गुरुवार, 14 मार्च 2013

निरामिष परिचय

निरामिष शब्दार्थ व भावार्थ:-

निरामिष : मांसरहित (fleshless)

निरामिष आहार : ऐसा खाद्य पदार्थ या भोजन जिसमें आमिष अर्थात् मांस या सामिष अर्थात् मांस के अंश या मांस स्वरूप अंडा या मछली न मिला हो।

निरामिष व्यक्ति : जो मांस, अंडा, मछली आदि न खाता हो।

अर्थात्, निरामिष आहार एक ऐसा शाकाहार है जिसमें दुग्ध पदार्थ सम्मलित है। शाकाहार के आधुनिक श्रेणी में हम निरामिष आहार को लैक्टो-शाकाहार ( lacto-vegetarian ) कह सकते है। परम्परागत भारतीय संदर्भ में शुद्ध शाकाहार या सात्विक आहार का आशय “निरामिष” आहार से ही है। अर्थात वह आहार जिसमें किसी भी प्रकार के मांस या मांस-व्युत्पन्न पदार्थ, अंडा मछली आदि उत्पाद शामिल न हो।

प्रारंभिक काल से ही निरामिष आहार घनिष्ठ रूप से प्राणियों के प्रति अहिंसा व अनुकम्पा से जुड़ा हुआ है। अहिंसा के जीवन मूल्यों में प्रत्येक जीवन के प्रति आदर व्यक्त हुआ है। अहिंसा में दया का सद्भाव है, जो प्राणीमात्र के लिए शान्ति का मार्ग प्रशस्त करती है।

जीवदया का मार्ग निरामिष आहार से प्रशस्त होता है। मनुष्य के हृदय में तब तक अहिंसा भाव परिपूर्णता से स्थापित नहीं हो सकता जब तक उसमें निरीह जीवों की हत्या कर मांसाहार करने का जंगली संस्कार विद्यमान हो। जब मात्र स्वाद और पेट्पूर्ती के लिए मांसाहार का चुनाव किया जाता है तो मांसाहार के उद्देश्य से प्राणी हत्या, मानस में क्रूर भाव का आरोपण करती है जो निश्चित ही हिंसक मनोवृति के लिए जवाबदार है। मांसाहार द्वारा कोमल सद्भावनाओं का नष्ट होना व स्वार्थ व निर्दयता की भावनाओं का पनपना आज विश्व में बढ़ती हिंसा, घृणा व अपराधों का मुख्य कारण है। जीवदया और करूणा भाव हमारे मन में कोमल सम्वेदनाओं को स्थापित करते है। यही सम्वेदनाएं हमें मानव से मानव के प्रति भी सम्वेदनशील बनाए रखती है। शाकाहार मानवीय जीवन-मूल्यों का संरक्षक है। आज संसार में यदि शान्ति लक्षित है तो समस्त मानव समाज को निरामिष आहार अपना लेना चाहिए। क्योँकि अहिंसा ही शान्ति और सुख का अमोघ उपाय है।

मांसाहार में कोमल भावनाओं के नष्ट होने की संभावनाएं अत्यधिक ही होती है। हर भोजन के साथ उसके उत्पादन और स्रोत पर चिंतन हो जाना स्वभाविक है। हिंसक कृत्यों व मंतव्यो से ही उत्पन्न माँस, हिंसक विचारों को जन्म देता है। ऐसे विचारों का बार बार चिंतवन, अन्ततः परपीड़ा की सम्वेदनाओं को निष्ठुर बना देता है। हिंसक दृश्य, निष्ठुर सोच और परपीड़ा को सहज मानने की मानसिकता, हमारी मनोवृति पर दुष्प्रभाव डालती है। भले यह मात्र सम्भावनाएँ हो, इन सम्भावनाओं देखते हुए,  सावधानी जरूरी है कि घटित होने के पूर्व ही सम्भावनाओं पर ही लगाम लगा दी जाय। विवेकवान व्यक्ति परिणामो से पूर्व ही सम्भावनाओं पर पूर्णविराम लगाने का उद्यम करता है। हिंसा के प्रति जगुप्सा के अभाव में अहिंसा की मनोवृति प्रबल नहीं बन सकती।


“निरामिष” ब्लॉग, शाकाहार के प्रसार, प्रचार और जागृति को समर्पित एक सामुदयिक ब्लॉग है। “निरामिष”, स्वस्थ समाज निर्माण के उद्देश्य के प्रति निष्ठावान है। "निरोगी काया, निर्विकार मन, निरामय समाज।" हमारा नीति – वाक्य है। 'निरामिष ब्लॉग', तथ्यनिष्ठ, प्रमाणिक और विश्वसनीय जानकारी प्रस्तुत करने के लिए प्रतिबद्ध है।

बुधवार, 6 मार्च 2013

मैं शाकाहार क्यों अपनाऊँ ? जब कि मैं हमेशा से मांसाहार लेता रहा हूँ और मुझे वह पसंद भी है?

जब हम शाकाहार का प्रसार करने के प्रयास करते हैं तब अक्सर यह दो प्रश्न उठते हैं :

१. आप शाकाहारी हैं - यह आपका निजी निर्णय हैं । लेकिन मेरा भोजन मेरा निर्णय है । मैं मेरे भोजन को आपकी विचारधारा के अनुरूप क्यों बदलूँ ?

२. मैं आपसे तो आपका भोजन बदलने को नहीं कह रहा / रही । फिर आप मेरे भोजन के पीछे क्यों हाथ धोकर पड़े हुए हैं ?  
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कुछ उत्तरों पर नज़र डालते हैं : ४ कारण 

1. हम लोग "आपके जीवन / आपकी विचारधारा / आपका भोजन" बदलने के प्रयास नहीं कर रहे । 

नहीं । 
हम बदलने का प्रयास कर रहे हैं उन करोड़ों निरीह प्राणियों का जीवन , जो आपके १५ मिनट के "भोजन" के लिए बरसों का दर्दभरा जीवन / दर्द / भय / यातना / लगातार / व्यग्रता / चिंता में जीते हैं - २- ३ साल का नर्क - सिर्फ १० मिनट आपके भोजन के थाली की सज्जा बढाने को  | २ -३ साल का नर्क (और भयानक ह्त्या के रूप में मृत्यु ) - सिर्फ १० - १५ मिनट के भोजन के लिए ? आपको यह उचित लगता है स्वाद / स्वंतत्र विचारधारा / निजी निर्णय के नाम पर ? 

2. फेक्टरी फ़ार्म पर जीवन भयावह है । 

सोच कर देखिये - क्या आप और हम सारी उम्र ( नवजात प्राणी के जन्म से २-३ वर्ष का समय ) १.५' वर्ग जमीन पर खड़े हुए अपना जीवन बिता सकते हैं ? क्योंकि हम इंसान इतनी जगह में खड़े रह सकते हैं न ? अवश्य रह सकते हैं । 

लेकिन क्या सारी उम्र खड़े रह सकते हैं ? क्या कहा ? नहीं ? क्यों नहीं???? - क्योंकि हम मानव हैं - थक जाते हैं - हमें आराम चाहिए ?

लेकिन मनुष्य होने का अर्थ मनुष्यता भी होता है न ?- तो मनुष्यता यह नहीं है कि  अपने भोजन के लिए दुसरे जीव को ऐसा जीवन जीने पर मजबूर किया जाए । ऐसे ही लगातार , सारी उम्र , बिना आराम या जगह के , खड़े रहने पर मजबूर किया  जाए ।  

लेकिन आपके भोजन की थाली में परोसा गया मुर्गा  ऐसे ही खडा रहा है अपनी सारी उम्र - क्योंकि फेक्टरी फ़ार्म कमाई के लिए होते हैं - जानवरों को काटने के लिए पाला जा रहा है उनके ऐशो आराम के लिए नहीं । तो उतनी जगह में जितने अधिक प्राणी रहे , उतना लाभ । बेचारे प्राणी ऐसे ही रहते हैं  वहां । सारी उम्र ऐसे ही ...... जन्म से मृत्यु (ह्त्या) तक ....

कुछ चित्र देखिये :

 







pigs factory farm
                                                                              Cows 

यदि हम खुद 24x7x365 खड़े नहीं रह सकते लेकिन चाहते हैं कि हमारे भोजन के लिए मूक प्राणी ऐसा जीवन जियें , तो क्या हमें खुद को मनुष्य कहने का अधिकार है ?

सूअर,गायें,मछलियाँ, मुर्गियां आदि , जो प्राणी खाए जा रहे हैं , भी सोचने समझने वाले जीव हैं - जो आपकी और हमारी ही तरह भय और दर्द महसूस कर सकते हैं - लगातार भय , लगातार दर्द - पूरे पूरे जीवन :( :(  यदि आप कहते हैं कि  आप फेक्टरी फ़ार्म का मांस नहीं  लेते , तो बताइये कि इतना मांस कहाँ से आता है जो इतने मांसाहारियों को भोजन के लिए पर्याप्त हो ? पता कीजिये - आपके फेवरेट रेस्तराओं में कहाँ से मांस सप्लाय हो रहा है ? 

कृपया जानिये (और याद रखिये ) एक वर्ष में 25,00,00,00,000 से अधिक पशुओं की क्रूर ह्त्या होती है , मानव भोजन के लिए  :(

3. क्रूरता :
जी - हाँ मानती हूँ कि हम में से अधिकाँश लोग पशुओं के प्रति क्रूर नहीं हैं  । हम सड़क चलते बिल्लियों पर, कुत्तों को, पत्थर नहीं मारते । अपने बच्चों को भी मना करते हैं कि ऐसा करना गलत है , उन्हें दर्द होगा । यदि कोई ऐसा करता दिखे तो हमें क्रोध भी आता है । 

फिर फेक्टरी फ़ार्म के पशु इस से अलग किस तरह हैं ? क्या उन्हें भी इस सहानुभूतिपूर्ण रवैये का अधिकार नहीं है ? 

a. 
मुझे इंजेक्शन लगवाना पसंद नहीं । वह भी ऐसे इंजेक्शन जो मेरी सेहत के लिए (अच्छे नहीं हो कर) बुरे हैं । 

लेकिन फेक्टरी फार्मों के पशुओं को हर हफ्ते ग्रोथ हारमोंस के इंजेक्शन दिए जाते हैं - वे कुछ नहीं कर सकते  । यह उन्हें उम्र से जल्दी बड़ा और मोटा करने को दिए जा रहे हैं - क्योंकि ज्यादा मांस अर्थात ज्यादा  पैसा । उन्हे अपने बढ़ते शरीर का बोझ उठाने के लिए हड्डियों के लिए केल्शियम चाहिए - लेकिन कीमत तो हड्डियों की नहीं -  मांस की मिलती है - तो उन्हें केल्श्यम युक्त भोजन नहीं  दिया जाता । कम्जोर (बच्चे) शरीर की हड्डियाँ और परिपक्व से भी बड़े शरीर का भार , और २४ घंटे खड़े रहना ।  ऐसा जैसे एक १ वर्ष का मानव बालक , २ साल तक लगातार , अपने पिता को गोद में उठा कर खडा हो - बिना बैठे , बिना आराम किये -- सोचिये ज़रा । 

उनके पैर सूजे रहते हैं और भयावह रूप से दर्द करते हैं । कई पशु चल भी नहीं पाते और भोजन तक नहीं पहुँच पाने से भीड़ में गिर कर /  भूख से / दब कर .... मर जाते हैं  । उनकी मृत देह वहीँ सडती रहती है और दुसरे पशु उसी सडती हुई देह से सटे खड़े रहने को मजबूर हैं | 

b.
मैं अपने ही मल मूत्र से घिरा सना नहीं जीना चाहूंगा  । किन्तु फेक्टरी फ़ार्म की जीवों के पास कोई चोइस नहीं है :( .. उनके आराम की किसे  फ़िक्र है? वे तो काटे जाने के लिए जी रहे हैं :(

c. 
मैं नहीं चाहूंगी एक लाइन में खड़ी आगे बढती रहूँ जिसमे बारी आने पर आगे वाले को दर्दनाक रूप से काट कर मार दिया जा रहा है ।  लेकिन काटने का समय आने पर इनमे से हर प्राणी ऐसे ही अपनी बारी का इंतज़ार करता है I शायद ऐसी लाइन में खडी रहने पर मैं तो अपनी बारी से पहले ही डर के मारे दिल के दौरे से मर जाऊंगी । :( । लेकिन इसी भयग्रस्त मनःस्थिति में करीब आधे घंटे खड़े आगे धकेली जाते पशु को काटा जा रहा है - और उसके शरीर में भय से होने वाले स्राव अपनी चरम सीमा पर हैं - और वे सब भयग्रस्त स्राव आपकी प्लेट में रखे भोजन में हैं । 

d.
मैं नहीं चाहूंगी कि कोई मुझे जबरदस्ती छुए /  धकेले / फेंके / बांधे / उलटा लटका कर गला रेंत कर तड़पते हुए मरने के लिए खून बहने को छोड़ दे ...आदि I पर यही होता है उन प्राणियों के साथ । उनमे से हर एक के साथ - जो आपकी थाली में परोसा जाता है ...... और आगे लाइन में अपनी अबरी का इंतज़ार कर रहा पशु यह सब देख रहा होता है - भय से तड़पता रहता है - पर क्या करे ? 

e. 
ये फ़ार्म इतने गंदे हैं, इतने कीटाणुओं से भरे , कि सारे जानवर काटने से पहले ही इन्फेक्शन से मर  जाएँ । मल मूत्र, मरे हुए प्राणियों का सड़ता शरीर आदि के कारण । लेकिन उनके ऐसे ही मर जाने से नुक्सान होगा न ? इन्हें जीवित कैसे रखा जाए ? ...... 

उन्हें बड़ी भारी मात्रा में एंटीबायोटिक इंजेक्शन दिए जाते हैं  ।कहने की ज़रुरत ही नहीं की यही एंटीबायोटिक आपके भोजन के साथ आपके शरीर में पहुँच रहे हैं । 

f.
गायों के भोजन की घास में (गाय शाकाहारी है) में मरी हुई गायों की हड्डियां पीस कर मिलाई जाती हैं - दूध बढाने के लिए  । ऐसे ही - रोज अंडे देने के लिए मुर्गियों को तेज़ प्रकाश में रखा जाता है जिससे वे सोये नहीं और रोज़ अंडे दें । 

4. पर्यावरण  

a. जितने समय में , जितनी भूमि में . 20,000 पाउंड आलू उगाये जा सकते हैं, उतनी ही भूमि में उतने ही समय में एक गाय का १ पाउंड मांस तैयार होता है  । भुखमरी से होने वाली कितनी मानव मौतें इससे बच सकती थीं ?

b.
रेंन फोरेस्ट्स काटे जाते हैं मांस के लिए पाले जा रहे पशुओं की चारागाह बनाने के लिए । 257 hamburgers के बनने योग्य मांस के लिए, एक पल में, एक फुटबाल मैदान जितना रेंन फोरेस्ट काटा जा रहा है ।

c.
: प्रदूशण : फेक्टरी फार्मों पर हर्बिसाइड और पेस्टिसाईड का छिडकाव होता है - जो मिटटी को खराब करता है, और नदियों में प्रवेश कर लोगों के पीने के पानी को खराब करता है । इससे केंसर आदि बढ़ रहा है । इसके अलावा सिंथेटिक एन्हान्सर्स जो पशुओं को दिए जाते हैं - उनके कारण भी भयानक केमिकल प्रदूषण फैलता है  | 

d. 
एक कार एक दिन में ३ किलो कार्बन डाई ऑक्साइड बनाती है  । और रेंन फोरेस्ट को काटने में जो मशीन चलती हैं - वे एक दिन में ७५ किलो कार्बन डाई ऑक्साइड बनाती है  । अर्थात  एक हैमबर्गर के लिए 75 किलो कार्बन दाई ऑक्साइड । 

एक पाउंड हैमबर्गर खाना उतना ही प्रदूषण कर रहा है जितना अपनी कार को ३ हफ्ते तक  चलाना ।सोचिये । 
e.
ऊर्जा बहुत लगती है : 5000 गैलन पानी एक पाउंड बीफ के लिए व्यय होता है । 

यह सब पढने के बाद एक बार खुले मन से - सोचिये निरामिष भोजन या सामिष ?

आपका आभार .....