हालाँकि इस समय मुझे उनका नाम तो स्मरण नहीं हो पा रहा. उर्दू के एक मुसलमान कवि थे, जिन्होने अपने भावों को निम्न प्रकार से प्रकट करते हुए निर्दोष, मूक प्राणियो पर दया करने की ये अपील की है :---
पशुओं की हडियों को अब न तबर से तोडो
चिडियों को देख उडती, छर्रे न इन पे छोडो !!
मजलूम जिसको देखो, उसकी मदद को दोडो
जख्मी के जख्म सीदो और टूटे उज्व जोडो !!
बागों में बुलबुलों को फूलों को चूमने दो
चिडियों को आसमाँ में आजाद घूमने दो !!
तुम्ही को यह दिया है, इक हौंसला खुदा नें
जो रस्म अच्छी देखो, उसको लगो चलाने !!
लाखों नें माँस छोडा, सब्जी लगे हैं खाने
और प्रेम रस जल से, हरजा लगे रचाने !!
इनमें भी जाँ समझ कर, इनको जकात दे दो
यह काम धर्म का है, तुम इसमें साथ दे दो !!
बेहद सार्थक पंक्तियाँ...जितनी भी तारीफ़ की जाए उतनी ही कम है। ईश्वर से प्रार्थना है कि ऐसा ही हो।
जवाब देंहटाएंसार्थक अर्थपूर्ण अपील......
जवाब देंहटाएंकाश ! निरीह जीवो को कम से कम सभी जागरूक इंसानों की जकात तो मिल ही जाती.अब उनकी बात छोड़ दे जिन्होंने जानबूझ
जवाब देंहटाएंकर आँखें बंद कर रखी हैं.प्रभु कृपा से उनकी भी आँखें जरूर खुलेंगी एक न एक दिन .
एक सुन्दर, सार्थक, और प्रेरक रचना।
जवाब देंहटाएंकाश! इस पूरी भाव कविता का असर
जवाब देंहटाएंजल्लाद और शिकारी दिमागों पर हो जाए!!
तो मैं जीतेजी जन्नत देख लूँगा!!
पंडित जी बङिया चीज खोजकर लाये । और बेहद महत्वपूर्ण
जवाब देंहटाएंइसलिये कि मुसलमान कवि की है । धन्यवाद ।