ए हिंद देश के लोगों, सुन लो मेरी दर्द कहानी।
क्यों दया धर्म विसराया, क्यों दुनिया हुई वीरानी।
जब सबको दूध पिलाया, मैं गौ माता कहलाई,
क्या है अपराध हमारा, जो काटे आज कसाई।
बस भीख प्राण की दे दो, मै द्वार तिहारे आई,
मैं सबसे निर्बल प्राणी, मत करो आज मनमानी॥
जब जाउँ कसाईखाने, चाबुक से पीटी जाती,
उस उबले जल को तन पर, मैं सहन नहीं कर पाती।
जब यंत्र मौत का आता, मेरी रुह तक कम्प जाती,
मेरा कोई साथ न देता, यहाँ सब की प्रीत पहचानी॥
उस समदृष्टि सृष्टि नें, क्यों हमें मूक बनाया,
न हाथ दिए लड़नें को, हिन्दु भी हुआ पराया।
कोई मोहन बन जाओ रे, जिसने मोहे कंठ लगाया,
मैं फर्ज़ निभाउँ माँ का, दूँ जग को ममता निशानी॥
मैं माँ बन दूध पिलाती, तुम माँ का मांस बिकाते,
क्यों जननी के चमड़े से, तुम पैसा आज कमाते।
मेरे बछड़े अन्न उपजाते, पर तुम सब दया न लाते,
गौ हत्या बंद करो रे, रहनें दो वंश निशानी॥
--रचनाकार (अज्ञात गौ-प्रेमी)
(लय है, ए मेरे वतन के लोगों…)
हे गौ माता क्षमा करना हमे जो हम अपनी माँ के प्राण बचाने में असफल हैं...किन्तु हम नहीं रुकेंगे, हम तेरे प्राण अवश्य बचाएंगे...जब तक हममे जान है, तेरी जान बचाने में लगे रहेंगे...
जवाब देंहटाएंहंसराज भाई, बेहद मार्मिक गीत है यह...पता नहीं और कितना गिरेगा मनुष्य?
हृदयस्पर्शी... सोचने को विवश करती गौमाता की पुकार .......
जवाब देंहटाएंमार्मिक और हृदयस्पर्शी गीत है.
जवाब देंहटाएंगौ माता की पुकार को सुनना ही पड़ेगा.वर्ना सुनामी और भूकंपों से पृथ्वी दहल जायेगी.
गौमाता रोवे ठाड़ी तबेले में!
जवाब देंहटाएंले जाते कसाई भर-भर के ठेले में।
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भारतमाता और गौमाता दोनों का अस्तित्व ख़तरे में है!
Dr. saheb sahi kaha aapne mai aapki baat se ittifaq rakhta hunh
हटाएंसुज्ञ जी,
जवाब देंहटाएंशायद इस 'मार्मिक गीत' के रचनाकार 'सतीशचंद्र चौरसिया जी हों!.... क्योंकि उन्होंने गाय महिमा पर अनेक कवितायें की हैं... एक 'गौ-अभिनन्दन ग्रन्थ' मुझ पर भी है.
लेकिन उसमें ये 'मुक्त गीत' नहीं है... उसमें 'प्रबंध-काव्य' जैसा रचना-कर्म है.
हमारी वैदिक राष्ट्रीय प्रार्थना में जिनकी कामना की गयी है... उनमें तीव्रगति वाले पशु, दुधारू पशु और कृषि योग्य पशुओं के लिये भी प्रार्थना की गयी है.
हमारी संस्कृति ही ऎसी थी जिसमें जीवमात्र के लिये करुणा और प्रेम रहा है. उसकी फिर से स्थापना करने का कार्य हमें निरंतर करते रहना होगा.
कौन करेगा गाय की रक्षा जब हमने पशु पालना भी छोड दिया हैेऔर जहाँ ये पाले जाते हैं वहाँ केवल व्यवसाय की दृष्टी से। हम लोग तो गाय को रोज़ एक रोटी दे कर ही अपना फर्ज़ निभा लेते हैं। सुग्य जी माफ करें किसी संवेदना को लिखना उस पर बहस करना बहुत आसान है लेकिन यथार्थ के धरातल पर हम गाये के लिये कुछ भी नही कर रहे। हर गली चौराहे पर देख लो बेचारी आवारा घूम रही हैं दूध दोह कर लोग उन्हें चरने के लिये छोड देते हैं। और इन्सान गाय की क्या कहें इन्सान इन्सान का मास खाने लगा है। ऐसे नर भक्षियों से गाय को बचाने की उमीद किया है? मास खाने वाले शायद नही जानते कि वो मास के रूप मे कितनी गाय निगल चुके हैं। समाज से संवेदनाये लुप्त हो रही हैं। हमारे रहन सहन का ढंग बदल गया है। कितना कुछ है इस समस्या के लिये। अब तो गाँव के बच्चे भी पशु पालने मे नाक भौं सिकोडने लगे हैं। मुझे याद हैेक बार हमारी घर की गाय मर गयी तो हमारे ससुर जी ने विधी पूर्वक उसकी अन्त्येष्टी की थी। तब हमारे घर मे 5 -5 गाय थी लेकिन आज उसी घर मे बच्चों को गाय का दूध दो तो नाक भौं सिकोडते हैं। शायद कहीं हम लोग ही इसके3 जिम्मेदार हैं। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंआज उसी घर मे बच्चों को गाय का दूध दो तो नाक भौं सिकोडते हैं।
जवाब देंहटाएं@ ठीक यही स्थिति आज देशभक्ति की बात करने वालों की भी है.. स्वयं को आधुनिक समझने वाले लोग 'देशभक्ति' की बात पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं.
अरे हम बात तो कर रहे हैं... लोग तो इससे भी गुरेज करते हैं.. जो आज मुर्दों की तरह गंदली धार में बहे जा रहे हैं. कोई क्रिया नहीं. कोई प्रतिक्रिया नहीं. अगर जिस मुर्दे में कुछ चेतनता डाल भी दी जाती है तो भी अन्य मुर्दे उसे बहाए लिये जाना चाहते हैं.
गोरक्षा के सबंध में सुन्दर और सार्थक पोस्ट.
जवाब देंहटाएंयू पी (उ.प) में 1 करोड़ लोगो का सुप्पोर्ट चहिये 8 नए स्लॉटर के लाइसेन्स को रद्द करने के लिए! अगर ऐसा न हुआ तो हजारो के हिसाब से ग़ो माता मार दी जाएगी .. उसके लिए सब लोग 0522-3095743 इस नंबर पर मिस कॉल करो इस (मेसेज) मेसेज को प्लीज़ शेर कर दो . ताकि गोउ माता की रक्षा हो जाए . कृपया अपना अपना योगदान दो
जवाब देंहटाएंजय गौ माता
आज का इंसान स्वार्थ के नजरिए से ही हर चीज को देखना पसंद करता है। अब उसके पास संवेदनाओं और इंसानियत जैसी कोई चीज नहीं बची है।
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तांत्रिक शल्य चिकित्सा!
ये ब्लॉगिंग की ताकत है...।
शहरों में गाय का दूध मिलता कहाँ है ...सरकारी डेयरी पर पैकेटबंद दूध पता ही नहीं होता की गाय , भैंस , बकरी , ऊंट किसका है !
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