सोमवार, 5 मार्च 2012

जीवन का आधार - शाकाहार

एक रेलगाड़ी में एक सज्जन बैठे थे। वे अपना सारा सामान अपने सर पर रखे हुए थे - बड़े परेशान, थके हुए। परन्तु सामान नीचे रखने को तैयार ही नहीं थे । कई लोग उन्हें कह रहे थे कि सामान नीचे रख दें - पर वे सिर्फ बड़े दयाभाव से मुस्कुरा देते - परन्तु सामान नीचे न रखते। लोगों को लग रहा था की शायद सामान में कोई बेशकीमती चीज़ होगी जो ये नीचे रखने का खतरा मोल नहीं ले रहे , और बिना सच्चाई जाने कई लोगों में उस सामान के प्रति लालच पैदा होता कि ऐसी अनमोल चीज़, जिसे ये छोड़ना नहीं चाहते - मेरे पास भी हो। एक व्यक्ति ने उनसे कहा - "मैं कबसे देख रहा हूँ कि आप सबके कहने से भी यह सामान नीचे नहीं रख रहे - सो मैं रखने को नहीं कहूँगा - परन्तु मैं यह जानना ज़रूर चाहता हूँ कि आप यह सामान उठाये क्यों बैठे हैं? और फिर सामान इतना ज्यादा भी लेकर चल रहे हैं आप?"

इस पर उन ज्ञानी पुरुष का उत्तर था -
"यह रेलगाड़ी हम सब का और हम सब के सामान का बोझ उठाये हुए है, इस बेचारी का भार कम करने के लिए मैं अपनी मदद दे रहा हूँ। कुछ सामान मैं भी उठा लूं ... तो ट्रेन पर बोझ कम हो जाए। ... और फिर - यदि सामान अधिक है भी, तो क्या हुआ? उसका वजन तो मैं उठा रहा हूँ न? रेलगाड़ी पर तो वजन नहीं डाल रहा।"

.......उस व्यक्ति ने उन्हें समझाने का प्रयास किया कि – हे अतिशय भले आदमी, यह सामान भले ही आपने सर पर उठाया हो, किन्तु सारा भार तो आखिर ट्रेन पर ही है -क्योंकि आप स्वयं भी इसी ट्रेन पर सवार है और सामान आपके सर पर सवार हैं। परन्तु उस सज्जन को बहुत समझाने पर भी बात उनके समझ न आई।

ऐसे ही कई मित्र बार बार कहते हैं की वे तो प्रकृति और ईश्वर की मदद करने के लिए मांसाहार ले रहे हैं -कि प्रकृति / ईश्वर इतनी बड़ी मानव जनसँख्या के लिए भोजन कैसे दे सकेगी ? उन्हें लगता है की यह करने से वे प्रकृति पर पड़ने वाले बोझ (इतनी बड़ी मानव जनसँख्या को भोजन उपलब्ध कराने का बोझ) को कम कर रहे हैं । उन्हें समझाने पर भी यह समझ ही नहीं आ पाता कि -

-- जो मांस खाया जायेगा, उन पशुओं / जीवों का शाकाहारी भोजन भी तो वही प्रकृति उपलब्ध करा रही है - तो क्यों वही प्रकृति मानवों के लिए समुचित शाकाहारी भोजन नहीं दे पायेगी?

-- ऊपर से यह जो मांसाहार करने के लिए इतने अप्राकृतिक रूप से पशुओं की संख्या को बढ़ाया जाता है - क्या यह प्रकृति और पर्यावरण पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ता? जिस पशु का मांस दो दिन में खा लिया जाता है - क्या उससे पहले वह साल दो साल प्रकृति का दिया अनेक गुना भोजन उपयोग में नहीं लाता? इसके लिए प्राकृतिक संसाधन कितने अधिक अपव्यय हो जाते हैं!

एक नज़र इस बायोमास पिरामिड़ (biomass pyramid) देखिये…  
बायोमास पिरामिड़
स्पष्ट है कि, यदि एक प्राणी (जैसे मानव) "omnivorous"  (सर्वभक्षी) है, तो उसके निरामिष भोजन प्रयुक्त करने से , सामिष की अपेक्षा पृथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों पर - १:१० कम बोझ पड़ता है । 

 (देखिये - Primary Carnivore : grass , और Herbivore : ग्रास, और इन दोनों का स्वयं ही अनुपात लीजिये ) तो यहाँ ऐसा नहीं है कि प्रकृति ही वजन उठा रही है, बल्कि यह कि बोझ कम करने की बात करने वाले दरअसल बोझ को दस गुना बढ़ा रहे हैं !!!!

-- जिस ईश्वर को वे करुणावान/रहमान कह रहे हैं, जिसे वे सर्व शक्तिमान कह रहे हैं - क्या विपरीत व्यवहार करके उस परमपिता का वे अपमान नहीं कर रहे? बार बार यह कह कर कि वह चाहता है कि उसके बनाये पशु ऐसे तड़प तड़प कर मारे जाएँ या उस परमेश्वर की शक्ति इतनी कम है की वह बिना जीव हिंसा के अपने बनाए मनुष्यों को सम्पूर्ण पौष्टिक भोजन उपलब्ध नहीं करा पायेगा?

आपको क्या लगता है ?

15 टिप्‍पणियां:

  1. ६ किलो अन्न से १ किलो मांस बनता है, अर्थात ५ किलो अन्न की हानि..

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  2. सुन्दर,शानदार,
    समझदार वही जो समझ जाए.

    होली की सभी जन को हार्दिक शुभकामनाएँ.

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  3. सार्थक सन्देश देती सुन्दर बोधकथा के लिये आभार!

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  4. सही कह रही हैं. एक सज्जन गो ग्रीन का हवाला दे रहे थे कि पेड़-पौधे आक्सीजन देते हैं जिन्हें काट दिया जाता है | कुतर्क का मुकाबला करने के लिए सबको एकमत होकर कुतर्कों पर कड़ा प्रहार करना चाहिए|

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  5. वस्तुनिष्ठ तार्किक बोध कथा, शानदार प्रस्तुति

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  6. sahi kaha aapne ,bahut hi sunder tarike se samjhya aap ne,prakati har jagah prayrpt bhojan ki vavstha ki hai


    bahut hi shandar post

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  7. La comida vegetariana bien complementada reúne tanta o más vitalidad reflexiva que si eres carnívoro. Y el ser carnívoro hace al ser humano más agresivo.

    Un abrazo de buen comienzo de semana.

    María del Carmen

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    1. Hallo Maria ji! Me alegra verte en este blog. Somos la "organización de vagetarian" y tratar de convencer a la gente a merced de los otros animales y no matarlos para nuestros platos. Estás absolutamente justo que carnívoros son comperatively más agresivos que los de la herbivorou. De hecho, todas las criaturas tienen los mismos derechos que sobrevive en la tierra, por lo que no nos debemos matar a los animales de pena como hacerlo nos estamos perturbando el ecosistema... que puede provocar un gran caos en el futuro. Para salvar la tierra debemos guardar la creación del Dios Todopoderoso. Usted sabe que los animales herbívoros tienen larga vida que los de los carnívoros... Galeon para larga vida debemos tomar sólo vagetables.
      ¡ Gracias! una vez más para apoyarnos. Ten un buen día.
      Dr. Kaushalendra

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    2. कौशलेन्द्र जी,
      माननीया मारिया डेल कारमेन के भाव और आपकी प्रतिक्रिया का हिंदी अनुवाद भी रखें तो हमारा पाठकवर्ग लाभान्वित हो सके।

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  8. मारिया डेल कारमेन:
    Vegetarian food well complemented brings vitality as much or more reflective if you're carnivorous. And being human carnivore makes more aggressive.

    A hug from good start this week.
    डॉ.कौशलेन्द्र:
    Hallo Maria ji! Good to see you in this blog. We are the "organization of vagetarian" and try to convince people at the mercy of other animals and not kill for our dishes. You are absolutely right that comperatively carnivores are more aggressive than the herbivorou​​. In fact, all creatures have the same rights that survives on earth, so we should not kill animals like doing we are worth disrupting the ecosystem ... which can cause great chaos in the future. To save the earth we must keep the creation of Almighty God. You know that herbivores have long lives than those of carnivores ... Galeon for long life we ​​take only vagetables.
    Thank you! once again to support us. Have a good day.

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  9. एक शानदार तार्किक प्रस्तुति!! पूर्णतः वैज्ञानिक!!

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  10. सलिल भैया जी! अनुवाद प्रस्तुत करके हमारा काम हलका कर दिया आपने। मारिया जी स्पेन से हैं और अभी हाल में ही हम दोनों ने एक-दूसरे का अनुसरण करना प्रारम्भ किया है। ब्राज़ील की सुश्री फ़्लाविया जी से चर्चा होती रहती है, वे मांसाहारी हैं( उनके अनुसार हाई प्रोटीन के लिये वे कभी-कभी मांसाहार करती हैं)पर ज़माल की तरह शाकाहार का विरोध नहीं करतीं। ब्राज़ील की ही श्रीमती एली चाइया जी मुझे अपना छोटा भाई मानती हैं, वे मेडीसिन में कार्टीज़ोन और भोजन में मांसाहार की विरोधी हैं। शाकाहार के पक्ष में विचार परिवर्तन का हमारा अभियान व्यक्तिगत रूप से भी चलता रहता है।

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  11. lagta hai.....(unke/samish)....sare tir chuk gaye......

    bidh-vichar achhi lagi....

    pranam.

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    1. aabhaar

      जी - ऐसा ही लगता है |
      मैं तो सोच रही थी इस पोस्ट पर बड़े सारे तीर चलेंगे, पर ऐसा हुआ नहीं :)

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  12. बहुत ही तार्किक और रोचक विज्ञान सम्मत विश्लेषण प्रस्तुत किया है आपने शाकाहार के समर्थन में .

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