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गुरुवार, 21 जून 2012

देखो कैसे प्राण बचाते है


शाक, सब्जियों, फलों को पौधे 
पर - आहार के लिए बनाते हैं
जब आते हैं फल पेड़ो पर
देखो वे झुक जाते हैं 

जितने फल लीजै पेड़ों से
फिर उतने उग आते हैं
फलों से लदे वृक्ष देखो कैसे 
ख़ुशी से झूमते जाते हैं

किन्तु जंतु बदन को अपने
निज के लिए बनाते हैं
हर इक अंग, तन का अपने 
हर चोट से, हरपल, बचाते हैं

कोई भी अंग चोटिल हो जाए तो 
दर्द से तड़प वे जाते हैं
और कोई अंग जो खो जाए तो 
सदा को अपंग हो जाते हैं

पौधे जब फल सृजन करते हैं
खुशबू बिखेर बुलाते हैं
जो फल लेने कोई न आये 
तो फल भूमि पर गिराते हैं

जंतुओं का मांस लेने जाओ
देखो कैसे प्राण बचाते है
सारी जीवनी शक्ति पावों में भर 
सरपट दौड़े जाते हैं 

जो हत्यारा फांस ही ले उनको 
बेबस वे हो जाते हैं
असहाय अश्रुपूर्ण कातर आँखों से
देखते हैं - अपने प्राण कैसे जाते हैं


और उस निर्मम को वे बस 

भोजन भर नज़र आते हैं ???

17 टिप्‍पणियां:

  1. उफ़, हर प्राणी मृत्यु से बचना चाहता है।
    खुद बचें और दूसरों को बचायें!
    निरामिष अपनायें, मानवता बचायें!

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    1. निरामिष भोजन भी अपनाएं, और लेदर के प्रयोग से भी बचें |

      जो "pure leather " के जूते / बेल्ट / पर्स / हैट आदि हम बहुत गर्व से इस्तेमाल करते हैं - वे निर्दोष पशुओं की हत्या कर के पाया जाता है | यह उद्योग मांसाहार से कहीं अधिक क्रूर है | कई बार तो जीते हुए जानवरों की खाल उतारी जाती है - क्योंकि वह "लेदर" अधिक नर्म है | hush puppies जूतों का नाम hush puppies क्यों है - जरा सोचें हम सब | सोचिये - जीते जी खाल उतारी जाना उस बेबस पशु को कितना तड़पाता होगा ? :( :(

      कृपया लेदर के प्रयोग में भी वह क्रूरता देखें जो हम सब मांसाहार में देख रहे हैं | मेरी करबद्ध प्रार्थना है सभी से |

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    2. हम में से बहुत से लोग इन प्रोडक्ट्स के बनाने की विधि को जानते ही नहीं| कभी ये क्रूर तरीके अपनी आँखों से देख लें तो हम में से कई ऐसी होंगे जिन्हें ऐसे प्रोडक्ट्स पर गर्व करने और यहाँ तक कि मांसाहार करने में भी असहजता लगेगी|
      pure leather की चीजों पर गर्व तो कभी नहीं किया, लेकिन कई बार मजबूरी में और कई बार अनजाने में इन उत्पादों का प्रयोग करते रहे हैं| अब इस बारे में सावधान रहते हैं|

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    3. 'सावधानी' अपनेआप में पहला व बहुत बड़ा कदम है जो लक्ष्य को दृढ़ता से निर्धारित कर देता है।

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    4. @ pure leather की चीजों पर गर्व तो कभी नहीं किया,

      जी संजय जी - अवश्य आपने नहीं किया होगा | किन्तु जिन्होंने किया हो भी, उनमे भी अधिकतर लोग मन के दयालु और सज्जन लोग ही हैं |

      सिर्फ वे जानते नहीं / सोचते नहीं कि यह वस्तुएं बन कैसे रही हैं |
      शायद हमारे मन में, जो चीज़ें हम बचपन से प्रयोग करते आये हैं - वे कहा से और कैसे बनती हैं, इस पर सोच उठती ही नहीं | हममे से जो भी इस बारे में जान जाएँ- यदि अपने आस पास के लोगों में भी यह awareness फैलाएं, तो बहुत सी क्रूरता और दर्द बच सकता है |

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  2. शाकाहारी अपनाने से सबका भला संभव है।

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  3. बेहतरीन कविता और सच्चाई के साथ समझाईश ....बहुत खूब !

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  4. वाह! बहुत ही अच्छे से आपने अपनी बात कही है.
    सीधे दिल को छूती है.
    आपके सुन्दर सार्थक प्रयास के लिए आभार,शिल्पा बहिन.

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  5. शब्‍दश: सार्थकता लिए उत्‍कृष्‍ट लेखन ... आभार

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  6. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  7. सम्पूर्ण सृष्टि को सहेजने की राह है शाकाहार....अर्थपूर्ण पंक्तियाँ

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  8. पशुअंग निर्मित उत्पाद निश्चित ही मानवीय सभ्यता पर उनकी क्रूरता का निर्लज्ज प्रमाण है।

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  9. कई वर्षों के बाद दो साल पहले चमड़े के जूते लिए थे, अब अंत तक नहीं ...

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    1. ji.... yah padhiye

      .... The softest leather, slink comes from unborn calves; slink leather is highly desirable and expensive because it is rare. This leather can only be obtained by slaughtering a pregnant cow; this soft leather is then often used for delicate products such as leather gloves. Almost150,000 pregnant cows are killed each year in the UK.Slink can also be obtained from lambs who die atbirth, this accounts for two per cent of all lambs born in theUK (Meat South West, 2007). Slink leather is only found on high-endproducts due to its rarity and expense....

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