(माँसाहार के पक्ष में फैलाया जा रहा अन्धविश्वास)
दालें व अनाज प्रोटीन स्रोत |
बहरहाल हम मूल विषय पर आते हैं. प्रोटीन-----जिसकी होड नें आज अनेक समस्याएं पैदा कर दी है. प्रोटीन पाने के लिए सरकारें तक कसर कसे बैठी हैं.देश भर में जगह-जगह कसाईघर खुलवा रखे हैं, जहाँ से माँस डिब्बों में बन्द कर बेचा जाता है. टेलीवीजन, समाचार पत्र जैसे संचार माध्यमों नें भी शोर मचा रखा है कि अंडे खाओ ताकि शरीर में जान पडे. प्राण चाहते हो तो प्रोटीन खाओ. बेचारे पशु-पक्षियों की शामत है. अनेक सदबुद्धि वालों नें उनकी पैरवी की, पर कुतर्क यह दिया जाता है कि वैज्ञानिक खोजों के आधार पर ऎसा करना उचित है. हमारे जैसा आदमी यह कहे कि हमारे बाप-दादाओं नें तो कभी इन सब चीजों को छुआ तक नहीं...तो क्या उन लोगों नें स्वस्थ जीवन व्यतीत नहीं किया. वे दूध, दही, फल, फ्रूट खाते थे और उन्हे रोग भी कम होते थे. पर दुर्बुद्धि लोग अपने विचार बदलने को तैयार ही नहीं है ... बदलें भी कैसे, उन पर प्रोटीन का भूत जो सवार है.
बीसवीं सदी के शुरू में आहार का मसला बकायदा एक विज्ञान के तौर पर सामने आया. भोजन में उर्जा के स्त्रोतों जैसे कार्बोहाईड्रेट, चर्बी और प्रोटीन की खोज हुई. प्रोटीन को माँसपेशियों और बच्चों के विकास के लिए जरूरी समझा गया. चर्बी और कार्बोहाईड्रेट को उर्जा का प्रमुख स्त्रोत माना गया. मैक कालम और डेविस नाम के वैज्ञानिकों नें विटामिन "ए" खोजा, फिर दूसरे विटामिन खोजे गये. आज विटामिन ए, बी, सी, डी, ई इत्यादि न जाने कितने प्रकार के विटामिन्स का विस्तृत ज्ञान मेडिकल साईन्स को है.
प्रोटीन को लेकर भ्रान्तियाँ कब शुरू हुई, यह कहना तो कठिन है, पर वे बहुप्रचलित हैं. यह एक आम धारणा है कि प्रोटीन अधिक मात्रा में लेना चाहिए. नतीजतन डिब्बों में बन्द बहुत से प्रोटीनमय पदार्थों की बिक्री बहुत होने लगी. इन चीजों को दूध या पानी में घोलकर पिया जाने लगा. माओं नें बच्चों को जबरिया पिलाना शुरू कर दिया. मायें भी बडे लाड से कहती हैं कि हॉर्लिक्स पियोगे तो जल्दी से बडे हो जाओगे.प्रचलित भ्रान्तियाँ:-
सूरदास का पद याद करें तो कृष्ण भी यही कहते थे-----"मैया कबहूँ बढेगी चोटी! कित्ती बार मोहि दूध पियावत, है अजहू छोटी की छोटी!!" लगभग यही बात प्रोटीन वाले भोजन को घोल-घोलकर पिलाने के लिए कही जा रही है. टीवी पर विज्ञापनों के जरिए मानो "प्रोटीन ही जीवन है" का सन्देश हमारे गले उतरवाने की कौशिशें जारी हैं.
दरअसल प्रोटीन की मात्रा भोजन में सन्तुलित होनी चाहिए. उर्जा देने वाले तत्व के रुप में प्रोटीन की विशेष जरूरत नहीं होती. उर्जा के अच्छे स्त्रोत तो वसा और कार्बोहाईड्रेट हैं. आहार वैज्ञानिक इस पर एकराय हैं कि प्रति एक किलो वजन पर एक ग्राम प्रोटीन एक आम इन्सान के लिए काफी है. बच्चों को अधिक से अधिक 2 ग्राम प्रति किलो प्रोटीन पर्याप्त होगी. साधारण भोजन में तो प्रोटीन की इतनी मात्रा अपने आप ही मिल जाती है. आमतौर पर एक औसत व्यक्ति 250 ग्राम अनाज और 50-100 ग्राम दाल या दाल से बनी चीजें जरूर खाता है. 250ग्राम अन्न से लगभग 30 ग्राम प्रोटीन, दाल में 20 ग्राम से अधिक प्रोटीन और दूध,दही, पनीर आदि में 10-20 ग्राम प्रोटीन मिल जाती है. इस तरह आदमी 60-70 ग्राम प्रोटीन रोजाना उदरस्थ कर लेता है. तब बताईये फिर प्रोटीन की कमी कहाँ?
यह बात काफी प्रचारित हुई है कि माँसाहार और अंडे उच्च कोटि के प्रोटीन के स्रोत है. यह विचार सबसे पहले कहाँ से आया, इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता. डाक्टरों से पूछिए कि प्रोटीन का ऎसा वर्गीकरण किसने किया और इसका कहाँ उल्लेख है, तो मैं आपको गारंटी देता हूँ कि उनसे जवाब देते नहीं बनेगा. दरअसल ये सब एक दूसरे से सुनी-सुनाई बातें हैं और इन सुनी सुनाई बातों को ही किताबों में लिख-लिखकर दुनिया में ये भ्रमजाल फैलाया जा रहा है कि पशुओं के माँस और अंडों में उच्च कोटि के प्रोटीन होते हैं और वनस्पतियों में दोयम दर्जे के . प्रसिद्ध वैज्ञानिक Dr.Semsan Wright के अनुसार ऎसा विभाजन निहायत ही अवैज्ञानिक और अव्यवहारिक हैं. उनका कहना था कि पशुओं की माँसपेशियाँ तो घास खाने से बनती हैं. जिस प्रोटीन को हम उच्च स्तर का कहते हैं---वह घास से बनती है.प्रोटीन के स्रोत:-
अचरज की बात यह है कि सभी जगह मेडिकल के छात्रों को डा. सैमसन राईट की किताब पढाई जाती है, पर इस वैज्ञानिक की इस बात को पूरी तरह से नजरअन्दाज कर दिया जाता है. जनाब अनवर जमाल साहब जैसे स्वनामधन्य डाक्टरों को तो यह भी नहीं पता होगा कि किताब में इस बात का उल्लेख है.
आधुनिक वैज्ञानिक खोजों से पता चला है कि प्रोटीन के मेटाबोलिज्म के बाद, प्राणी-प्रोटीन की तोडफोड से कईं विषैले पदार्थ पैदा होते हैं-----यूरिया, यूरिक एसिड क्रीटीन, क्रोटीनीन आदि. ये सीधे इन्सान के गुर्दों पर असर करते हैं. अधिक मात्रा में इनकी उत्पति होने से इनका गुर्दों से निकलना कठिन हो जाता है और गुर्दे समय से पहले जवाब भी दे सकते हैं. देश में गुर्दे की बीमारी की बढोतरी का एक कारण यह भी समझा जा रहा है. लंदन के मेडिकल जनरल "Lancet" के अनुसार गठिया की बीमारी का कारण भी भोजन में प्रोटीन की अधिकता ही है.प्रोटीन आवश्यकता से अधिक ले लिए जायें तो क्या हो ?
प्रोटीन सबको मिले, इसके लिए जरूरी है कि इसकी कीमत कम हो. पर क्या अंडे या माँस सस्ते पडते हैं. एक अंडा 4-5 रूपये का आता है जिसका वजन लगभग 50-60 ग्राम होता है. उसमें प्रोटीन की मात्रा लगभग 6 ग्राम होती है. इस तरह 100 ग्राम अंडे में लगभग 12-13 ग्राम प्रोटीन. कीमत 8-9 रूपये के लगभग. इसके विपरीत 100 ग्राम सोयाबीन में 83 ग्राम प्रोटीन होता है, जिसकी कीमत पडती है महज अढाई रूपये. यानि अंकों की तुलना में लगभग 8 गुणा.दालें और दूध:-
प्रोटीन के अच्छे स्त्रोत्र दालें, अन्न और दूध हैं. सोयाबीन में प्रोटीन की मात्रा 43 ग्राम प्रतिशत है. दालों में भी यह पर्याप्त मात्रा में होता है. माँस, अंडे में प्रोटीन की मात्रा क्रमश: 18 और 13 ग्राम होती है. फिर भी मासँसाहार से प्रोटीन पाने का भूत इन लोगों के सिर से नहीं उतर रहा. प्रकृति और पर्यावरण का संतुलन बिगडने की एक प्रमुख वजह आज यह भी है.
इसलिए आज इस युग की ये सब से बडी जरूरत है कि अपने दुराग्रहों का परित्याग कर खुले मस्तिष्क से इस विषय पर विचार किया जाए और खोखली वैज्ञानिकता के नाम पर फैलाये जा रहे इन भ्रमों को दूर कर निज, समाज और प्रकृति के प्रति अपने उतरदायित्व को समझते हुए शाकाहार को अपनाया जाए.
पंडित जी,
जवाब देंहटाएंप्रोटीन की कमी नामक बाजारू मानसिकता का आपने संदर्भ सहित वैज्ञानिक निषकर्ष प्रस्तुत किया है।
प्रोटिन के नाम पर मांसाहारियों के कपटी प्रचार को आपने हाथो-हाथ लिया है। इनके मायाजाल को अनावृत किया है। भ्रमित करने वालों से सावधानी का मील का पत्थर है।
हां अनवर जमाल साहब मेडिकल डॉक्टर नहीं, प्रोफ़ेसर, मास्टरी वाले डॉक्टर है, पता नहीं किस बात पर शोध-पत्र बनाया होगा।
मान गए पंडित जी आपके इस धोबी पछाड़ लेख को ! सारा खेल बाज़ारवाद का ही है, जिसके बाजारू तर्कों में कई भोले-भले फंस जाते है .
जवाब देंहटाएंशर्मा जी को सर्म आणि चाहिए ऐसी बातें करना..
हटाएंबहुत ही उपयोगी,जानकारी परक लेख !
जवाब देंहटाएंसूरदास के पद को आपने बड़ी खूबसूरती से लेख में जोड़ा है !
धन्यवाद !
पंडित जी..... आपने सार्थक ढंग से अपनी बात रखी है .
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब!
मैं भी कुछ कहना चाहता हूँ .......विश्व विख्यात पहलवान सुशील कुमार को हम सभी जानते हैं.
ये पूर्णतया शाकाहारी है. इन्होंने भारत की झोली में राष्ट्रकुल खेलों व् एशियन खेलों में भारत के
लिए स्वर्ण पदक जीता है. वैसे शाकाहारी पहलवानों की लिस्ट काफी लम्बी है .
दूसरी और बहुत से लोग, ख़ासकर 'राधा स्वामी' (व्यास) संगठन के लोग जिनमें बहुत से पंजाबी हैं
वो शाकाहारी होते हैं और शारीरिक रूप( शरीर की ल० और चौ० और ताक़त में ) से भी किसी से कम नहीं होते.
इनके अलावा भी करोड़ों लोग शाकाहारी रहते हुए स्वस्थ और शतायु( सौ वर्ष तक) जीवन व्यतीत करते हैं.
उदहारण के लिए... मेरे नाना जी, जीवन भर शाकाहारी रहे. पूरे ९८ वर्ष जीवित रहें और
एक पीड़ारहित म्रत्यु को प्राप्त हुए. अंतिम समय तक लोग उनकी बुद्धि का लोहा मानते रहें.
उनकी लम्बाई भी पूरे ६ फीट से ज्यादा थी. यानी कभी उन्हें
प्रोटीन की कमी का अहसास नहीं हुआ. ऐसे न जाने कितने ही उदहारण आपको मिल जाएँगे.
मतलब साफ़ है कि शाकाहार अपनाकर भी आप एक सुखद और स्वस्थ जीवन व्यतीत कर सकते हैं.
शाकाहार के लिए ऐसा सार्थक लेख लिखने के लिए आपका आभार!
एक सुचिन्तित और जानकारी भरा आहार लेख
जवाब देंहटाएंआलेख शिक्षाप्रद है।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लेख.
जवाब देंहटाएंande khaane se shareer me paseene me sade pashu ki badboo paida hoti hai. isi se pata chalta hai ki mansahaar kaisi cheez ho sakti hai.
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंगठिया की बीमारी का कारण भी भोजन में प्रोटीन की अधिकता ही है.
@ सत्य. इसका अनुभव पिछले दो महीनों से मुझे भी हुआ है. प्रोटीन खाने को मना कर दिया गया है मेरे करीबी को.
@ आपने अपने तर्कों से मांसाहार के भूत पर भभूत मल दिया. आनंद आया.
मुझे बौद्धिक चर्चा से काफी प्रोटीन मिलता है. इस बल पर मैं कई दिन उपवास भी कर सकता हूँ.
@ चलते चलते एक बात और ...
विरेन्द्र जी 'पहलवान सुशील कुमार' को फिर तो विज्ञापन नहीं मिलेंगे.
वे तो केवल दाल-रोटी ही खाने वाले हैं. शायद घी का विज्ञापन मिल जाये. मिल्क-फ़ूड देसी घी.
लेकिन उस विज्ञापन को भी दारासिंह ने बदनाम कर दिया है. शायद सुशील कुमार न करे.
'दृढ निश्चयी' कभी किसी के विश्वास को नहीं तोड़ता.
खेल में
स्वर्ण पदक दिलाना है तो दिलाना है. बस.
.
सुन्दर ले्ख
जवाब देंहटाएंइस रोचक जानकारी के लिए आभार।
जवाब देंहटाएं---------
समाधि द्वारा सिद्ध ज्ञान।
प्रकृति की सूक्ष्म हलचलों के विशेषज्ञ पशु-पक्षी।
साधुवाद....
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया लेख !
जवाब देंहटाएंलेकिन यहाँ पर मैं एक बात कहना चाहूँगा की जहां तक मेरी जानकारी मे है सोयाबीन का प्रोटीन इन्सानो के लिए बेहतर नहीं होता क्यूंकी इंसान की आंते सोयाबीन के प्रोटीन को पचा नहीं पाती है ! ये खासकर सूअरों के खाने के लिए है !
इसकी जगह प्रोटीन के लिए सबसे अच्छा विकल्प दालें है ! दालों मे भी सबसे ज्यादा प्रोटीन उर्द की दाल मे पाया जाता है !
यदि आप बॉडी बिल्डिंग प्रॉफेश्नल हैं या खिलाड़ी है तो आपके लिए प्रोटीन का महतत्व और भी है ! जिसकी पूर्ति आप एक कटोरी उर्द की दाल + केलों व 10 ग्राम आलसी से कर सकते हैं ! यह शाकाहारी सुपाचक प्रोटीन प्राप्त करने का आसान तरीका है ! (मैं बॉडी बिल्डिंग + जूडो एथलीट हूँ और नियमित योगाभ्यास करता हूँ और इस डाइट का सेवन मैं स्वयं भी करता हूँ !)