कुछ समय पहले मैंने शाकाहार पर एक श्रंखला लिखी थी जिसमें अन्य बातों के साथ पर्यावरण पर शाकाहार के अच्छे प्रभाव का ज़िक्र भी नैसर्गिक रूप से आ गया था। हम भारतीय तो नसीब वाले हैं कि हमारे देश में अहिंसा, प्राणीप्रेम और शाकाहार की हजारों वर्ष पुरानी परम्परा रही है। अहिंसक विचारधारा की जन्मभूमि में आज भले ही कुछ लोग शाकाहार को पुरातनपंथी मानने लगे हों, शाकाहार का डंका विश्व भर में बज रहा है। व्यक्तिगत रूप से तो शाकाहार विश्व भर में ही प्रचलन में आ रहा है परन्तु बेल्जियम के गेंट नगर ने इसे आधिकारिक बनाकर इतिहास ही रच डाला है।
पर्यावरण की रक्षा के लिए अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए मांसाहार के दुष्प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से बेल्जियम के गेंट के नगर प्रशासन ने हर सप्ताह एक दिन (गुरूवार को) 'शाकाहार दिवस' के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। इस दिन नगर के अधिकारी और चुने गए जन-प्रतिनिधि शाकाहारी भोजन करेंगे और स्कूली बच्चे भी अपने तरीके से शाकाहार दिवस को मनाएँगे।
नगर प्रशासन को विश्वास है कि इस प्रयोग से धरा को क्षति पहुंचाने वाली ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी तो होगी ही, लगे हाथ मोटापा और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से छुट्टी भी मिल जायेगी। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि विश्व में ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन का एक बड़ा भाग मांस के कारखानों से आता है। हम तो इतना ही कहेंगे - बधाई गेंट, बधाई बेल्जियम! आपने पहल की है, अन्य देश-नगर भी धीरे-धीरे सीख ही लेंगे।
[अनुराग शर्मा]
आभार अनुराग जी,
जवाब देंहटाएंजहां यह महामूल्य शाकाहार के सिद्धांत परम्परा से स्थापित हुए थे, वहां इन अहिंसक मूल्यों की कदर नहीं, नसीब होते हुए भी बदनसीब रहने को अभिशप्त है।
धन्य है वे घेंट नगर बेल्जियम के लोग जिनके ध्यान में एक बार अहिंसक जीवन मूल्यों, जीवदया और पर्यावरण परिशुद्धता की बात आती है तो सिद्दत से उसका पालन करते है।
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार अनुराग जी.
जवाब देंहटाएंवैचारिक परिपक्वता एक न एक दिन निश्चित
ही शाकाहार को अपनाने के लिए विवश करेगी.
प्रेरक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंअनुकरणीय ....अच्छा लगा ये जानकारी पाकर ...आभार
जवाब देंहटाएंस्वागतयोग्य कदम.... बेल्जियम का... ऐसे ही आदर्श प्रस्तुत करने होंगे...
जवाब देंहटाएंतभी होगी वसुधैव कुटुंब की अवधारणा सार्थक....
जीवमात्र के प्रति दया का भाव सनातन है... और इस परम्परा को अग्रचालित करने वाले वास्तव में बधाई के योग्य हैं...
हम उनके इस कार्य की ह्रदय से सराहना करते हैं...
प्रभु, सभी सभ्य और सुसंकृत मनुष्यों में जीवों के प्रति वात्सल्य का भाव जगाये... यही हमारी कामना है..
शाकाहार का डंका विश्व भर में बज रहा है।
जवाब देंहटाएं@ बहुत ही सुन्दर वाक्य है... यही एक वाक्य सम्पूर्ण धरा को एकसूत्र में पिरो सकता है...
यदि शाकाहार सभी संस्कृतियों का एकसामान्य धर्म हो जाए तो अन्य किसी से भयखाकर पूर्व आक्रमण की आवश्यकता ही न पड़े...
आपने बिल्कुल सही कहा है ! मैं आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ!
जवाब देंहटाएंएक जागरूक आलेख के लिए लेखक को साधुवाद.
निसंदेह सार्थक पहल, बेल्जियम सचमुच बधाई का पात्र है...
जवाब देंहटाएंबढ़िया आंदोलन है आपका...
सादर समर्थन और साधुवाद....
यह पढ़कर बहुत खुशी हुई. एक आशा भी है की पश्चिम जितना अधिक शाकाहारी बनेगा भारतीय भी उनसे सीखकर एक बार फिर इसे अपना लेंगे. इस मामले में मुझे गुजरात में रहना बहुत भला लगा. वहाँ अधिकतर शाकाहार ही चलता था.बाहर खाना भी निश्चिन्त हो खा सकती थी.
जवाब देंहटाएंघुघूतीबासूती
सार्थक पहल एवं महत्वपूर्ण जानकारी ... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंवास्तव में घेंट बधाई का पात्र है !
जवाब देंहटाएं****
आभार जानकारी देने के लिए
जागरूक करता हुआ सार्थक आलेख ..
जवाब देंहटाएंआप सभी का आभार। देखते हैं कि शाकाहार और सात्विक भोजन के इस सन्मार्ग पर घेंट के पथप्रदर्शन में भारत का कौन सा नगर पहल कर पाता है।
जवाब देंहटाएंवाह...अत्यंत हर्षदायक समाचार है यह...
जवाब देंहटाएंईश्वर सबको सद्बुद्धि दें, सात्विक और सत्याचारी बनायें..
व्यक्तिगत रूप से तो शाकाहार विश्व भर में ही प्रचलन में आ रहा है परन्तु बेल्जियम के घेंट नगर ने इसे आधिकारिक बनाकर इतिहास ही रच डाला है।
जवाब देंहटाएंविश्व में शाकाहार रुझान बढ़ रहा है, आज लोग सम्वेदनशील हो उठते है कि मात्र आहार स्वार्थ के लिए किसी निरिह पशु की जान ली जाय।