गुरुवार, 17 मार्च 2011

सम्वेदनाओं के संरक्षण भाव से बढ़ती है शाकाहार रूचि

हिंसा चाहे धर्म पर अथवा ईश्वर के नाम पर ही क्यों न की जाय, हिंसा, हिंसा ही होती है। हिंसा किसी भी काल में नैतिक नहीं बन सकती, न कभी हिंसा अनुकरणीय हो सकती है। हिंसा का अन्त सदैव प्रतिशोधपूर्ण हिंसा पर ही खत्म होता है। हिंसा किसी भी प्रयोजन से की जाय, कभी भी, किसी के लिए भी कल्याणकारी नहीं हो सकती। हिंसक दृश्य और क्रूर सोच प्रेरित मानसिकता, हमारी मनोवृति पर दुष्प्रभाव ही डालती है। हमारी सम्वेदनाएं शिथिल होती जाती और अन्तः हिंसा हमारे अवचेतन में हमारी विचार, वाणी, स्वभाव में समाहित हो जाती है, जो हमारे व्यवहार व वर्तन में प्रकट होने लगती है।

मानसिक क्रियाओं का मानवीय जीवन-व्यवहार पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। अच्छे बुरे विचार ही व्यक्ति को अच्छा या बुरा बनाते है। व्यवहार शुद्ध बनाने के लिए, विचारों को उत्तरोत्तर शुद्ध बनाया जाना आवश्यक है। बिना किसी जीव की हिंसा किये मांस प्राप्त करना असम्भव है, और ऐसे अभक्ष्य से विरत हुए बिना अहिंसा-भाव को ह्रदय में स्थान देना दुष्कर है। उसीतरह अहिंसा-भाव के अभाव में, दिल से प्रेम, दया और करूणा का झरना बहना नामुमकिन है। हिंसक कृत्यों व मंतव्यो से ही उत्पन्न सामिष अभक्ष्य से हिंसक मनोवृति रूढ़ बन जाना स्वभाविक है।

पिछले दिनों अमेरिका के एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल ने इस बात को प्रमाणित किया कि मांसाहार का असर व्यक्ति की मनोदशा पर भी पड़ता है। शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया कि लोगों की हिंसक प्रवत्ति का सीधा संबंध मांसाहार के सेवन से है। अध्ययन के परिणामों ने इस बात की ओर संकेत दिया कि मांसाहार के नियमित सेवन के बाद युवाओं में धैर्य की कमी, छोटी-छोटी बातों पर हिंसक होने और दूसरों को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।

इसलिए अब सहजता से कहे जाते इस कथन का कोई औचित्य नहीं कि ‘जरूरी नहीं मांसाहारी क्रूर प्रकृति के ही हों’। कदाचित न भी हों, पर संभावनाएं अत्यधिक ही होती है। विवेकवान व्यक्ति तो, परिणामो से पूर्व ही सम्भावनाओं पर पूर्णविराम लगाने की सोचता है। हिंसा के प्रति कारूणिक सम्वेदनाओं के अभाव में अहिंसा की मनोवृति प्रबल नहीं बन सकती। यकिनन दयालुतापूर्ण सम्वेदनाएँ, हमें मानवों के प्रति भी सहिष्णु और सम्वेदनशील बनाती है।

45 टिप्‍पणियां:

  1. @सुज्ञ जी
    एक सुन्दर पोस्ट के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. ~~~~~और मांसाहार छोड़ दिया~~~~~~~~~~~~~~


    प्रार्थना के दौरान ऐसा लगा कि बिहारीजी अशुद्ध चीजों का भक्षण कर मंदिर में आने पर डांट रहे हों। इसके बाद मांसाहार नहीं करने का जो संकल्प लिया वो आज तक जारी है। मांसाहार करने के दौरान बहुत क्रोधी और जिद्दी थे। मन भी भटकता रहता था। शाकाहार अपनाने के बाद मन को शांति मिली। मां दुर्गा देवी के चरणों में दृढ़ता और एकांत सुख मिलने लगा।
    .
    .
    .
    श्री सिंह इस उम्र में भी चुस्त-दुरुस्त हैं। स्मरण शक्ति भी गज़ब की है। आज भी एकांत में बैठकर ढाई से तीन घंटे प्रतिदिन लिखते हैं। उनकी इतनी ऊर्जा का राज है शाकाहार, नियमित दिनचर्या, योग आसन और प्राणायाम। बचपन से ही उन्हें ब्रह्म मुहूर्त में उठने की आदत है।
    .
    .
    .
    सन 2010 में पैर फिसलने से कूल्हे की हड्डी टूट गई। ढाई महीने के उपचार और आपरेशन के बाद तकलीफ से निजात मिली। आज भी 92 साल की उम्र में कपाल भारती और शवासन जारी है। उनका मानना है कि आध्यात्मिक जीवन में शाकाहार अनिवार्य है।


    http://www.bhaskar.com/article/chh-rai-morning-at-daybreak-as-the-creation-of-life-1919392.html

    जवाब देंहटाएं
  3. 106 साल के सर्वानंद बिना चश्मे के पढ़ते हैं अखबार


    रायपुर.उम्र 106 साल, चेहरे पर झुर्रियां फिर भी ऊर्जा युवाओं के समान। याद रखने की जबरदस्त शक्ति, बिना चश्मे के पढ़ते हैं अख़बार और बिना सहारे के चढ़ते हैं सीढ़ियां। यह सारी खूबियां हैं योग ऋषि स्वामी सर्वानंद सरस्वती में। वाराणसी में जन्मे सर्वानंद ने 16 वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण कर लिया। आज वे देश विदेश में योग आसन, प्राणायाम और शुद्ध शाकाहार के लिए लोगों को जागरूक कर रहे हैं।

    http://www.bhaskar.com/article/chh-rai-106-years-sarwanand-read-the-newspaper-without-glasses-1829594.html

    जवाब देंहटाएं
  4. मांसाहार से स्वभाव में आक्रामकता तो आती है। ऐसा ही सुना है और देखा भी है।

    जवाब देंहटाएं
  5. मैं आपकी बात से बिलकुल सहमत हूँ! आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. होली की हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  7. मनुष्य के खान पान का प्रभाव उसकी मन:स्थिति और व्यवहार पर निश्चय ही पड़ता है !
    आहार और विचारों की शुद्धता तथा व्यवहार की संवेदन्शीलता पर पड़ने वाले उसके प्रभाव का बड़ा ही सुन्दर विश्लेषण आपने किया है !
    आभार !

    जवाब देंहटाएं
  8. सटीक और सार्थक बात|धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं
  9. सत्य कहा आपने कहा ही गया है कि
    जैसा खाये अन्न वैसा होये मन

    जवाब देंहटाएं
  10. " हिंसा किसी भी प्रयोजन से की जाय कभी भी कल्याणकारी नहीं हो सकती। हिंसक दृश्य और क्रूर सोच हमारी मानसिकता पर दुष्प्रभाव डालते है। हमारी सम्वेदनाएं शिथिल होती जाती है एवं हिंसा हमारे अवचेतन में, हमारी विचार,वाणी स्वभाव में समाहित हो जाती है। अन्ततः वह हमारे व्यवहार व वर्तन में प्रकट होने लगती है।"
    काश! जुबान के स्वाद के मोह से बाहर आ पायें और ह्रदय में करुणा का संचार कर हिंसा की विभत्सता का सूक्ष्म अनुभव कर पायें.
    ईश्वर के नाम पर या अन्य कुतर्को के आधार पर जीव हिंसा का कोई अधिकार हमे नहीं मिल सकता.रामकृष्ण परमहंस जी से एक बार पुछा गया कि महाकाली तो बलि मांगती है.उन्होंने कहा हाँ मांगती है बकरे या भैसे की नहीं बल्कि 'मै' की.वास्तव में अहंकार या 'मै' को ही प्रतीकरूप में महिसासुर माना गया है.महाकाली के हाथ में कटा मुंड और गले में मुंडो की माला भी 'मै'यानि सिर के रूप में दर्शित है .
    कबीरदास जी ने इसे सुंदर रूप से इस प्रकार व्यक्त किया है
    सर राखे सर जात है ,सर काटे सर होत
    जैसे बाती दीप की , जले उजालो होत
    हम जब जब अपने अहंकार को रखने कि कोशिश करते है ,तो समाज/ प्रकृति द्वारा उसका हनन किया जाता है और जब अपने अहंकार को मिटाते है तो प्रकृति /समाज द्वारा सम्मानित होते हैं.अत:चाहे हिंदू हो मुस्लिम या अन्य धर्मी , 'अहंकार' या मै की बलि ही प्यारी है और वही चाहिए ईश्वर/अल्लाह को.अहंकार के गलते जाने से ही हृदय में उजाला संभव है.
    सुंदर पोस्ट के लिए बहुत बहुत आभार.होली की आपको और सभी ब्लोगर जन को हार्दिक शुभ कामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  11. अब क्या कहूँ मै ?
    जानवरो पर हो रहे अत्याचार अब बर्दाश्त नही होते.
    मन मे भयंकर क्रोध आ जाता है.
    आपके विचार पढ़कर शांति मिली
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  12. राकेश जी,

    बली का सार्थक स्वरूप विवेचित किया है, यह ही तात्विक है। हम मूढ उन प्रतीकों के चक्कर में पापकारी हिंसाएं करने लगते है।

    अहंरूपी मान का त्याग ही अभिष्ठ है।

    आपका अनंत आभार राकेश जी!!

    जवाब देंहटाएं

  13. मुझे नहीं मालुम कि इस ब्लॉग का श्रेय किस को दिया जाए , पर यह प्रयास सराहनीय है ! इस ब्लॉग में शामिल व्यक्तित्व बेहतरीन हैं, शायद " सप्त ऋषि " कहना असंगत नहीं होगा ! गौरव अग्रवाल नामक ध्रुव तारे के बिना आनंद थोडा कम लग रहा है !

    बहरहाल उम्मीद करता हूँ भीड़ नहीं बढ़ाएंगे तथा क्वालिटी परोसेंगे ! हमें अपने शिष्यों में मानियेगा गुरुजन ...
    हार्दिक शुभकामनायें !

    जवाब देंहटाएं
  14. ध्रूवतारा,अपने स्वभावानुसार दिशानिर्देश में रत है। राशी मंडल से अलिप्त।

    बेशक यहां भीड़ न होगी, क्योंकि यह कोई एसोशियेशन नहीं है। अहिंसक कारणों से शाकाहार-निष्ठा और समर्पण ही नियम है।

    विषयवस्तु क्वालिटी ही होगी, क्योंकि इस ब्लॉग का उद्देश्य शाकाहार थोपना नहीं, शाकाहार जागरण और प्रकृति-पर्यावरण संरक्षण है।

    समर्थक बनें, व पधारते रहें।

    जवाब देंहटाएं
  15. @ सुज्ञ ,
    जरूर आयेंगे भाई जी !
    शायद यह पहला स्थल है जिसमें प्रवेशद्वार पर लगे नामपट देख कर ही सुगन्ध का अनुभव हुआ ! भोजन की विशिष्टता और क्वालिटी, बनाने वालों के व्यक्तित्व से ही जुडी होती है ! उम्मीद करता हूँ बेहतरीन ही मिलेगा !!

    जवाब देंहटाएं
  16. मैं शाकाहार को मूलतः शारीरिक शुद्धि से ही जोड़े जाने के पक्ष में हूं,मानसिक नहीं। दुनिया के अनेक शाकाहारी अपनी वृत्ति के आधार पर गिद्ध साबित किए जा सकते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  17. आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ...... ऐसा ही होते देखा है..... आक्रामकता और असंवेदनशीलता व्यवहार का हिस्सा बन जाती है...

    जवाब देंहटाएं
  18. श्री राकेश कुमार जी जो हमारे गुरु तुल्य है के द्वारा आपके ब्लॉग के बारे
    में पता चला इसके लिए उन्हें कोटिशः धन्यवाद. मैंने आने में जरा देर कर
    दी इसके लिए माफ़ी चाहूँगा. लेकिन यहाँ आकर बहुत अच्छा लगा.
    मै आपकी बातों से पूरी तरह सहमत हूँ. वह परम पिता परमात्मा जो हम सब
    का आधार है कभी नहीं चाहेगा की उसके नाम पे उसके पुत्रों की बलि दी जाय.
    कौन सी माँ या पिता ऐसा चाहेगा बताइए जरा? इससे बढ़ के क्रूरता
    भला और क्या होगी?

    जवाब देंहटाएं
  19. कुमार साहब,

    आपके अभिमत का सम्मान करता हूँ, किन्तु लेख का अभिप्राय यह नहीं है कि सामिष अन्दर जाते व्यक्ति मानसिक क्रूर प्रतिक्रिया करता है। शारिरिक अशुद्धि की तरह। इसमें कोई संदेह नहीं कि मानवीय वृतियां अजीबो-गरीब होती है अपवाद स्वरूप सामिष आहारी शान्त भी हो सकता है और निरामिष आहारी द्वेषी। पर लेख का आशय है कि हिंसाजन्य आहार होने से सम्वेदनाओं में हिंसा के प्रति जगुप्सा कम होती जाती है और विचारों में हिंसक कृत्य के प्रति मानसिकता सामान्य से सामान्यतर बनती जाती है। अन्ततः हिंसा व क्रूरता के प्रति मानस असम्वेदनशील बन जाता है। यह सम्भावनाएं अधिकांश रहती है। इसतरह इसका सम्बंध मानसिकता से है।

    जवाब देंहटाएं
  20. कुमार राधारमण जी,
    आपका कहना सही है कि केवल आहार शुद्धि से ही विचार शुद्धि नहीं हो सकती. लेकिन आहार शुद्धि मदद अवश्य करती है विचार शुद्धि में.एक शाकाहारी भी यदि अशुद्ध विचारों का संग करता है तो निंदनीय है,मेरी यह प्रार्थना है सुज्ञ जी से कि वे 'निरामिष' में आहार शुद्धि के साथ साथ विचार शुद्धि को भी उचित स्थान दें.

    जवाब देंहटाएं
  21. दुनिया के अनेक शाकाहारी अपनी वृत्ति के आधार पर गिद्ध साबित किए जा सकते हैं।

    यह प्रवृत्ति मांसाहारियों में कोई कम भी नहीं है और शाकाहार के कारण भी नहीं है। गिद्ध कभी शाकाहारी हुए हैं क्या?

    जवाब देंहटाएं
  22. @मैं शाकाहार को मूलतः शारीरिक शुद्धि से ही जोड़े जाने के पक्ष में हूं,मानसिक नहीं। दुनिया के अनेक शाकाहारी अपनी वृत्ति के आधार पर गिद्ध साबित किए जा सकते हैं।


    इस बारे में मैं अपने थोड़े विचार देना चाहूँगा

    जवाब देंहटाएं
  23. It is certainly true , for food has an effect on character . “ Today the truth of this contention ” , writes the Editor of “ The Vegetarian News Digest ”: “ Is borne out by studies of human beings and by existance research which show , for instance , that whatever affects the endocrine glands deleteriously or favourably influences character and personality . These glands are dominent in the whole process of digestion , as well as metabolism , and through the harmones produced from food they are directors of every activity of the bodymind . ”

    जवाब देंहटाएं
  24. Dr. Louis Berman has analysed the various traits in terms of diet and metabolism , which establishes that man is made by what be eats and drinks .

    जवाब देंहटाएं
  25. Voltaire observed :

    “Men fed upon carnage , and drinking strong drinks , have all an impoisoned and acrid blood , which drives them mad in a hundred different ways”

    जवाब देंहटाएं
  26. Ralph Waldo Trine , author of “ Every Living Creature ” declared :

    “I share the belief with many others that the highest mental , physical and spiritual excellance will come to a person only when , among other things , he refrains from consuming flesh and blood . ”

    जवाब देंहटाएं
  27. The great Moghul Emperor of India , Akbar the Great , proclaimed:

    “It is indeed from ignorance and cruelty that although various kinds of food are obtainable man , are bent upon injuring living creatures , and lending a ready hand in killing and eating them ; none seems to have an eye for the beauty inherent in the prevention of cruelty , but makes himself a tomb for animals . ”

    --- ( Ain-I-Akbari , by H. Blochmann , Vol. I, p. 61 )

    Akbar was aware of the degenerating influence which the contact and company of fleshmongers could create ; hence he ordered that “ butchers , fishermen and the like , who have no other occupation but taking life , should have a separate quarter and their association with others should be prohibited by fine . ”

    ( Smith Akbar , the Great Moghul , pp. 335-336 )

    जवाब देंहटाएं
  28. थोड़ा और पीछे ......

    महात्मा बुद्ध ने कहा है कि हमारी आजीविका अच्छी होनी चाहिए। हमें ईमानदारी से अपनी रोजी-रोटी कमानी चाहिए। यदि हमारी आजीविका के कारण किसी का अहित होता है, तो वह आजीविका अच्छी नहीं कही जा सकती। मान्यता है कि शारीरिक श्रम के अभाव में प्राप्त आय निकृष्ट है। परिश्रम के बाद हम जो पाते हैं, वह उत्तम है। इससे न केवल हमारा शरीर सक्रिय रहता है, बल्कि रोगों की संभावना भी कम हो जाती है। परिश्रम से कमाने के बाद मिले अन्न ही शरीर और मन दोनों को संतुष्ट करते हैं।

    न केवल भीख, चोरी या ठगी जैसे अपराध से प्राप्त आय, बल्कि रुपये के लेन-देन में ब्याज से प्राप्त आय को भी घटिया माना गया है। इस्लाम में ब्याज को निषिद्ध माना गया है।

    http://in.jagran.yahoo.com/news/features/general/8_14_5677261.html

    जवाब देंहटाएं
  29. Khave Anna , Waisa Hove mana

    ~~~~~~अंग्रेजी एडिशन ~~~~~~

    ‘ As your diet , so your feelings . ’



    “ Tell me what you eat and I will tell you what you are ! ”

    Brillat – Savarin , the French Philosopher

    जवाब देंहटाएं
  30. @सुज्ञ जी

    मेरा अनुरोध (इग्नोर किया जा सकता है ):इस चर्चा को थोड़े दिन ब्लॉग पर रहने दीजिये

    देखें और क्या ओपिनियन आते हैं ? :)

    वैसे मेरी बात का खंडन होता है तो मुझे बड़ा मजा आएगा .... सच्ची :)

    जवाब देंहटाएं
  31. ...और संभव हो तो इस ब्लॉग पर एक ट्रेकर (फ्री वाला ) भी लगाएं

    जवाब देंहटाएं
  32. @ आदरणीय सतीश जी

    आपके स्नेह से अभिभूत हूँ , मैं ठहरा एक अनियमित ब्लोगर (२०१० के बाद )
    परिस्थितयां कुछ ऐसी बनी ब्लॉग दोबारा शुरू करने का थोड़ा समय मिल गया वर्ना ब्लोगिंग तो कब की छोड़ दी मैंने ...... जो समय ब्लोगिंग को दे रहा हूँ ये तो वो समय है जो होलीवुड फ़िल्में देखने में जाता :))

    वैसे भी ये जिम्मेदारी वाला काम "सप्त ऋषि" मंडल द्वारा ही हो तो ज्यादा सही रहेगा :)

    सादर

    ~~~~~गौरव ~~~~

    जवाब देंहटाएं
  33. अग्रवाल जी,

    चर्चा तो आवश्यक है, विभिन्न ओपिनियन ही तो विचारो को परिशुद्ध करते है। उन्हें और भी परिपक्व बनाते है।

    खण्डन, मंडन, वाद और चर्चा, हमें समस्याओं की तह तक पहूँचने में सहयोग करती है।

    विभिन्न दृष्टिकोण यहाँ सादर आमंत्रित है,चर्चा जारी ही है…

    जवाब देंहटाएं
  34. आज मनाएं होली

    प्रकृति के रंग देख देख, मन में खिले रंगोली
    रंग-रंगीले पशु-पंखी की, सुन लें जीवट-बोली
    मानव-पर्व बहुत मनाए, सर्व-जग पर्व मनाएं
    स्वादलोलूप तृष्णा की, बस आज जलाएं होली

    जवाब देंहटाएं
  35. रंग उडाये पिचकारी ,
    रंग से रंग जाये दुनिया सारी ,
    होली के रंग आपके जीवन को रंग दे ,
    ये ही शुभकामना है हमारी ,
    हैप्पी होली :)

    जवाब देंहटाएं
  36. आप को होली की हार्दिक शुभकामनाएं । ठाकुरजी श्रीराधामुकुंदबिहारी आप के जीवन में अपनी कृपा का रंग हमेशा बरसाते रहें।

    जवाब देंहटाएं
  37. .
    निरामिष ब्लॉग के पाठकों, सहयोगियों और संरक्षकों को होली, नवरोज़ और पूरिम पर्वों की हार्दिक बधाई!
    .

    जवाब देंहटाएं
  38. आपको सपरिवार होली की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  39. शाकाहार से उपजती, दयालुतापूर्ण सम्वेदनाएँ, हमें मानवों के प्रति भी सहिष्णु और सम्वेदनशील बनाती है।

    जवाब देंहटाएं