शनिवार, 14 जून 2014

⊡ शाकाहारी उत्पाद - चिन्ह और प्रतीक

शाकाहार की प्राचीन गौरवमयी परंपरा के चलते, आज भी संसार भर में शाकाहारियों का प्रतिशत भारत में ही सर्वाधिक है। शाकाहार की सुदृढ़ और विस्तृत परंपरा के कारण अधिकांश भारत में सात्विक निरामिष भोजन सर्वसुलभ होना स्वाभाविक है। भोजन के प्रति संवेदनशीलता के चलते रसोई और भोजनालयों के भेद भी स्पष्ट हैं। फिर भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अक्सर स्वार्थ के लिए, कभी अज्ञानवश और कई बार मज़े के लिए भी अपने सहजीवियों का "धर्म-भ्रष्ट" करने की जुगाड़ में लगे रहते हैं। अमेरिका में अपने को भारतीय कहने वाले कई भोजनालय नान-रोटी में अंडे का प्रयोग करने लगे हैं और इस बाबत कोई नोटिस भी नहीं लगाते हैं। दक्षिण-पूर्व एशिया के हिन्द-चीनी देशों के सामान्य भोजन और चटनियों में जल-जीवों के अवशेष पाया जाना सामान्य सी बात है।

प्रचारित धारणाओं के विपरीत भोजन में छूआछूत शाकाहारियों की विशेषता नहीं है। भारत के अधिकांश मांसाहारी झटका, हलाल या कुत्ता जैसे नियमों के पाबंद हैं। कोई गोमांस से बचता है तो कोई सूअर के मांस से। पूर्वोत्तर के कुछ क्षेत्रों में चाव से खाया जाने वाला कुत्ते का मांस पश्चिम भारत के किसी भी मांसाहारी के मन में वितृष्णा उत्पन्न कर सकता है। भारत के बाहर भी संसार के लगभग सभी मांसाहारी समुदायों में कट्टर भोजन-भेद मौजूद रहा है। यहूदी संप्रदाय कोशर खाता है तो मुसलमान हलाल तक सीमित हैं। मध्य-पूर्व के दयालु समझे जाने वाले लोकनायक हातिमताई द्वारा भोजन के लिए अपना पालतू घोड़ा मारकर पका देने की कथा है जबकि अमेरिका में घोड़ा खाने वाले को अहसान-फरामोश, असभ्य और क्रूर माना जाएगा। निष्कर्ष यह कि संसार में अविचारी सर्वभक्षी लोगों की संख्या कम है। अधिकांश लोग कुछ भी खाने से पहले उसके बारे में आश्वस्ति चाहते हैं। एलर्जीग्रस्त कितनों के लिए यह स्वास्थ्यगत अनिवार्यता भी है।

प्राचीन भारतीय समाज में हर काम करने की पद्धति निर्धारित थी। संस्कृत भाषा, अंक पद्धति और लिपियों का विकास भी विदेशों से अलग नियमबद्ध रूप से ही हुआ है। आज भले ही हम संकल्प और पद्धति को पिछड़ापन बताकर "जुगाड़" और "चलता है" को सामान्य मानने लगे हों लेकिन विकसित देशों में सब काम नियम से किया जाता है। वहाँ भोज्य पदार्थों में उनके तत्व सूचीबद्ध करने की भी कानूनी बाध्यता लंबे समय से रही है। सामान्य प्रचलित तत्वों के अतिरिक्त अप्रचलित रसायनों के लंबे और जटिल वैज्ञानिक नाम के चलते उन्हें सूचीबद्ध करने  के लिए ई संख्या कूट (E number code) का प्रयोग किया जाता है। इन कूट संख्याओं के बारे में इन्टरनेट पर काफी भ्रम फैले हुए हैं। किसी आगामी आलेख में उन पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।

सन 2006 में स्थापित भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण स्वस्थ और विश्वसनीय भोजन चुनने की दिशा में अच्छी पहल है। भोजन के व्यावसायिक उत्पादन, भण्डारण, वितरण आदि के नियम बनाना और उनका अनुपालन कराना भी प्राधिकरण के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है। परंपरागत भारतीय शाकाहार (दुग्धाहार सम्मिलित) और मांसाहार की पेकेजिंग/थैली/पुलिंदे पर संस्थान द्वारा स्पष्ट हरे या लाल चिन्ह द्वारा पहचान आसान किए जाना एक सराहनीय कदम है।  

डब्बाबंद/प्रीपैकेज्ड भोज्य पदार्थ खरीदते समय हरा शाकाहारी चिन्ह देखिये और सात्विक भोजन को बढ़ावा दीजिये। बल्कि मैं तो यही कहूँगा कि पर्यावरण संरक्षण में सहयोग देते हुए, थैली/डिब्बा के भोजन पर निर्भरता ही यथासंभव कम कीजिये। निरामिष परिवार की ओर से आपके सात्विक स्वस्थ जीवन की शुभकामनायें।

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ई कोड - क्या आपके शाकाहार में सुअर की चर्बी है?

17 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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    आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (15-06-2014) को "बरस जाओ अब बादल राजा" (चर्चा मंच-1644) पर भी होगी!
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. जी । आगे जानकारी का इंतजार रहेगा ।

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन विश्व रक्तदान दिवस - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. अच्छी जानकारी..... कई उत्पादों पर देखा है यह मार्क, सचेत रहना ज़रूरी है

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  5. मांसा्हार कई प्रकार के अपराधबोधों से दुविधाग्रस्त है। शाकाहार के लिए हरा निशान बहुत ही सहयोगी सिद्ध है। हरित चिह्न देखकर हरितावली को उन्नयन दीजिए। आपकी शाकाहार मांग ही शाकाहार का उत्पादन बढ़ाएगी। इसी उत्पादन के बहाने धरती सदैव हरी बनी रहेगी। इस नीले ग्रह को रक्तरंजित लाल चुनर नहीं, हरी-भरी हरित ओढनी चाहिए। इस उपयोगी लेख के लिए बहुत बहुत आभार, अनुराग जी!!

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  6. बहुत उपयोगी जानकारी। आपके सलाहनुसार मैं तो यता संभव घर का पका खाना ही खाती और खिलाती हूँ.

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  7. meri vinti h ki sabhi log jo shakahaari h kripaya ish logo ko dekh kr hi samaan kharidey dhanywaad.

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  8. Thanks for your marvelous posting! I really enjoyed reading it, you happen to be a great author. I will remember to bookmark your blog and may come back in the foreseeable future.

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    Satta king

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