रविवार, 21 दिसंबर 2014

क्या आपके शाकाहार में सुअर की चर्बी है?

लेज चिप्स में प्रयुक्त ई-631 साबूदाने से बना है
इन्टरनेट पर दस्तावेज़ों की भरमार है। असंख्य पृष्ठों में न जाने क्या-क्या लिखा गया है, सही भी गलत भी। बहुत सी ग़लतियाँ अज्ञानवश हैं तो बहुत सी बदनीयती के साथ भी। न तो हम हर बात को पढ़ सकते हैं और न ही सारे कथनों की जाँच की जा सकती है। फिर भी हम सब अपने अपने हिस्से की इतनी ज़िम्मेदारी तो निबाह सकते हैं कि अप्रमाणित जानकारी को कॉपी-पेस्ट करने से बचें। बात की तह में जाकर उसकी असलियत जानने का प्रयास करें। यहाँ, निरामिष ब्लॉग पर हमारी कोशिश यही है कि शाकाहार और अहिंसा से संबन्धित प्रामाणिक जानकारी प्रस्तुत की जाय और शाकाहार संबन्धित भ्रमों का अचूक निवारण किया जाय।

इन्टरनेट के कॉपी-पेस्ट विशेषज्ञों ने विभिन्न शाकाहारी पदार्थों में पशु-वसा होने के बारे में एक बड़ा भ्रम फैला रखा है। एक दूसरे से कॉपी पेस्ट किए गए हजारों वेबपृष्ठों में ऐसा बताया जा रहा है कि किसी भी उत्पाद की सामग्री सूची में यदि अंग्रेज़ी के E अक्षर से आरंभ होने वाली कोई संख्या लिखी है तो इसका अर्थ यह हुआ कि उस पदार्थ में सुअर की चर्बी मिली है। ऐसा प्रचार विशेषकर अमेरिका और यूरोप आधारित बहुराष्ट्रीय कंपनियों के उत्पादों के बारे में हो रहा है।

उदाहरण के लिए, ऐसी एक पोस्ट पर बताया गया है कि
जहां भी किसी पदार्थ पर लिखा दिखे
E100, E110, E120, E 140, E141, E153, E210, E213, E214, E216, E234, E252,E270, E280, E325, E326, E327, E334, E335, E336, E337, E422, E430, E431, E432, E433, E434, E435, E436, E440, E470, E471, E472, E473, E474, E475,E476, E477, E478, E481, E482, E483, E491, E492, E493, E494, E495, E542,E570, E572, E631, E635, E904 समझ लीजिए कि उसमे सूअर की चर्बी है।
मुख्य मुद्दे पर आने से पहले विषय से संबन्धित कुछ सामान्य जानकारी:
उत्पादों पर छपे ई संख्या (E number) का उद्देश्य उपभोक्ता को उत्पाद में प्रयुक्त सामग्री की सूची प्रदान करना है। यदि उद्देश्य सामग्री की जानकारी छिपाने का होता तो ई संख्या या किसी भी कोड की ज़रूरत नहीं होती। ई संख्या की शुरुआत अमेरिका के भोजन व औषधि प्रशासन संस्थान अर्थात The U. S. Food and Drug Administration (संक्षेप में FDA या एफडीए) द्वारा हुई। एफडीए ने भोज्य पदार्थों में प्रयुक्त सामग्री की सूची तैयार करके जटिल रसायनों को कूटनाम (code names) दे दिये ताकि भोजन, पंसारी, चिकित्सा तथा औषधि व्यवसाय पर कानूनी नज़र रखी जा सके और सामान खरीदने वालों को इस बात की पूरी जानकारी रहे कि वे क्या खा-पी रहे हैं और साथ ही किसी खाद्य पदार्थ के किसी दुष्प्रभाव या एलर्जी आदि की कोई जानकारी प्रकाश में आती है तो उसे जनता तक बखूबी पहुँचाया जा सके और हानिकर पदार्थों को नियंत्रित किया जा सके। यह सारी प्रक्रिया दरअसल, विकसित देशों के उन क़ानूनों का हिस्सा हैं जिनके द्वारा जनता के स्वास्थ्य की देखरेख की जाती है।

ई संख्या द्वारा प्रदर्शित अधिकांश रसायन सामान्य जीवन में प्रयुक्त होने वाले नहीं हैं और उनके जटिल नाम जानना, लिखना, पढ़ना या समझना हम-आप जैसे सामान्यजन के लिए कठिन होता। ई संख्या द्वारा मानकीकरण का एक उद्देश्य इस जटिलता को दूर करना भी है।

बिना जाने हुए हर ई संख्या को सुअर की चर्बी समझने से पहले हमें यह तो सोचना चाहिये कि जिसे जानकारी छिपानी होती वह ईकोड लिखता ही नहीं। वैसे भी यदि सुअर की चर्बी को धोखे से आपके भोजन में डालना होता तो एक नाम ही काफी था इतनी सारी ई-संख्याओं की ज़रूरत नहीं थी। हाँ यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि इन रसायनों में से अनेक का स्रोत जैविक हो सकता है। उनसे अवश्य बचा जाय लेकिन आँख मूंदकर सबको सुअर की चर्बी कहना सही नहीं है। आइये देखें, उपरोक्त उदाहरण में दर्शाई गई कुछ ई संख्याओं की हक़ीक़त:

कूटनामउपयोगस्रोत
E100करक्यूमिनपीला रंगहल्दी
E110सनसेट यलो (चेतावनी/प्रतिबंधित)पीला रंगपेट्रोलियम
E120कारमिनिक एसिडलाल रंगकोचीनील नामक एक कीड़ा (शाकाहारी नहीं)
E140क्लोरोफिलहरा रंगवनस्पति स्रोत
E141क्लोरोफिल के ताम्र यौगिकहरा रंगवनस्पति स्रोत
E153ब्रिलिएंट ब्लैक (सीमित/चेतावनी)काला रंगप्रयोगशाला
E210बेंज़ोइक एसिडसंरक्षक(preservative)वनस्पति गोंद
E213केल्शियम बेंज़ोएटसंरक्षक(preservative)वनस्पति गोंद
E214इथाइल पैराबेनसंरक्षक(preservative)4-Hydroxybenzoic acid, वनस्पति गोंद व अल्कोहल
E216प्रोपाइल पैराबेनसंरक्षक(preservative)प्रयोगशाला; मुख्यतः वनस्पति गोंद; कुछ कीड़ों में भी पाया जाता है
E234नाइसिनसंरक्षक(preservative)प्रयोगशाला; दुग्ध; खमीरीकरण
E252पोटेशियम नाइट्रेटसंरक्षक(preservative)एक खनिज लवण
E270लैक्टिक एसिडसंरक्षक(preservative)प्रयोगशाला; दुग्ध,शर्करा










खाद्य पदार्थों के ई संख्या आधारित अंधविरोध में सच कम झूठ अधिक है। इन सारे प्रचार कार्यक्रमों का आरंभ इस्लामी अतिवादियों द्वारा अमेरिकी कंपनियों के आर्थिक बहिष्कार के उद्देश्य से हुआ था। सबसे पहले कोका कोला के सीक्रेट फार्मूले मे सूअर की चर्बी का प्रचार किया गया। सऊदी अरब से लेकर पाकिस्तान तक फैले इस प्रचार में धीरे-धीरे समझ न आने वाला हर रसायन सूअर की चर्बी बताया जाने लगा। सुअर से मुसलमानों की धार्मिक अस्पृश्यता के मद्देनजर यह बात स्पष्ट है कि इस प्रचार में सुअर की चर्बी का उल्लेख प्रमुखता से हुआ। अतिवादी मुल्लों की देखादेखी न जाने कब हमारे जोशीले भारतीय भी आँख मूंदकर इस प्रचार में कूद गए।  स्वतंत्र जोशीलों के साथ इस प्रचार में स्वदेशी आंदोलन जैसे कार्यकर्ताओं का भी प्रभाव रहा।

ई कोड का अर्थ पशु वसा नहीं होता है 
ई संख्या सामान्यतः उन एडिटिव रसायनों के मानक सूचक हैं जिनका प्रयोग अत्यल्प मात्रा में रंग, स्वाद आदि की वृद्धि के लिए होता रहा है। फेसबुक पर बहुप्रचारित संलग्न चित्र में लेज़ चिप्स की जिस सामग्री को तीन ई संख्याओं (E160c, E627 व E631) के आधार पर किन्हीं ज़ुबैर अहमद द्वारा सूअर की चर्बी बताया जा रहा है उनमें से E627 व E631 मोनोसोडियम ग्लूटोनेट के विकल्प के रूप में प्रयोग होने वाले, एक प्रकार के लवण हैं जो प्रयोगशाला में माइक्रोबियल फ़र्मेंटेशन से बनते हैं। लेज के निर्माता पेप्सी के आधिकारिक स्पष्टीकरण के अनुसार उनका ई 631 साबूदाने के खमीरीकरण से बनता है और सूअर से उसका कोई लेना देना नहीं है। E160c मिर्च के तेल से निकाला जानेवाला पेपरिका ओलियोरेज़िन (Paprika oleoresin) है। हम सब को इस प्रकार के झूठे प्रचार को दोहराने से निम्न मुख्य कारणों से बचना चाहिए:
1) इसके मूल प्रचारकों की नीयत खराब है। उनका उद्देश्य अपने धार्मिक विरोध के लिए आपको गलत जानकारी देकर आपकी भावनाओं का शोषण करना मात्र है।
2) अंतर्राष्ट्रीय कार्पोरेशन के बनाए उत्पाद पाकिस्तान के किसी कोने में चिप्स बनानेवाले से कहीं अधिक विश्वसनीय हैं। सामग्री की सूची यदि आपके सामने है तो उसे ठीक से देखिये और उपयुक्त निर्णय लीजिये।
3) अधिकांश वसा आधारित, व लवण उत्पाद चाहे वनस्पति स्रोत से हो चाहे पशु-स्रोत से और चाहे खनिज स्रोत से हों, उनका अंतिम रूप बिलकुल एक सा होता है। उसे देख-जाँचकर उसका स्रोत तय नहीं किया जा सकता है। सामान्यतः कंपनियाँ सबसे सस्ते या स्थानीय स्रोत की ओर उद्यत होती हैं। इसलिए ऐसी स्थिति में सही स्रोत की जानकारी निर्माता से ही आ सकती है।
4) भांति-भांति के साधनों द्वारा हमारे आदर्शों को तोड़ने का एक लंबा कुचक्र चलाया जा रहा है जिसमें हमारे प्रयोग में आने वाली वस्तुओं के साथ-साथ हमारे नायकों, और परम्पराओं पर भी नियमित कुठाराघात हो रहे हैं। दुर्भाग्य से कई सदाशय लोग भी ऐसे कार्यों की असलियत जाने बिना इसे सहयोग करने लगते हैं जो सही नहीं है। कुप्रचारकों द्वारा नियमित रूप से भोले भाले लोगों की परम्पराओं को गलत ठहराकर उनमें हीन भावना भरने के हर प्रयास को ज्ञान और विवेक के प्रयोग से रोकिए। किसी भी समझदार व्यक्ति को शाकाहार को हतोत्साहित करने के षड्यंत्र का हिस्सा बनाने के बजाय उसके चक्र को तोड़ने की कोशिश करनी चाहिए।

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