रविवार, 1 जुलाई 2012

भोजन में क्रूरता: 1. प्रस्तावना - फ़ोइ ग्रा

[आलेख: शिल्पा मेहता]

सभी जीवदया युक्त बंधुओं को बधाई! क्यों? क्योंकि आजएक जुलाई 2012, से अमेरिका के केलिफोर्निया ( California USA ) प्रदेश में "Foie gras" [फोई ग्रा] यानी कलहंस और बत्तख़ (goose और duck) पक्षी को बेहद दर्दनाक बीमारी वसीय यकृत व्याधि (fatty liver disease) से बीमार बना करउनके सूजे हुए यकृत (लीवर liver) से बनाया जाने वाला स्पेशल "स्वादिष्ट व्यंजन", प्रतिबन्धित कर दिया जाएगा। 

इससे पहले ब्रिटेन, जर्मनी, जेक रिपब्लिक, इजरायलइटली और स्वितज़रलैंड आदि 16 देशों में यह प्रतिबन्धित किया जा चुका था। दुर्भाग्य से यह अब तक भारत में प्रतिबन्धित नहीं है

यह श्रंखला ख़ास तौर पर सामिष मित्रों के लिए बना रही हूँ, वे कृपया इसे पढ़ें। यदि इसे पढ़ कर भी आप अपना भोजन न बदलना चाहें, तो कोई बात नहीं। परंतु यह जान तो लीजिये कि यह भोजन बन कैसे रहा है? जो पहले से निरामिष हैं - उनसे यहाँ की जानकारी अपने अपने सामिष मित्रों तक पहुंचाने की प्रार्थना करती हूँ। 

यह विडियो या चित्र देखना दुखदायी हो सकता है - इसे पढना भी - किन्तु याद रखिये - भारत में यह अभी तक प्रतिबन्धित नहीं हुआ है, यदि हमें यह रुकवाना है - तो पहले इस प्रक्रिया को जान लेना आवश्यक है। यह पढ़ कर आपको जो तकलीफ होगीउसके लिए क्षमा कीजियेगा मुझे। लिखने में मुझे भी उतनी ही तकलीफ हो रही है। यदि यह पोस्ट पढ़ कर एक भी व्यक्ति आज से यह तथाकथित "delicacy" खाना छोड़ देगा, तो यह लिखना सफल हो जाएगा मेरे लिए। 

इस मौके पर मैं यह कहना चाहूंगी कि प्रतिबन्ध का यह कदम अचानक नहीं उठाया गया। आठ साल से यह क़ानून बन गया था कि यह बंद हो, सन 2004 में यह क़ानून पारित हुआ था। रेस्त्रौं मालिकों आदि को आठ साल का समय दिया गया इसे बंद कर के वैकल्पिक डिशेज़ डेवलप करने के लिए। एक जुलाई के बाद यह परोसने पर रेस्त्रौं मालिक को हर दिन 1000 डॉलर का जुर्माना भरना होगा।

लेकिन यह निर्णय लिया क्यों गया? यह हम निरामिष सदस्यों के लिए भी जानना आवश्यक है, और अपने सामिष मित्रों तक पहुंचाना भी आवश्यक है - कि  यह प्रतिबन्धित किया क्यों गया?

यह प्रतिबन्धित इसलिए किया गया कि यह "स्वादिष्ट व्यंजन"  प्राप्त करने के लिए बेचारी बेबस चिड़ियों (ducks and geese) पर इतनी अधिक क्रूरता होती है - कि हम कंस आदि को इसके मुकाबले शायद दयालु कहें :(

यह प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि वह चिड़िया "fatty liver disease " से ग्रस्त हो। उसका यकृत हम मनुष्यों को होने वाली श्वेत पीलिया (white jaundice) जैसी ही एक बीमारी से खराब हो कर सूज जाए - और उस बीमारी के भयानक दर्द में भी वह बेचारी तड़पती चिड़िया तब तक जीवित रहे जब तक उसका लीवर सूजते-सूजते इतना बड़ा न हो जाए, कि हमें अपनी "पसंदीदा स्वादिष्ट डिश" में परोसे जाने योग्य मात्रा में मांस मिले :( । इस पूरे आलेख में कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं है, बल्कि साधारण शब्दों में उस "normal" प्रक्रिया का वर्णन है जो इसे प्राप्त करने के लिए होती है।)

तो यह कैसे किया जाता है? (यहाँ एक  लिंक भी दे रही हूँ, यूट्यूब का - जिसमे यह प्रक्रिया दिखाई गयी है।) चेतावनी है - यदि आप यह विडियो या चित्र भी देखेंगे, तो शायद आप 2-3 रातों तक सो न सकें। जो यह विडियो नहीं देखना चाहें - वे चाहें तो यहाँ (इस लिंक पर) कुछ चित्र देख सकते हैं। जो चित्र भी न देखना चाहें,  वे यहाँ नीचे दिए शब्दों को पढ़ कर उन तड़पती हुई हजारों लाखों चिड़ियों के दर्द को समझने के प्रयास करें, और मैं प्रार्थना करूंगी कि इस श्रंखला में "मांसाहारी भोजन की प्राप्ति" पर मैं जो जानकारी दूं - वह अपने सामिष मित्रों तक पहुंचाएं। अनेक मांसाहारी लोग जानते ही नहीं कि हो क्या रहा है परदे के पीछे। इस श्रंखला के हर लेख में मैं अलग अलग मांसाहारी भोजन के बारे में बात करूंगी। चिकन (अंडे भी), बीफ, पोर्क, फिश आदि।

Foie Gras Recipe, फोई ग्रा बनाने की विधि

 जैसा कि हम जानते ही हैं, हम में से अधिकतर लोगों ने देखा है - बत्तख (ducks) खुले वातावरण में कैसे जीते हैं। ये उड़ना पसंद करते हैंतैरते हैं, झुण्ड में एक दूसरे से बातें करते सामाजिक व्यवहार करते हैअपनी चोंच से अपने आप को साफ़ रखते हैं, और यहाँ तक कि अपने घोंसले भी बिलकुल साफ़ रखते हैं। लेकिन इन्हें इन  "Foie gras" के farms पर कैसा जीवन जीना पड़ता है - आइये समझते हैं। PETA के लोग इसे प्रतिबन्धित करने के लिए ताज और ओबेरॉय जैसे बड़े होटलों से अनुरोध करते आ रहे हैं। यदि आप चाहें तो गूगल सर्च में "Foie gras india" भर कर खोज करें, जानकारी मिलेगी। वहां इसे बंद कराने की याचिका (petition) हस्ताक्षरित करने के लिंक भी मिलेंगे आपको। मदद करना चाहें तो याचिका हस्ताक्षरित करें।

1.
एक तो बत्तख़ों को इस बीमारी से ग्रस्त कराने के लिए इन्हें इनकी पाचन शक्ति से कई गुना अधिक खाना खिलाना आवश्यक है।  जाहिर है - अपने मन से तो ये नहीं खायेंगे - तो इन्हें - पैदाइश के 6-8 हफ्ते बाद से ही - बिलकुल नन्ही नन्ही चिडियाओँ को - दिन में तीन बारएक धातु की नली (metal pipe ) गले के अन्दर डाल कर करीब तीन से पांच पाउंड वसा व अनाज (fat and grain ) सीधे इनके पेट में पम्प किया जाता है। इनके बदन के वजन से एक तिहाई वजन अन्न - सीधे पेट में।

इसे ऐसे समझें - 5 पौंड यानी कितना? एक नवजात मानव शिशु का जन्म वजन करीब 5-6 पौंड होता है। सोचिये - इतना भोजन एक नन्ही सी बत्तख को - जो अभी सिर्फ 2 महीने की है - रोज़ जबरदस्ती खिलाया जाना, कितना दर्दनाक होगा इन्सान के शरीर का वजन यदि 60 किलो है, तो समझिये 20 किलो पास्ता या कोई अन्य भारी (हमारे पाचन यंत्र के लिए भारी - उन पक्षियों के लिए यह उतना ही भारी भोजन है) बिना चबाये सीधे पेट में पम्प किया जा रहा है - हर दिन - फिर अगले दिन - फिर अगले दिन हम तो नूडल्स खाने में भी कहते हैं, कि मैदा है, पेट दुखेगा। और कितना खाते हैं हम नूडल्स? दिन में शायद 200 ग्राम - और वह भी शायद हफ्ते में एक बार। 

लेकिन इन बेचारी चिड़ियों को तो यह खिलाया ही इसलिए जा रहा है, कि उनका पेट दुखे, न सिर्फ दुखे, बल्कि तड़पने की हद तक दुखे।

परन्तु यदि ये तड़पते हुए हिलेंगी, तो व्यायाम होगा और इनकी बीमारी उतनी तेज़ी से नहीं बढ़ेगी, तो इन्हें इतने छोटे छोटे पिंजरों में रखा जाता है - कि ये हिल भी न सकें। दर्द से तड़पें, परन्तु हिल न पाएं सोचिये - हमारा पेट दुखता है - तो हम पूरी तरह झुक कर मुड़ जाते हैं, या मुड़े हुए लेट जाते हैं करवट पर अक्सर - परन्तु ये बेचारी चिड़ियाँ वह भी नहीं कर सकती। :(

2. 
यह मेटल ट्यूब अन्दर घुसाना ठीक वैसे ही किया जाता है जैसे आप ऑफिस को लेट होते हुए जल्दी जल्दी अपने मोज़े में पाँव डालते हैं। बत्तख की लम्बी चोंच से, उसकी लम्बी गर्दन से होते हुए पेट तक सीधी मेटल पाइप। और यह पूरा "force feed "सिर्फ 10-15 सेकण्ड में होता है - कितनी तेज़ी से उसे पकड़ा जाता होगा, पाइप घुसाई जाती होगी, किस वेग से वह अन्न उसके नन्हे से पेट में गिराया जाता होगा, और ट्यूब निकाल भी ली जाती होगी। सिर्फ 15 सेकण्ड में यह सब

अंतर इतना है कि मोज़े को दर्द नहीं होता, चोट नहीं आती, क्योंकि आपका पैर धातु का नहीं बना है, और मोजा एक जीवित प्राणी नहीं है। जिन्होंने कभी भी एंडोस्कोपी (endoscopy)  कराई होगी, वे जानते हैं कि एक ट्यूब को गले से भीतर पेट तक उतारा जाना कितना कष्टकर है। जबकि हमारे डॉक्टर पूरा ध्यान रखते हैं कि हमें दर्द न हो। किन्तु जो वर्कर इन चिड़ियों के मुंह में यह पाइप घुसा रहा है - उसे दिन में हज़ारों बार यह करना है, 10-15 सेकण्ड में एक चिड़िया। तो उसे क्या इनके दर्द का ध्यान रह सकता है?

3.
यह करते हुए उस चिड़िया के गले, मुँह और खाद्य नलिका में चोटें आती हैं, जिससे कई के मुंह से लगातार खून बहता है। और यह चोट ठीक कैसे हो? अगले 6-8 घंटे बाद फिर से एक और पाइप डाली जायेगी, और फिर से, और फिर से, और फिर से .... करीब 40 दिन तक लगातार अत्याचार, torture ... 

गनीमत है की इतने समय में ये इतनी बीमार हो चुकी होती हैं कि इन्हें काटा जाए, मौत तो शायद एक वरदान होती होगी उस स्थिति में। इनका लीवर तब तक अपने normal  आकार से दस गुना तक सूज जाता है - यह चित्र देखिये - साधारण और बीमार लीवर - आकार और रंग दोनों। करीब तीन महीने की उम्र में इन्हें निर्दयता से काट दिया जाता है - और लीवर ले लिए जाता है यह "व्यंजन" बनाने के लिए। तीन महीने का भयानक जीवन!
बढे हुए बीमार यकृत की तुलना स्वस्थ यकृत से
 4. 
इन्हें तंग पिंजरों में बंद कर के रखा जाता है ताकि ये हिल डुल कर व्यायाम न पा सकें और इनके बदन में विषाक्त पदार्थ (toxins) अधिक बनें जिससे ये जल्दी से जल्दी वसीय यकृत व्याधि (fatty liver disease) से ग्रस्त हों। ये उड़ने तैरने की शौक़ीन निरीह चिड़ियाँ - अपने जीवन भर एक बार भी पंख नहीं फैला सकतीं, खुली हवा, और धूप नहीं देख सकतीं। 

5. 
लीवर शरीर की विषाक्त पदार्थों (toxins) को बाहर निकालने के काम में मदद करता है। यदि विषाक्त पदार्थ सफ़ाई की उसकी क्षमता से अधिक हों - तो वह ख़राब होने लगता है। यह बीमारी बहुत दर्दनाक होती है। लीवर सूजते सूजते अपने नोर्मल आकार से दस गुना तक सूज जाता है। यह इतना भारी हो जाता है कि चिड़िया हिल भी नहीं पातीं। इसके अलावा जब लीवर अपना काम करना बंद कर दे, तो इनके शरीर से विषाक्त पदार्थ निकालने की प्रक्रिया ठीक से नहीं हो पाती। विषाक्त पदार्थों की यह वृद्धि अन्य अनेक बीमारियों का कारण बनती है। कई पक्षी इतने भयानक दर्द में होते हैं कि जहां (गले और छाती) तक इनकी चोंच पहुंचे, वहां के पंख उखाड़ देते हैं (जैसे इंसान परेशानी में अपने बाल नोचता है), लेकिन तंग पिंजरे में इनकी गर्दन इनके पूरे शरीर तक नहीं पहुँच सकती। 

6.
अत्यधिक और अस्वाभाविक भोजन करने, और व्यायाम न होने से इन्हें कब्ज होता है, और इनके मलद्वार (anus) सूज कर खून बहने लगता है। अपने साधारण जीवन में साफ़ सफाई से रहने वाली ये चिड़ियाँ (यदि पिंजरे जमीन पर हैं) अपने ही मलमूत्र से सनी हुई एक नन्हे से दुर्गन्धयुक्त पिंजरे में बंद अपना "जीवन (?)" जीती हैं। दूसरे तरह की स्थिति भी है - जहां पिंजरे जाली के हैं (पिंजरे की ज़मीन भी) और हवा में लटके हैं, जिससे मलमूत्र जाली के पार नीच फर्श पर गिरता रह सके। नीचे ज़मीन पर मल मूत्र की ठहरी हुई नदी से हो जाती है, जिसकी उठती दुर्गन्ध में ये सफाई पसंद पक्षी जीते(?) हैं।

7. 
इनके बदन गंदे हो जाते हैं। खुजली भी होती है और कीड़े भी लग जाते हैं। परन्तु पिंजरे में इतनी जगह नहीं कि  ये अपनी चोंच से खुद को साफ़ रख सकें, उन कीड़ों के काटने से खुद को बचा सकें।

8. 
लगातार तारों पर (जमीन पर नहीं - तारों की जाली wire mesh पर) खड़े रहने का जीवन - पंजे ख़राब और दर्दीले हो जाते हैं (हम कभी कभी पथरीली सड़क पर बिना चप्पल पहने जाते हैं - कुछ पलों के लिए) याद रखिये, स्वाभाविक जीवन में बत्तख पानी में तैरते हैं- तो इनके पैर webbed होते हैं, मुर्गी के पंजों की तरह नहीं, बल्कि नाज़ुक झिल्लियों से जुड़े पंजे। और ये तार पर खड़े रहने के लिए नहीं बने हैं।   याद रखिये - इनकी उम्र तीन महीने से भी कम है, अभी ये चूजे ही होते साधारण जीवन में। एक वयस्क पक्षी जितने मजबूत नहीं हुए हैं इनके पैर, परतु इनका वजन एक परिपक्व पक्षी से अधिक है - क्योंकि लीवर सूजा हुआ है। और दिन में चौबीस घंटे खड़े ही रहना है, न चलना है, न उड़ना, न तैरना - तो तारों पर टिके नन्हे पंजों से यह बोझ कभी नहीं हटता।

9. 
ये बुरी तरह बीमार हैं, लीवर इतना भारी है कि  ये हिल भी नहीं सकतीं। चूहे इनके खुले हुए जख्मो को काटते हैं - तो ये मुड़ कर उनसे अपने आप को बचा भी नहीं सकतीं (इस विडिओ में यह दृश्य दिखाया गया है कि एक चूहा पक्षी को काट रहा है - 5-6 सेकण्ड तक, और वह चिड़िया हिली तक नहीं । उसके पेट का दर्द शायद उस चूहे के काटने के दर्द से भी असह्य रहा हो - सोचिये ।

10. 
गले से बहते हुए खून से दम घुट कर यदि चिड़िया मर गयी - और यदि लीवर अभी अच्छे दामों में बेचने योग्य बड़ा न हुआ - तो मालिक का नुकसान होगा न? तो जिनके मुंह से ज्यादा ही खून  रहा हो (पाइप से की गयी force feeding से आई चोट के कारण) उन्हें पंजो से बाँध कर उल्टा लटका दिया जाता है, जिससे खून साँस को न रोके - बाहर गिरे। लेकिन पाइप डाल कर force feeding अब भी दिन में तीन बार जारी रहती है। यह उसे कितना दर्द देगा - यह सोचने का समय किसी के पास नहीं। यह चोंच से टपकता हुआ खून नीचे की दूसरी चिड़ियों को भिगोता रहता है। :(

11. 
आखिर 3 महीने, सिर्फ 3 महीने की उम्र तक आते आते ये इतनी बीमार हो चुकी होती हैं, कि इन्हें काटा जा सके। तब इन्हें उल्टा लटका कर - पूरे होश में - इनका गला रेता (काटा नहीं - सिर्फ रेता) जाता है - और खून बह कर मरने के लिए छोड़ दिया जाता है, क्योंकि यदि गर्दन काट दी तो वह मर जायगी और दिल नहीं धड़केगा, तो लीवर में खून बचा रहेगा। तब भी शायद यह दर्द कम से कम, रोज़ रोज़ के torture का तो अंत ला ही रहा है इनके लिए :(। 

तीन महीने की उम्र मेंअंडे से व्यंजन बनने तक का दर्दनाक सफ़र - ख़त्म हो जाता है। जिस उम्र तक साधारण तौर पर ये अपनी माँ के साथ किसी तालाब आदि में तैरते होते (साधारण परिवेश में अब तक शायद ये उड़ना सीखना शुरू करने वाले होते अपने माँ से)।

अब भी क्या हम कह सकते हैं कि नर्क नहीं होते??

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अगले भाग में - चिकन, अंडे, और पोल्ट्री फार्म पर बात करूंगी।

आप सभी का आभार, और यह पोस्ट पढ़ते हुए आपके मन को जो तकलीफ पहुंचाईउसके लिए पुनः क्षमा याचना करती हूँ। यदि चाहें - तो  आप भी "Foie gras india" गूगल सर्च कर भारत में इसे बंद करवाने के प्रयासों का हिस्सा बन सकते हैं, online petition sign कर के।

आभार।

28 टिप्‍पणियां:

  1. पूरा पढने की हिम्मत ही नहीं हो रही.. ये टिप्पणी लेख को पूरा पढ़े बिना कर रहा हूँ

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    1. समझ सकती हूँ - बहुत पेनफुल है न यह पढना ?

      यह एक बहुत normal human reaction है - ऐसी चीज़ें हम नहीं पढना / देखना / जानना चाहते | लेकिन हमारे आँख बंद करने/ या न पढने/ या न लिखने से यह बंद तो नहीं होगा न ? इस श्रंखला में यह दर्द तो हम सब को सहना ही होगा , यदि हमें इन प्राणियों की मदद करनी है |

      हमें यह पढने में दर्द हो रहा है, तो यह दर्द उस दर्द के मुकाबले में कुछ भी नहीं जो ये बेचारे नन्हे पंछी पल पल सहते हैं - ये इस भयानक पीड़ा से नहीं बच सकते - जब तक हम इस छोटी पीड़ा से बचते रहेंगे | हमें अपने दर्द को एक तरफ रख कर कुछ करना होगा - नहीं तो ये तड़पती ही रहेंगी |

      इसे पढ़िए, समझिये - और उससे ज्यादा ज़रूरी है की सामिष मित्रों तक पहुंचिए की उन्हें अधिक से अधिक आधे घंटे स्वाद का आनंद देने के लिए एक चिड़िया तीन महीने तक नर्क जैसा जीवन जीती है | यदि हम ही नहीं जानेंगे - तो यह हम दूसरों को समझायेंगे कैसे ?

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  2. बहुत ही दर्दनाक...और कष्टकर...पढ़ना और पढ़कर सोचना...
    इतना अत्याचार उन निरीह प्राणियों पर सिर्फ़ अपने भोजन के लिए...उफ़्फ़!! ...
    तीन महीने में तैयार किया भोजन तीन मिनट में खा लिया जाता होगा और तीन घंटे मे ही खाकर फ़िर नए भोजन की फ़िक्र.......
    सभी सामिष मित्र एक बार सोंचे..यही निवेदन ...

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  3. आज से दो साल पहले मैंने भी इसी क्रूरता के विषय पर लिखा था..आपका आभार.
    लिंक ये रहा :
    http://swapnamanjusha.blogspot.ca/2010/12/how-cruel-are-human-beings.html

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    1. इस पोस्ट को हम सभी से शेयर करने के लिए आपका आभार दीदी

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    2. ada ji - thanks. आपने जो चित्र दिखाए हैं वहां, वे भी काफी सच्चाई बयान कर रहे हैं | पता नहीं यह देख कर सुन कर भी कैसे लोग यह खा पाते होंगे ?

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  4. हद है...
    इसके बारे में पहले भी पढ़ चुका हूँ. ह्रदय विदारक है.
    कुछ दिन पहले ही मैंने यह भी पढ़ा था कि एक बेशकीमती फ़र प्राप्त करने के लिए भेड़ की किसी ख़ास नस्ल के नवजात शिशु को उसके सर में हथौड़ा मारकर बेहोश कर देते हैं और उसकी देह ठंडा होने से पहले ही उसकी खाल उतार लेते हैं. वे उसे जिबह नहीं करते क्योंकि वे यह मानते हैं कि काटकर मारे गए शिशु की खाल में वह क्वालिटी नहीं आती जो अधमरे शिशु की खाल में होती है.
    मैं तो मांसाहारियों मित्रों और व्यक्तियों से सहज ही सम्बन्ध रखता हूँ और उनके प्रति व्यवहार में मलिनता का अनुभव नहीं करता पर मेरी पत्नी तो किसी भी मांसाहारी को भला व्यक्ति नहीं मानती चाहे वह कितना ही सदाचारी और परोपकारी क्यों न हो. उसने यह पढ़ा और घोर विचलित हो गयी. कभी यह लगता है कि वह ठीक ही सोचती है. किसी प्राणी के खून, मांस, हड्डी को अपना भोजन बनानेवाला मनुष्य क्या वाकई मनुष्य कहलाने का अधिकारी है!?

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    1. @किसी प्राणी के खून, मांस, हड्डी को अपना भोजन बनानेवाला मनुष्य क्या वाकई मनुष्य कहलाने का अधिकारी है!?

      - हाँ - वे अधिकारी हैं |
      - क्योंकि इस सब का प्रयोग करने वाले अक्सर जानते ही नहीं, कि परदे के पीछे हो क्या रहा है | यह लेख यह जागरूकता फैलाने के प्रयास का ही एक कदम है |

      मांसाहार के विरोध की एक सोसाइटी है - जिनके सीरीज का नाम ही है
      "if slaughter houses had glass walls - everyone would be vegetarian" - which is true i think ...

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    2. @ हाँ - वे अधिकारी हैं | क्योंकि इस सब का प्रयोग करने वाले अक्सर जानते ही नहीं, कि परदे के पीछे हो क्या रहा है | यह लेख यह जागरूकता फैलाने के प्रयास का ही एक कदम है |

      - कुछेक लोगों का भोलापन समझा जा सकता है विशेषकर पश्चिमी देशों के उन बच्चों का जो मांस भी अनाज की तरह ग्रोसरी स्टोर्स से खरीदते हैं। लेकिन सर्वसामान्य - विशेषकर विकासशील देशों के - माँसाहारी के लिये ऐसा बहाना बनाना एक क्रूर मज़ाक से बढकर कुछ और नहीं है। भारत में कितने माँसाहारी ऐसे हैं जिन्हें यह नहीं पता कि मांसाहार के लिये प्राणीहिंसा/हत्या होती है? न जाने कितने तो अपने आहार के लिये हत्या अपने ही हाथों से करते हैं। ऐसे मांसाहारियों का प्रयास उससे बचने का कम और अहिंसा की बात को शब्दहिंसा का आरोप लगाने का अधिक होता है। इस ब्लॉग की टिप्पणियों में भी कभी मज़हब के नाम पर, कभी परिपाटी, ज़रूरत, स्वास्थ्य, और कभी व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बहाने से ऐसे कुतर्क अक्सर सामने आते रहे हैं। कितनी बार तो हत्या से बचने की बात को ही शाब्दिक हिंसा कहने के प्रयास किये गये हैं। जन्मजात शाकाहारी होने के कारण भारत में रहते समय मैंने ऐसे लोगों के कुतर्कों, ज़बर्दस्तियों और चिड़चिड़ी और हिंसक बहसों और व्यवहार को खूब नज़दीक से देखा है। हाँ, पश्चिम में ऐसा बचकानापन नापैद सा है। लेकिन सच यह भी है कि आधुनिक शाकाहारी आन्दोलन भारत से नहीं, पश्चिम से ही चल रहा है क्योंकि वे वर्तमान और भविष्य सुधारने की बात करते हैं जबकि हम अपने मनीषियों के मार्ग को त्यागकर बस भूत का गुणगान करने में ही लग जाते हैं।

      मेरी एक माँसाहारी सहकर्मिणी कहा करती थीं कि कटता देखकर तो कोई भी खाना छोड़ देगा जबकि सच यह है कि रोज़ाना काटने वाले भी खाना नहीं छोड़ते। इससे कहीं आगे बढकर ऐसी घटनायें भी हुई हैं जब कसाइयों ने जैन मुनियों को केवल इसलिये निशाना बनाया क्योंकि वे अहिंसा की बात करते हैं।

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    3. मनुष्य से मानवता अपेक्षित है, मानवता कोमल भावनाओं और सम्वेदनाओं मोहताज होती है। भयंकर क्रूरता का पक्ष न भी हो यह तो स्पष्ट है कि मांसाहार हत्या या हिंसा करके ही प्राप्त होता है और शायद ही कोई भी मनुष्य इस वास्तविकता से अज्ञानी रह सकता। मानवता धारण करने के लिए करूणावान सम्वेदनशील होना अनिवार्य है। और हमारी सम्वेदनाएं इतनी कुंद हो गई है कि उनमें भीषण क्रूरतम जानकारी पर ही कुछ हलचल हो। विचलित हुए बिना अब दयाभाव और करूणा भी दुर्लभ हो गई है, यह है हमारी मनुष्यता!!
      अनुराग जी से पूर्णतः सहमत!! वाकई हिंसा के विरोध में जागृत करने के वचन कहो तो हिंसक कुटिलता से शाब्दिक हिंसा का आरोप जड़ देते है। ऐसे लोगों हिंसा रोकने के सुझाव भी उन्हें शाब्दिक हिंसा लगते है।

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  5. क्रूरता की पराकाष्ठा है यह.
    सही बात तो यह है कि अधिकतर माँसाहारी सज्जनों को परदे के पीछे की बातों की जानकारी ही नहीं होती. इसे देख-पढ़ कर शायद उन्हें भी माँसाहार का त्याग करने में सहायता मिलेगी.
    यद्यपि धर्म के आधार पर समर्थन करने वाले शायद ही इसे समझ सकें.
    मनुष्य तो हैवानों से भी गया गुजर बन गया है और सनातनी ऐसा करने में अपनी शान समझते हैं.

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  6. धन्य हैं कैलिफ़ोर्निया के नियम-निर्माता। सभ्य जगत में क्रूरता के लिये कोई स्थान नहीं है। चित्र और विडियो मैं भी नहीं देख पाउंगा, लेकिन आलेख अपने उद्देश्य में सफल है। आभार!

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  7. आधुनिक समाज के लिये निश्चित ही कलंक है निरीह प्राणियों का इस तरह अपने जिव्हा लौलित्य के लिये स्तेमाल करना। आज पहली बार पता चला कि फैटी लिवर भी मनुष्य के लिये भोजन है। ऐसे यकृत को खाकर तो मनुष्य को बीमार पड़ना ही है। जीभ के स्वाद के लिये इतना रिस्क? फ़ोई ग्रा को भोजन के लिये इस निर्ममता से तैयार करना अकल्पनीय है और मानव की क्रूरता की पराकाष्ठा भी। जो सरकारें इस तरह का कानून बना रही हैं वे साधुवाद की पात्र हैं। इसके लिये तो विश्व स्वस्थ्य संगठन को भी पहल करनी चाहिये।

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  8. पशु पक्षियों पर ऐसी क्रूरता बहुत निंदनीय है

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    1. जी - निंदनीय तो है |

      परन्तु सत्य तो यही है न जीवन में, की कर्म कितना ही निंदनीय हो, जब तक उससे प्राप्त होने वाले फल की मांग होगी, वह किया जाता रहेगा | यह "व्यंजन" बहुत महंगे दामों बिकता है | तो बनाने वाले जब तक प्रोफिट मिलेगा - इसे बनायेंगे ही | :( ...... हमें awareness फैलानी है customers (ग्राहकों) में की वे इसे न खाएं | यदि कोई नहीं खरीदेगा - तो यह नहीं बनाया जाएगा |

      और यह इस श्रंखला का पहला ही भाग है | अभी तो पोल्ट्री, बीफ, fish, pork आदि आने वाले हैं | और इनमे से हर एक उद्योग में कितनी क्रूरता हो रही है - यह भी जानना आवश्यक है हम सब के लिए | सब मांसाहारी यह जानते हैं की मांसाहार की प्राप्ति के लिए प्राणी को काटा जाता है - परन्तु अधिकतर लोग यह नहीं जानते की काटने से पहले भी उसका जीवन नर्क जैसा ही गुज़रता है |

      जिस नर्क में वे जीते हैं - वह जान लिया जाए, तब उनके "ह्त्या" शायद मुख्य मुद्दा न रहे - मुख्य मुद्दा हो जाए वह दर्द, जो वे महीनों / बरसों झेलते हैं, ** सिर्फ पांच मिनट** के स्वाद के लिए |

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  9. वीभत्स ...पढने में ही तकलीफ हो रही है !
    जीभ के स्वाद के लिए बेजुबान पशु पक्षियों पर इतनी क्रूरता ...अफ़सोस !

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  10. क्रूर वीभत्स कार्यप्रणाली को उजागर करता जानकारी प्रेरक आलेख!!

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  11. पूरा नहीं पढ़ सका ...
    मानव की क्रूरता राक्षसों से बढ़कर है, काश आज नरभक्षी राक्षस होते यकीनन इसे देख वे सहम जाते !

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  12. क्यो आखिर क्यो मनुष्य इतना नृशंस हैं

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  13. कितना भयावय हैं संसार... इतनी क्रूरता की तो कल्पना भी न की थी.

    मानवता को शर्मसार करती मानवीय दरंदिगी.

    जब चित्र ही इतने हृदयद्रावक हैं तब वीडिओ क्लिप तो देखने की हिम्मत ही न हो पायेगी.

    पूरा आलेख कल जरूर पढूँगा.

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  14. आपके लेख से जागरूकता आये,यही मेरे दिल की दुआ है.

    न जाने क्यों हिम्मत नही कर पा रहा आपके लेख को पूरा
    पढ़ने की अभी.टिप्पणियों से सभी के हृदय की बात समझ में
    आ रही है.आपकी मेहनत और हिम्मत के लिए साधुवाद,शिल्पा बहिन.

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  15. ओह इतने निर्दयी इन्सान भी हो सकते हैं। आलेख पढ कर जिस्म काँपने सा लगा है।लेकिन मास खाने वालों पर शायद ही इसका असर हो वो भा शायद अपनी संवेदनायें खो चुके होते हैं।

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  16. मानव क्या इतना क्रूर भी हो सकता है...उफ़ !

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  17. मानव स्वभावतः हिंसक ही होता है!!

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  18. आपके इस पोस्ट से अच्छी शिक्षा मिली। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

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