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शुक्रवार, 20 मई 2011

कितना खाओगे कच्चा प्रोटीन।


प्रोटीन से मांसपेशियां और हड्डियों का विकास होता है। हम यह भी जानते हैं कि जब किशोरावस्था तक शरीर तेजी से बढ़ता है तब इसे अधिक ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। नवजात शिशुओं को प्रोटीन की सर्वाधिक जरूरत होती है। फिर भी, नवजात शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार क्या है? यह है मां का दूध। और मां के दूध में कितना प्रोटीन होता है? मात्र पांच प्रतिशत! जबकि मांस व डेयरी उद्योग हमें यह विश्वास दिलाना चाहता है कि एक बड़े व्यक्ति को भी ऐसा भोजन करना चाहिए जिसमें अधिक से अधिक प्रोटीन हो। यह बकवास है। यह उनकी मार्केटिंग रणनीति के अलावा कुछ नहीं है। स्वामी चिदानंद सरस्वती की किताब के अनुसार यदि पूर्वाग्रह से मुक्त वैज्ञानिक अनुसंधान पर गौर करें तो इसके द्वारा अनुशंसित प्रोटीन का प्रतिशत मांस व डेयरी उद्योग द्वारा प्रायोजित अनुसंधान केंद्र द्वारा बताई गई मात्रा से काफी कम है। उदाहरण के लिए, अमेरिकन जर्नल आफ क्लिनिकल न्यूट्रिशन रोजाना सेवन किए गए भोजन का 2.5 प्रतिशत प्रोटीन लेने की सिफारिश करता है, जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन की सिफारिश 4.5 प्रतिशत की है। फूड एंड न्यूट्रिशन बोर्ड इस आंकड़े को बढ़ाकर छह प्रतिशत कर देता है।

दूसरे, पौधो से मिलने वाले भोजन, जिसमें सब्जियां, खाद्यान्न और फली आदि शामिल हैं, में इतना प्रोटीन होता है जिससे कि हमारी रोजाना की जरूरत पूरी हो जाए। अगर हम संतुलित भोजन करते हैं तो निश्चित तौर पर पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन मिल जाता है। प्रोटीन के अच्छे स्त्रोत हैं दालें, सोयाबीन, डेयरी उत्पाद, गिरि और मटर आदि। उदाहरण के लिए दलहन में 29 फीसदी, मटर में 28 प्रतिशत, पालक में 49 प्रतिशत, गोभी में 40 प्रतिशत, फलियों में 12-18 प्रतिशत और यहां तक कि टमाटर में 40 प्रतिशत प्रोटीन पाया जाता है। इसके बाद पुस्तक में कुछ ऐसे सवालों के जवाब दिए गए हैं जो अक्सर उठाए जाते हैं जैसे हम प्रोटीन की रोजमर्रा की जरूरत कैसे पूरी कर सकते हैं? इसके अलावा आयरन, कैल्शियम, विटामिन बी-12 और अन्य तत्वों के संबंध में भी जिज्ञासा शांत की गई है। हमने गोमांस उत्पादन के पारिस्थितिकीय प्रभावों और मांस सेवन की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी चर्चा की। उल्लेखनीय है कि औसतन एक अमेरिकी प्रतिवर्ष 125 किलोग्राम मांस का सेवन करता है, चीनी 70 किलोग्राम और भारतीय मात्र 3.5 किलोग्राम। इससे पता चलता है कि मांस उत्पादन के लिए हर साल दुनिया भर में साढ़े पांच हजार करोड़ पशुओं का संहार कर दिया जाता है। दूसरे शब्दों में पृथ्वी पर जितने मनुष्य रहते हैं, उससे दस गुना अधिक जानवरों का हर साल वध कर दिया जाता है। एक किलोग्राम गोमांस के उत्पादन में करीब 16 किलोग्राम अन्न की आवश्यकता पड़ती है।
                                                                                                     ---डॉ देविंदर शर्मा 
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  • ☀ Plant source: Lighter in mass, easier to break down/digest, comes with own enzymes, tons of fiber, which makes it perfect for elimination, richer in nutrient content, filled with nothing but the goods (antioxidants, photon energy from sunlight, high vibrational frequency, minerals…etc), is easy to digest and therefore creates more available amino acid molecules ready for absorption (quality), saves and promotes more lasting energy both for the self and for the planet. It is green to be healthy and healthy = green.
  • ☢ Animal source: Dense mass, harder to break down (energy exhauster), demands more enzymes to breakdown (if you can even make them, depending on your health state and diet) contains lots of bad fat, bad cholesterol, loaded with toxins (ammonia, nitrogen), rots in your intestines and this creates more bacteria and disease, stimulates bad bacteria growth in the colon, gives off toxins that are absorbed into the blood through the colon, creates an overly acidic system from toxic metabolic waste such as uric acid, purines, and ammonia byproducts, acidifies the blood causing bone loss, most contain hormones and antibiotics, and too much protein for human consumption, creating amyloid build-up that contributes to the aging process. And the worse thing, when you cook it, the protein availability diminishes, that’s if you can even breakdown properly to access those molecules.  It’s exhausting just thinking about it.
Sources: The New Optimum Nutrition Bible by Patrick Holford, Concious Eating by Gabriel Cousens M.D., Staying Healthy with Nutrition by Elson Hass M.D., www.vivo.colostate.edu

यह पूरा लेख यहां पढें--

The Protein Myth Part 3

12 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी जानकारी मिली.सबको ध्यान देना चाहिये इन पर.

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  2. इतनी अच्छी जानकारी के लिए आभार आपका !

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  3. हसराज भाई...बहुत अच्छी जानकारी...ऐसा लगता है काफी शोध करके लिखा गया आलेख है...महत्वपूर्ण जानकारी इसे सभी को पढना चाहिए...इस आलेख के लिए आपका आभार...

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  4. बहुत जानकारी परक आलेख है..... कई भ्रांतियां दूर हुईं...आभार

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  5. बढिया आलेख। दाल, फलियाँ और दुग्धाहार से हमें आवश्यकता भर उच्चस्तरीय प्रोटीन मिल जाता है। वैसे भी भोजन में प्रोटीन के अलावा भी बहुत ज़रूरतें होती हैं जिनके लिये शाकाहार मुफीद है। धन्यवाद!

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  6. एक किलोग्राम गोमांस के उत्पादन में करीब 16 किलोग्राम अन्न की आवश्यकता पड़ती है।
    @ मांस समर्थक दिमाग वालों की इस तर्क से यदि आँखें खुल सकें तो बहुत अच्छा होगा... लेकिन वे तो फिर भी यही कहेंगे कि
    "यदि सभी शाकाहारी हो जायेंगे तो अन्न की कमी हो जायेगी. हम तो विश्व में खाद्य का संतुलन बनाए रखने में मदद ही करते हैं."

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    1. वही तो। दुनिया में मांसाहार के कारण भुखमरी फैलती है।

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  7. आज से मैं भी ब्लॉग संसार का हिस्सा बन गया हूँ. मेरे ब्लॉग का नाम है "जिओ और जीने दो". आपके ब्लॉग पर आकर मुझे बहुत ही ख़ुशी हुई है. मैं भी मांसाहार का पुरज़ोर विरोधी हूँ. मेरा ब्लॉग मेरे भाई तुल्य श्री विरेन्द्र सिंह (आज़ाद परिंदा) ने बनाया है. और मुझे आपका ब्लॉग फ़ॉलो करने को कहा और मैंने ऐसे किया है. आपके ब्लॉग पर आकर मुझे लगा कि आप दुनिया का सबसे नेक काम कर रहे हैं . भगवान् मांसाहारियों को सदबुद्धि दें ताकि कोई किसी के भी जीने का अधिकार न छीने.

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  8. प्रियेश,

    निरामिष समर्थक के रूप में आपका स्वागत है। और भी अपने मित्रों को इस ब्लॉग के जानकारी परक लेख पढनें की सलाह भी अवश्य दें।

    सभी पाठक कृपया, यदि आप शाकाहार के समर्थक है तो इस ब्लॉग को फॉलो अवश्य करें।

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  9. बहुत ही सुन्दर लिखा है अपने इस मैं कमी निकलना मेरे बस की बात नहीं है क्यों की मैं तो खुद १ नया ब्लोगर हु
    बहुत दिनों से मैं ब्लॉग पे आया हु और फिर इसका मुझे खामियाजा भी भुगतना पड़ा क्यों की जब मैं खुद किसी के ब्लॉग पे नहीं गया तो दुसरे बंधू क्यों आयें गे इस के लिए मैं आप सब भाइयो और बहनों से माफ़ी मागता हु मेरे नहीं आने की भी १ वजह ये रही थी की ३१ मार्च के कुछ काम में में व्यस्त होने की वजह से नहीं आ पाया
    पर मैने अपने ब्लॉग पे बहुत सायरी पोस्ट पे पहले ही कर दी थी लेकिन आप भाइयो का सहयोग नहीं मिल पाने की वजह से मैं थोरा दुखी जरुर हुआ हु
    धन्यवाद्
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

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