निरामिष शब्दार्थ व भावार्थ:-
निरामिष : मांसरहित (fleshless)
निरामिष आहार : ऐसा खाद्य पदार्थ या भोजन जिसमें आमिष अर्थात् मांस या सामिष अर्थात् मांस के अंश या मांस स्वरूप अंडा या मछली न मिला हो।
निरामिष व्यक्ति : जो मांस, अंडा, मछली आदि न खाता हो।
अर्थात्, निरामिष आहार एक ऐसा शाकाहार है जिसमें दुग्ध पदार्थ सम्मलित है। शाकाहार के आधुनिक श्रेणी में हम निरामिष आहार को लैक्टो-शाकाहार ( lacto-vegetarian ) कह सकते है। परम्परागत भारतीय संदर्भ में शुद्ध शाकाहार या सात्विक आहार का आशय “निरामिष” आहार से ही है। अर्थात वह आहार जिसमें किसी भी प्रकार के मांस या मांस-व्युत्पन्न पदार्थ, अंडा मछली आदि उत्पाद शामिल न हो।
प्रारंभिक काल से ही निरामिष आहार घनिष्ठ रूप से प्राणियों के प्रति अहिंसा व अनुकम्पा से जुड़ा हुआ है। अहिंसा के जीवन मूल्यों में प्रत्येक जीवन के प्रति आदर व्यक्त हुआ है। अहिंसा में दया का सद्भाव है, जो प्राणीमात्र के लिए शान्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।
जीवदया का मार्ग निरामिष आहार से प्रशस्त होता है। मनुष्य के हृदय में तब तक अहिंसा भाव परिपूर्णता से स्थापित नहीं हो सकता जब तक उसमें निरीह जीवों की हत्या कर मांसाहार करने का जंगली संस्कार विद्यमान हो। जब मात्र स्वाद और पेट्पूर्ती के लिए मांसाहार का चुनाव किया जाता है तो मांसाहार के उद्देश्य से प्राणी हत्या, मानस में क्रूर भाव का आरोपण करती है जो निश्चित ही हिंसक मनोवृति के लिए जवाबदार है। मांसाहार द्वारा कोमल सद्भावनाओं का नष्ट होना व स्वार्थ व निर्दयता की भावनाओं का पनपना आज विश्व में बढ़ती हिंसा, घृणा व अपराधों का मुख्य कारण है। जीवदया और करूणा भाव हमारे मन में कोमल सम्वेदनाओं को स्थापित करते है। यही सम्वेदनाएं हमें मानव से मानव के प्रति भी सम्वेदनशील बनाए रखती है। शाकाहार मानवीय जीवन-मूल्यों का संरक्षक है। आज संसार में यदि शान्ति लक्षित है तो समस्त मानव समाज को निरामिष आहार अपना लेना चाहिए। क्योँकि अहिंसा ही शान्ति और सुख का अमोघ उपाय है।
“निरामिष” ब्लॉग, शाकाहार के प्रसार, प्रचार और जागृति को समर्पित एक सामुदयिक ब्लॉग है। “निरामिष”, स्वस्थ समाज निर्माण के उद्देश्य के प्रति निष्ठावान है। "निरोगी काया, निर्विकार मन, निरामय समाज।" हमारा नीति – वाक्य है। 'निरामिष ब्लॉग', तथ्यनिष्ठ, प्रमाणिक और विश्वसनीय जानकारी प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध है।
निरामिष : मांसरहित (fleshless)
निरामिष आहार : ऐसा खाद्य पदार्थ या भोजन जिसमें आमिष अर्थात् मांस या सामिष अर्थात् मांस के अंश या मांस स्वरूप अंडा या मछली न मिला हो।
निरामिष व्यक्ति : जो मांस, अंडा, मछली आदि न खाता हो।
अर्थात्, निरामिष आहार एक ऐसा शाकाहार है जिसमें दुग्ध पदार्थ सम्मलित है। शाकाहार के आधुनिक श्रेणी में हम निरामिष आहार को लैक्टो-शाकाहार ( lacto-vegetarian ) कह सकते है। परम्परागत भारतीय संदर्भ में शुद्ध शाकाहार या सात्विक आहार का आशय “निरामिष” आहार से ही है। अर्थात वह आहार जिसमें किसी भी प्रकार के मांस या मांस-व्युत्पन्न पदार्थ, अंडा मछली आदि उत्पाद शामिल न हो।
प्रारंभिक काल से ही निरामिष आहार घनिष्ठ रूप से प्राणियों के प्रति अहिंसा व अनुकम्पा से जुड़ा हुआ है। अहिंसा के जीवन मूल्यों में प्रत्येक जीवन के प्रति आदर व्यक्त हुआ है। अहिंसा में दया का सद्भाव है, जो प्राणीमात्र के लिए शान्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।
जीवदया का मार्ग निरामिष आहार से प्रशस्त होता है। मनुष्य के हृदय में तब तक अहिंसा भाव परिपूर्णता से स्थापित नहीं हो सकता जब तक उसमें निरीह जीवों की हत्या कर मांसाहार करने का जंगली संस्कार विद्यमान हो। जब मात्र स्वाद और पेट्पूर्ती के लिए मांसाहार का चुनाव किया जाता है तो मांसाहार के उद्देश्य से प्राणी हत्या, मानस में क्रूर भाव का आरोपण करती है जो निश्चित ही हिंसक मनोवृति के लिए जवाबदार है। मांसाहार द्वारा कोमल सद्भावनाओं का नष्ट होना व स्वार्थ व निर्दयता की भावनाओं का पनपना आज विश्व में बढ़ती हिंसा, घृणा व अपराधों का मुख्य कारण है। जीवदया और करूणा भाव हमारे मन में कोमल सम्वेदनाओं को स्थापित करते है। यही सम्वेदनाएं हमें मानव से मानव के प्रति भी सम्वेदनशील बनाए रखती है। शाकाहार मानवीय जीवन-मूल्यों का संरक्षक है। आज संसार में यदि शान्ति लक्षित है तो समस्त मानव समाज को निरामिष आहार अपना लेना चाहिए। क्योँकि अहिंसा ही शान्ति और सुख का अमोघ उपाय है।
मांसाहार में कोमल
भावनाओं के नष्ट होने की संभावनाएं अत्यधिक ही होती है। हर भोजन के साथ उसके उत्पादन और स्रोत पर चिंतन हो जाना
स्वभाविक है। हिंसक कृत्यों व मंतव्यो से ही उत्पन्न माँस, हिंसक विचारों को जन्म देता है। ऐसे विचारों का बार बार चिंतवन, अन्ततः परपीड़ा की सम्वेदनाओं को निष्ठुर बना देता है। हिंसक दृश्य, निष्ठुर
सोच और परपीड़ा को सहज मानने की मानसिकता, हमारी मनोवृति पर दुष्प्रभाव डालती है। भले यह मात्र सम्भावनाएँ हो, इन सम्भावनाओं देखते हुए, सावधानी जरूरी है कि घटित होने के
पूर्व ही सम्भावनाओं पर ही लगाम लगा दी जाय। विवेकवान व्यक्ति परिणामो से पूर्व
ही सम्भावनाओं पर पूर्णविराम लगाने का उद्यम करता है। हिंसा के प्रति जगुप्सा के अभाव में अहिंसा
की मनोवृति प्रबल नहीं बन सकती।
“निरामिष” ब्लॉग, शाकाहार के प्रसार, प्रचार और जागृति को समर्पित एक सामुदयिक ब्लॉग है। “निरामिष”, स्वस्थ समाज निर्माण के उद्देश्य के प्रति निष्ठावान है। "निरोगी काया, निर्विकार मन, निरामय समाज।" हमारा नीति – वाक्य है। 'निरामिष ब्लॉग', तथ्यनिष्ठ, प्रमाणिक और विश्वसनीय जानकारी प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध है।