भ्रम फैलाने के कार्य और 'निरामिष' पर निराकरण
भोजन एक सम्वेदनशील विषय है। लोग अक्सर अपने भोजन के बारे में टीका-टिप्पणी पसन्द नहीं करते। दुर्भाग्य से वही लोग अपने भोजन को सर्वश्रेष्ठ ठहराने का कोई अवसर नहीं चूकते भले ही उसमें कितनी भी क्रूरता और हिंसा मौजूद हो। इंटरनैट पर जहाँ सूचनाओं का भन्डार है वहीं अनर्गल प्रचार के ढेर के बीच से विश्वसनीय और प्रमाणिक जानकारी चुनना एक कठिन काम है। शाकाहार और मांसाहार के विषय में अंतर्जाल पर उपस्थित जानकारियों के प्रति इस कठिनाई को आपके लिये सरल बनाने के उद्देश्य से कुछ ब्लॉगरों द्वारा आहार सम्बन्धी भ्रामक आलेखों के बारे में विस्तृत तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत करते कुछ ऐसे आलेखों की सूची जिन्हें निरामिष पर पढा जा सकता है।
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भोजन एक सम्वेदनशील विषय है। लोग अक्सर अपने भोजन के बारे में टीका-टिप्पणी पसन्द नहीं करते। दुर्भाग्य से वही लोग अपने भोजन को सर्वश्रेष्ठ ठहराने का कोई अवसर नहीं चूकते भले ही उसमें कितनी भी क्रूरता और हिंसा मौजूद हो। इंटरनैट पर जहाँ सूचनाओं का भन्डार है वहीं अनर्गल प्रचार के ढेर के बीच से विश्वसनीय और प्रमाणिक जानकारी चुनना एक कठिन काम है। शाकाहार और मांसाहार के विषय में अंतर्जाल पर उपस्थित जानकारियों के प्रति इस कठिनाई को आपके लिये सरल बनाने के उद्देश्य से कुछ ब्लॉगरों द्वारा आहार सम्बन्धी भ्रामक आलेखों के बारे में विस्तृत तथ्यात्मक जानकारी प्रस्तुत करते कुछ ऐसे आलेखों की सूची जिन्हें निरामिष पर पढा जा सकता है।
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बकरा-ईद में मुसलमान करोड़ों निर्दोष जानवरों की हत्या क्यूँ करते है? -सलीम खान
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बेज़ुबान पेड़ों के मासूम भ्रूण को खाने वालो को दयालू कहा जाएगा या निर्दयी ? --डॉ अयाज़ अहमद
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वैदिक और हिंदुओं के पूर्वज माँसभक्षी थे - डॉ अनवर जमाल
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आहार विज्ञानी एक मत से यह मानते हैं कि आदर्श संतुलित आहार में शाकाहार व मांसाहार दोनों का समावेश होना चाहिये(और 11 सवाल) -प्रवीण शाह
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शाकाहार में विटामिन बी-12 आदि पोषण नहीं है – डॉ अनवर जमाल
शाकाहार से विटामिन डी प्राप्त नहीं होता – डॉ जाक़िर अली ‘रजनीश’
__________________________________________________________________________शाकाहार से विटामिन डी प्राप्त नहीं होता – डॉ जाक़िर अली ‘रजनीश’
बहुत सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंअद्भुत समायोजन!!
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी देते लिनक्स....
जवाब देंहटाएं@ शाकाहार-मांसाहार की बहस में निरामिष सोच के 'छात्र' मनोवृत्ति वाले युवा जब थकते-फँसते हैं.... तब अपने पक्ष को सबल बनाने के लिये उनमें जो तड़प दिखती है.. वह या तो आक्रामक होकर गाली-गलौज करने लगती है.. अन्यथा वह चुपचाप पलायन कर जाती है.
जवाब देंहटाएंऐसे में आपने एक जगह ही पैने तर्कों के अस्त्रों को संजोकर रख दिया है.... नवोदित निरामिष सोच के योद्धाओं (व्यक्तियों) को परास्त न होने के लिये आपने जिस 'कार्यशाला' का आयोजन किया है वह कुतर्कियों को मुँह के बल गिराएगा... ऐसा मेरा विश्वास है.
sachhi me........is mahti sad-karya ke liye monitor bhai evam sabhi lekhak mandal ko sadar naman.....
हटाएं@guruji.......suprabhat se tippani samvad honi chahiye....
pranam.
ऐसा अद्भुत संयोजन कर उत्कृष्ट शोध ग्रन्थ की भांति इस पोस्ट को आपने तैयार किया है , आपका कोटिश आभार !
जवाब देंहटाएंसार्थक और सटीक लिंकों के माध्यम से विस्तारपूर्वक जानकारी देती हुई पोस्ट ....आपका बहुत -बहुत आभार
जवाब देंहटाएंइसकी महती आवश्यकता थी...
जवाब देंहटाएं@लोग अक्सर अपने भोजन के बारे में टीका-टिप्पणी पसन्द नहीं करते।
जवाब देंहटाएंऔर हम लोग तो किसी के भोजन पर टीका-टिप्पणी करते भी नहीं, हमारी चिंता तो जीव-हत्या को लेकर है। अहिंसा और प्रेम के उपासकों का जीव-हिंसा से विरोध है और सदा रहेगा। अब वह हिंसा चाहे भोजन के नाम पर की जाये चाहे मनोरंजन या किसी अन्य बहाने से, ग़लत को ग़लत तो कहना ही चाहिये।
मांसाहार के समर्थन वाले लेखों को पढ़ना अपना समय बरबाद करने के सिवा कुछ भी नहीं.....ऐसा मेरा मानना है। दरअसल अपनी बातों को सही ठहराने के लिए लोग कई तरह की आधारहीन बातों को लेख में व्यक्त विचारों की प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए करते हैं। इसलिए ऐसे लेखों को मैं कभी नहीं पढ़ता। हां.....आपकी ये पोस्ट इस बात का प्रमाण है कि आप मांसाहार के पक्ष में प्रस्तुत आधारहीन तर्कों को बर्दास्त करने के लिए कतई तैयार नहीं है। आपकी इस सोच का मैं भी समर्थन करता हूं।
जवाब देंहटाएंसच ते ये है कि शाकाहार के प्रति ऐसा अनुराग और प्रतिबद्धता दुर्लभ है। इसिलए निरामिष टीम को कोटि कोटि बधाईया.
प्रिय भाई विरेन्द्र जी की बात से मैं भी सहमत हूँ कि उन लेखों को पढ़ा ही क्यों जाये जो निर्मम होने को न्यायसंगत ठहराते हों... इस कारण मैं भी कभी उन लेखों पर ध्यान नहीं देता...
हटाएंफिर भी अपने तर्कों को पुष्ट बनाने के लिये और सामयिक चिंतन की झलक देने के लिये पंडितों और आचार्यों को अपने हाथ में तुला लिये घूमना पड़ता ही है.. इसलिये कुतर्कियों को संतुष्ट करने के लिये उनके विचारों की गहन पड़ताल जरूरी हो जाती है..... इस दिशा में आचार्य अनुराग जी और आचार्य हंसराज जी महती योगदान दे रहे हैं. समय-समय पर पंडित अमित जी और पंडित वत्स जी का भी मार्गदर्शन हमें मिलता रहता है.
आपने भी तो एक बार जबरदस्त तर्कों की शृंखला प्रस्तुत की थी.... हम उसे भूले नहीं हैं.
सवाल सिर्फ भोजन की नहीं , निरपराध मासूम मूक पशु पक्षियों की सामूहिक हत्या का है !
जवाब देंहटाएंNice post.
जवाब देंहटाएंच्यवन ऋषि ने ताज़ा आंवले खाए और वे जवान हो गए
http://commentsgarden.blogspot.in/2012/02/blog-post.html
♠ आंवला अकेला ही बुढ़ापे को भगाने की शक्ति रखता है बशर्ते कि इसे ताज़ा खाया जाए।
एक बार आप एक महीना तक 52 घटकों वाला च्यवनप्राश खाएं और देखें कि आपके अंदर कितनी ताक़त का संचार हुआ ?
इसके बाद सुबह शाम, आप महीना भर ताज़ा आंवले खाएं।
अब आप ख़ुद देख लेंगे कि ताक़त किसने ज़्यादा दी ?
शाकाहारी फलों फूलों के औषधिय गुणों को कौन नहीं जानता, ताजा फल फूल शाक व अन्नप्राशन से ही शाकाहारी शुद्ध सात्विक पवित्र व स्वस्थ रहते आए हैं। यह हमारे पूर्वज च्यवन ऋषि का बिना भेद भाव के दिया गया अवदान है और इसका बखान तुच्छाहार करनेवालो को भी करना पड़ता है।
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