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सोमवार, 23 मई 2011

सम्वेदनाएँ

साभार नवभारत टाईम्स, मुंबई










7 टिप्‍पणियां:

  1. सिर्फ़ किताबी कीडा होने से क्या फ़ायदा,मनुष्य को संवेदनशील होना चाहिए!आपके शाकाहार जाग्रति अभियान की सफ़लता हेतु शुभकामनाएं

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  2. हंसराज भाई आप एक शुभ कर्म के निमित्त बने हैं...आपके द्वारा किये जा रहे ये प्रयास प्रशंसनीय हैं..निरामिष ब्लॉग का यह एक जागृति अभियान है...हमें निरामिष समाज व निरामिष ब्लॉग से जुड़े होने पर गर्व है...
    आलेख में दी गयी कहानी बेहद अच्छी लगी...केवल किताबी ज्ञान ही सब कुछ नहीं है...
    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आपका आभार...
    मैं भी हिंदी ब्लॉग जगत के पाठकों से यह आग्रह करना चाहूँगा कि वे इस ब्लॉग से जुड़े व अधिक से अधिक लोगों तक इसे पहुंचाएं...आपके इन प्रयासों से हमारा मनोबल बढेगा...समाज में सात्विकता होगी...तामस का नाश होगा...धरती पर खुशहाली होगी...

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  3. आपका यह मानवोपयोगी अभियान दिन-दूनी, रात-चौगुनी गति से सफलता के नित नये शिखर को बुलन्द करे । इसी शुभकामना के साथ...

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  4. बेहद सार्थक और प्रशंसनीय कार्य । मैं सदैव आपके साथ हूँ ।

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  5. बहुत ही अच्छी लगी यह पोस्ट - सच है - ऐसा अध्ययन जो संवेदनाओं को जगा न सके - अर्थहीन ही है ...

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