tag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post1869046400240343143..comments2023-10-24T17:01:13.971+05:30Comments on निरामिष: शाकाहारी बने, स्वस्थ रहें।Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/04417160102685951067noreply@blogger.comBlogger6125tag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-39251120068960843992015-06-16T21:39:09.220+05:302015-06-16T21:39:09.220+05:30जो बात गलत है वह हमेशा गलत ही रहेगी. चाहे अंडे से ...<b>जो बात गलत है वह हमेशा गलत ही रहेगी. चाहे अंडे से बच्चे निकलें अथवा नहीं निकलें. यदि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ हो तो क्या उसे खा लेना चाहिए? उसमें जीव तो नहीं रहा न."<br />उसी प्रकार यदि जबरदस्ती करके आदमी के बच्चों को मृत पैदा करवाया जाए और उसे खाया जाए तब क्या तुम उसे खाना पसंद करोगे?</b><br />एकदम सही बात है। अंडा खाने के पक्ष में दिये जाने वाले तर्कों में कोई भी इसके सामने नहीं ठहरता। सच यही है कि सही और गलत के बीच की विभाजन रेखा कई जगह इतनी असपष्ट हो (या कर दी) जाती है कि बालमन गलत को ही सही समझने लगता है। असत से सत की ओर प्रगति सतत और निरंतर बनी रहनी चाहिए Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-24235836072844420402011-01-23T22:20:25.158+05:302011-01-23T22:20:25.158+05:30शाकाहार का विकल्प नहीं।शाकाहार का विकल्प नहीं।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-40484233816206119252011-01-23T14:07:20.872+05:302011-01-23T14:07:20.872+05:30आभार आपका प्रतुल जी,
इस सामुदयिक ब्लॉग का उद्देश्...आभार आपका प्रतुल जी,<br /><br />इस सामुदयिक ब्लॉग का उद्देश्य भी यही है कि हमारी नवपीढी जो सहज सात्विक आचार व आहार की अनुगामी रहे, वह सामिष आहार प्रचार के प्रभाव से दूर रहे, और सार्थक समझ पनपे। सात्विक आहार से स्वस्थ समाज के निर्माण में यह छोटा सा प्रयत्न है। इस अभियान का उद्देश्य है शाकाहार के लाभ जगजाहिर करना।सुज्ञhttps://www.blogger.com/profile/04048005064130736717noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-83283015289451187892011-01-23T13:44:18.211+05:302011-01-23T13:44:18.211+05:30...
मैं सुज्ञ जी का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे अप......<br /><br />मैं सुज्ञ जी का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे अपने इस मिशन में अपना सहयोगी बनाया. मैं इस पवित्र यज्ञ में समय-समय पर टिप्पणी और पोस्ट की आहुति देने का वचन देता हूँ. <br /><br />.PRATULhttps://www.blogger.com/profile/03991585584809307469noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-11662048935230628552011-01-23T13:43:22.539+05:302011-01-23T13:43:22.539+05:30...
मिले एक दिन बाबा राम
बोले — कर लो प्राणायाम ......<br /><br />मिले एक दिन बाबा राम <br />बोले — कर लो प्राणायाम <br />पूरे दिन में बस दो बारी <br />खाना खाओ शाकाहारी <br />तीन समय लो प्रभु का नाम <br />सुबह, दोपहर और शाम <br />जागो चार बजे तुम रोज <br />आलस छोडो, भर लो ओज <br />पाँच जगह की करो सफाई <br />नोज़, इयर, टंग, स्किन, आई <br />लंच और डिनर के बीच <br />छह घंटे का अंतर खींच <br />सप्ताह में जो दिन हैं सात <br />करो किसी दिन व्रत की बात <br />ऑफिस के घंटे हैं आठ <br />मेहनत कर लो खोल कपाट <br />रात नौ बजे तक सो जाओ <br />टीवी प्रोग्राम नहीं चलाओ <br />पिचकेगा दस दिन में पेट <br />छोटा नहीं लगेगा गेट. <br /><br />...PRATULhttps://www.blogger.com/profile/03991585584809307469noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-5771967989998427826.post-90156444544000706152011-01-23T13:42:18.210+05:302011-01-23T13:42:18.210+05:30.
मैं शाकाहारी भोजन का सार्थक हूँ. और भोजन के इस ....<br /><br />मैं शाकाहारी भोजन का सार्थक हूँ. और भोजन के इस वृत्ति संस्कार बीज को बालक-मन में डालना चाहता रहा हूँ. इसका कारण है <br />एक बार मैं जब 'आर्य वीर दल' की सांयकालीन व्यायाम शाखा में छोटे बच्चों को व्यायाम के उपरान्त एक संक्षिप्त बौद्धिक में अंडे को खाने से मना कर रहा था तब एक छोटा बच्चा [१२ वर्षीय] बोला वो तो एक सब्जी ही तो है आलू-प्याज की तरह से ही. जब उसे मैंने कहा कि जीवों का जन्म अंडे से ही होता है और हमें जीव की सृष्टि के किसी भी स्टेज को बाधित [रोकना] नहीं करना चाहिए. <br />तब उसने कहा कि मम्मी कहती है कि सब अण्डों से बच्चे नहीं पैदा होते. <br />मैंने कहा कि — "नहीं विशाल! जो बात गलत है वह हमेशा गलत ही रहेगी. चाहे अंडे से बच्चे निकलें अथवा नहीं निकलें. यदि बच्चा मरा हुआ पैदा हुआ हो तो क्या उसे खा लेना चाहिए? उसमें जीव तो नहीं रहा न."<br />उसी प्रकार यदि जबरदस्ती करके आदमी के बच्चों को मृत पैदा करवाया जाए और उसे खाया जाए तब क्या तुम उसे खाना पसंद करोगे? उसे मेरी इस बात से इतनी घृणा हुई कि उसने अंडा न खाने का संकल्प किया."<br />लेकिन बच्चों का संकल्प एक नन्हें पौधे की तरह से है जब तक उसे उपदेश की लगातार खाद न दी जाए वह मुरझा जाता है. उसका संकल्प भी मुरझा गया. उसने शाखा में आना छोड़ दिया था. माँ-पिता ने मनाही कर दी थी. उसकी माँ ने विशाल के जरिये मुझसे ५०० रुपये का उधार माँगा और दो महीने बाद भी माँगने पर नहीं दिया. मेरी इस कारण उस परिवार से दूरी बढ़ गयी. मेरे लिए तब पैसा कमाना केवल ट्यूशन के ज़रिये ही हुआ करता था. बहरहाल मैंने सोचा कि क्यों न अपनी शाकाहारी सोच का प्रचार कविता के माध्यम से करूँगा. उस भावना को मैंने निम्न कविता से पूरा भी किया : <br /><br />.......... "मिस्टर पेटूराम की चिकित्सा" ...........PRATULhttps://www.blogger.com/profile/03991585584809307469noreply@blogger.com