शाकाहार में लाभ ही लाभ है। प्रथम तो शाकाहार सस्ता और सर्व सुलभ होता है। मानव शरीर के उर्जा व शक्ति के लिए जरूरी ऐसा कोई पौष्टिक तत्व नहीं है, जो वनस्पतियों से प्राप्त नहीं किया जा सकता। शाकाहार अपने आप में पूर्ण संतुलित पोषक आहार है बशर्ते विभिन्न प्रकार के वनस्पति आधारित पदार्थों का सुनियोजित सेवन किया जाए। शाकाहार पचने मे आसान होता है।
शाकाहार मे बीमारी के कीटाणु आ जाने की संभावना कम रहती है। शाकाहार से व्यक्ति औसतन कम बीमार पड़ता है। शाकाहार से उच्च रक्तचाप, मोटापा और हृदयरोग तुलनात्मक कम होते है शाकाहार से व्यक्ति अधिक शक्तिशाली होता है और अधिक समय तक जीता है। शाकाहार से पेट की समस्याएँ कम से कम होती है। जबकि माँसाहार से हानियाँ ही अधिक सम्भावित है जैसे माँसाहार पचने मे अधिक समय लाते है और उस से गॅस और पेट संबंधी शिकायते बढ़ जाती है माँसाहार को पचाने मे अधिक उर्जा लगती है। माँसाहार में उपस्थित कीटाणु अधिकत्तम तापमान पर भी नष्ट नही होते। पशु की हत्या के समय उसके शरीर में बड़े पैमाने पर विषैले रसायनों का अन्तर्स्राव होता है जो मानव स्वास्थ्य के लिए घातक होते है एवं कई बिमारियों को जन्म देते है।
ईश्वर ने हमारा पाचन तंत्र शाकाहार के ही अनुकूल बनाया है। माँसाहार से जीवों की क्रूर हत्या होती है जो मानव के शान्ति लक्ष्य के विरूद्ध है। शाकाहार से मानव के लिए आहार श्रंखला और उर्जाचक्र सुनियोजित रहता है। जबकि माँसाहार से पर्यावरण में गम्भीर असंतुलन पैदा होता है।
माँसाहार से आपराधिक प्रवृत्ति की ओर रूझान देखा गया है इसका चिंतन ही आवेश आक्रोश और हिंसा में वृद्धि करता है। हम विचार करें, तो हमें अनुभूति होगी कि जो खाना हम खाते हैं, उसका हमारे शरीर, भावना तथा मानसिक स्थिति पर अप्रत्यक्ष किन्तु एक निश्चित प्रभाव पङता है। करूणा व अहिंसा के भाव शाकाहारी भोजन का आधार हैं। यदि हम अहिंसा और दया से पूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, यदि हम अधिक गंभीर शांत और संतुष्ट होना चाहते हैं, यदि हम अपने मन और इंद्रियों पर संयम रखना चाहते हैं, तब हमें स्वाभाविक रुप से ऐसा आहार ग्रहण करना होगा, जो कि हमें हमारे ध्येय की प्राप्ति में सहायक हो। शान्त सुखमय संतोषी जीवन ही हमारा लक्ष्य है। शाकाहार उस लक्ष्य का सहज सरल मार्ग है।
आलेख और टिप्पणियों से सहमत हूँ। अनावश्यक हिंसा से यथासम्भव बचते हुए, प्रकृति के सहयोगी बनकर भी हम अपना भरण पोषण अच्छी तरह कर सकते हैं। शाकाहारी जीवन शैली हमारे स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में भी सहयोगी है। आभार!
माँसाहार से आपराधिक प्रवर्ती की ओर रूझान देखा गया है इसका चिंतन ही आवेश आक्रोश और हिंसा में वृद्धि करता है। हम विचार करें, तो हमें अनुभूति होगी कि जो खाना हम खाते हैं, उसका हमारे शरीर, भावना तथा मानसिक स्थिति पर अप्रत्यक्ष किन्तु एक निश्चित प्रभाव पङता है। करूणा व अहिंसा के भाव शाकाहारी भोजन का आधार हैं। यदि हम अहिंसा और दया से पूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, यदि हम अधिक गंभीर शांत और संतुष्ट होना चाहते हैं, यदि हम अपने मन और इंद्रियों पर संयम रखना चाहते हैं, तब हमें स्वाभाविक रुप से ऐसा आहार ग्रहण करना होगा, जो कि हमें हमारे ध्येय की प्राप्ति में सहायक हो। शान्त सुखमय संतोषी जीवन ही हमारा लक्ष्य है। शाकाहार उस लक्ष्य का सहज सरल मार्ग है। इसीलिए तो खा गया है जैसा अन्न वैसा मन ,जैसा पानी वैसी वाणी .
सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में ,उस हेतु बधाई. visit and give feed back: http://madan-saxena.blogspot.in/ http://mmsaxena.blogspot.in/ http://madanmohansaxena.blogspot.in/
पश्चिमी देशों की रिपोर्ट है कि विश्व में ग्रीन हाउस गैसों के निर्माण के लिये उद्योगों से अधिक मांसव्यापार उत्तरदायी है। मांस व्यवसाय को यदि सरकारों ने प्रतिबन्धित न किया तो इस सभ्यता को नष्ट होना पड़ेगा। मनुष्य का पाचनतंत्र मांसाहार के लिये उपयुक्त नहीं है। मांसाहार तन और मन दोनो को प्रदूषित करता है।
bilkul sach hai | aabhaar aapka |
जवाब देंहटाएंशाकाहार की जय जयकार
जवाब देंहटाएंशाकाहार के लाभ हजारों है; भौतिक, आध्यात्मिक और मानवता एवं करुणा की दृष्टि से...
जवाब देंहटाएंयह लेख आगे और विस्तार किया जाय, समस्त निरामिष लेखक-वृन्द द्वारा..
बहुत उपयोगी पोस्ट है.
जवाब देंहटाएंसभी आवश्यक पौष्टिक तत्व शाकाहार से प्राप्य हैं तो फिर अनावश्यक हिंसा क्यों अपनाई जाए?
जवाब देंहटाएंआभार स्वीकार करें सुज्ञ जी|
आलेख और टिप्पणियों से सहमत हूँ। अनावश्यक हिंसा से यथासम्भव बचते हुए, प्रकृति के सहयोगी बनकर भी हम अपना भरण पोषण अच्छी तरह कर सकते हैं। शाकाहारी जीवन शैली हमारे स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा में भी सहयोगी है। आभार!
जवाब देंहटाएंनिश्चित रूप से हमारा खान-पान हमारे स्वभाव को नियंत्रित करता है.....जिस तरह रहन-सहन हमारे व्यवहार को ....
जवाब देंहटाएंजीवन को संवेदना से जोड़ता शाकाहार.....
जवाब देंहटाएंशाकाहार से इतर कभी सोचा नहीं.....इसलिए हमारे लिए तुलना भी बेमानी है.जो लोग दोनों विकल्प आजमा रहे हैं उन्हें सोचना चाहिए |
जवाब देंहटाएंशाकाहार की जय हो !
माँसाहार से आपराधिक प्रवर्ती की ओर रूझान देखा गया है इसका चिंतन ही आवेश आक्रोश और हिंसा में वृद्धि करता है। हम विचार करें, तो हमें अनुभूति होगी कि जो खाना हम खाते हैं, उसका हमारे शरीर, भावना तथा मानसिक स्थिति पर अप्रत्यक्ष किन्तु एक निश्चित प्रभाव पङता है। करूणा व अहिंसा के भाव शाकाहारी भोजन का आधार हैं। यदि हम अहिंसा और दया से पूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहते हैं, यदि हम अधिक गंभीर शांत और संतुष्ट होना चाहते हैं, यदि हम अपने मन और इंद्रियों पर संयम रखना चाहते हैं, तब हमें स्वाभाविक रुप से ऐसा आहार ग्रहण करना होगा, जो कि हमें हमारे ध्येय की प्राप्ति में सहायक हो। शान्त सुखमय संतोषी जीवन ही हमारा लक्ष्य है। शाकाहार उस लक्ष्य का सहज सरल मार्ग है।
जवाब देंहटाएंइसीलिए तो खा गया है जैसा अन्न वैसा मन ,जैसा पानी वैसी वाणी .
शाकाहार तो लाभदायक ही है.
जवाब देंहटाएंहिन्दी दुनिया ब्लॉग (नया ब्लॉग)
सुन्दर भाव अभिवयक्ति है आपकी इस रचना में ,उस हेतु बधाई.
जवाब देंहटाएंvisit and give feed back:
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बहुत अच्छी पोस्ट..............
जवाब देंहटाएंशकाहारी होना ही आधी समस्याएँ समाप्त कर देता है..
आभार.
अनु
उपयोगी एवं लाभाकारी प्रस्तुति .. आभार
जवाब देंहटाएंपश्चिमी देशों की रिपोर्ट है कि विश्व में ग्रीन हाउस गैसों के निर्माण के लिये उद्योगों से अधिक मांसव्यापार उत्तरदायी है। मांस व्यवसाय को यदि सरकारों ने प्रतिबन्धित न किया तो इस सभ्यता को नष्ट होना पड़ेगा। मनुष्य का पाचनतंत्र मांसाहार के लिये उपयुक्त नहीं है। मांसाहार तन और मन दोनो को प्रदूषित करता है।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही लिखा है, मनुष्य की प्रवृत्ति ही है जटिलता से सरलता की तरफ गमन, लेकिन भोजन को लेकर न जाने क्यों दुराग्रह और भ्रांतियां पाल बैठा है..
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