बुधवार, 25 जनवरी 2012

माँसाहार : रोग सम्भावना

आहार ही औषध
दुनिया के आहार विशेषज्ञों ने प्रमाणित कर दिया है कि शाकाहारी मनुष्य अपेक्षाकृत दीर्घजीवी होते है। विविध शोधों से यह सिद्ध हो चुका है कि माँसाहार मानवीय स्वास्थ्य के अनुकूल नहीं है। मांसाहारी लोग शाकाहारियों की तुलना में अधिक बीमार पड़ते हैं। जहाँ माँसाहार अनेक व्याधियों का जन्मदाता है वहीं शाकाहार अनेक कष्टदायक रोगों से बचाता है। चिकित्सा वैज्ञानिकों ने यह भी स्वीकार किया है कि शाकाहारी लोगों की 'रोग प्रतिरोधक क्षमता' अधिक मजबूत होती है।



अलज़ाइमर

मांसाहार से प्राप्त प्रोटीन, कोई एक समस्या नहीं, बल्कि समस्याओं की
कतार ही खड़ी कर देता है। वस्तुतः प्राणीजन्य प्रोटीन, पूर्वसक्रिय और सेच्युरेटेड होता है, जिसके सेवन से मस्तिष्क में बीटा-अमाइलायड (Beta-Amyloid) नामक प्रोटीन संचित होता है, जो अल्जाईमर रोग के लिए जिम्मेदार माना जाता है। जबकि इसके उलट फल और सब्जियों में पॉलीफिनाल पाया जाता है, जो उस बीटा-अमाइलॉयड नामक हानिकर प्रोटीन को जमने से रोकता है। 'गॉलब्लैडर की पथरी' व 'गुर्दे की पथरी' नामक व्याधियों का प्रबल कारण यह हानिकर प्रोटीनहै,  इस प्रोटीन की विखण्ड़न प्रक्रिया में शरीर का संचित कैल्शियम कोष खाली हो जाता है, साथ ही गुर्दे (किडनी ) से अनावश्यक और अत्यधिक श्रम लेकर, उसे बुरी तरह क्षतिग्रस्त भी कर देता है।

पित्ताशय की पथरी (गॉलस्टॉन्स)
नई शोध के अनुसार शाकाहारी होना हमारे शरीर के लिए लाभदायक है। लंदन में हुई एक शोध से ज्ञात हुआ कि उन लोगों में उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) ज्यादा पाया गया जो मांस से अधिक प्रोटीन प्राप्त करते थे। उच्च रक्तदाब का होना हृदय के लिए खतरनाक स्थिति है।शाकाहार से प्राप्त प्रोटीन में भरपूर एमीनो एसिड पाए जाते है। अनुसंधान से यह निष्कर्ष भी मिला कि विभिन्न मांसाहारी स्रोतों से अतिरिक्त प्रोटीन लेने की कोई आवश्यकता नहीं , आप दिन भर के शाकाहार में अमीनो एसिड का कुछ इस प्रकार सेवन भरण करें कि शरीर में नायट्रोजन की पर्याप्त मात्रा बनी रहे। बस शरीर का मेटाबॉलिज्म शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन की व्यवस्था कर देता है। जैसा कि हम जानते है, बलशाली शाकाहारी जानवर हाथी घोडा बैल आदि शाकाहार से ही विशाल मात्रा में प्रोटीन प्राप्त कर लेते है। आवश्यकता है तो मात्र शाकाहार से पोषण : कार्बोहाइड्रेट और एमीनो एसिड की संतुलित पूर्ति की। एक तुलनात्मक अध्ययन में शाकाहारियों को मांसाहारियों की अपेक्षा उर्ज़ावान और बेहतर मूड का पाया गया है।

आंत्र कैन्सर
मांसाहार का प्रायः  60 प्रतिशत हिस्सा मात्र ही शरीर के लिए उपयोगी होता है। शेष 40 प्रतिशत हिस्से में विषैले (टॉक्सिन्स) तत्व होते हैं। मांसाहार पेट के लिए भारी होता है तथा अम्लीयता (एसिडिटी) पैदा करता है। परिणाम स्वरूप उदर संबंधी कई बीमारियां उत्पन्न होती हैं। मांस में आहार-रेशा (फाइबर) बिलकुल भी नहीं होता।  जबकि आहार-रेशे (फाइबर) शरीर के लिए अत्यंत ही आवश्यक पदार्थ है। आहार से पोषक तत्वों के संश्लेषण में रेशे सहायक होते है। जो लोग रेशेयुक्त आहार करते हैं उनमें हृदय रोग, उदर कैंसर, पाइल्स, मोटापा, डायबिटीज, कब्ज, हार्निया, डायवर्टीकुलाइटिस, इरिटेबल बाउल सिन्ड्रोम, डेन्टल कैवेटिज और गॉलस्टोन्स का खतरा कम रहता है। शाकाहार में ही उपलब्ध आहार-रेशे विषावरोधक ( एंटीऑक्सीडेंट) होते हैं। रेशे आंतो की सफाई में भी सहयोगी है, मांसाहार ठोस व चिकनाई युक्त होता है, जिसके जिद्दी अंश आंतो की दीवारों पर चिपके रह जाते है और सड़न पैदा करते है। परिणाम स्वरूप आंतो के केन्सर की सम्भावनाएं प्रबल हो जाती है।


हृदय-रोग
शाकाहार में 'संतृप्त वसा' (हानिकारक कोलेस्ट्रॉल) का स्तर कम होता  है। साथ ही पोषक तत्व कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, मैग्नीशियम, पोटेशियम, विटामिन सी व ई जैसे एंटीऑक्सीडेंट तथा फाइटोकेमिकल्स आदि उच्च स्तर और बेहतर प्रमाण में होते है। जो एक शाकाहारी के लिए ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप, मधुमेह टाइप 2, गुर्दे की बीमारी, अस्थि-सुषिरता (ऑस्टियोपोरोसिस), मनोभ्रंश (अल्जाइमर) आदि बीमारियों की सम्भावनाएँ बहुत ही कम कर देते हैं। इतना ही नहीं शाकाहारी खाद्य पदार्थों में लाभदायक उच्च-घनत्व वाले लायपोप्रोटीन (HDL, कॉलेस्ट्रॉल) की उपस्थिति होती है। जो हानिकर अल्प-घनत्व वाले लायपोप्रोटीन (LDL, कॉलेस्ट्रॉल) को धमनियों में जमने से रोकते हुए उसके निकास को भी सुनिश्चित कर देता है।  उच्च-घनत्व युक्त लायपोप्रोटीन,  रक्तप्रवाह में बाधा, उच्च रक्तचाप समस्या, दिल का दौरा और लकवा जैसे रोगों की रोकथाम करता है। यह कॉलेस्ट्रॉल को संतुलित करने की सुरक्षात्मक भूमिका निभाता है। मुख्यत: "सेचुरेटेड फैट्स" और "कोलेस्ट्रोल" मांस और डेयरी उत्पाद में ज्यादा पाया जाता है, जिसके अत्यधिक सेवन से (एन्जाईना) हृदय के बीमार होने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। आहार रेशे (फाइबर) भी जो संतृप्त रक्त वसा को घटाने में सहायक होते है मात्र शाकाहार (प्लांट फ्रूड्स) में ही पाए जाते है।

गठिया/संधिवात या जोडों का दर्द
एक तथ्य के अनुसार, प्रति एक किलोग्राम मांस में लगभग 12-13 ग्रेन "यूरिक एसिड" पाया जाता है। 'यूरिक एसिड' एक विषाक्त रसायन (टॉक्सीन) है जो मानव स्वास्थ्य के लिए विष का काम करता है। रक्त में इसकी अधिक मात्रा कईं रोगो की जनक है।यूरिक एसिड दिल की बीमारी, लीवर के रोग, टी.बी., रक्ताल्पता, मांसपेशी संबंधी रोग, हिस्टीरिया, कमजोरी जैसे अनेक खतरनाक रोगों की सम्भावनाएँ प्रगाढ़ कर देता है। यूरिक एसिड की वृद्धि के कारण शरीर के सभी अवयव प्रभावित होते है। इसी 'यूरिक एसिड' के कण अस्थि-जोड़ों में इकट्ठा होने लगते हैं जो गठिया, संधिवात (आस्टियो आर्थराइटिस) जैसी समस्या का प्रमुख कारण है।



मधुमेह टाइप-2
माँसाहार से शरीर में एस्ट्रोजन हार्मोन की मात्रा अधिक बनती है। परिणाम स्वरूप मांसाहारी पुरुषों को हृदय रोग के अलावा "प्रोस्टेट कैंसर" तथा मांसाहारी महिलाओं को गर्भाशय, डिम्बाशय (ओवरी) और स्तन कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है।
एक शोध के अनुसार मांसाहारियों की तुलना मेंशाकाहारियों को "मेटॉबौलिक सिन्ड्रोम" (बीमारी न्योतक पांच खतरे यथा-उच्च रक्तचाप, लो एच डी एल कोलेस्ट्रोल, हाइ ग्लूकोज लेवल, उच्च ट्राइग्लिसराइड्स, मोटापा)  में से तीन प्रमुख खतरे 36 प्रतिशत कम पाए जाते है। मेटॉबौलिक सिन्ड्रोम ही कार्डियोवस्क्यूलर डिज़िज, डायबिटिज एवं स्ट्रोक का प्रमुख कारक होते है।


वृक्क (गुर्दा) समस्याएँ
इंडियाना विश्वविद्यालय की शेरोन मोई और उनकी टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन में, शाकाहार और मांसाहार के प्रभावों पर गौर करने पर पाया कि जो लोग शाकाहार पर रहे उनकी तुलना में मांसाहारी लोगों के मूत्र में फास्फोरस अधिक पाया गया। किडनी की बीमारी से परेशान लोग अगर अपने शरीर में अत्यधिक फास्फोरस जमा होने से परेशान हैं तो शाकाहार अपना लें। अधिक मात्रा में संचित फास्फोरस, गुर्दे के साथ साथ हृदय के लिए भी घातक भी हो सकता है।
एक अध्ययन से यह भी प्रकाश में आया है कि शाकाहारी जानवरों की तुलना में 10 गुना अधिक "हाइड्रोक्लोराइड एसिड" मांसाहारी जानवरों के शरीर में पाया जाता है। यह एसिड उनके माँसाहार को पचाने में योगदान करता है। जबकि मनुष्य के शरीर में भी यह रसायन, उस मात्रा में नहीं पाया जाता। अतः निश्चित है कि मांसाहार मानव पाचन संस्थान के लिए दुपाच्य है। इस भेद से भी सिद्ध होता है कि मानव शरीर  के लिए शाकाहार  ही अनुकूल है।



रोगाणु-विषाणु
माँस साधारणतया दूषित तत्वों जैसे कि अनिष्टकारी हारमोनों, वनस्पतिनाशकों, कीटनाशकों एवं प्रतिजैविकों से भरे होते हैंI चूँकि ये सभी विषाणु वसा में घुलनशील हैं, वे पशुओं के चर्बीदार मांस में संचित हो जाते हैं जो अन्ततः मांस भक्षण करने वाले व्यक्ति के शरीर में सहजता से प्रवेश कर जाते हैं। अनेकानेक बीमारियां उन जीवाणुओं के कारण होती है जो मांसाहार के माध्यम से व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती हैं। जबकि शाकाहार इससे काफी हद तक सुरक्षित होता है। उदाहरण के तौर पर "साल्मोनेला टाइफीमूरियम" नामक जीवाणु अंडे  खाने से शरीर में पहुंचता है, जिसके कारण न्यूमोनिया और ब्रोंकाइटिस होने की संभावना बढ़ जाती है। ऐसा दूषित व संक्रमित माँसाहार विषाणुजनित रोगों के साथ साथ खुरपका, मुंहपका और मैडकाउ जैसी महामारियों का कारण बनता है


कुल मिलाकर सार यह है कि शाकाहार शरीर के क्रियाकलापों के बेहतर संचालन में जहाँ सहयोगी है, वहीं मांसाहार शरीर के व्यवहार और संचालन के प्रतिकूल है, जो अन्ततः बिमारियों का निमन्त्रक है। साथ ही शरीर को अनेकानेक रोगों का शरण स्थल बनाने का मार्ग प्रशस्त करता है। शारिरिक अव्यवों के साथ ही हमारी इन्द्रियों के सुचारू संचालन में भी बाधक बनता है। जब निरामय पोषण उपलब्ध हो तो क्यों खतरों को उठाया जाय? अत: शाकाहारी बनें और स्वस्थ रहें।
स्पष्टीकरण : प्रस्तुत आलेख विशेषज्ञों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है। लेखक चिकित्सा विज्ञान का विशेषज्ञ नहीं है। रोगों की  बीटा अमाइलाईड, पॉलिफिनाल, अमीनो एसिड, फुड-फाइबर, कॉलेस्ट्रॉल, यूरिक एसिड, फास्फोरस एवं हानिकर बैकटेरिया, वायरस, परजीवियों की न्यूनाधिक उपस्थिति अनुपस्थिति के आधार पर समीक्षा की गई है। और उसी आधार पर रोगों की अधिक सम्भावना व्यक्त की गई है। उपरोक्त रोगों के अन्यान्य कईं कारण भी सम्भावित है्। रुग्णता निर्णय से पूर्व चिकित्सीय परामर्श अनिवार्य है।

16 टिप्‍पणियां:

  1. इस जानकारी के लिए आभार |

    गणतंत्र दिवस की सभी को शुभकामनाएं

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  2. तथ्यात्मक आलेख... और यह सब विअग्यानिक तथ्य और शोध पर आधारित हैं!!

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  3. Re-comment:
    स्वास्थ्य के लिये शाकाहार ही सर्वोत्तम है... इसका अनुभव अपने जीवन में स्वयं किया है..
    जब भी शाकाहारी लोग बीमार पड़ते हैं... उनके कारण होते हैं :
    — अति आहार ...
    — असमय आहार....
    — स्वाद-आसक्ति में अनुचित मेल का आहार...
    — स्वास्थ्य के प्रति अचेतनता.... आरामपसंद जीवन, विलासी जीवन, भोगमय जीवन.... अतिकामुकता.

    बदहजमी, अपच और कोष्ठबद्धता आदि से होते हुए ही बीमारियाँ शरीर में प्रविष्ट होती हैं... इसलिये शाकाहार में शामिल खाद्यों को भी समय और संतुलित मात्रा में सेवन करना चाहिए.
    इतना अवश्य है कि शाकाहार कभी जीव-ह्त्या को प्रेरित नहीं करता... हम देख सकते हैं...
    प्रायः जितने भी शाकाहारी जीव (पशु) हैं वे बिना वजह किसी अन्य जीव को नहीं मारते..और न ही सताते हैं.
    ... इसे दृष्टांत समझ कर भी हम समस्त निरामिष जीवों के स्वभाव को समझ सकते हैं.

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    1. प्रतुल जी, इस पोस्ट पर आपका यह कमेंट उत्तम और सार्थक है। आभार!!

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    2. प्रतुल जी, आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है, आहार में भी संयम और संतुलन आवश्यक है। आभार!

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  4. मैं इस मामले में प्रयोग के दौर से गुजर रहा हूं। थोड़े समय बाद स्वानुभव को शेयर करना चाहूंगा।

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    1. आपके अनुभव का सदैव स्वागत रहेगा कुमार जी!! साकारात्मक हो या नाकारात्मक, अवश्य शेयर किजिएगा।

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    2. राधारमण जी, आपके अनुभव जानने का इंतज़ार है।

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  5. हमें भी प्रतीक्षा रहेगी कुमार राधारमण जी के शोधात्मक विचारों की...

    बड़ी प्रतीक्षा है... निरामिष परिवार में कोई वैद्य शामिल हो...
    यदि हमारे परिवार में वे नहीं आये तो तर्कों का (संभावित) युद्ध देखने को मिलेगा.

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  6. सुन्दर आलेख! स्वस्थ सात्विक आहार वाँछनीय है।

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  7. सार्थक आलेख के लिए कोटिश: आभार!
    आपको बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ!

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  8. यह आलेख वैज्ञानिक विश्लेषणों के आधार पर लिखा गया है, आशा है कि कई भ्रमों का निराकरण होगा. सुज्ञ जी को इस अच्छे आलेख के लिए बधाई.

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  9. ब्लॉग बुलेटिन पर मेरी पहली ब्लॉग चर्चा स्वास्थ्य पर आधारित है, इसमें आपकी पोस्ट भी सम्मिलित की गई है. आपसे मेरे इस पहले प्रयास की समीक्षा का अनुरोध है.

    स्वास्थ्य पर आधारित मेरा पहला ब्लॉग बुलेटिन - शाहनवाज़

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    1. शाहनवाज़ भाई,
      स्वास्थ्य पर आधारित ब्लॉग बुलेटिन में स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करने की अपेक्षा से लिखे गए इस आलेख को सम्मलित करने के लिए आपका आभार!!

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