बुधवार, 7 सितंबर 2011

गौहिंसा का विरोध आन्दोलन

भारत देश के करूणावान सज्जनों,
क्या आप कटती हुई गायों को बचाना चाहते हैं ..............?
निरीह गौधन पशुधन के साथ हिंसा का ताण्डव!!
कृतघ्न  इन्सान का यह शोषण
द्रवित हो उठने वाले भारतवासियों,
उत्तर प्रदेश के बिजनेसमेन (कसाई-व्यापारीगण) अब गायों को काटने के लिए, आधुनिक स्वचालित  यांत्रिक कत्लखाने,  बहुत जल्द ही बनाने जा रहे है ताकि गायों को तीव्र गति से काटा जा सके, उनके मांस को विदेशों में निर्यात कर भारी लाभ कमाया जा सके | अगर ये लोग ऐसे क्रूर गोहिंसाग्रह स्थापित करने में कामयाब हो जाते है तो फिर पूरे भारत में इन कत्लखानो की बाढ़ ही आ जाएगी | सम्पूर्ण भारतवर्ष के लोग इन कत्लखानो को खोलने का पुरजोर विरोध कर रहे है और उत्तर प्रदेश की सरकार ने कहा है कि अगर एक करोड़ लोग भी कत्लखाने खोलने का विरोध  करते है तो  इन यांत्रिक स्वचालित पशुवधग्रह को खोलने की इजाजत  नहीं दी जाएगी| तो आईए इस निर्दयी कत्लखानों का तीव्र विरोध करें और इस आन्दोलन की हिमायत करें।
हम अहिंसा प्रधान इस देश के करूणावान नागरिक है।हम गायों की पूजा करते है | भारतीय होने के नाते और मानवता के नाते हम ऐसा होते हुए, हरगिज नहीं देख सकते ................ कृपया इस आन्दोलन को आप अपना समर्थन अवश्य दें |
अगर आपको लगता है कि इस तरह के कत्लखाने नहीं खुलने चाहिए तो कृपया  05223095743 पर एक मिस कोल जरूर करें| एक घंटी बजने के बाद कोल अपने आप डिस-कनेक्ट हो जाएगी |
जिस तरह से आपने अन्ना हजारे के जन लोकपाल बिल के आन्दोलन को सफल बनाया उसी तरह से आप मिस कॉल कर के इस कत्लखानों के विरोध आन्दोलन को अपना समर्थन दें |
इसमें आपका कोई खर्चा नहीं है, बल्कि आपके इस एक मिस कोल से प्रतिदिन कटने वाली हजारों लाखों गायें बच जाएगी |
कृपया आप अपने मोबाइल से मिस्कोल जरूर करें और इसे जितने लोगों तक पंहुचा सके पहुचाये |
मैने मिस कोल कर दिया है ............ अब आपकी बारी है ..................
अभी मिस कोल करे - नंबर है - 05223095743
 (भारत स्वाभिमान से प्राप्त एक आह्वान)

भारत स्वाभिमान आन्दोलन की अन्य वेबसाइट : 

70 टिप्‍पणियां:

  1. सुझ जी, भावनाओं के स्‍तर पर बहते हुए आपके आह्वान का समर्थन किया जा सकता है, पर हकीकत के धरातल पर उतरने पर इसे पढकर कई सवाल उठते हैं। सबसे पहली बात यह कि सिर्फ गायों के लिए ही यह क्रंदन क्‍यों? यदि यह ब्‍लॉग धर्म विशेष के सिद्धांतों के प्रसार के लिए नहीं बना है (जोकि मेरी समझ से नहीं है), तो फिर बैल, बकरे, भैंसों पर भी यह चिंता प्रकट की जानी चाहिए, जोकि आपकी इस पोस्‍ट में नदारद है। दूसरी बात दूध देना बंद कर देने के बाद सड़कों पर पॉलीथीन खाने और तड़प-तड़प कर मर जाने के लिए आवारा छोड़ दी जाने वाली गायों के बारे में इस मिस कॉल वाले नम्‍बर पर क्‍या सुविधा है, इसकी भी चर्चा होनी चाहिए थी।
    और हां, शहरों में व्‍यस्‍त चौराहों पर आवारा घूमती लाखों गायों के लिए भी क्‍या इन्‍होंने कुछ सोचा है, ये भी बताइएगा। क्‍योंकि इन आवारा गायों के कारण रोज ही सैकड़ों एक्‍सीडेंट होते हैं (मैं स्‍वयं इसका भुक्‍तभोगी हूं) और दर्जनों लोग अपने हाथ पैर तुडवाते हैं। आशा है आप मेरी बातों को अन्‍यथा नहीं लेंगे और व्‍यवहारिकता के धरातल पर उतर कर मेरी जिज्ञासाओं का समाधान करेंगे।
    ------
    ब्‍लॉग समीक्षा की 32वीं कड़ी..
    पैसे बरसाने वाला भूत...

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  2. प्रिय भाई जाकिर
    मैं तो आपकी बात समझ नहीं पा रहा ...क्या कहूँ ? , मुझे तो गाय वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण लगती है
    आपके हिसाब से क्या गाय किसी धर्म से जुडी है ? कुछ लोग तो इसे आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण मानते हैं

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  3. आवारा घूमती गायों पर आपकी चिंता तो फिर भी थोड़ी समझ आ रही है , उम्मीद है आप इनसे होने वाले एक्सीडेंट की वजह से इन्हें "क़त्ल कर देने योग्य" श्रेणी में नहीं रखते

    विषयांतर : वैसे ये "सूर्य केतु नाड़ी" और किसी जीव में भी होती है क्या ??

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  4. डॉ0 ज़ाकिर अली साहब,

    आप बेफिक्र रहें, यह ब्लॉग किसी भी धर्म विशेष के प्रचार प्रसार के उद्देश्य से नहीं बना है। इस ब्लॉग का उद्देश्य अहिंसा-करूणा के उद्देश्य से शाकाहार के प्रति जाग्रति फैलाना है। जब शाकाहार को उपयोगी सिद्ध किया जाएगा तो लाजिमि है मांसाहार के दूषणों को प्रकाशित किया जाएगा। और जिस किसी स्रोत से मांसाहार को अनावश्यक प्रोतसाहन दिया जाएगा,उस क्रूर भावना की निंदा भी होगी। हिंसा तो किसी मत में है नहीं,पर अहिंसा पर भी किसी मत का एकाधिकार नहीं है। हमारा उद्देश्य है जीव मात्र के प्रति दया। पर इस दया संदेश के हम प्रवर्तक नहीं है। बहुत से धर्म इस जीव दया का उल्लेख पहले से कर चुके। इसलिए हमारे संदेश आपको किसी धर्म विशेष के लगते है। दूसरे सारे प्राणियों के प्रति समान क्रंदन है,सभी अच्छी तरह से जानते है इन कत्लगाहों में दूसरे प्राणी भी कटेंगे। पर सभी प्रणियो से गाय अधिक उपयोगी और ममत्ववान प्राणी है। अतः उसके प्रति विशेष सहानुभुति से प्रथम उल्लेख होता है। और अधिसंख्य लोग उसे सम्मान भी देते है। जैसे आपने सवाल उठाया 'गाय क्यों?' मैं पूछता हूं गाय क्यों नहीं, आखिर गाय नें आपका क्या बिगाड़ा है? मैं भी मानता हूँ इसके पिछे आपका भी धर्मिक प्रयोजन नहीं होगा। पर सभी प्रणियों को सम्मलित मानते हुए गाय को प्रमुखता देने में आपको एतराज़ क्यों?
    वैसे तो यह प्रश्न आपने कत्लखानों के विरोधी उक्त संदेश लेखको से पूछा है कि 'आवारा घुमती गायों का क्या?' पर संदर्भ कत्लखानों का है, इसलिए 1- क्या ऐसे कत्लखानों में मात्र आवारा पशु ही काटे जाते है? 2- मात्र शहरों में ही आवारा पशु समस्या है, जिनकी संख्या क्या होगी? और इन विशाल कत्लगाहो की केपिसीटी क्या है? 3- क्या आपकी नजर में आवारा पशुओं का समाधान कत्ल ही है?
    आपका ऐसा तर्क भविष्य में आवारा मानवों के लिए भी प्रयुक्त हो सकता है।
    इसीलिएई तो बस इसीलिए, 'निरामिष' का उद्देश्य लोगों के दिलों में सम्वेदनाएं जगाना, करूणा को पुनः स्थापित करना। और जीव-दया को प्रोत्साहन देना है। ताकि पूर्ण सृष्टि के लिए शान्ति का मार्ग प्रशस्त हो।
    और इसी कारण, जहां भी जीव बचाने की बात होती है समर्थन करना हमारा कर्तव्य है।

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  5. @सुज्ञ जी

    बीच में बोलने के लिए क्षमा .......
    लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आता "गायों को बचाने की मांग" को साम्प्रदायिक टाइप का क्यों माना जाने लगता है ?
    या मुझे ही कोई गलत फ़हमी हो गयी है

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  6. गाय + विज्ञान = मानव जीवन की रक्षा
    [गौर करें कार एक्सीडेंट की बात है ]
    http://bollywood.bhaskar.com/article/ent-kzhk-woman-injured-in-car-accident-2081684.html

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  7. गाय + विज्ञान = रोगों से रक्षा

    http://www.livehindustan.com/news/deshlocal/lifestylenews/article1-story-0-50-87708.हटमल

    मैं ये लिंक सिर्फ गाय के वैज्ञानिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होना बताने के लिए दे रहा हूँ

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  8. वैसे तो चर्चा बहुत की जा सकती है पर फिलहाल इतना ही.....
    मुझे पूरी उम्मीद है जाकिर भाई ने विज्ञान के प्रचार प्रसार के मकसद से गाय से जुड़े वज्ञानिक तथ्यों /खोजों पर (सकारात्मक) लेख अवश्य लिखे होंगे, जिनका वो लिंक भी अवश्य देंगे
    लेकिन ये प्रश्न हमेशा मेरे दिमाग में रहेगा की
    अगर कोई ब्लोगर गौ-हिंसा के विरोध में एक पोस्ट लगा दे तो उस उसे धर्म विशेष से जोड़ कर क्यों देखा जा सकता है ?

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  9. मै भी सहमत हू हममे और जानवरों में एक मात्र यही अंतर है की वो भावहीन है
    आओ इन मासूमो पर दया करे, मेरे ख्याल से सारे जीव हत्याओं का विरोध करने की सख्त जरुरत है ...सिर्फ जुबान का स्वाद बदने के लिए जीव हत्या करना एक पाप होना चाहिए..

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  10. डॉ0 ज़ाकिर अली साहब,

    लगता है आपके सवालों के जवाब में मेरा प्रत्युत्तर स्पष्ठ नहीं हो पाया।
    एक बार फिर कौशिश करता हूँ।

    इस 'निरामिष'ब्लॉग का उद्देश्य है शाकाहार को प्रोत्साहन देकर जीवदया, अहिंसा और करूणा का संदेश फैलाना। जीवदया तक अहिंसा का विषय ही ऐसा है। कि कुछ लोग अहिंसा को अपने धर्म की विशेषता मानते है तो कुछ लोग अहिंसा जीव-दया की बात आते ही तीव्र विरोध करते है। प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष जीव-हिंसा को आवश्यक ठहराने का प्रयत्न करते है। इस तरह के संकेत देते है जैसे उनके धर्म का पर्याय ही हिंसा हो। जीवदया की आवश्यकता का प्रतिकार करते है जैसे जीव पर रहम उनके धर्म विरूध आचरण हो । इस तरह यह कथित धर्म-अज्ञानी, हिंसा और अहिंसा को अपने अपने खेमे में बांट लेते है।
    ऐसी स्थिति में हमारा प्रकृति अनुकूल अहिंसा जीवदया का जाग्रति कार्य, पंथविहिन होते हुए भी आपकी सोच की तरह संशय उपस्थित कर किसी पंथ पक्षीय मान लिया जाता है।
    विषय समर्थन के लिए, हम शास्त्रों से संदर्भ कोट करते है, जैसे यह सुक्त है-"अहिंसा परमोधर्म" जब इसका उल्लेख करते है तो हमें उस शास्त्र के धर्म प्रभाव का मान लिया जाता है।
    लोगों के इस बने बनाए दृष्टिकोण को कैसे बदलें?

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  11. हम सबको हिंसक प्रवृति को बढ़ाने वाली चीज़ों का विरोध करना ही है ..... सभी जीवों के प्रति संवेदनशील बनने की आवश्यकता है..... सुंदर पहल में मेरी भी भागीदारी स्वीकारें

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  12. क़त्लगाहों में मांस ही नहीं, चमडा आदि दूसरे उत्पाद भी होते हैं। यदि यह अनाचार रोकना है तो केवल शाकाहार के साथ यथासम्भव चमडे से बनी चीज़ों को भी अपने जीवन से बाहर करना पडेगा। उच्च तकनीक के युग में यह काम कठिन भी नहीं है। जहाँ तक ज़ाकिर अली की टिप्पणी की बात है उनका एक मुद्दा तो निराधार ही है क्योंकि 1. यह ब्लॉग केवल गाय की बात नहीं करता। 2. गाय या अहिंसा किसी एक धर्म या दल की धरोहर नहीं हैं। दूसरी बात यह है कि अनाथ गायों की देखभाल भी अवश्य होनी चाहिये और इसके लिये देशभर में जुटकर काम करने की बडी आवश्यकता है।

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  13. सर ....एक- दो बातें मैं भी कहना चाहूँगा कि .... गाय आर्थिक रूप से उपयोगी है ...गाय के बहुत से फाएदे हैं ..
    ऐसी बात करके क्या हम अपने स्वार्थी होने का सबूत नहीं देते ? मैं गाय को बचाने की बात करता हूँ क्योंकि
    हिन्दू धर्म में गाय को माता माना गया है और मेरा स्पष्ट मानना है माँ चाहे जैसी ,माँ, होती है? बस बात ख़त्म!
    मेरे जैसे लोगों के लिए ये स्वाभाविक ही है कि जीव हत्या के विरोध करते वक्क्त गाय को बचाने की बात पहले करेंगे!
    कोई जानवर उपयोगी है या नहीं सिर्फ इस आधार ही हम पशुबध का विरोध नहीं कर सकते! आज जो सैकड़ों गायें
    शहर की सड़कों पर घूमती फिर रही हैं उनका कारण सिर्फ स्वार्थी मनुष्य ही हैं और कोई नहीं! ये एक बहुत बड़ा विषय है
    जिस पर मैं समय मिलने पर लिखूंगा फिलहाल तो बात ये कि 'गौ माता' को क्यों बचाया जाए! और हाँ इसका मतलब ये नहीं कि मैं दूसरे जानवरों की हत्या का विरोधी नहीं हूँ ! चूँकि गाय विषय हैं इसीलिए सिर्फ गाए के विषय में बात कर रहा हूँ!

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  14. वरिष्ट पत्रकार, संभवत सबसे ज्यादा साहसी और विद्धान पत्रकारों में एक श्री मनोज रघुवंशी ( इनसे बड़े, साहसी और विद्धान पत्रकार से मैं आज तक नहीं मिला) ने कुछ लोगों की उस अपील को ठुकरा दिया था जिसमें उनसे आग्रह किया गया था कि 'गौ माता' के उपयोगी होने के कारण उसकी हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए सरकार के सामने वो उनका पक्ष रखें ! श्री मनोज रघुवंशी ने उन्हें ये कहते हुए बुरी लताड़ा कि एक तरफ तो आप 'गौ माता' जैसे शब्द इस्तेमाल कर रहे हो दूसरी तरफ 'गौबध' पर इसीलिए प्रतिबन्ध लगवाना चाहते हो क्योंकि कि वह उपयोगी है यानि कि अगर आपकी अपनी माँ बूढी हो जाए या उपयोगी न रहे तो आप उसे मरने के लिए छोड़ देंगे! उनके इतना कहते ही उन महानुभावों का चेहरा देखने लायक हो गया था! श्री रघुवंशी का कहना था कि जब आप गाय को अपनी माता मानते हैं इसीलिए आप कहिए कि किसी भी कीमत पर गौ बध स्वीकार्य नहीं है ....बस बात ख़त्म! इसमें न तो कोई शर्माने की बात है और नहीं कुछ ग़लत!

    और अब सम्पूर्ण रूप से पशुबध के के ख़िलाफ़ एक बात ......अगर हम अपने स्वार्थ के लिए दूसरे की जान लेना स्वीकार कर सकते हैं ...इसका मतलब हम अपने स्वार्थ के कुछ भी स्वीकार कर सकते हैं! मतलब जो लोग पशुबध का समर्थन करते हैं उन्हें अनैतिकता, भ्रष्टाचार, जैसी बुराईयों के ख़िलाफ़ बोलने कोई हक नहीं है ! क्योंकि वो खुद अनैतिक काम कर रहे हैं !

    नोट : ये कमेन्ट किसी के कमेन्ट के प्रतिउत्तर में नहीं लिखा है ! केवल अपना बात रखने की कोशिश की है!

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  15. आश्चर्य चकित हूँ मैं..खैर ....
    अगर किसी को शाकाहार के लिए प्रेरित करना है जो पचास अलग तर्क हो सकते हैं उनके पचास अलग उत्तर भी होते हैं
    सीधी बात तो ये ही है की "मनुष्य द्वारा किसी जीव को खाना" वैसे ही अजीब लगता है ......
    फिर भी हर बात का उत्तर जुटाना पड़ता है, मूल उदेश्य शाकाहार ही तो है
    आने वाली पीढी के कईं लोग गाय को माता मानने पर हँस देंगे तो क्या उन्हें समझाना हमारे कर्तव्यों में से एक नहीं है

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  16. अगर मेरे कमेंट्स से किसी की भावनाओं को ठेस पहुँची हो तो क्षमा
    [मैं अभी भी आश्चर्य चकित हूँ ]
    धन्यवाद

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  17. सुज्ञ जी, मेरी नजर में जिस प्रकार सभी मनुष्‍य एक समान है, उसी प्रकार सभी जानवर भी एक समान हैं। चूंकि आपने इस पोस्‍ट में सिर्फ गायों को लेकर प्रश्‍न उठाया था, इसलिए मैंने आपको टोका कि क्‍या यह ब्‍लॉग किसी धर्म विशेष के प्रचार के लिए तो नहीं है? यह सत्‍य है कि हिन्‍दू धर्म में गायों को ज्‍यादा महत्‍व दिया गया है, लेकिन इसका अर्थ यह भी नहीं कि अन्‍य जानवरों को मरने के लिए यूंही छोड दिया जाए। यदि आप जानवर वध की चिन्‍ता कर रहे हैं, तो मेरी दृष्टि पर वहां पर सभी जानवरों के वध की समान रूप से चिन्‍ता की जानी चाहिए, अन्‍यथा आपका दृष्टिकोण एकांगी और व्‍यवहारिक रूप से उचित नहीं कहा जाएगा।

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  18. सुज्ञ जी, आपने एक महत्‍वपूर्ण सवाल पूछा है कि क्या आपकी नजर में आवारा पशुओं का समाधान कत्ल ही है?

    इसके उत्‍तर से पहले मैं आपको अपने आसपास के कुछ उदाहरण देना चाहता हूं। मैं वर्तमान में आवास एवं विकास परिषद द्वारा विकसित कॉलोनी वृन्‍दावन में रहता हूं। मेरे सेक्‍टर के बगल में ही एक गांव है चिरैयाबाग। यह गांव यादवों का गढ है। चूंकि मेरे बच्‍चे छोटे हैं, इसलिए मैं उनके लिए गाय का दूध लेता हूं। पिछले तीन सालों में मैंने जहां जहां भी दूध लिया है, उनमें से जिन ग्‍वालों की गाय ने बछडा जन्‍म दिया था, वह अनिवार्य रूप से तीन-चार माह बाद मर गया। कारण ग्‍वालों ने उसे इतना दूध ही नहीं दिया कि वह जिन्‍दा रह पाता। ये सभी ग्‍वाले हिन्‍दू हैं और निश्चित रूप से गाय को माता मानते हैं, लेकिन इसके बावजूद वे अपने स्‍वार्थ के लिए उसके बच्‍चों को मर जाने सॉरी मार देते हैं। ऐसे करते हुए न तो उनका धर्म जागृत होता है और न ही मानवता।

    एक और उदाहरण दूंगा। एक ग्‍वाले के घर में एक बछडा किसी तरह जी गया। धीरे-धीरे वह बडा हो गया। एक दिन उसके पास एक व्‍यापारी आया और उसने उसे मात्र 700 रूपये में बेंच दिया। मैंने जब उससे कहा कि यह कटने के लिए जा रहा है, तो वह बोला, नहीं इसको खेती के लिए खरीद कर ले जा रहे हैं। मेरी समझ से वह ग्‍वाला इतना भी भोला नहीं था कि यह न समझ पाता कि आज के जमाने में बैल से खेत कौन जोतता है, पर इसके बावजूद उसने अपना बछडा बेच दिया। क्‍योंकि उसे 700 रूपये मिल रहे थे।

    एक अन्तिम उदाहरण और। मेरा नलिहाल उन्‍नाव जिले का मुसण्‍डी गांव है। कानूनी रूप से गाय काटना प्रतिबंधित होने के बावजूद वहां पर अब भी गायें कटती हैं। उस गांव के कम से कम 5 दर्जन लोग अपनी रोजी इसी से चलाते हैं। वह और उसके आस पास के 50-60 किलोमीटर के इलाके में जब भी किसी गरीब मुस्लिम परिवार में शादी होती है, मांस वहीं से आता है। कारण वह काफी सस्‍ता मिल जाता है। मैं तो यह देखकर आश्‍चर्यचकित रह गया कि जो गायें वहां पर कटती हैं, उन्‍हें लेकर आने वाले 100 प्रतिशत नॉन मुस्लिम ही होते हैं (ऐसा करने पर पुलिस उनपर हाथ नहीं डालती)। चूंकि उन्‍हें काटने के लिए बांझ गाये काफी सस्‍ती मिल जाती है, (दूध देना बंद कर देने के बाद उनके पालक उनसे पीछा छुडाने के लिए औने पौने दामों में बेचने में ही अक्‍लमंदी समझते हैं) इसलिए उनकी सप्‍लाई में उन्‍हें अच्‍छा कमीशन प्राप्‍त हो जाता है।

    सुज्ञ जी, यह है हमारे समाज की स्थिति। ग्‍वाले जानबूझकर गाय के बछडों को मार रहे हैं, क्‍योंकि उसमें वे अपना तात्‍कालिक फायदा देखते हैं। उत्‍तर प्रदेश में गो वध कानूनी रूप से प्रतिबंधित होने के बावजूद चोरी-छुपे जारी है। क्‍यों? क्‍योंकि उसकी मांग है, उसमें लोगों को फायदा है। और जब तक यह मांग और लालच का गणित बना रहेगा, आवारा पशुओं को कटने से कैसे रोका जा सकेगा?

    और जहां तक आवारा पशुओं को कटने की बात है, तो आप उस समय के इंसान से मुखातिब हैं, जो अपने सगे मां बाप को मरने के लिए सडक पर छोड देता है, फिर गाय तो एक जानवर ही ठहरी।

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  19. डॉ0 ज़ाकिर अली साहब,

    क्योंकि आपका विरोध गाय को प्रमुखता क्यों दी गई से है। इसलिए आपका स्वयं आपका दृष्टिकोण एकांगी हो गया है। और जों गाय का नाम आते ही आपको धर्म प्रभाव का संशय हुआ हुआ अतः आपकी भी सोच तो वही ठहरी कि अहिंसा का मुद्दा किसी धर्म विशेष का है। और वह आपके विचारों से मेल नहीं खाता। क्या आप स्वयं को विपरित पाले में खड़ा नहीं पाते, जहां से आपको येन केन हिंसा का ही समर्थन करना है।
    आपके लिए गाय भी दूसरे जानवरों की तरह ही एक जानवर है तो जानवर के बहाने ही सही उसकी हिंसा का विरोध करने को आपका मानस नहीं पुकारता? विरोध की बात छोडो, दूसरे अगर विरोध दर्शाते है तो मुक सहमति तो दी जा सकती है।

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  20. मैं सोच रहा हूँ की सुज्ञ जी ने मेरे अनुरोध पर भी कोई प्रतिक्रया क्यों नहीं दी
    उस टिपण्णी में जो मैंने डीलीट कर दी है मैंने सुज्ञ जी के विचार जानने चाहे थे

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  21. डॉ0 ज़ाकिर अली साहब,

    जो लोगों के उदाहरण आपनें दिए है। वे उसी क्रूर मंशा के है। केवल हिन्दु धर्म वाले समाज में जन्म लेने मात्र से कोई अहिंसक नहीं बन जाता। मानव के हत्यारे भी मानवों में से ही होते है। हत्यारों के उदाहरण देकर लोग मानवता छोड नहीं देते। हर व्यक्ति के अपने अपने अलायदा स्वभाव स्वार्थ और नीयतें होती है।
    कुछ बे-ईमान मुसलमान मिल जाय तो क्या इस्लाम के पालको को ईमान का महत्व स्थापित करना छोड़ देना चाहिए? जो कि व्यक्तिगत रूप से बे-ईमान मिल जाना स्वभाविक है। तो दूसरे लोग मोमिन लगाना भी छोड दे?

    उसी तरह वे ग्वाले अहसान फरामोश है। आपको तो ऐसे क्रूर अहसान फरामोशोंख़ से दूध लाकर अपने बच्चों को भी न पिलाना चाहिए। जैसे नेकी की कमाई घर में बरक़त लाती है, ऐसी क्रूर लोगों से आई सामग्री आवेश ही पैदा करती है।

    जो गाय दूध से हमारा पालन-पोषण करती है उसे माता का दर्जा देने में क्या हर्ज़्। मै तो कहता हूं उसका उपकार न मानना अहसान फरामोशी है। बे-ईमानी है।
    जो उदाहरण आपनें बच्छडों को दूध न पिलाने या या बेच देनें अथवा मांस विक्रेताओं के हिन्दु ठप्पे के साथ दिए ऐसे असंख्य उदाहरण मैं मुसलमानों के धर्मद्रोह के दे सकता हूं। (यह बात इसलिए कहनी पडी कि पहले धर्म को रेखांकित आपने अपनी टिप्पणी में किया है।) इसलिए सदाचार दुराचार, हिंसा अहिसा मैं व्यक्तिगत स्वभाव मानता हूं। धर्म का उससे कुछ भी लेना देना नहीं है। धर्म मात्र उपदेश दे सकता है। सही रूप में या शुद्ध रूप में पालना न पालना व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है। इसलिए हमारी भी अहिंसा जाग्रति सकल मानवता के लिए है। कोई न माने तो यह उस विशेष व्यक्ति का निजि विचार-स्वभाव है।
    आप भले दूसरों के धर्म के आधार पर 'गाय' को विषय बनाकर हिंसा का समर्थन करें, लोग भले धारणा बनाले कि कोई धर्म विशेष हिंसा का पर्याय है। निरामिष के लिए अहिंसा ही सर्वोत्तम है। जीव-दया के समर्थन में आने वाले हर व्यक्ति हर समाज का स्वागत है फिर चाहे वह कोई धर्म ही क्यों न हो हम उसका सहयोग कृतज्ञ भाव से लेंगे। और हमारा कर्तव्य है, हिंसा के विरोध में चाहे कहीं से भी आवाज उठे, हम समर्थन करें।

    यह टिप्पणी गर्भित तल्ख हुई है, और वह आपकी अन्तिम पंक्ति "तो आप उस समय के इंसान से मुखातिब हैं, जो अपने सगे मां बाप को मरने के लिए सडक पर छोड देता है, फिर गाय तो एक जानवर ही ठहरी।" को पढकर हुई है जिसका प्रत्युत्तर में अगली टिप्पणी में दूंगा।

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  22. सुज्ञ जी, अग्रवाल जी ,

    "अगर किसी को शाकाहार के लिए प्रेरित करना है जो पचास अलग तर्क हो सकते हैं उनके पचास अलग उत्तर भी होते हैं
    सीधी बात तो ये ही है की "मनुष्य द्वारा किसी जीव को खाना" वैसे ही अजीब लगता है ......
    फिर भी हर बात का उत्तर जुटाना पड़ता है, मूल उदेश्य शाकाहार ही तो है
    आने वाली पीढी के कईं लोग गाय को माता मानने पर हँस देंगे तो क्या उन्हें समझाना हमारे कर्तव्यों में से एक नहीं है" - अग्रवाल जी!


    आपकी बातों से मैं सहमत हूँ. आप अपनी जगह बिल्कुल सही हैं! थोड़े जोश में... मेरे कमेन्ट की भाषा आक्रामक हो गई और शालीनता गायब हो गयी ( मनोज रघुवंशी जी का कमेन्ट जैसे उन्होंने मुझे बताया था वैसे ही मैंने आप सभी के लिए लिख दिया )! वास्तव में, मैं यही कहना चाहता था कि हम किसी के उपयोगी होने या न होने के आधार पर ही पशुबध का विरोध न करें! जाकिर साब के अभी तक के अंतिम कमेन्ट में मेरे हिसाब से काफी दम हैं! शाकाहार के प्रसार के लिए "निरामिष" का योगदान अतुलनीय है!

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  23. गौरव जी,

    आपके विचारों से सहमति थी अतः प्रतिक्रिया करना मैने आवश्यक नहीं माना। कृपया कोई अन्यथा न लें।

    समर्थन या प्रतिकार हर विचार चिंतन योग्य होता है।

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  24. सुज्ञ जी
    उफ़ , मैं तो डर ही गया था , या शायद "स्वार्थी" शब्द पढ़ने से दिमाग में बैचैनी हो गयी हो
    आपको प्रतिक्रया देनी पडी इसके लिए क्षमा भी और धन्यवाद भी
    [आप चाहें तो अपने हिसाब से मेरे कमेन्ट हटा सकते हैं, असुविधा के लिए क्षमा , लेकिन मेरा डर भी स्वभाविक ही था ]

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  25. विरेन्द्र जी, गौरव जी,

    आप दोनो के विचारों की गहराई तो एक समान है।
    गाय बहु उपयोगी है वह पोषण भी देती है। इसीलिए उसे माता का दर्जा दिया गया है। मां के भी ममता वाले गुणों को उजागर करनें पर ही मां की महानता से परिचय होता है।

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  26. विरेन्द्र जी, गौरव जी,

    आप दोनों चर्चा आगे बढा सकते है। आखिर ध्येय तो जीव-रक्षा ही है।

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  27. प्रिय मित्र वीरेंद्र जी,
    मेरा तो बस ये मानना है की भारतीय संस्कृति में हर बात के पीछे बड़ा गहरा लोजिक होता है इसे आधुनिक विज्ञान की मदद से साबित किया जा सकता है , इसी बात मुझे रुचि है और हमेशा रहेगी
    क्योंकि आप और मैं तो एक दूसरे की बात समझ लेंगे पर आने वाली पीढीयाँ कारण जरूर मांगेगी
    मैं तो कृष्ण को भी भगवान् कहने की जगह साइकोलोजिस्ट कहने का बेहतर असर देखता हूँ और इसमें गलत भी क्या है , पहले उन्हें कोई साइकोलोजिस्ट मान ले तो अपने आप श्रृद्धा रखने लगेगा

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  28. अब देखिए न डॉ0 ज़ाकिर अली साहब के गर्भित दृष्टिकोण से असहमति जताई जा सकती है। पर उनके द्वारा प्रस्त्तुत उदाहरण भले गढे हुए हों,एक वास्तविकता हो सकते है, एक मानसिकता हो सकते है। जो हम अहिंसको के लिए चिंतन का विषय तो है ही। उस क्रूर और स्वार्थी मानसिकता को भी दूर हटाने के प्रयत्न करनें होंगे। यह निर्धारित करना जरूरी है कि आज के जमानें में गोपालन की सही व्यवस्था कैसे और कैसी हो।

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  29. रही बात जाकिर भाई के कमेन्ट की तो यहाँ थोड़ी असहमति है क्योंकि मुझे उसमें हिन्दू मुस्लिम धर्म की चर्चा पर ज्यादा ध्यान दिया लगता है

    अब मेरी जानकारी कोई बढाए और ये बताये की किस जानवर का क्या धर्म है तो मैं हिन्दुओं मुस्लिमों ईसाईयों के धर्म के जानवर एक पोस्ट में डाल कर एक सेक्युलर पोस्ट बनायी जाए

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  30. सुज्ञ जी! आप से पूरी तरह सहमत हूँ! साथ ही शाकाहार के प्रति आपकी और दूसरे साथियों की इतनी गहरी लगन देखकर मैं बेहद खुश और उत्साहित हूँ! आप बेहद विद्धान और अच्छे इंसान हैं ! आपके प्रयसों की सराहना करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है! बस आपको, आपके इन प्रयासों के लिए नमन करता हूँ ! भगवान् आपके हमेशा स्वस्थ और संतुष्ट रखे! आपको कामयाबी मिले! मैं एक टिप्पड़ीकर्ता के रूप में आप के इस ब्लॉग पर लगातार आने की कोशिश करूँगा !

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  31. विरेन्द्र जी,

    आपका हमेशा स्वागत रहेगा। और इस चर्चा को जारी रखें, इस मंथन से सार्थक उपाय भी मिलेंगे।
    विरेन्द्र जी, गौरव जी और डॉ0 ज़ाकिर अली साहब आप तीनों के साथ चर्चा करना सुखद है। सहमति असहमति अपनी जगह है। और वस्तुस्थिति अपनी जगह।

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  32. सुज्ञ जी, मुझे खेद है कि मैं आपकी बात क्लियर नहीं कर पाया। मेरे अनुभव आपको गढे हुए लग रहे हैं, तो इसमें मेरी कोई गल्‍ती नहीं है। यदि आपका कभी लखनऊ आना हो, तो मेरे घर तशरीफ लाइएगा, आपको उन लोगों से साक्षात भी मिलवा दूंगा।
    मेरा एतराज यह है कि आप यह कहकर कि 'जो गाय दूध से हमारा पालन-पोषण करती है उसे माता का दर्जा देने में क्या हर्ज़्।' गाय को तो वेटेज देते हैं, पर आप यह बात जानबूझ कर गोल कर देते हैं कि यही काम तो भैंस भी करती है। बल्कि गाय की तुलना में वह ज्‍यादा दूध देती है और वैज्ञानिकों के अनुसार उसके दूध में ज्‍यादा पोषक तत्‍व पाए जाते है। फिरभी गाय को बचाने के लिए अभियान चलाए जाते हैं, जबकि कई प्रदेशों में तो कानूनी रूप से गाय का वध प्रतिबंधित है। इसलिए क्‍या व्‍यवहारिक रूप से भैंस के वध पर ज्‍यादा आवाज उठाए जाने की आवश्‍यकता आपको नहीं लगती।
    जहां तक मेरी बात है, मैं पहले भी बता चुका हूं कि मैं व्‍यक्तिगत कारणों से मांसाहार नहीं लेता, पर मैं उसे गलत भी नहीं समझता। क्‍योंकि मुझे मालूम है कि मांसाहार शाकाहार की तुलना में ज्‍यादा स्‍वादिष्‍ट होता है। और फिर यह तो एक वैज्ञानिक तथ्‍य है कि उसके बिना धरती पर इंसानों की यह विशाल फौज जिंदा भी नहीं रह सकती। क्‍योंकि धरती के कुल इंसानों को यदि शाकाहार उपलब्‍ध कराया जाए, तो उसके लिए अनाज उगाने हेतु कम के कम 4 और ऐसी पृथ्वियों की आवश्‍यकता होगी।

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  33. क्षमा चाहूँगा चर्चा थोड़ी इतर कर रहा हूँ ...
    श्री कृष्ण के बारे में, मैं भी कुछ कहना चाहूँगा ....वास्तव मैंने 'श्री कृष्ण' से बड़े व्यक्तित्व के विषय में नहीं सुना! उन्हें आप कुछ भी कह सकते हैं
    वो हर रूप में सम्पूर्ण हैं. एक ऐसा व्यक्तित्व जिसने बिना किसी तैयारी के जीवन के रहस्यों को प्रकट किया! मैं 'गीता' की बात कर रहा हूँ जो आज भी दुनिया की
    सबसे बड़े विश्वविधालय ऑक्सफोर्ड और हॉवर्ड में प्रबंधन के विधार्थी के पढ़ते हैं ! श्री कृष्ण' सर्वश्रेष्ठ योद्धा, राजा, मित्र या सखा राजनीतिगय, प्रबंधक, रणनीतिकार, प्रेमी, दर्शनशात्री थे! उनका ये परिचय भी अधूरा ही है! वो आज भी करोड़ों लोगों के ह्रदय में वास करते हैं! उन्होंने लोगों को प्रेम करना व् प्रेम स्वीकारना सिखाया! उनके किसी उपासक या प्रेमी को उनसे कोई शिकायत नहीं थी! आप इतना मान लीजिये कि जिस व्यक्ति ने भी 'गीता' सच्चे मन से पढ़ ली उस व्यक्ति को कोई दुःख, संताप या संसय नहीं रहेगा! दुनिया का कोई धर्म ये दावा नहीं कर सकता कि मेरे धर्म की पुस्तक को आप इतने सारे विषयों की पढ़ाई के सन्दर्भ में प्रयोग कर सकते हैं, ( यहाँ मैं किसी दूसरे धर्म को कम आंकने की कोशिश नहीं कर रहा हूँ ) लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि हिन्दू धर्म की इस पुस्तक को आप ऊपर लिखे सभी विषयों के सन्दर्भ में प्रयोग कर सकते हैं! इसलिए मैं तो उन्हें भगवान ही मानता हूँ! गौरव जी ...श्री श्री कृष्ण का सम्पूर्ण परिचय कराना मेरे बस में नहीं है इसलिए बात यहीं ख़त्म कर रहा हूँ !

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  34. मेरा ऊपर वाला (श्री कृष्ण वाला के परिचय वाला) कमेन्ट, "गौरव जी" की लिखी निम्न पंक्तियों के सन्दर्भ में है!


    "मैं तो कृष्ण को भी भगवान् कहने की जगह साइकोलोजिस्ट कहने का बेहतर असर देखता हूँ और इसमें गलत भी क्या है , पहले उन्हें कोई साइकोलोजिस्ट मान ले तो अपने आप श्रृद्धा रखने लगेगा" -Gaurav ji!

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  35. श्री कृष्ण' सर्वश्रेष्ठ योद्धा, राजा, मित्र या सखा राजनीतिगय, प्रबंधक, रणनीतिकार, प्रेमी, दर्शनशात्री थे!

    ..........के स्थान पर ........

    श्री कृष्ण' सर्वश्रेष्ठ योद्धा, राजा, मित्र या सखा राजनीतिगय, प्रबंधक, रणनीतिकार, प्रेमी, दर्शनशात्री हैं! पढ़ा जाए!

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  36. @श्री श्री कृष्ण का सम्पूर्ण परिचय कराना मेरे बस में नहीं है

    प्रिय मित्र आपने बिलकुल ठीक कहा , मेरे बस की बात भी नहीं है
    मैं सिर्फ शुरुआत में यकीन रखता हूँ , शुरुआत एक जगह से करनी होती है , ऐसा जो सब में कोमन है
    वो है मन , और इससे जुड़े तनाव आदि , इसीलिए मैंने इसे चुना है
    हर बात को आधुनिक सन्दर्भ में समझाने पर उसका उपयोग जल्दी समझ आता है
    विषाद योग को अंग्रेजी में बोलने पर कोई भी ज्यादा जल्दी समझ लेगा

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  37. मनो विज्ञान हर पेशे, लगभग हर उम्र , हर फैसले में साथ होता है
    अर्जुन की स्थिति का युद्ध के मैदान में जो वर्णन है वो आज पेनिक अटेक के लक्षणों से मिलता है

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  38. प्रिय जाकिर भाई
    जहां तक व्यवहारिकता और आयुर्वेद के सन्दर्भ की बात करें , गाय का दूध बेहतर है , ये साबित करना मुश्किल नहीं ....

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  39. ज़ाकिर भाई .......क्‍योंकि मुझे मालूम है कि मांसाहार शाकाहार की तुलना में ज्‍यादा स्‍वादिष्‍ट होता है। और फिर यह तो एक वैज्ञानिक तथ्‍य है कि उसके बिना धरती पर इंसानों की यह विशाल फौज जिंदा भी नहीं रह सकती। क्‍योंकि धरती के कुल इंसानों को यदि शाकाहार उपलब्‍ध कराया जाए, तो उसके लिए अनाज उगाने हेतु कम के कम 4 और ऐसी पृथ्वियों की आवश्‍यकता होगी।


    ज़ाकिर भाई.... मांसाहार के सन्दर्भ में आपका ये तर्क बिलकुल गलत है . स्वादिष्ट होना के सवाल पर मैं कुछ नहीं चाहता हूँ ! पर आगे जो कुछ भी आपने लिखा है उसे आपने पहले भी कई बार लिखा हैं! लेकिन वो तर्क कभी नहीं लिखे जिससे आप अपनी बात में वज़न पैदा कर सके! कृपया एक बार वो वैज्ञानिक तर्क भी लिखें जिससे ये साबित हो सके कि धरती के कुल इंसानों को यदि शाकाहार उपलब्‍ध कराया जाए, तो उसके लिए अनाज उगाने हेतु कम से कम 4 और ऐसी पृथ्वियों की आवश्‍यकता होगी। इससे हमारा भी ज्ञान बढेगा! उम्मीद करता हूँ कि आप मेरे इस अनुरोध को नहीं ठुकरायेंगे!

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  40. खेती की नयी तकनीकें की उम्मीद मैं विज्ञान से करता हूँ जिससे कम जगह में ज्यादा पैदावार की जा सके

    रही बात प्राकृतिक संसाधनों की ये भी कहा जाता है की
    ........ if people would stop eating meat then the water reservoirs will work for a longer time and the amount of water which is used to rare one animal, that water is sufficient to grow crops for at least 500 people; whereas with that one animal, you may feed only 20 people. ...

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  41. Cow Milk & Buffalo Milk – An Ayurvedic View Point :

    http://www.ayurvedapages.com/page/page/2597146.htm

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  42. ज़ाकिर भाई .....सिकंदर महान के विषय में एक कहानी प्रचलित है.... वो ये कि जब उसका सामना भारत के महाप्रतापी राजा पोरस से हुआ तो उसे ये अहसास हुआ कि पोरस के सैनिक जितनी देर में तीन बार शस्त्र चलाते हैं उतनी देर में यूनानी सैनिक सिर्फ एक बार ही शस्त्र चलाते हैं ! वह भारतीय राजा और उसके सैनिको की कुशलता और उनके बोद्धिक ज्ञान का कायल हो गया था! उसने पता लगाया कि भारतीय अपने भोजन में गाय के दूध का इस्तेमाल करते हैं जबकि यूनानी नहीं करते थे ! चलिए शायद आप इस बात को ज्यादा महत्त्व न दे !

    मैं आपको गाय के ढूध के महत्त्व के विषय में एक सच्ची घटना के विषय में बताता हूँ ..मेरे गुरु जी की माता जी की आँतों में कैंसर था! AIIMS के डॉक्टरों ने
    उन्हें ये कहकर अस्पताल से जाने के लिए कहा कि आप इनकी हर इच्छा को पूरा करें क्योंकि ये अब कुछ दिनों की मेहमान हैं! उनके परिवार वाले काफी मायूस हो गए ! जब उन्हें भी कुछ ऐसा ही लगने लगा तो वो माता जी को अस्पताल से घर ले आए! वहां पर जब उनको पीड़ा होती थी किसी ने उनसे कहा कि आप इन्हें गाय के दूध में थोड़ी हल्दी मिलकर दिया करें इससे इन्हें राहत मिलेगी! उन्होंने ऐसा ही किया! कुछ ही दिनों बाद माता जी के पेट की पीड़ा कम होने लगी!
    बहुत से लोग शायद यकीन न करें कि तीन महीने में माता जी के कैंसर की उग्रता काफी हो गई! गुरु जी कहते हैं कि ईश्वर की कृपा से माता जी का साथ आज भी बना हुआ है और हाँ उन्हें अब कैंसर नहीं है ! ऐसी किसी घटना का भैंस के दूध के विषय में कभी नहीं सुना ! लेकिन इससे मैं भैंस के महत्त्व को नकार नहीं रहा हूँ.

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  43. डॉ0 ज़ाकिर अली साहब,

    एक बात तो है कि अहिंसा के "गैरजरूरी" विरोध से जो हिंसापक्षीय होने का ठप्पा आप और आपकी मान्यता को मिलता है, उससे आप और आपकी मान्यता को कोई फर्क नहीं पड़ता, यह इस चर्चा से स्थापित हो गया।

    दूसरा आप नें मात्र तर्क के लिए ही गाय और भैस को समान बतानें की कोशीश की जबकि फर्क से आप वाकिफ थे, तभी तो आप अपने बच्चों के प्रारम्भिक पोषण के लिए विशेष करके गाय का दूध लेने ठेठ चिरैयाबाग जाते हैं। अर्थात पोषण तो है मां के दूध समान। जो आप बखूबी जानते थे। गोल हम नहीं कर रहे, विशेषता है सो है। और दूध भैस भी देती है सो अहसानमंद है। मारने मराने पर उतारू अहसान फरामोश तो नहीं।
    आपके मांसाहार न लेने के व्यक्तिगत कारण भी स्वास्थ्य सम्बंधित है। अच्छी बात है। हम भी स्वास्थ्य कारणों से भी मांसाहार न करने की जाग्रति फैलाते ही है। पर आपके कारणों में करूणा कहीं भी नहीं है।
    मांसाहार स्वादिष्ट नहीं होता मात्र मसालों से ही स्वादिष्ट बनाया जाता है। वह शरीर में आवेश लाने का नशे के समान कार्य करता है। पशु के मरते हुए संघर्ष की अवस्था में ज़ीज़िविषा से जो हार्मोन स्रावित होते है वे आवेश प्रेरक क्रोध वर्धक होते है। उनका मांस खाते समय वही हार्मोन मनुष्य में एक्ट करते है। और एक तरह का आवेश आता है। और उसका व्यसन लग जाता है।

    रही बात आपके इस कुतर्क कि "उसके बिना धरती पर इंसानों की यह विशाल फौज जिंदा भी नहीं रह सकती। क्‍योंकि धरती के कुल इंसानों को यदि शाकाहार उपलब्‍ध कराया जाए, तो उसके लिए अनाज उगाने हेतु कम के कम 4 और ऐसी पृथ्वियों की आवश्‍यकता होगी। "

    तो इसी निरामिष पर इस लेख का ध्यान से अध्ययन किजिए----
    भुखमरी को बढाते ये माँसाहारी और माँस उद्योग।

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  44. सुज्ञ जी ने तो एक कमेन्ट में पूरी चर्चा ही समाप्त कर डाली :):)

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  45. नहीं नहीं गौरव जी, जाक़िर साहब के पास कोई और 'ठोस' तर्क होगा इस अनावश्यक विरोध के पिछे।

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  46. डॉ0 ज़ाकिर अली साहब, आप अपने बारे में उल्लेख करते हुए कहते है,कि "आप उस समय के इंसान से मुखातिब हैं, जो अपने सगे मां बाप को मरने के लिए सडक पर छोड देता है, फिर गाय तो एक जानवर ही ठहरी।"

    लगता है आपनें यह नैतिक पतन स्वीकार कर लिया है। और समय के अनुसार यहां तक बढ चले है कि अब बस दोनो में हिंसा की प्रथा पडना ही बाकी है।

    लेकिन हम नैतिक जीवनमूल्यों की पुनर्स्थापना के लिए संघर्षरत है। बुराई को इतनी सहजता से स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है। हम इस सोच से घृणा करते है कि "बुराई इतनी बढ़ गई है तो थोडी और बढ़ाने में क्या बुरा है"

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  47. @जाक़िर साहब के पास कोई और 'ठोस' तर्क होगा इस अनावश्यक विरोध के पिछे

    सुज्ञ जी,
    हाँ जरूर होगा... बस धर्म की जगह "विज्ञान" + "व्यवहारिक जीवन" के दायरे में हो तो चर्चा में मजा आएगा
    फिलहाल इस चर्चा से ये धारणा सही सिद्ध होती नजर आ रही है की
    "गाय मानव मात्र की माता है "
    सुज्ञ जी को इस पोस्ट के लिए धन्यवाद

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  48. पर्यावरण संबंधी तर्कों के उत्तर यहाँ भी हैं

    http://michaelbluejay.com/veg/environment.html

    मित्रों,
    ये साईट निरामिष ब्लॉग की साइड बार में लगी हुई है, मेरा अनुरोध है इन साइड बार में लगी साइट्स को एक बार अवश्य देखें

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  49. डॉ0 ज़ाकिर अली साहब,

    मांसाहार में कमी आने से इसी पृथ्वी पर अनाज की अधिकता हो जाएगी, इस तथ्य को हमनें साक्ष्यों और तुल्नात्मक आंकडो सहीत ब्लॉग़ पर रखा था। उस समय शायद आपने पूरा ध्यान नहीं दिया।

    आप फिर से उस वैज्ञानिक चिंतन का अध्ययन कर सकते है।

    यदि अखिल विश्व शाकाहारी हो जाय तो………???

    आप विभिन्न तर्कों के समाधान के लिये "तर्कसंगत" टैब में सूची दी गई है। सभी लेख देख सकते है।

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  50. हा हा
    बढ़िया है ऐसी चर्चाएँ होती रहनी चाहिए वरना लोग साइडबार और पुराने विचारणीय लेख देखना ही बंद कर देंगे [इससे भी गैर-जरूरी विरोध पैदा होता है ]
    वैसे भी निरामिष ऐसे ब्लोग्स में से है जिनका इंटरफेस मुझे सबसे बेहतर लगता है , इसमें हर लेख ढूँढने की सुविधा है
    तभी तो मैं हर अच्छे ब्लोगर को ऐसा इंटरफेस अपनाने के सलाह देता रहा हूँ

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  51. आदरणीय सुज्ञ जी,
    हमारे जीवन में गो माता का कितना महत्व हैं, ये आज मानव को यह जान लेना बेहद जरुरी हो गया है और सार्थक पोस्ट

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  52. सुज्ञ जी, सारी दिक्‍कत यह है कि मैं यथार्थ के धरातल पर खड़ा हूं और आप भावनाओं के उडनखटोले पर सवार...
    पर दुनिया भावनाओं से नहीं चलती मित्र, इसलिए आपके जैसे अनेक सुभेच्‍छुओं के बावजूद दुनिया में मांसाहार बढ़ रहा है। बाकी वाद-विवाद, तू तू-मैं मैं तो चाहे जब तक चलाते रहें...
    लोग यहां आएंगे, भावनावश या दिखावावश आपका समर्थन कर जाएंगे और मौका मिलते ही बिरयानी उड़ाएंगे। मैं व्‍यक्गितगत रूप से ऐसे बहुत से लोगों को जानता हूं।
    यह दुनिया ऐसी ही है मित्र। बाहर से कुछ और, अंदर से कुछ और। वर्ना जितनी चिन्‍ताएं लोग ब्‍लॉग जगत पर जताते हैं, उनके आधे भी अगर वास्‍तव में अपनी कथनी के अनुरूप हो जाएं, तो यह धरती स्‍वर्ग बन जाए।

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  53. प्रिय मित्र,
    आप जैसे विज्ञान से जुड़े युवा द्वारा धर्म को बीच में लाना सच में मुझे उलझन में डाल देता है
    जो बात मानने योग्य थी यहाँ सब ने मानी है
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    Global Agrawal ने कहा…
    आवारा घूमती गायों पर आपकी चिंता तो फिर भी थोड़ी समझ आ रही है

    Smart Indian - स्मार्ट इंडियन ने कहा…
    ........ दूसरी बात यह है कि अनाथ गायों की देखभाल भी अवश्य होनी चाहिये और इसके लिये देशभर में जुटकर काम करने की बडी आवश्यकता है।

    विरेन्द्र ने कहा…
    जाकिर साब के अभी तक के अंतिम कमेन्ट में मेरे हिसाब से काफी दम हैं!
    ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
    मित्र ,
    मेरे ख़याल से अब आप भावुक हो रहे हैं

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  54. दुनिया स्वर्ग बनेगी ..... जरूर बनेगी
    कुछ इस तरह

    इस लिंक पर जाएँ

    http://niraamish.blogspot.com/2011/03/blog-post_15.html

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  55. डॉ0 ज़ाकिर अली साहब,

    वाकई वाद-विवाद और तू तू-मैं मैं का मामला है, सार्थक चर्चा करने की तो 'भावना' ही नहीं।

    शाकाहार समर्थन का दिखावा भी हो सकता है, वे तो यदि न भी निभाएं चलो किसी न किसी को प्रेरणा तो मिलेगी अच्छी'भावनाओं'से।

    आपकी चिंता जायज है। कई शाकाहारी घरानों के लोग मांसाहार उडाते है। आज कथनी और करनी मैं भयंकर विरोधाभास है। सच में यह दुनिया ऐसी ही है। और आपने तो कहा ही था कि आप उस युग के है जिस युग में सन्ताने माता-पिता को घर से निकाल देती है। चारों और कुसंस्कृति का प्रभाव है। भयंकर विकृति फैली हुई है। और आप इसी यथार्थ के धरातल पर खड़े है। किन्तु मित्र! हम भावनाओं के उडनखटोले पर इसीलिए सवार है,कि हमें वह पतन मंजूर नहीं, हम उड़न गति से दशा और दिशा बदलना चाहते है। बुराई कितनी भी धरा 'तल' स्पर्शी हो गई हो, लोगों की भावनाएं अब बदलनी चाहिए। भावनाएं बदले तो भाव बदले, भाव बदले तो विचार बदलेंगे और अन्ततः कर्म भी बदलेंगे। भावना हमारी यही है कि अब यथास्थिति नहीं, अब तो दशा बदलनी चाहिए…………

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    उत्तर
    1. कृपया अपने धरातल, संगत को बदलने की कोशिश करें. हो सकता आप आपके सम्‍पर्क में ऐसे ही व्‍यक्ति आये हो. लेकिन हमारे सम्‍पर्क में तो नहीं गाय के अलावा भी अन्‍य सभी प्रकार के जीवों की हिंसा नहीं होनी चाहिये. लेकिन गाय तो इनमें सर्वप्रथम है इसलिये विरोध करना ला‍ज‍मी है जैसे कोई अपने माता-पिता को मारने वाले का भी विरोध नहीं कर सकता है तो वह अन्‍य गलत बातों का क्‍या विरोध करेगा. मांसाहार आपको अच्‍छा लगने से ही गुणकारी नहीं हो जाता है ? पहले इसके बारे में सभी तथ्‍य इकठ्रठे कर लेवें. लोगों को तो न जाने क्‍या-क्‍या अच्‍छा लगता है ? जिसे में बता नहीं सकता, क्‍या वह सभी अच्‍छा है ? दूध तो लगभग सभी बच्‍चे देने वाले प्राणी देते है? आप किन किन का दूध उत्‍तम मानेगें? जाकिर भाई ये वर्षो की शोध का नतीजा है मात्र कुछ वर्षो की वैज्ञानिक बातों का नतीजा नहीं है. लेकिन बात वही है कि आप मानना चाहे तब है ना ?

      हटाएं
  56. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  57. मैं तो 'काले' को 'काला' ही कहूँगा और 'सफेद' को 'सफेद' भी, आप की मर्जी आप मुझे जो कुछ भी कहो

    जवाब देंहटाएं
  58. गौरव जी,
    नतीजा नहीं,यह आज के युग का 'यथार्थ' है।

    दोगला इसलिए कि शाकाहार समर्थक, एक तरफ तो शाकाहारियो का समर्थन करते है, और मांसाहारियों से घृणा भी नहीं कर रहे। है न दोगला व्यवहार?

    सच को आईना मात्र ही दिखाते है, है न दिखावेबाज़?

    किसी झूठ से पूछ कर देखों, वह पूछने वाले को ही झूठा करार देगा। इस दृष्टि से है न झूठा?

    जवाब देंहटाएं
  59. सुज्ञ जी
    मेरी मेरी इस [डिलीट हुयी ] टिप्पणी
    "इस चर्चा से एक नतीजा और निकला है की शाकाहार समर्थकों को दोगला , दिखावेबाज , झूठा भी समझा जाता है , चाहे वे पचासों प्रमाण दें"

    के प्रति उत्तर में आपकी बात पढ़ कर खुद को दिखावेबाज कहने का मन हो रहा है :) :)

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  60. आदरणीय भाई सुज्ञ जी, सबसे पहले डेरी के लिए क्षमा चाहता हूँ| पता नही यह लेख कैसे छूट गया?
    बहरहाल मैंने मिस कॉल कर दिया है व अपने मित्रों को भी इसके लिए प्रेरित करूँगा|

    आपकी, डॉ. जाकिर अली, भाई गौरव जी व वीरेंद्र जी की चर्चा पढी|
    बहुत कहा जा चूका है| मुझे तो यही लगता है की डॉ जाकिर अली की सभी टिप्पणियाँ निराधार हैं| अव्वल तो यह ब्लॉग सभी प्रकार की जीव हत्या के विरोध में काम कर रहा है| डॉ अली को ले दे कर गौ हत्या की बात को पीछे धकेलना है और इसके लिए जबरदस्ती के तर्क गड़े जा रहे हैं|
    यदी गौ हत्या के विरोध में आवाज़ उठा दी तो इतनी हाय तौबा क्यों?
    यहाँ हमेशा जीव दया की बात कही गयी है, और आज केवल गौ हत्या का विरोध किया तो उसके विरोध में ऊट-पतंग तर्क गढ़ना बिलकुल निराधार है|

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  61. लखनऊ से प्रकाशित होने वाला साप्ताहिक हिंदी समाचार पत्र 'दास्तान-ए-अवध' गोहत्या के खिलाफ लेख प्रकाशित कर मुस्लिम समुदाय के लोगों से गोकशी के खिलाफ एकजुट होकर विरोध करने का आह्वान कर रहा है.

    समाचार पत्र के सम्पादक अब्दुल वहीद (49) ने बताया, "समाचार पत्र में हम राजनीति, खेल, व्यापार व अन्य मुद्दों पर खबरें देने के अलावा यह सुनिश्चित करते हैं कि गाय के महत्व पर कम से कम एक लेख प्रकाशित करें."

    http://www.samaylive.com/regional-news-in-hindi/uttar-pradesh-news-in-hindi/128381/weekly-newspaper-run-by-muslims-cow-flesh-cow-flesh-ban-mr-vahid.html

    गाय जैसा था प्राचीन मानव का रिश्तेदार

    http://www.khaskhabar.com/early-age-mans-relative-look-like-cow-052011042164946067.html#


    गो विज्ञान से परिचित होंगे बच्चे...... बदलते जमाने में देश की गाय के आर्थिक व वैज्ञानिक पक्ष की जानकारी बहुत कम लोगों को है

    http://in.jagran.yahoo.com/news/local/jharkhand/4_8_8182299.html

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  62. दास्तान-ए-अवध की जानकारी के लिये आभार, गौरव! हरयाणा के मेवात में गौ हत्या को रोकने के अभियान के अंतर्गत मुस्लिम समुदाय द्वारा संकल्प इंडिया के सहयोग से 150,000 गायें पाली जा रही हैं।
    http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/4456704.cms

    विषय का दूसरा पहलू यह भी है कि शहरों में दर-दर की ठोकरें खाने वाली बहुत सी गायें मुसलमानों की हैं जो कि गोग्रास खिलाने वालों के बल पर पलने के लिये छोड दी जाती हैं। यहाँ देखिये फ़ज़िल्का की एक खबर: http://in.jagran.yahoo.com/news/local/punjab/4_2_6693617.html

    सुज्ञ जी, इस समस्या पर भी एक पोस्ट सलाह, सम्भावना और सुझाव के साथ आनी चाहिये।

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  63. गौरव जी,

    आपने बहुत ही विशिष्ठ जानकारी शेयर की। गर्व होता है श्रीमान अब्दुल वहीद ज़ी समान बंधु विवेकयुक्त सद्भाभावनाएं और सम्वेदनाएं न केवल धारण करते है बल्कि औरों में भी जाग्रति प्रेरित करने का भागीरथ कार्य करते है।

    आपकी प्रदत्त अन्य जानकारियां भी उत्तम पठन योग्य है।

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  64. अनुराग जी,

    आपनें तो पूरक में मुस्लिम समुदाय द्वारा संकल्प इंडिया के तत्वाधान में हो रहे इस महान करूणा यज्ञ की जानकारी देकर, सदाचारों के क्रियान्वन पर आस्था व आशा दृढ कर दी है। लोग आज भी विवेक से सच्चे उपदेश ग्रहण कर सदाचार में सक्रीय है। सलाम करता हूं इन मुस्लिम बंधुओं को।

    गौरव जी, अनुराग जी,

    इतना अभिभूत हूँ कि उनके सम्मान में उत्तम वाक्य रचना भी सामर्थ्य के बाहर है।

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  65. प्रदेश के आठों प्रकार के कसाईयों का जमकर विरोध होना चाहिए।
    अनुमन्ता, विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी ।
    संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः ॥५१॥ मनुस्मृति

    सम्मति देने वाला, अंग काटने वाला, मारने वाला, खरीदने वाला, बेचने वाला, पकाने वाला, परोसने वाला, खाने वाले - ये सब घातक हैं । अर्थात् मारने वाले आठ कसाई होते हैं । ऐसे हिंसक कसाई अधर्मियों के लोक परलोक दोनों बिगड़ जाते हैं ।

    यह कत्लखाने, कसाईघर, सेल्टरहाउस, बुचड़खाने स्थापित नहीं होने चाहिए, यह पशुधन के लिए सक्षात नरक समान है।

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  66. आप का दिल से शुक्रिया जो आप ने ब्लॉग पर आकर अपने अमूल्य विचार रखे आगे भी आप के सहयोग की उम्मीद रहेगी . इस विषय से कोई भी जानकारी या सुझाव आप 'गौ वंश रक्षा मंच 'http://gauvanshrakshamanch.blogspot.com/ पर भी रखेगे ऐसी आशा है .गाय हम सब की माँ है इसे बचाने के प्रयास में हम सब को एक जुट होना पड़ेगा

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