क्या शाकाहार सम्पूर्ण आहार नहीं है?
भले ही आप कहें- आहार का चुनाव हमारा व्यक्तिगत मामला है, जो इच्छा हो खाएँ। पर हम अच्छी तरह से जानते है, आहार केवल व्यक्तिगत मामला नहीं है। आपका आहार समाज और वैश्विक पर्यावरण को प्रभावित करता है। वह सीधे सीधे वैश्विक संसाधनो को प्रभावित करता है। अप्रत्यक्ष रूप से विश्व शान्ति को प्रभावित करता है। जीव-जगत के रहन-सहन-व्यवहार को प्रभावित करता है। फिर भला आहार मात्र व्यक्तिगत मुद्दा कैसे हो सकता है?
आप क्या सोचते है?
भले ही आप कहें- आहार का चुनाव हमारा व्यक्तिगत मामला है, जो इच्छा हो खाएँ। पर हम अच्छी तरह से जानते है, आहार केवल व्यक्तिगत मामला नहीं है। आपका आहार समाज और वैश्विक पर्यावरण को प्रभावित करता है। वह सीधे सीधे वैश्विक संसाधनो को प्रभावित करता है। अप्रत्यक्ष रूप से विश्व शान्ति को प्रभावित करता है। जीव-जगत के रहन-सहन-व्यवहार को प्रभावित करता है। फिर भला आहार मात्र व्यक्तिगत मुद्दा कैसे हो सकता है?
यह शाकाहार जाग्रति अभियान किसी भी धार्मिक उद्देश्य की पूर्ती के लिये नहीं है। एक आपका आहार बहु आयामी प्रभाव पैदा करता है और इसी कारण इसका सम्बंध निश्चित ही नैतिक जीवन उत्थान से है। चुंकि धर्म हमें नैतिक शिक्षाएँ देता है और वे शिक्षाएँ समस्त मानव समुदाय हित में और प्रकृति के अनुकूल है तो अनुकरणीय ही रहेगी। यह कृतज्ञता ही होगी कि बहुमूल्य हितशिक्षा और नैतिक जीवन मूल्यों के लिये धर्म को श्रेय दिया जाय।
समग्र दृष्टिकोण से ‘आहार’ आज ज्वलंत वैश्विक मुद्दा है, जिसपर सम्यक् चिंतन किया ही जाना चाहिए।
पृथ्वी पर आज मानव जीवन अधिक कठिन और भययुक्त होता जा रहा है। अब यह कहनें में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि अब इस धरा को पुनः ‘मानव-अभयारण्य’ बनाने के लिए प्रयासरत होना पडेगा।
शाकाहार माँसाहार के सन्दर्भ में इस विषय पर आहार से इतर कईं भ्रांत धारणाएँ प्रचलित की जाती है। जो इस प्रकार है………
माँसाहार के समर्थन में दिए जाने वाले कारण।
- मनुष्य उभय आहारी है या सर्वाहारी है।
- माँसाहार में प्रोटीन अधिक मात्रा में मिलता है।
- मनुष्य पुरातन काल से मांसाहार करता आया है।
- विश्व की अधिकांश जनसंख्या माँसाहार करती है।
- जहां शाकाहार सहज उपलब्ध नहीं वहाँ लोग क्या खाएंगे?
इन सभी कुतर्को के निरामिष पर यथोचित उत्तर दिए जा चुके है। यह सभी भ्रांतियाँ और कुतर्क, आहार मात्र के लिए माँसाहार को ज्वलंत आवश्यकता साबित नहीं करते।
'आहार आवश्यक्ता’ से इतर माँसाहार-आसक्ति के कारण :-
- पाश्चात्य छद्म विकसितता और विलासिता का अंधानुकरण।
- ‘मज़े’ की विलासी पार्टियों का आइकॉन।
- किसी का जीवन ही खा जाने की विकृत मानसिकता पूर्ती।
- आवेश को शक्तिवर्धक समझने की भ्रांत धारणा।
- व्यसन : माँस, मदिरा काम का विलासित संयोग।
- मांस उत्पादको का आकृषक विज्ञापन प्रचार।
- स्वाद-लोलूपता का व्यसन।
- धार्मिक विचारधारा द्वारा दी गई इज़ाज़त की ओट।
जबकि 'आहार कारणों’ से माँसाहार समर्थन में कही जाने वाली एक मात्र बात है………
“माँसाहार एक सम्पूर्ण आहार है जिसमें; एकसाथ प्रोटीन विटामिन और खनिज़ रेडिमैड मिल जाते है”।
इस पोस्ट के माध्यम से इसी विषय पर परिचर्चा आमंत्रित है।
क्या शाकाहार सम्पूर्ण आहार नहीं है?
आप क्या सोचते है?
चर्चा निष्कर्ष : शाकाहार स्वयंमेव पूर्ण संतुलित आहार है, शाकाहारी पदार्थों के संयोजन के अभाव में मांसाहारी पदार्थ कभी भी संतुलित नहीं हो सकते, पोषण संतुलन के लिए मांसाहार की आवश्यकता शून्य है। जबकि विविध शाकाहारी पदार्थों के ही समुचित संयोजन से पूर्ण संतुलन स्थापित किया जा सकता है।
मेरा तो यही मानना है शाकाहार सम्पूर्ण आहार है |...............एक मनुष्य लगातार सात दिन तक बिना अन के रह सकता है ......परन्तु लगातार मांस खा के वो जीवित नही रह सकता | इससे साफ जाहिर हो जाता है कि मांसाहार आहार नही है |......शाकाहार शुद्ध व् संतुलित भोजन है
जवाब देंहटाएंसुज्ञ जी,जिसमें सद् चेतना जाग्रत होती है,जिस पर ईश्वर की कृपा होती है,जिसके पुण्य कर्म उदय होते हैं ,उन्हें ही शाकाहार और पवित्रता की बात समझ आती हैं.
जवाब देंहटाएंइसके लिए एक छोटी सी कहानी बताता हूँ 'शबरी' की ,जिसकी भक्ति के कारण 'रामजी' को उसकी कुटिया में दर्शन देने के लिए खुद चल कर आना पड़ा था..
यह शबरी भीलनी थी जो अपने पति और बच्चों के साथ जंगल में रहती थी ,माँसाहारी थी,माँसाहारी ही नहीं आदमखोर भी थी,जो मनुष्यों का शिकार करके उन्हें भी खा जाती थी.बड़ी भाग्यशाली और खुशहाल समझती थी खुद को.देवयोग से किसी प्राकृतिक आपदा वश उसके पति और बच्चे सब अकाल ही मारे गए.अकेली रह गई शबरी.अब उसका मन किसी भी बात में न लगता था.खाना पीना सब छूट गया.बहुत दुखी और उदास रहती थी.जंगल में ही पास में मतंग
ऋषि का आश्रम था.न जाने क्यूँ उसके मन में सेवा भाव जाग्रत हुआ.
ऋषि का आने जाने का मार्ग साफ़ कर देती,फल फूल ला देती.ऋषि को उस पर दया आई,उसकी उदासी का कारण पूछा और कृपा कर 'राम'
मन्त्र दे भक्ति का मार्ग सुझाया.वही शबरी अपने पवित्र आचरण खानपान, सेवा भाव और भक्ति से राम को पाने की अधिकारी बनी.
जीवन में जब भी सद्विवेक,सद्भावना,अहिंसा का उदय होगा और ईश कृपा होगी तो मनुष्य की मांसाहार से विरक्ति होकर रहेगी.और फिर उसका खान पान भी अवश्य सुधर जायेगा.माँसाहार तो एक प्रकार से 'पाप'कर्मों के दंड स्वरुप ही समझना चाहिये.
आपके सद्प्रयास को शत शत नमन जो निरंतर एक चेतना प्रदान कर रहा है जन जागृति कर खानपान को सुधारने में.जिसने पवित्रता को समझ लिया और अपना लिया तो वह अपवित्र रहना क्यूँ पसंद करेगा.
बहुत बहुत आभार सुन्दर प्रस्तुति के लिए.
मैं तो इसे पूर्ण आहार मानती हूँ...... परिवार में पीढयों से किसी ने अंडा तक नहीं छुआ .....फिर भी सभी ने स्वस्थ जीवन जिया और जी रहे हैं....
जवाब देंहटाएंसभी जानते हैं कि मांसाहार के मुकाबले शाकाहार कहीं भी 19 नहीं है बल्कि 21 ही बैठता है। हाँ, आहार में संतुलन तो हमें स्वयम् ही बनाना होगा। 100% मांसाहार तो न केवल असंतुलित है बल्कि अनेकों बीमारियों का कारक है परंतु साथ ही शाकाहार भी असंतुलित हो सकता है और होता भी है। जिस प्रकार स्वास्थ्य, योग आदि के प्रति जागृति आ रही है वैसे ही अपने शाकाहारी भोजन को दूध, दही, फल, शाक, दालों, बीज आदि की विविधता से परिपूर्ण करके उसे संतुलित बनाये रखने के प्रयास होने चाहिये।
जवाब देंहटाएं*होता भी है = कई बार होता भी है
जवाब देंहटाएंशाकाहार भोजन में सभी तत्व सम्पूर्ण और संतुलित मात्रा में मिल जाते हैं । वही श्रेष्ठ है।
जवाब देंहटाएंशाकाहार ही तो सम्पूर्ण आहार है!
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुज्ञ जी नमस्ते ! रेगिस्तानी इलाकों में या ऐसी जगह पर जहां पेड़ पौधे न उपलब्ध हों
जवाब देंहटाएंवहां तो मांसाहार समझ में आता है लेकिन जहां शाकाहार पर्याप्त मात्र में उबलब्ध हो वहां मांसाहार समझ से परे है.
कुछ मुस्लिम ब्लागरों द्वारा मांसाहार को अपने कुतर्कों द्वारा जायज ठहराना यह उनके दिमाग के दिवालियेपन का परिचायक है.
ऐसे लोग ही मुर्दाखोर की श्रेणी में आते हैं.
इस जानकारी भरी पोस्ट के लिए आपको हार्दिक बधाई ..
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आपने सही लिखा है ..शाकाहार एक सम्पूर्ण आहार है. इसमें किसी तरह का संदेह हो ही नहीं सकता.
जवाब देंहटाएंअब अगर कोई मांसाहार को सही ठहराने के लिए कुतर्क गड़ ले तो कोई क्या कर सकता है ?
संतुलित शाकाहार भोजन निश्चय ही सम्पूर्ण आहार है.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही कहा आपने बंधू...शाकाहार अपने आप में सम्पूर्ण है...साथ ही कहना चाहूँगा कि मनुष्य शरीर मांसाहार के लिए बना ही नहीं है...
जवाब देंहटाएंमाफ कीजेयेगा, मैं यों तो पूर्णतया शाकाहारी हूं, परंतु अभी तक शाकाहार और मांसाहार के बहस को नहीं समझ पाया। माना मांसाहार पर्यावरण के अनुकूल नहीं है, पर पसंद अपनी अपनी, वैसे भी हम सभी लोग कितनी पर्यावरण के अनुकूल जिंद्गी जीते हैं।
जवाब देंहटाएंऔर मेरी टिप्पणी को विरोध मत समझियेगा, मैं तटस्थ हूँ!
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
विवेक जैन जी,
जवाब देंहटाएंतटस्थ हो जाना तो और भी प्रतिकूल है। यकिन मानिए इस तटस्थता नें ही पर्यावरण को अधिक नुकसान पहूँचाया है।
हमारी तरह सभी सोचने लगे कि कौन सावधानी बरत रहा है, तो सभी प्रकृति शोषण में लग जाएंगे।
मैने प्रारम्भ में ही लिखा है……
आहार मात्र व्यक्तिगत मामला नहीं है। आपका आहार समाज और वैश्विक पर्यावरण को प्रभावित करता है। वह सीधे सीधे वैश्विक संसाधनो को प्रभावित करता है। अप्रत्यक्ष रूप से विश्व शान्ति को प्रभावित करता है।जीव-जगत के रहन-सहन-व्यवहार को प्रभावित करता है। फिर भला आहार मात्र व्यक्तिगत मुद्दा कैसे हो सकता है।
माँसाहारियो के लिये यह मात्र बहस है। पर शाकाहारियों के लिये प्रकृति संरक्षण का उत्तरदायित्व है।