नीर-क्षीर विवेक सुलभ होता तो संसार के बहुत से झगडे कब के मिट गये होते। कभी हम सिक्के का एक ही पहलू देख पाते हैं और कभी अपने सीमित अनुभव को ही विशद ज्ञान समझ बैठते हैं। असतो मा सद्गमय का उद्घोष करने वाली भारतीय संस्कृति में कूप-मंडूकता की अपेक्षा वसुधैव कुटुम्बकम को ही महत्व दिया गया है। हमारी संस्कृति ज्ञानमार्गी है। इसमें अहम् और स्वार्थ के स्थान पर "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" और प्रियस्कर की जगह श्रेयस्कर को ही चुना गया है। बुद्धिमान अपने-पराये के भेद से ऊपर उठकर सत्य के मार्ग को चुनते हैं विषय चाहे खान-पान या स्वच्छता जैसा व्यक्तिगत आचरण का हो या भाषा, धर्म या नीति जैसा सार्वभौमिक हो।
करुणा और अहिंसा की बात आने पर हममें से शायद ही कोई इनके महत्व को कम आंकेगा परंतु खान-पान की शुचिता की बात चलते ही कुछ लोग आक्रामक मुद्रा में आ जाते हैं। पक्ष-विपक्ष में तर्क दिये जाते हैं और सामान्य बात भी विवाद में बदल जाती है। मैं तो आमतौर पर ऐसे विषयों पर बात करने से बचता हूँ परंतु जन स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हूँ इसलिये इस विषय में होने वाले वैज्ञानिक अध्ययनों को पढता ज़रूर हूँ और उनसे मिले अमृत को बांटने का प्रयास भी करता हूँ।
ऐसा ही अमृत कलश हाथ लगा है ब्रिटेन में कैथरीन गेल के नेतृत्व में हुए अध्ययन के रूप में। इस अध्ययन में 30 वर्ष की आयु के 8170 लोगों की आहारवृत्ति और बुद्धि अंक की जानकारी ली गयी थी जोकि इस प्रकार के सामान्य अध्ययनों के मुकाबले एक बहुत बडी संख्या है।
विधि
30 वर्ष की आयु के 11,207 लोगों का साक्षात्कार करके उनकी जीवन शैली का अध्ययन किया गया। इनमें से 8,170 लोगों के बुद्धि अंक (IQ) का आंकडा सन् 1970 के स्कूल रिकार्ड में उपलब्ध था। अंतिम विश्लेषण में केवल इन्हीं 8,170 व्यक्तियों को शामिल किया गया।
परिणाम
8,170 में से 9 व्यक्ति वीगन हुए थे, 366 व्यक्ति शाकाहारी हो चुके थे, और 133 कभी-कभार मच्छी-मुर्गी खाने वाले थे। शेष 7,666 व्यक्ति मांसाहारी ही रहे थे। जब इन परिणामों का मिलान इन लोगों के दस वर्ष की आयु के बुद्धि अंकों से किया गया तो पता लगा कि शाकाहारी हो गये बालकों का औसत बुद्धि अंक 106.1 और मांसाहारी बालकों का 100.6 था। बालिकाओं के मामले में यह संख्यायें क्रमशः 104.0 व 99.0 थीं।
निष्कर्ष
बुद्धिमान बच्चो के बडे होने तक शाकाहार अपनाने की सम्भावना सामान्य बच्चो के मुकाबले कहीं अधिक होती है।
अध्ययनकर्ता
इस अध्ययन में लगे लोग ब्रिटेन में रहने वाले अभारतीय और गैर-हिन्दू हैं मतलब यह कि उनकी पृष्ठभूमि मांसाहार की है। ब्रिटिश मूल और राष्ट्रीयता वाले चारों अध्ययनकर्ताओं में से एक शाकाहारी है और एक मांसाहारी जबकि अन्य दो अपने को मांसाहार से बचने वाला सर्वभक्षी कहते हैं। मांसाहारी अध्ययनकर्ता का (दस वर्ष की आयु का) बुद्धि अंक उपलब्ध है पर बताया नहीं गया है जबकि अन्य तीन का बुद्धि अंक दर्ज़ नहीं हुआ था।
व्यवसाय
यद्यपि इस अध्ययन के शाकाहारी व्यक्ति अन्य लोगों से बुद्धिमत्ता, शिक्षा और व्यवसाय, तीनों में ही आगे थे, उनकी आय में कोई विशेष अंतर नहीं पाया गया। उनके व्यवसाय के प्रकार अधिक नैतिक समझे जाने वाले थे, यथा 9% मांसाहारियों की अपेक्षा 17% शाकाहारी शिक्षा के क्षेत्र में थे।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल
IQ in childhood and vegetarianism in adulthood: 1970 British cohort study
Keywords
Catharine R Gale, Ian J Deary, G David Batty, Ingrid Schoon, Benjamin Franklin, George Bernard Shaw, Leonardo di ser Piero da Vinci
करुणा और अहिंसा की बात आने पर हममें से शायद ही कोई इनके महत्व को कम आंकेगा परंतु खान-पान की शुचिता की बात चलते ही कुछ लोग आक्रामक मुद्रा में आ जाते हैं। पक्ष-विपक्ष में तर्क दिये जाते हैं और सामान्य बात भी विवाद में बदल जाती है। मैं तो आमतौर पर ऐसे विषयों पर बात करने से बचता हूँ परंतु जन स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हूँ इसलिये इस विषय में होने वाले वैज्ञानिक अध्ययनों को पढता ज़रूर हूँ और उनसे मिले अमृत को बांटने का प्रयास भी करता हूँ।
ऐसा ही अमृत कलश हाथ लगा है ब्रिटेन में कैथरीन गेल के नेतृत्व में हुए अध्ययन के रूप में। इस अध्ययन में 30 वर्ष की आयु के 8170 लोगों की आहारवृत्ति और बुद्धि अंक की जानकारी ली गयी थी जोकि इस प्रकार के सामान्य अध्ययनों के मुकाबले एक बहुत बडी संख्या है।
विधि
30 वर्ष की आयु के 11,207 लोगों का साक्षात्कार करके उनकी जीवन शैली का अध्ययन किया गया। इनमें से 8,170 लोगों के बुद्धि अंक (IQ) का आंकडा सन् 1970 के स्कूल रिकार्ड में उपलब्ध था। अंतिम विश्लेषण में केवल इन्हीं 8,170 व्यक्तियों को शामिल किया गया।
परिणाम
8,170 में से 9 व्यक्ति वीगन हुए थे, 366 व्यक्ति शाकाहारी हो चुके थे, और 133 कभी-कभार मच्छी-मुर्गी खाने वाले थे। शेष 7,666 व्यक्ति मांसाहारी ही रहे थे। जब इन परिणामों का मिलान इन लोगों के दस वर्ष की आयु के बुद्धि अंकों से किया गया तो पता लगा कि शाकाहारी हो गये बालकों का औसत बुद्धि अंक 106.1 और मांसाहारी बालकों का 100.6 था। बालिकाओं के मामले में यह संख्यायें क्रमशः 104.0 व 99.0 थीं।
निष्कर्ष
बुद्धिमान बच्चो के बडे होने तक शाकाहार अपनाने की सम्भावना सामान्य बच्चो के मुकाबले कहीं अधिक होती है।
अध्ययनकर्ता
इस अध्ययन में लगे लोग ब्रिटेन में रहने वाले अभारतीय और गैर-हिन्दू हैं मतलब यह कि उनकी पृष्ठभूमि मांसाहार की है। ब्रिटिश मूल और राष्ट्रीयता वाले चारों अध्ययनकर्ताओं में से एक शाकाहारी है और एक मांसाहारी जबकि अन्य दो अपने को मांसाहार से बचने वाला सर्वभक्षी कहते हैं। मांसाहारी अध्ययनकर्ता का (दस वर्ष की आयु का) बुद्धि अंक उपलब्ध है पर बताया नहीं गया है जबकि अन्य तीन का बुद्धि अंक दर्ज़ नहीं हुआ था।
व्यवसाय
यद्यपि इस अध्ययन के शाकाहारी व्यक्ति अन्य लोगों से बुद्धिमत्ता, शिक्षा और व्यवसाय, तीनों में ही आगे थे, उनकी आय में कोई विशेष अंतर नहीं पाया गया। उनके व्यवसाय के प्रकार अधिक नैतिक समझे जाने वाले थे, यथा 9% मांसाहारियों की अपेक्षा 17% शाकाहारी शिक्षा के क्षेत्र में थे।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल
IQ in childhood and vegetarianism in adulthood: 1970 British cohort study
Keywords
Catharine R Gale, Ian J Deary, G David Batty, Ingrid Schoon, Benjamin Franklin, George Bernard Shaw, Leonardo di ser Piero da Vinci
मनुष्य का भोजन सिर्फ शाकाहार ही है!
जवाब देंहटाएंउत्तम विचार। सही कहा है।
जवाब देंहटाएंयह तो प्रमाणित है कि बुद्धि से ही हमें गेय हेय और उपादेय का विवेक बोध होता है। गेय अर्थात् जानना समझना, हेय अर्थात् उनमें अनुपयोगी का त्याग करना और उपादेय अर्थात् उसमें आचरणीय को अपनाना।
जवाब देंहटाएंproud to be vegetarian !!
जवाब देंहटाएंउत्तम विचार। बहुत सही और सार्थक बात कही है आपने!
जवाब देंहटाएंसच है..... शाकाहार का पूर्ण समर्थन ....
जवाब देंहटाएंएक बार शाकाहार और मांसाहार पर कहीं लिखा हुआ पढ़ा था, या देखा-सुना था. जब किसी ने यह कहा कि पेड़ों और पौधों में भी जीवन होता है तब भला वह मांसाहार से अलग कैसे? इस पर किसी युवा ने उत्तर दिया कि आप पेड़ से एक फल तोड़ लीजिये उस पर दूजा निकल आयेगा किन्तु अगर आप अपनी उंगली अलग कर लेंगे तो दूसरी नहीं निकलेगी.
जवाब देंहटाएंकिसी विशेष परिस्थिति या पर्यावास या फिर प्रारम्भिक मानव के लिये मांसाहार रहा होगा किन्तु आज के इस युग में तो शाकाहार ही सबसे उत्तम है. वैसे कहा भी गया है = जैसो खाये अन्न, वैसो बने मन.
बरेली से-दयानिधि वत्स जी, 'निरामिष परिवार' में आपका स्वागत है। आज के सभ्य सुसंस्कृत समाज में शाकाहार ही श्रेष्ठ और सात्विक है।
जवाब देंहटाएंआज बहुत दिनों के बाद यहाँ आया हूँ , ब्लॉग का नया रूप अच्छा लगा ..अभी जल्दी में हूँ .. पोस्ट बाद में आराम से पढूंगा :)
जवाब देंहटाएं@सुज्ञ जी
जवाब देंहटाएंक्या यहाँ email पर पोस्ट सबस्क्राइब करने का गेजेट भी है / होना चाहिए ?:)
Bahut achhi jaankari vala lekh hai. Aabhaar!
जवाब देंहटाएंये लेख भी कुछ अलग है
जवाब देंहटाएंजब एक बिल्ली ने हमारे परिवार द्वारा पोषित एक गौरैया के दो बच्चों को रात में चट कर लिया तो एक पल को मेरे मन में उस बिल्ली की ह्त्या का विचार आया. लेकिन थोड़ी देर बाद ही उसकी बुद्धिहीनता के कारण ही उसे क्षमा कर दिया. यदि आज कोई समुचित शिक्षा पाकर भी अथवा समाज में बुद्धिजीवी कहलाकर भी मांसाहार का पक्ष लेता है तब मेरा मन कब तक उन्हें क्षमा करता रहे? क्या आमिष लोग वास्तव में बुद्धिमान हैं?
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