गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

तुम कौनसे शास्त्र की आड़ लेकर अपनी अमानुषिक जीभ को तृप्त करने के चक्कर में जगद्जननी माता को स्वसंतान भक्षिणी सिद्ध करने पे तुले हो ?


वैसे तो आजकल सार्वजनिक सामूहिक दुष्कर्म बलि-काण्ड कहीं दिखाई सुनाई नहीं देता हैं. लेकिन इसका मतलब ये कतई नहीं हो सकता की ऐसा हो ही नहीं रहा हैं।
अरे भैया एक तरफ तो जगन्नमाता बोलकर जयकार लगाते हो दूसरी तरफ उसीकी संतानो की उसके आगे बलि चढ़ाकर उसको हत्यारिन बना रहे हों।
अगर तुम्हारे अनुसार देवी वास्तव में बलि भक्षिणी हैं तो तो भाड़ में जाओ तुम और तुम्हारी तथाकथित बलि भक्षिणी देवी।
अरे भैया न तो वेदों में ना वेदानुगामी अन्य शास्त्रों में कहीं जीव-हत्या का निर्देश हैं, फिर तुम कौनसे शास्त्र की आड़ लेकर अपनी अमानुषिक जीभ को तृप्त करने के चक्कर में जगद्जननी माता को स्वसंतान भक्षिणी सिद्ध करने पे तुले हो ??????
अरे माँ तो अपनी संतान के हलकी सी चोट लगने पर ही व्याकुल हो जाती हैं और तुम असुर स्वभावी तामसी दुष्ट जगत जननी के सामने उसीकी संतान की बलि चढ़ाते हो !!!!!!!!!
मांस -- "योगनी तंत्र " में लिखा है
माँ शब्दाद रसना ज्ञेया संद्शान रसनाप्रियां।
एतद यो भक्षयेद देवी स एव मांससाधक:।।
अत: यह स्पष्ट है की बलि देना और तांत्रिक साधनों में मांस का भक्षण करना आवश्यक नहीं है यह तो उन पाखंडी, ढोगी और ठग तांत्रिको ने अपने स्वाद की पूर्ति करने हेतु मांस का भक्षण करना आवश्यक बना दिया। यह तो तांत्रिकों द्वारा शास्त्रों मे प्राचीन ऋषियों द्वारा दिए गए मन्त्रों के अर्थों का अनर्थ कर मांस को ही आवश्यक मान लिया गया है।
कोई भी तामसी, शास्त्रों में पशु हिंसा और मांस भक्षण के पक्ष में कुतर्क देने से पहले नीचे दिए गए लिंकों पर दिए प्रमाणों को पढ़े फिर अपना प्रलाप करें क्योंकि तुम जो कहना कहोगे वे सब यहाँ खंडित हुए पड़े हैं।