मंगलवार, 5 जून 2012

शाकाहार संकल्प और पर्यावरण संरक्षण (पर्यावरण दिवस पर विशेष)


हरे भरे जीवनदायी ग्रह पर जहां हम निवास करते हैं, वहां से जीवों की कई प्रजातियां हमेशा के लिए विलुप्त हो रही हैं। ऐसा सदियों से होता आ रहा है। कई प्रजातियां इंसान के प्रादुर्भाव से पहले धरती को विदा कह गई, जबकि कई प्रजातियां हमारे सामने विलुप्त हो गई। इंसान के लालच और जरूरत के चलते जिस गति से इन दिनों जंगलों से जैव विविधता नष्ट की जा रही है, उसे देखते हुए लगता है कि जल्दी ही हमारा अस्तित्व ही संकट में आ जाएगा। जिस गति से जंगल और समुद्र जीवों से रीते होते जा रहे हैं, क्या उसका असर समूचे पर्यावरण पर नहीं प़ड रहा है ? जाहिर है कि धरती पर जीवन को सुरक्षित रखना हमारी पहली प्राथमिकता है।

आज दुनिया का अस्तित्व ही संकट में है और संकट का कारण है बिगड़ता पर्यावरण तथा ग्लोबल वार्मिंग। माना जा रहा है कि ग्रीन हाउस गैस ग्लोबल वार्मिंग की मुख्य कारक है और जानवर ग्रीनहाउस गैस का उर्त्सजन करते है। वास्तव में पशु-पक्षी हमारे अस्तित्व के लिए अनिवार्य हैं और इनका आहार के रूप में भक्षण प्रकृति विरोधी है निश्चित तौर पर हर प्रकृति विरोधी बात पर्यावरण विरोधी होती है, जहॉ तक माँसाहार की बात है इसके लिए पशुओ की फार्मिंगं पर्यावरण विरोधी है।

ब्रेंट फोर्ड के सांसद लोर्ड स्टर्न जोर देकर कहते हैं कि शाकाहारी भोजन ही पृथ्वी को विनाश से बचा सकता है। लॉर्ड स्टर्न का तर्क है कि मांसाहार का सेवन करने से जैविक चक्र तो बाधित होता ही है, साथ ही साथ मीट की प्रोसेसिंग में पानी का अनहद उपयोग होता है और ग्रीनहाउस गेसों का उत्सर्जन भी। इससे पृथ्वी के स्रोतों का इस्तेमाल कई गुना बढ जाता है।

शाकाहार से पर्यावरण संरक्षण इस विचारधारा पर आधारित है कि जन उपभोग के लिए मांस उत्पाद और पशु उत्पाद खाद्य पर्यावरण की दृष्टि से अरक्षणीय होते हैं. 2006 में संयुक्त राष्ट्र संघ की पहल पर किए गए एक अनुसंधान के अनुसार, दुनिया में पर्यावरण संबंधी की दुर्दशा में सबसे बड़े योगदानकर्ताओं में से एक मवेशी उद्योग है, मांसाहारी खाद्य पदार्थों की आपूर्ति के लिए आधुनिक तरीकों से पशुओं की तादद बढ़ाने से बहुत ही बड़े पैमाने पर वायु और जल प्रदूषण, भूमि क्षरण, जलवायु परिवर्तन जैव विविधता को नुकसान हो रहा है। निष्कर्ष में यह तथ्य उभर पर आया कि स्थानीय से लेकर वैश्विक प्रत्येक स्तर पर, पर्यावरणीय समस्याओं में सबसे महत्वपूर्ण योगदानकर्ताओं में पशुपालन क्षेत्र का स्थान एकदम से शीर्ष पर दूसरा या तीसरा है।

इसके अलावा, पशु फार्म ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के बड़े स्रोत हैं और दुनिया भर में 18 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, जिसे CO2 के समकक्ष मापा गया है, के लिए ये पशु फार्म ही जिम्मेवार है। तुलनात्मक रूप से, दुनिया भर के सभी परिवहनों (जहाजों, सभी की गाड़ियों, ट्रकों, बसों, ट्रेनों, जहाजों और हवाई जहाजों समेत) से उत्सर्जित CO2 का प्रतिशत 13.5 है. पशु फार्म मानव संबंधित नाइट्रस ऑक्साइड का उत्पादन 65 प्रतिशत करता है और सभी मानव प्रेरित मीथेन का प्रतिशत 37 है। जो लगभग 21 गुना अधिक है। मीथेन गैस के ग्लोबल वार्मिंग पोटेंशियल (GWP) की तुलना में कार्बन डाइ ऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड का GWP 296 गुना है।

चारे पर निर्भर पशुओं की तुलना में  अनाज  पर पोषित पशुओं को कहीं अधिक पानी की जरूरत पड़ती है। यूएसडीए (USDA) के अनुसार, फार्म पशुओं को खिलाने के लिए उगाई फसलों की पैदावार के लिए पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका के लगभग आधी जल आपूर्ति और 80 प्रतिशत कृषि भूमि के पानी की जरूरत होती है. इसके अतिरिक्त, अमेरिका में भोजन के लिए पशुओं को बड़ा करने में 90 प्रतिशत सोया की फसल, 80 प्रतिशत मक्के की फसल और 70 प्रतिशत कुल अनाज की खपत हो जाती है

शाकाहार को बढ़ाने में एक जापानी वैज्ञानिक के प्रयोग भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। इन प्रयोगों में सिद्ध किया गया है कि एक किलो बीफ के उत्पादन के साथ 36.4 किलो कार्बन डाइऑक्साइड भी उत्पन्न होती है। यह गैस ग्रीन हाउस प्रभाव के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है।

पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इसीलिए कहा था कि यदि दुनिया बीफ (गाय का मांस) खाना बंद कर दे तो कार्बन उत्सर्जन में नाटकीय ढंग से कमी आएगी और ग्लोबल वॉर्मिंग में बढ़ोतरी धीमी हो जाएगी। सौभाग्य की बात है कि भारत में गौमांस (बीफ) का ज्यादा चलन नहीं है। मांस के ट्रांसपोर्टेशन और उसे पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाले ईंधन से भी ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन होता है। इतना ही नहीं, जानवरों के मांस से स्वयं भी कई प्रकार की ग्रीन हाउस गैसें उत्पन्न होती हैं जो वातावरण में घुलकर उसके तापमान को बढ़ाती हैं।

जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण के क्षेत्र में काम कर रहे संगठन ग्रीनपीस के नीति सलाहकार श्रीनिवास के अनुसार शाकाहार अपनाने से अप्रत्यक्ष तौर पर पर्यावरण संरक्षण में योगदान दिया जा सकता है। उनके मुताबिक माँसाहार के अधिक प्रचलन के कारण कहीं न कहीं वातावरण में कार्बनडाई ऑक्साइड जैसी गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। इसलिए माँसाहार जलवायु परिवर्तन में भूमिका निभा रहे हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि माँसाहार का बढ़ता प्रचलन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जलवायु परिवर्तन और ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। इससे बचाव और पर्यावरण संतुलन के लिए विशेषज्ञ शाकाहार को अपनाने का सुझाव देते हैं।वास्तव में पर्यावरण की सुरक्षा हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी है। और शाकाहार इसकी एक महत्तवपूर्ण कड़ी है। अगर हम गम्भीरता से पर्यावरण संरक्षण की बात करतें है तो हमें शाकाहारी होना चाहिए।

27 टिप्‍पणियां:

  1. पर्यावरण को सहेजने में शाकाहार की प्रभावी भूमिका पर जानकारीपरक लेख....आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. सामयिक आलेख! शाकाहार वास्तव में एनवायरनमेंट फ़्रैंडली (पर्यावरण हितकारी) जीवन-शैली है और पृथिवी पर जीवन के सफल अस्तित्व की सहयोगी भी।

    जवाब देंहटाएं
  3. पर्यावरण दिवस पर इस जानकारी के लिए आभार |

    जवाब देंहटाएं
  4. शाकाहार से ही पर्यावरण की रक्षा हो सकती है

    जवाब देंहटाएं
  5. Really very valuable post........I agree with the message of this post!
    Congrats sir......... on writing such a meaningful post!

    जवाब देंहटाएं
  6. अगर हम गम्भीरता से पर्यावरण संरक्षण की बात करतें है तो हमें शाकाहारी होना चाहिए......बहुत काम की बात इस विशेष अवसर पर.

    जवाब देंहटाएं
  7. पर्यावरण हानि पर गहराई से चिंतन प्रस्तुत करता आलेख!!

    जवाब देंहटाएं
  8. पर्यावरण की चिंता एक दिन की चिंता न बनी रहे, इसलिए भी ऐसे आलेख आवश्यक हैं|

    जवाब देंहटाएं
  9. मनुष्य और मनुष्यजन्य आधुनिक तकनीकों ने जैव विविधता को सर्वाधिक क्षति पहुँचाई है।

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत सारगर्भित आलेख....आभार

    जवाब देंहटाएं
  11. पर्यावरण के लिए शाकाहार की महत्व को जाना ...
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  12. पाठकों द्वारा "प्रियता" की श्रेणी में 'निरामिष' को चौथा स्थान प्राप्त हुआ।
    निरामिष परिवार को बधाई!!
    समस्त पाठक बंधुओं का लाख लाख आभार!!

    एक आलसी का चिठ्ठा: सबसे प्रिय ब्लॉग पुरस्कार -1 : चन्द्रहार के मोती

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. निरामिष के सभी पाठकों और शुभाकांक्षियों को मेरी ओर से भी हार्दिक बधाई!

      हटाएं
    2. निरामिष कुटुंब को मेरी भी हार्दिक बधाईयाँ |

      हटाएं
    3. निरामिष परिवार, सहृदय पाठक एवं करूणावान हितचिंतकों को बधाई!!

      हटाएं
  13. अल्पावधि में ही इस सोपान तक पहुँचने की 'निरामिष' को बधाई|

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार संजय जी, और स्नेह उपलब्धि के लिए आपको भी बधाई!!

      हटाएं
  14. मेरी तरफ से आपको ढेरों बधाईयाँ

    बहोत अच्छे

    Hindi Dunia Blog (New Blog)

    जवाब देंहटाएं
  15. सब शाकाहारी हो जायेंगे तो फूड चेन गडबडा नही जायेगा । सब्जियां महंगीतर हो जावेंगी सो अलग । मै शाकाहारी हूँ इसीसे चिंता है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. निश्चिंत रहें आशा जी, न तो शाकाहार का खत्म हो जाना है और न फूड चेन का गडबडाना !!
      आज भी लाखों साल से जो पशु-पक्षी खाए जाते है,न तो विलुप्त हुए न उनकी संख्या कम हुई, उलट उनकी उतपत्ति बढ़ गई है। आश्चर्य तो यह है कि अधिकांश मांसाहारी पशु विलुप्ति की कगार पर है।
      और शाकाहार उत्पादन और अपव्यय के लिए देखें उपर सम्बंधित लिंक में…… 6 क्रमांक पर्… "यदि अखिल विश्व शाकाहारी हो जाय तो ??"

      हटाएं
  16. प्रकृति और हमारे आहार का अनान्योश्रित सम्बन्ध तो है ही...गर्व से कहिये कि हम शाकाहारी भी हैं और प्रकृति के रक्षक भी...

    जवाब देंहटाएं
  17. सर्वप्रियता सू्ची में हमारे सामुहिक ब्लॉग 'निरामिष'को महत्वपूर्ण चौथा स्थान मिलने के साथ साथ्……
    निरामिष लेखक मण्डल से 'बर्ग वार्ता' और 'ओझा उवाच' को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। अनुराग जी एवं अभिषेक जी को ढ़ेरों बधाईयाँ। इसी स्थान पर सतीश पंचम जी को भी बधाई!!
    दूसरे स्थान पर निरामिष के प्रिय समर्थक मो सम कौन? के संजय अनेजा जी बिराजमान है। उन्हें अनंत बधाईयां और शुभकामनाएं। ज्ञात रहे 'मानसिक हलचल' प्रथम स्थान पर रहा है।

    निरामिष परिवार आप सभी का हार्दिक अभिनन्दन करता है एवं निरंतर सफलता की कामना करता है।

    जवाब देंहटाएं
  18. असीम बधाईयां ऐसे विषय पर दिलचस्प जानकारियां देने के लिए. उम्मीद है, इसकी विषयवस्तु एवं सामग्री लोगों को और कुछ नहीं तो कम से कम निरामिष को घास-फूस कहने से तो रोकेगी.
    शुभेच्छु,
    मृदुलिका

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. निरामिषों के लिए तो घास-फूस शब्द भी गौरवमय है, घास = कार्बोहाईड्रेड और फूस = आहारीय रेशे। जो लोग घास-फूस नहीं खाएंगे इन दोनो अमृत-तुल्य पदार्थों से सर्वदा वंचित रहेंगे।

      हटाएं
  19. यदि पर्यावरण न बच सका तो फिर मनुष्य भी विलुप्त हो जाएगा. अपनी बर्बादी के लिए खुद ही जिम्मेदार होगा और बाद में पछताने के लिए भी कुछ न बचेगा. अभी भी समय है चेत जाने का..

    जवाब देंहटाएं