शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

शाकाहार (निरामिष) ही क्यों ?


शान्ति का समुचित उपाय,  अहिंसा

सम्पूर्ण जगत में प्रत्येक जीव के लिए सुख का आधार शान्ति ही है। शान्ति का लक्ष्य अहिंसा से ही सिद्ध किया जा सकता है। संसार में आहार पूर्ती के लिए सर्वाधिक हिंसा होती है। जीवदया का मार्ग सात्विक आहार से ही प्रशस्त होता है। सुक्ष्म हिंसा तो कईं सजीव पदार्थों में भी सम्भव है, किन्तु शाकाहार, अपरिहार्य हिंसा का भी अल्पीकरण है जो अपने आप में अहिंसाभाव है। जबकि जो लोग मात्र स्वाद और पेटपूर्ती के स्वार्थवश, दूसरे जीवों को पीड़ा देकर किंचित भी आहत नहीं होते। जो निसंकोच हिंसा और मांसाहार करते है, वे हिंसा और निर्दयता को महज साधारण भाव से ग्रहण करने लगते है। फिर भी मन की सोच पर आहार का स्रोत हावी ही रहता है,यदि वह स्रोत क्रूरता प्रेरित है तो उसका चिंतन हमारी सम्वेदनाओं का क्षय कर देता है। हमारी कोमल भावनाओं को निष्ठुर बना देता है। अन्ततः इस अनैतिक कार्य के प्रति एक सहज वृति  पनपती है। मांसाहार के लिए प्राणहरण, मानस में क्रूर भाव का आरोपण करता है जो हिंसक मनोवृति के लिए जवाबदार है। मांसाहार द्वारा कोमल सद्भावनाओं का नष्ट होना व स्वार्थ व निर्दयता की भावनाओं का पनपना आज विश्व में बढ़ती हिंसा, घृणा व अपराधों का मुख्य कारण है। पृथ्वी पर शान्ति, शाकाहार से ही सम्भव है। जीवदया और करूणा भाव हमारे मन में कोमल सम्वेदनाओं को स्थापित करते है। यही सम्वेदनाएं हमें मानव से मानव के प्रति भी सम्वेदनशील बनाए रखती है। शाकाहार मानवीय जीवन-मूल्यों का संरक्षक है। इसलिए अहिंसा ही शान्ति और सुख का अमोघ उपाय है।  

धर्म-दर्शन अभिप्रायः

लगभग सभी धार्मिक सामाजिक परम्पराओं में 'जीवन' के प्रति आदर व्यक्त हुआ है, परंतु "अहिंसा परमो धर्मः" या “दया धर्म का मूल है” का सिद्धांत भारतीय संस्कृति की एकमेव विलक्षण विशेषता है। चाहे कोई भी धर्मग्रंथ हो, हिंसा के विधान किसी भी अपौरूषेय वाणी में नहीं है। आर्षवचन के भव्य प्रासाद, सदैव ही अहिंसा, करुणा, वात्सल्य और नैतिक जीवन मूल्यों की ठोस आधारशीला पर रखे जाते हैं। सारे ही उपदेश जीवन को अहिंसक बनाने के लिए ही गुंथित है और अहिंसक मनोवृति का प्राथमिक कदम शाकाहार है।  

सभ्यता और संस्कृति

शाकाहार की प्रसंशा करना शुद्धता या पवित्रता का दंभ नहीं है। शाकाहार अपने आप में स्वच्छ और सात्विक है। इसलिये शुद्धता और पवित्रता सहज अभिव्यक्त होती है। आहार की शुचिता भारतीय संस्कृति एवं चेतना के समस्त प्रवाहों का केन्द्र रही है जो शाकाहार को मात्र भोजन के आयाम पर अभिकेन्द्रित नहीं करती, वरन् इसे समस्त दर्शन और सहजीवन के सौहार्द से सज्जित, जीवन-पद्धति के रूप में आख्यादित करती है। शाकाहार, क्रूरता विहीन जीवन संस्कृति की बुनियाद है, जिसमें सह अस्तित्व के प्रति अनुकम्पा, वात्सल्य, और करूणा के स्वर अनुगुन्जित होते है। भले ही मानव अभक्ष्य आहार की आदत डाल ले अभ्यास से आदतें बनना सम्भव है पर मानव शरीर की प्रकृति शाकाहार के ही अनुकूल है। यदपि मनुष्य अपनी उत्पत्ती से  शाकाहारी ही रहा है, प्रागैतिहासिक मानव शाकाहार करता था यह प्रमाणित है। तथापि सभ्यता की मांग होती है जंगली जीवन से सुसभ्य जीवन की ओर उत्थान करना, विकृत आहार त्याग कर सुसंस्कृत आहारी बनना। शाकाहार, आदिमयुग से सभ्यता की विकासगामी धरोहर है। यह मानवीय जीवन-मूल्यों का प्रेरकबल है। सभ्यता, निसंदेह शान्ति की वाहक होती है। शाकाहार शैली सुसभ्य संस्कृति है।

 प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण

यदि सभ्यता विकास और शान्त सुखप्रद जीवन ही मानव का लक्ष्य है तो उसे शाकाहार के स्वरूप में प्रकृति के संसाधनों का कुशल प्रबंध करना ही होगा। वन सम्पदा में पशु-पक्षी आदि, प्राकृतिक सन्तुलन के अभिन्न अंग होते है। प्रकृति की एक समग्र जैव व्यवस्था होती है। उसमें मानव का स्वार्थपूर्ण दखल पूरी व्यवस्था को विचलित कर देता है। मनुष्य को कोई अधिकार नहीं प्रकृति की उस नियोजित व्यवस्था को अपने स्वाद, सुविधा और सुन्दरता के लिए खण्डित कर दे। मानव के पास ही वह बुद्धिमत्ता है कि वह उपलब्ध संसाधनो का सर्वोत्तम प्रबंध करे। अर्थार्त कम से कम संसाधन खर्च कर अधिक से अधिक उसका लाभ प्राप्त करे। जीवहिंसा से पर्यावरण संतुलन विखंडित होता है, जो प्राकृतिक आपदाओ का प्रेरकबल बनता है। शाकारहार अपने आप में सृष्टि का मितव्ययी उपभोग है, प्राकृतिक संसाधनो के संरक्षण में प्रथम योगदान है।सृष्टि के प्रति हमारा सहजीवन उत्तरदायित्व है कि वह जीवों का विनाश न करे यह प्रकृति की बहुमूल्य निधि है। जीवराशी का यथोचित संरक्षण शाकाहार से ही सम्भव है, प्राकृतिक संसाधनो का संयमपूर्वक उपभोग अर्थात् शाकाहार। धरा की पर्यावरण सुरक्षा शाकाहार में आश्रित है। वैश्विक भूखमरी का निदान भी शाकाहार है। वैश्विक खाद्य समस्या का सर्वोत्तम विकल्प शाकाहार है। यह तो मज़ाक ही है कि शाकाहार से अभावग्रस्त, दुरूह क्षेत्र की आहार शैली का सम्पन्न क्षेत्र में भी अनुकरण किया जाय। अधिसंख्यजन यदि इसके आदी है तो उनका अनुकरण किया जाय। यह न्यायोचित विवेक नहीं है। अपरिहार्य सुक्ष्म हिंसा में भी विवेक जरूरी है। विश्व स्वास्थ्य भी शाकाहार में निहित है। कुल मिलाकर पर्यावरण का अचुक उपचार एकमात्र शाकाहार शैली को अपनाना है।  

संतुलित पोषण आधार

आधुनिकता की होड़ में, हमारी संस्कृति, हमारे आचार- विचार आदि  को दकियानूसी कहने वाले, इस झूठी घारणा के शिकार हो रहे है कि शाकाहारी भोजन से उचित मात्रा में प्रोटीन और पोषक तत्व प्राप्त नहीं होते। जबकि आधुनिक विशेषज्ञों और शरीर वैज्ञानिकों की शोध से यह भलीभांति प्रमाणित है कि शाकाहारी आहार में न केवल उच्च कोटि के प्रोटीन होते है, अपितु सभी आवश्यक पोषक तत्व जैसे- विटामिन्स, वसा और कैलॉरी पूर्ण संतुलित,  गुणवत्ता युक्त, सपरिमाण मात्रा में प्राप्त होते है। विशेषतया खनिज तो शाकाहारी पदार्थों में पर्याप्त मात्रा में  उपलब्ध होते ही है। उससे बढ़कर, आन्तरिक शरीर को 'निर्मल' और 'निरोग' रखनें में सहायक निरामय ‘रेशे’ (फ़ाइबर्स) तो मात्र, शाकाहार से ही प्राप्त किए जा सकते है। शाकाहार संतुलित पोषण का मुख्य स्रोत है, शाकाहार से प्रथम श्रेणी की प्राथमिक उर्जा प्राप्त की जाती है। शाकाहार, उर्ज़ा और शारिरिक प्रतिरक्षा प्रणाली  का प्रमुख आधार है।  

आरोग्य वर्धक

शाकाहार में  आहार-रेशे पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होते है। आहार-रेशों की विध्यमानता से पाचन तंत्र की कार्य-प्रणाली सुचारू संचालित होती है। निरामिष भोजन में न हानिकर कोलेस्ट्रॉल की अति होती है न प्राणीजन्य प्रोटीन का संकलन। परिणाम स्वरूप  व्यक्ति, मनोभ्रंश (अल्जाइमर), गॉल्ब्लैडर की पथरी (गॉलस्टॉन), मधुमेह (डायबिटीज टाइप-2) , अस्थि-सुषिरता (ऑस्टियोपोरोसिस), संधिवात (आस्टियो आर्थराइटिस), उदर समस्या (लीवर प्रॉबलम), गुर्दे की समस्या (किड़नी प्रॉबलम), मोटापा, ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप, दंतक्षय (डेन्टल कैवेटिज), आंतो का केन्सर, कब्ज कोलाइटिस, बवासीर जैसी बिमारियों से काफी हद तक बचा रहता है। इस दृष्टि से शाकाहार पूर्णतःआरोग्यप्रद है। विश्व स्वास्थ्य समस्यांए शाकाहार से समाधान पा सकती है। शाकाहारी पदार्थों में वे तत्व बहुलता से पाए जाते हैं जो हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते है।
मानव कल्याण भावना से सादर

14 टिप्‍पणियां:

  1. शाकाहार, उर्ज़ा और शारिरिक प्रतिरक्षा प्रणाली का प्रमुख आधार है।
    सहमत हूँ आपकी बात से ...
    सार्थक आलेख

    जवाब देंहटाएं
  2. इसमें कोई दो राय नहीं कि शाकाहार के चलते ही पर्यावरण संरक्षण सम्भव है.

    जवाब देंहटाएं
  3. ये सभी कारण तार्किक तो हैं ही ..... ये भी बताते है कि शाकाहार अपनाने में फायदा भी हमारा ही है

    जवाब देंहटाएं
  4. समग्रता से देखने पर शाकाहार कहीं उन्नत व तार्किक विकल्प है।

    जवाब देंहटाएं
  5. शुद्ध शाकाहारी भोजन पोषक और स्वास्थ्यवर्धक तो है ही, जैसे आपने बताया, प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण मे भी योगदान करता है। सामाजिक ज़िम्मेदारी की निशानी है निरामिष भोजन!

    जवाब देंहटाएं
  6. जैसा अन्न वैसा मन ..
    बहुत बढ़िया विश्लेषण ...आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. मुबारक ये गणतंत्र जैसा भी है ,ईद मिलादुल नबी .

    सहमत आपकी प्रस्तावना से .

    जवाब देंहटाएं
  8. ram ram bhai
    मुखपृष्ठ
    http://veerubhai1947.blogspot.in/
    शुक्रवार, 25 जनवरी 2013
    Eating fruits ,veggies lifts mood ,makes you calmer
    Eating fruits ,veggies lifts mood ,makes you calmer

    न्यूजीलैंड के ओटागो विश्वविद्यालय के रिसर्चदानों के अनुसार युवजन

    पर्याप्त मात्रा में जी भर के खुराक में फल और तरकारियाँ लेते रहने

    से न सिर्फ शांत चित्त ,पुरसुकून बने रहतें हैं अपना काम भी दमखम के

    साथ करते हैं प्रसन्न बदन दिखलाई भी देते हैं .खुश रहतें हैं .

    रोजमर्रा के संवेगों (भाव जगत की रागात्मकता )को प्रभावित करता है

    पर्याप्त फल और तरकारियों का सेवन .



    रिसर्चरों की टीम ने औसतन 20 साला उम्र के कुल 281लोगों का अध्ययन

    विश्लेषण किया .इन सभी ने इंटरनेट आधारित एक फ़ूड डायरी का

    लगातार 21 दिनी अनुकरण किया .

    जिसदिन इन लोगों ने ज्यादा फल और तरकारियाँ खाई ,उस रोज़ ये

    ज्यादा सकारात्मक ,ज्यादा पाजिटिव दिखे .ज्यादा शांत चित्त (उत्तेजना

    कमसे कमतर इनमें दिखलाई दी ),ज्यादा खुश और ऊर्जित (ऊर्जा से भरे

    उत्फुल्ल ,उमंगित )भी दृष्टिगोचर हुए .फल और तरकारियों के अलावा

    अन्य खाद्यों का कोई ऐसा असर दिखलाई नहीं दिया .

    अब सवाल उठता है अंडा पहले या मुर्गी बोले तो शांत चित्त होना पहले था

    या

    फल तरकारी खाना .कौन किसका अनुगामी रहा ?

    आगे और जांच पड़ताल करने पर पता चला अगले दिन के मूढ़ का

    आकलन ,

    मिजाज़, आपने आज क्या और कितना खाया इससे प्रभावित होता है

    .यानी

    आज अगर आपने दिन भर में ज्यादा फल और तरकारियों का सेवन किया

    है ,तब कल रहने वाले आपके चित्त ,ऊर्जा स्तर ,की प्रागुक्ति की जा

    सकती है .आप खुश रहने वाले हैं अगले चौबीस घंटों .


    प्रस्तुतकर्ता Virendra Kumar Sharma पर 12:53 pm 3 टिप्‍पणियां:

    जवाब देंहटाएं
  9. http://veerubhai1947.blogspot.in/

    ram ram bhai
    मुखपृष्ठ

    शुक्रवार, 25 जनवरी 2013
    Eating fruits ,veggies lifts mood ,makes you calmer
    Eating fruits ,veggies lifts mood ,makes you calmer

    न्यूजीलैंड के ओटागो विश्वविद्यालय के रिसर्चदानों के अनुसार युवजन

    पर्याप्त मात्रा में जी भर के खुराक में फल और तरकारियाँ लेते रहने

    से न सिर्फ शांत चित्त ,पुरसुकून बने रहतें हैं अपना काम भी दमखम के

    साथ करते हैं प्रसन्न बदन दिखलाई भी देते हैं .खुश रहतें हैं .

    रोजमर्रा के संवेगों (भाव जगत की रागात्मकता )को प्रभावित करता है

    पर्याप्त फल और तरकारियों का सेवन .



    रिसर्चरों की टीम ने औसतन 20 साला उम्र के कुल 281लोगों का अध्ययन

    विश्लेषण किया .इन सभी ने इंटरनेट आधारित एक फ़ूड डायरी का

    लगातार 21 दिनी अनुकरण किया .

    जिसदिन इन लोगों ने ज्यादा फल और तरकारियाँ खाई ,उस रोज़ ये

    ज्यादा सकारात्मक ,ज्यादा पाजिटिव दिखे .ज्यादा शांत चित्त (उत्तेजना

    कमसे कमतर इनमें दिखलाई दी ),ज्यादा खुश और ऊर्जित (ऊर्जा से भरे

    उत्फुल्ल ,उमंगित )भी दृष्टिगोचर हुए .फल और तरकारियों के अलावा

    अन्य खाद्यों का कोई ऐसा असर दिखलाई नहीं दिया .

    अब सवाल उठता है अंडा पहले या मुर्गी बोले तो शांत चित्त होना पहले था

    या

    फल तरकारी खाना .कौन किसका अनुगामी रहा ?

    आगे और जांच पड़ताल करने पर पता चला अगले दिन के मूढ़ का

    आकलन ,

    मिजाज़, आपने आज क्या और कितना खाया इससे प्रभावित होता है

    .यानी

    आज अगर आपने दिन भर में ज्यादा फल और तरकारियों का सेवन किया

    है ,तब कल रहने वाले आपके चित्त ,ऊर्जा स्तर ,की प्रागुक्ति की जा

    सकती है .आप खुश रहने वाले हैं अगले चौबीस घंटों .


    प्रस्तुतकर्ता Virendra Kumar Sharma पर 12:53 pm 3 टिप्‍पणियां:

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  10. सुज्ञ जी,
    इस ब्लॉग के डिजायन में जो बदलाव किये गये हैं, उससे इसकी सज्जा घटती है। यदि सम्भव हो तो पुराना डिजायन रिस्टोर कर दें। इसके लेखकगण के चित्र नहीं दीख रहे।
    इसके पोस्टों की आवृति घटी है, जो वर्तमान में दस लेखकों के अनुपात में सही नहीं है।
    रवि शंकर प्रसाद

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी, आपके अवलोकन के लिए आभार। नए लेख जल्दी ही आ रहे हैं।

      हटाएं
    2. जी । आभार।

      यहाँ सक्रियता जल्दी हो बढ़ेगी ।

      हटाएं
    3. वैसे - लेखक गण के चित्र और नाम , दायें हाथ की ओर (फ़ोलॉर्स के नीचे) दिख रहे हैं अभी तो - शायद फिर से बदलाव हुआ हो ?

      हटाएं