हम परोपकार चाहते हैं, प्रेम चाहते हैं, तो हमें उसे अपने कर्म में अपनाना पड़ेगा। हम एक दूसरे से प्रेम करें, और एक दूसरे के प्रति, सबके प्रति परोपकार अपनाएं. पशुओं और मानवमात्र के प्रति हिंसा करने का अर्थ तो यही निकलता है कि हमें प्रेम और अनुकंपा नहीं चाहिए, शांति नहीं चाहिए। प्रकृति का नियम है कि यदि हम हत्या करते हैं, यदि हम अन्य जीवों के प्रति हिंसा करते हैं तो हम अपनी आत्मिक श्रेष्ठता नष्ट कराते हैं। हम जितना अधिक जीव-भक्षण करते हैं, अपनी आत्मिक श्रेष्ठता में उतने ही निर्धन होते जाते हैं, हमारा आत्म-बल नष्ट होता जाता है। और जब हमारा आत्म-बल चुकने लगता है, तो उसका मूल्य हम अपने और अपने परिवारजनों के स्वास्थ्य, मानसिक शांति और भाग्य से चुकाते हैं। बात यहीं नहीं रुकती, अपनी और परिजनों की मानसिक शांति चुकने के बाद पहले हमारे परिवेश की और फिर संसार की शांति को खतरा उत्पन्न होता है। खाने के नाम पर पशु हत्या करने पर हम मानो धरती की ही हत्या करते हैं, और इस तरह एक प्रकार से हम हत्यारे बनते हैं। हत्यारे नहीं, नायक बनिए। भक्षक नहीं, रक्षक बनिए। धरती ग्रह की रक्षा कीजिये। पशु हत्या और पशु भक्षण के क्रूरकर्म में भागीदार न बनें ...
जहाँ मानवता है वहाँ करुणा, दया और पशुप्रेम की बात होना स्वाभाविक ही है। कभी भारत का अंग रहा पाकिस्तानी भूभाग भले ही अधिकांशतया हिंसक घटनाओं के लिए खबरों में रहता हो, समय के साथ वहाँ भी कुछ सुखद परिवर्तन आ रहे हैं। मुल्तान स्थित "पाकिस्तान पशु रक्षा आंदोलन" इसी प्रकार का सुधार आंदोलन है जो देश भर में प्रेम और दया बढ़ाने को प्रयासरत है। इसी आंदोलन के अध्यक्ष श्री खालिद मुहम्मद कुरैशी की एक अपील का हिन्दी अनुवाद यहाँ प्रस्तुत है।
खालिद मुहम्मद कुरैशी.
अध्यक्ष,
पाकिस्तान पशुरक्षा आन्दोलन
1094/2 हुसैन अगाही, मुल्तान-60000
दूरभाष +92 300 7368557