सूर्यकिरण व दुग्ध विटामिन डी के स्रोत हैं |
विटामिन डी विभिन्न रूपों (विटामर्स = vitamers) में पाया जाता है जिन्हें डी-1 से डी-5 तक के नाम दिये गये हैं। विटामिन डी-2 कुछ कीड़ों, काइयों, व कुकुरमुत्तों पर सूर्य की पराबैंगनी (ultraviolet) किरणों के प्रभाव से बनता है। इसी प्रकार जब सूर्य का प्रकाश सीधे हमारी त्वचा पर पड़ता है तो पराबैंगनी किरणों की सहायता से डी-3 (cholecalciferol) का निर्माण होता है। प्राणियों की त्वचा में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले प्रो-विटामिन-डी (7-dehydrocholesterol) के अणुओं के प्रकाश संश्लेषण से विटामिन डी-3 में परिवर्तित हो जाते हैं। त्वचा की ही तरह जब दूध पर पराबैंगनी किरणें डाली जायें तो दूध में भी समान क्रिया से विटामिन डी-3 बन जाता है। जल में घुलनशील विटामिनों के विपरीत विटामिन डी तैल व वसा में घुलनशील विटामिन है और दूध के द्वारा उसके वसीय सह-उत्पादों में भी सुरक्षित रूप से पहुँच जाता है।
पराबैंगनी प्रकाश संश्लेषण के अतिरिक्त विटामिन डी के निर्माण का कोई दूसरा तरीका नहीं है। यह सभी रीढधारी प्राणियों की आवश्यकता है और उनके शरीर में कैल्शियम के अवशोषण के लिये आवश्यक है। यह हमारी अस्थियाँ, दाँत आदि की संरचना बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पराबैंगनी किरणों की तीव्रता जब उन्हें मापने के पराबैंगनी सूचक (UV index) पैमाने पर 3 से अधिक हो तब त्वचा में इस विटामिन का निर्माण सम्भव है। पहले यह मान्यता थी कि धुर उत्तर व धुर दक्षिण के क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में पराबैंगनी किरणे वर्ष भर नहीं आती हैं परंतु अब यह तय है कि कैनाडा जैसे उत्तरी देश में भी तीव्र शीत के दो-तीन महीनों के अतिरिक्त शेष समय इतनी पराबैंगनी किरणें मिलती हैं कि वर्ष भर की आवश्यकता पूरी की जा सके। तैलीय विटामिन होने के कारण इसकी अधिकता शरीर में सुरक्षित रहती है। भारत के मैदानी क्षेत्रों में तो इस मामले में ईश्वर की विशेष कृपा रही है। समान परिस्थितियों में गहरे रंग की त्वचा के मुकाबले हल्के रंग की त्वचा में अधिक विटामिन डी बनता है।
वयस्क मनुष्य के लिये प्रतिदिन 10,000 आइ यू (International Unit) की मात्रा काफ़ी है। इस आवश्यक मात्रा के लिये सप्ताह में दो बार 5 से 20 मिनट तक हाथ-पैरों पर सूर्यप्रकाश पाना शरीर की आवश्यकता भर के विटामिन डी के लिये काफ़ी है। वस्त्र या सूर्यावरोधी (सनब्लॉक) क्रीम आदि शरीर में विटामिन डी बनने की प्रक्रिया को बाधित करते हैं। साथ ही सूर्य का अधिक सामना त्वचा कैंसर का कारण भी बन सकता है इसलिये यहाँ भी अति के स्थान पर विवेक का प्रयोग आवश्यक है। सूर्य का प्रकाश तो जीवनदायी है ही, विटामिन डी प्राप्त करने के कुछ अन्य सात्विक साधन निम्न हैं:
- दुग्ध व दुग्ध उत्पाद
- खमीर व खमीरी उत्पाद
- स्पाइरुलिना
- सूर्य से प्रकाशित पोर्टबेला (portabella) कुकुरमुत्ता
अन्य कई शाकाहारी पदार्थ भी उपयोगी हो सकते हैं परंतु इस बारे में अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। वैसे, पश्चिमी देशों में कुछ संस्थायें भेड़ के बालों में उपस्थित तैल (lanolin) से भी पशु को कोई हानि पहुँचाये बिना विटामिन डी प्रसंस्कृत करती हैं। हिंसा से बचिये, शाकाहारी भोजन मनुष्य के शरीर की सम्पूर्णॅ आवश्यकतायें पूरी करने में सक्षम है।
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बहुत बहुत आभार, अनुराग जी,
जवाब देंहटाएंविटामिन डी को लेकर इस तरह भ्रांतिया फैलाई जा रही थी कि "शाकाहार में नहीं होता विटामिन डी"। जैसे धूप पर मात्र मांसाहारियों का अधिकार हो :)
विज्ञान के नाम पर इस तरह के कथन लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड होते है। आपने इस भ्रम का खण्डन किया है।
आपने विटामिन डी के शाकाहारी स्रोतों की जानकारी देकर लोगों को जाग्रत किया है।
दुग्ध व दुग्ध उत्पाद
खमीर व खमीरी उत्पाद
स्पाइरुलिना
सूर्य से प्रकाशित पोर्टबेला (portabella) कुकुरमुत्ता
बहुत बहुत आभार!!
बहुत ही उपयोगी जानकारी दी है आपने ......विशेषकर हम शाकाहारियों के लिए तो अच्छी खबर है .आभार
जवाब देंहटाएंबहुत उपयोगी जानकारी है ....आभार
जवाब देंहटाएंशाकाहारियों के लिए बहुत उपयोगी जानकारी है.
जवाब देंहटाएंआभार
बहुत ही उपयोगी जानकारी ........बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी.
जवाब देंहटाएंवास्तविकता तो यह है कि ऐसा कोई पोषक-तत्व नहीं जो शाकाहार में उपलब्ध न हो। शाकाहारी भोजन पूर्णतया संतुलित पोषक पदार्थों से समृद्ध है।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद बहुत अच्छा कार्य कर रहे है
जवाब देंहटाएंएक सार्थक लेख जो सूर्य की खूबियों को नहीं जानते उनके लिए
जवाब देंहटाएंयहाँ भी पधारे
http://kanpurashish.blogspot.in/