वैसे तो सूक्त का भावार्थ अपने आप मेँ स्पष्ट है. फिर भी इसका शब्दानुवाद किया जाय तो "कमजोर नर करूणाहीन होते है" होता है. सही भी है अक्षम को आवेश शीघ्र आता है शक्ति से निरूपाय अक्सर हिँसा पर उतर जाता है उस दशा मेँ क्षीण मनोबल व्यक्ति दया-हीन ही होता है.
तथापि प्रश्न का दृष्टिकोण स्पष्ट हो जाता तो व्याख्या सापेक्षता से प्रतिपादित की जा सकती है.
परमात्मा की २ प्रकार की आज्ञाएँ हैं ! १. वे जो शरीर के साथ सम्बन्ध रखती हैं , २. वे जिनका आत्मा के साथ सम्बन्ध है ! यदि किसी आज्ञा के विरुद्ध जो शरीर के साथ सम्बन्ध रखती है किया जावे तो कष्ट होगा और स्वास्थ्य में अन्तर आवेगा ! इसी प्रकार यद ि कोई आज्ञा जिसके पालन से आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है, न मानी जावे तो वे बातें प्राप्त नहीं होती हैं जो उसको होनी चाहिए अपितु आत्मा को अशांति की प्राप्ति होती है ! मांस खाना आत्मा के लिए हानिकारक है जो सांसारिक मनुष्यों को प्रतीत नहीं होता है !........ शुभ प्रभातम् ..............
मांसाहार की खुलकर तार्किक आलोचना ने शाकाहार की जो पुरजोर वकालत की है वह अंतर्मन को सीधे-सीधे रास आयी है। लेकिन खबरदार ... कुर्बानी के बारे में ठीक-ठीक बातों का प्रचार न करें। ये आपके लिए अच्छा नहीं होगा। यदि आप सच्चे निरामिष हैं तो जो भ्रम समाज में श्वास ले रहे हैं उनको बेमौत न मारें। उन्हें भी जीने का हक़ है। लगता है आपने कुरआन में से निकलती मधुर ध्वनि नहीं सुनी ... "कुर्बानी ..कुर्बानी .. कुर्बानी। अल्लाह को प्यारी है कुर्बानी।।"
सच है .... 'कुर्बानी' में अपनी इच्छा निहित होती है। त्याग, बलिदान, आत्मोत्सर्ग, न्योछावर जैसे शब्द उसके समीपस्थ अर्थ वाले हैं।
आभार.
जवाब देंहटाएंcould not understand this one - can someone explain it ?
हटाएंक्षीणा नरा निष्करूणा भवन्ति। (काव्य –रवि मंड़ल)
=== शक्तिहीन पुरूष दया-हीन होते है।
वैसे तो सूक्त का भावार्थ अपने आप मेँ स्पष्ट है. फिर भी इसका शब्दानुवाद किया जाय तो "कमजोर नर करूणाहीन होते है" होता है. सही भी है अक्षम को आवेश शीघ्र आता है शक्ति से निरूपाय अक्सर हिँसा पर उतर जाता है उस दशा मेँ क्षीण मनोबल व्यक्ति दया-हीन ही होता है.
हटाएंतथापि प्रश्न का दृष्टिकोण स्पष्ट हो जाता तो व्याख्या सापेक्षता से प्रतिपादित की जा सकती है.
@सर्वो जीवितुमिच्छति ...
जवाब देंहटाएं- सुन्दर और जीवनोपयोगी संकलन, आभार!
हिंसा नाम भवेद् धर्मो न भूतो न भविष्यति। (पूर्व मीमांसा)
जवाब देंहटाएं=== “हिंसा को धर्म कहें?” ऐसा न कभी भूतकाल मेँ था न कभी भविष्य मेँ होगा।
सुंदर और गहन तथ्य ......
लाभकारी पोस्ट ...आभार ...
बहुत ही सुन्दर संग्रह...सच में सबकी इच्छा होती है जीने की...
जवाब देंहटाएंसंग्रहणीय..... आभार
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंयस्य जीवदया नास्ति सर्वमेतन्निरर्थकम्। (शान्तिपर्व,महाभारत)
=== जिनके कार्य में जीवदया नहीं है उनकी सारी क्रियाएँ ही निर्थक है।
बहुत ही प्रेरक एवं संग्रह योग्य संकलन ... आभार
अति उत्तम प्रयास | आभार
जवाब देंहटाएंएक अनमोल कड़ी!!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब! वाह!
जवाब देंहटाएंकृपया इसे भी देखें-
नाहक़ ही प्यार आया
बहुत अच्छी बातें। मन में बिठाने वाली।
जवाब देंहटाएंGreat Thoughts!
जवाब देंहटाएंपरमात्मा की २ प्रकार की आज्ञाएँ हैं ! १. वे जो शरीर के साथ सम्बन्ध रखती हैं , २. वे जिनका आत्मा के साथ सम्बन्ध है ! यदि किसी आज्ञा के विरुद्ध जो शरीर के साथ सम्बन्ध रखती है किया जावे तो कष्ट होगा और स्वास्थ्य में अन्तर आवेगा ! इसी प्रकार यद
जवाब देंहटाएंि कोई आज्ञा जिसके पालन से आत्मिक शान्ति प्राप्त होती है, न मानी जावे तो वे बातें प्राप्त नहीं होती हैं जो उसको होनी चाहिए अपितु आत्मा को अशांति की प्राप्ति होती है !
मांस खाना आत्मा के लिए हानिकारक है जो सांसारिक मनुष्यों को प्रतीत नहीं होता है !........
शुभ प्रभातम् ..............
बहुत सुंदर बातें जीवन को सुंदर और सार्थक बनाने वालीं ।
जवाब देंहटाएंमांसाहार की खुलकर तार्किक आलोचना ने शाकाहार की जो पुरजोर वकालत की है वह अंतर्मन को सीधे-सीधे रास आयी है। लेकिन खबरदार ... कुर्बानी के बारे में ठीक-ठीक बातों का प्रचार न करें। ये आपके लिए अच्छा नहीं होगा। यदि आप सच्चे निरामिष हैं तो जो भ्रम समाज में श्वास ले रहे हैं उनको बेमौत न मारें। उन्हें भी जीने का हक़ है। लगता है आपने कुरआन में से निकलती मधुर ध्वनि नहीं सुनी ... "कुर्बानी ..कुर्बानी .. कुर्बानी। अल्लाह को प्यारी है कुर्बानी।।"
जवाब देंहटाएंसच है .... 'कुर्बानी' में अपनी इच्छा निहित होती है। त्याग, बलिदान, आत्मोत्सर्ग, न्योछावर जैसे शब्द उसके समीपस्थ अर्थ वाले हैं।