति के मिले। जबकि शेष 150 शाकाहारी बन्दियों में से 90% शांत स्वभाव और खुश मिजाज थे।

पिछले दिनों अमेरिका के एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने इस बात को प्रमाणित किया कि माँसाहार का असर व्यक्ति की मनोदशा पर भी पड़ता है। ज्यादा मांसाहार से चिड़चिड़ेपन के साथ स्वभाव उग्र होने लगता है। शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया कि लोगों की हिंसक प्रवृत्ति का सीधा संबंध माँसाहार के सेवन से है।

सोमवार, 5 नवंबर 2012

क्या मांसाहार में कोई शक्ति है?

माँसाहार से आने वाले क्षणिक आवेश और उत्तेजना को उत्साह और शक्ति मान लिया जाता है। जबकि वह आवेग मात्र होता है विशिष्ट खोजों के द्वारा यह भी पता चला है कि जब किसी जानवर को मारा जाता है तब वह आतंक व वेदना से भयभीत हो जाता है उसका शरीर मरणांतक संघर्ष करता है परिणामस्वरूप उत्तेजक रसायन व हार्मोन उसके सारे शरीर में फैल जाते हैं और वे आवेशोत्पादक तत्व मांस के साथ उन व्यक्तियों के शरीर में पहुँचते हैं, जो उन्हें खाते हैं।

दिल्ली के राकलैंड अस्पताल की मुख्य डायटीशियन सुनीता कहती हैं कि माँसाहार के लिए जब पशुओं को काटा जाता है तो उनमें कुछ हार्मोनल बदलाव होते हैं। ये हार्मोनल प्रभाव माँसाहार का सेवन करने वालों के शरीर में भी पहुँच जाते हैं।

जीव या पशु संरचना पर ध्यान देने पर हम देखते हैं कि सर्वाधिक शक्तिशाली, परिश्रमी, व अधिक सहनशीलता वाले पशु जो लगातार कई दिन तक काम कर सकते हैं, जैसे हाथी, घोडा, बैल, ऊँट, आदि सब शाकाहारी होते हैं। इग्लेंड में परीक्षण करके देखा गया है कि स्वाभाविक माँसाहारी शिकारी कुत्तों को भी जब शाकाहार पर रखा गया तो उनकी बर्दाश्त शक्ति व क्षमता में वृद्धि हुई।
मांसाहार में कोई शक्ति नहीं, वह अल्पकालिक आवेश मात्र है।