शाकाहारी बनें, स्वस्थ रहें, ज़िम्मेदार रहें |
२. हैमबर्गर गाय के मांस (beef) से बनता है - परन्तु कौन सी गाय? the 4 d's - dead, dying, disabled, diseased. इसी वजह से कुछ लोग हैमबर्गर खाने से मृत्यु के कगार तक पहुँच जाते हैं (कुछ को बचाया भी नहीं जा पात़ा)। अभी भी एक ऐसा कोर्ट केस न्यूज़ में चर्चा में बना हुआ है।
३. मांसाहारियों को अपक्षय (degenerative) बीमारियाँ - जैसे आर्थ्राइटिस, गाउट (arthritis, gout) आदि, ज्यादा होती हैं।
४ . पशु को मारते समय (slaughter house में), कई विषाक्त रसायन ( उसके शरीर से न निकल पाए वेस्ट ) खून से पेशियों में सोख लिए जाते है (जैसे यूरिक एसिड, ऐड्रिनलिन - जिन्हें मृत्यु हो जाने के कारण गुर्दे बाहर नहीं निकाल पाते)। यह सब कुछ उस मासाहारी मनुष्य के पेट में जाता है, जो उसे खायेगा। मारे जा रहे पशु के भय, दर्द, बदले की भावना, और नफरत के कारण, के खून में कई होरमोन आते हैं जैसे एपिनेफ्रिन, नोरेपिनफ्रिन और स्टीरॉइड्स। ये सब विष उस मृत पशु को खाने वाले मनुष्य के पेट में पहुँचते हैं। मनुष्य के शरीर को इस सब से छुटकारा पाने के लिए १५ गुणा अधिक काम करना पड़ता है - फिर भी ये सब पूरी तरह नहीं निकल पाते।
५. अंधापन, गर्भपात, पीलिया रोग और नर्वस बीमारियों को ट्रिगर करने करने वाले परजीवी (पेरासाईट = parasites) भी मांस के माध्यम से शरीर में प्रविष्ट हो सकते हैं।
६. समुद्री भोज्य - मछली, झींगा (प्रॉन) आदि को जीवित रखने के लिए पानी के टैंकों में बोरिक एसिड का प्रयोग होता है। जाहिर है यह उनके शरीर में घुलेगा ही। यह यकृत पर हमला करता है और मस्तिष्क पर भी - और कई बार कोमा की भी स्थिति आ सकती है। इसके विपरीत - यदि इसे फलों और सब्जियों पर स्प्रे किया भी जाए तो भी इनमे वे हॉर्मोन, एंटीबायोटिक आदि नहीं पाए जाते जो मांस में पाए जाते हैं।
७. सूअर (pig) में ट्रिकिनोसिस जीवाणु (trichinosis bacteria) है - जो पेट और अंतड़ियों की दीवारों से चिपक जाता है, और मृत्यु तक हो सकती है।
८. बीफ और पोर्क से तीक्ष्ण एसिडिटी बनती है।
९. मांसाहार से सोडियम इंटेक अधिक होती है - जिससे हाइपरटेंशन (हाई ब्लड प्रेशर) होता है।
१०. टाइप २ का मधुमेह (डाईबिटिज़) मांसाहार की जटिल शर्करा (काम्प्लेक्स कार्बोहाईड्रेट) से अतिशीघ्र और उग्र रूप लेकर भड़क उठता है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से शाकाहार ही श्रेष्ठ उपाय है।
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी के लिये आभार शिल्पा जी!
जवाब देंहटाएंआरोग्य के लिए जागृति प्रेरक जानकारी!!
जवाब देंहटाएंआभार शिल्पा जी! निरामय है शाकाहार!!
bahut badhiya gyanavarddhak janakari di hai ..
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - अजीब या रोचक - ब्लॉग बुलेटिन
जवाब देंहटाएंमांसाहार के लिये प्रयुक्त होने वाले जीवों की हत्या के समय उनमें प्रतिकारार्थ होने वाली मनोदैहिक प्रतिक्रियायें...और तज्जन्य जैव रासायनिक स्राव निश्चित ही मनुष्य के लिये हानिकारक है।
जवाब देंहटाएंआश्चर्य है कि इतने भयानक तथ्यों को जानते हुए भी लोग आँखें बंद कैसे कर लेते हैं!!
जवाब देंहटाएंpost achchi likhi,
जवाब देंहटाएंsochna padega ,
bachchon ko bachayen kaise ?
सार्थक जानकारी.... शाकाहार से उत्तम कुछ नहीं
जवाब देंहटाएंशाकाहार सर्वोत्तम आहार है, उन इलाकों में जहाँ शाकाहारी भोजन उपलब्ध नहीं होने के कारण माँसाहार मजबूरी थी, अब वहाँ भी इस स्थिति में बदलाव आ रहा है.
जवाब देंहटाएंबेहद उपयोगी पोस्ट, धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
बहुत ही अच्छी जानकारी ...आभार ।
जवाब देंहटाएंआप हमे नित्त नहीं जानकारीयआ प्रदान करती रहती है ! आपका बाहुत धन्यबद !
जवाब देंहटाएंप्राणी दया या अहिंसा जैसे ऊंचे सिद्धातों को आत्मसात करने में असफ़ल व्यक्तियों को इतना तो समझ ही लेना चाहिये कि मांसाहार से होने वाली बीमारियों का विवेचन किया जाए तो एक बडा ग्रंथ बन जाएगा। दर असल मांस को मानव आहार की श्रेणी में रखना ही उचित नहीं है।
जवाब देंहटाएंबढिया आलेख के लिये शिल्पाजी का आभार!