‘जीव जीवस्य भोजनम्’ के अनुसार कोई जीव किसी दूसरे जीव का भक्षण करता है तो कोई अन्य जीव उसका भक्षण कर जाता है। किन्तु यह इतनी साधारण सी बात नहीं है।वह एक सुव्यवस्थित खाद्य श्रृंखला है जो सुचारू रूप से चलती है। यह विपरित चल ही नहीं सकती। क्या कोई बकरी शेर का शिकार कर खा सकती है। पर मनुष्य बुद्धिमान प्राणी है और उसने औजारों का आविष्कार कर लिया है अतः वह अप्राकृतिक आहार तैयार कर सकता है। प्राकृतिक रूप से वेल-मैनेज्ड इस श्रृंखला में मनुष्य के हिस्से में तो ‘एकेन्द्रीय स्थावर काय के मृत जीवाश्म’ (शाकाहार) आए है। इसलिए दूसरे समस्त चर-जीवों का सरंक्षण करना, और इस श्रृंखला को अभेद रखना, प्राकृतिक संसाधनो की रक्षा करना, बुद्धि और विवेक नामक अतिरिक्त गुण के कारण मनुष्य के जिम्मे है।
यदि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना मांसाहार के योग्य की होती तो फिर हमारे दांत व हमारे पंजे भी इस योग्य होने चाहियें थे कि हम किसी पशु को पकड़ कर उसे वहीं अपने हाथों से, दांतों से चीर फाड़ सकते। मनुष्य का केनाईन दांत इस योग्य नहीं है कि वह चमडा भेदते हुए संघर्षरत पशु को भोजन बना सके। यदि चाकू-छूरी से काट कर, प्रेशर कुकर में तीन सीटी मार कर, आग पर भून कर, पका कर, घी- नमक, मिर्च का तड़का मार कर खाया तो फिर दांत और आंत का त्रुटिपूर्ण हवाला क्यों? पाचन संस्थान पर विचार करने पर हम देखते है, शाकाहारी जीवों में छोटी आंत, मांसाहारी जीवों की तुलना में कहीं अधिक लंबी होती है। हम मानव भी इसका अपवाद नहीं हैं। जैसा कि हम सब जानते ही हैं, हमारी छोटी आंत लगभग २७ फीट लंबी है और यही स्थिति बाकी सब शाकाहारी जीवों की भी है। शेर की, कुत्ते की, बिल्ली की छोटी आंत बहुत छोटी है क्योंकि ये मूलतः मांसाहारी जानवर हैं।
एक उभय आहारी विद्वान ने कहा कि शाकाहारी चूस कर पानी पीता है और मांसाहारी चाट कर पानी पीता है, मनुष्य दोनो तरह से पी सकता है। जब पुछा गया कि भला मनुष्य चाट कर कैसे पी सकता है तो बोले कि थाली में लेकर अभ्यास करने पर थोडा समय लगता है पर पी सकता है। (पहली बार पता चला कि थाली प्राकृतिक है) किन्तु अगर अभ्यास से ही पानी चाट कर पीना है तो हम तो कह ही चुके है मानव अभ्यास से ही मांसाहार का आदी बनता है उसी तरह जैसे कोई स्वयं को कांच खाने का अभ्यस्त बनाले किन्तु कांच मानव का प्राकृतिक आहार नहीं है।
मानव प्राकृतिक उभय आहारी नहीं, किन्तु वह क्षेत्र काल और परिवेश के अनुसार किसी भी तरह के आहार के अनुकूल स्वयं को बना सकता है, और प्रारंभिक काल से वह ऐसा करता भी आया है। वह उपलब्ध आहार पर स्वयं को ढाल देता है। वह क्षेत्रानुसार व अप्राकृतिक रूप से उभय आहारी रहा है।कोई आश्चर्य नहीं यदि प्राचीन युग में या वैदिक काल में कोई मनुष्य माँसाहार भी करते हों इसीलिए शास्त्रों में जनमानस को मांसाहार त्याग करवाने के उल्लेख अधिक प्रमाण में प्राप्त होते है, उपदेश तो सात्विक रहने के ही है तभी तो उन्हें माँस व हिंसा छुडवानें के व्रत दिये जाते होंगे। निश्चित ही अप्राकृतिक रूप से मानव सर्वभक्षी है। यहां तक कि हम उसे जहर खाते, पचाते व अभ्यस्त होते देख सकते है इसका यह अर्थ नहीं कि जहर मानव का आहार है। शारीरिक संरचना और स्वयं मानव की स्वभाविक वृति और प्रकृति के अनुरूप वह पूर्णतः शाकाहारी ही है। अर्थार्त प्राकृतिक और तकनिकि रूप से वह शुद्ध शाकाहारी है। मनुष्य की वृति और उसकी कायिक प्रकृति दोनो ही शाकाहारी है।
यदि प्रकृति ने हमारे शरीर की संरचना मांसाहार के योग्य की होती तो फिर हमारे दांत व हमारे पंजे भी इस योग्य होने चाहियें थे कि हम किसी पशु को पकड़ कर उसे वहीं अपने हाथों से, दांतों से चीर फाड़ सकते। मनुष्य का केनाईन दांत इस योग्य नहीं है कि वह चमडा भेदते हुए संघर्षरत पशु को भोजन बना सके। यदि चाकू-छूरी से काट कर, प्रेशर कुकर में तीन सीटी मार कर, आग पर भून कर, पका कर, घी- नमक, मिर्च का तड़का मार कर खाया तो फिर दांत और आंत का त्रुटिपूर्ण हवाला क्यों? पाचन संस्थान पर विचार करने पर हम देखते है, शाकाहारी जीवों में छोटी आंत, मांसाहारी जीवों की तुलना में कहीं अधिक लंबी होती है। हम मानव भी इसका अपवाद नहीं हैं। जैसा कि हम सब जानते ही हैं, हमारी छोटी आंत लगभग २७ फीट लंबी है और यही स्थिति बाकी सब शाकाहारी जीवों की भी है। शेर की, कुत्ते की, बिल्ली की छोटी आंत बहुत छोटी है क्योंकि ये मूलतः मांसाहारी जानवर हैं।
एक उभय आहारी विद्वान ने कहा कि शाकाहारी चूस कर पानी पीता है और मांसाहारी चाट कर पानी पीता है, मनुष्य दोनो तरह से पी सकता है। जब पुछा गया कि भला मनुष्य चाट कर कैसे पी सकता है तो बोले कि थाली में लेकर अभ्यास करने पर थोडा समय लगता है पर पी सकता है। (पहली बार पता चला कि थाली प्राकृतिक है) किन्तु अगर अभ्यास से ही पानी चाट कर पीना है तो हम तो कह ही चुके है मानव अभ्यास से ही मांसाहार का आदी बनता है उसी तरह जैसे कोई स्वयं को कांच खाने का अभ्यस्त बनाले किन्तु कांच मानव का प्राकृतिक आहार नहीं है।
मानव प्राकृतिक उभय आहारी नहीं, किन्तु वह क्षेत्र काल और परिवेश के अनुसार किसी भी तरह के आहार के अनुकूल स्वयं को बना सकता है, और प्रारंभिक काल से वह ऐसा करता भी आया है। वह उपलब्ध आहार पर स्वयं को ढाल देता है। वह क्षेत्रानुसार व अप्राकृतिक रूप से उभय आहारी रहा है।कोई आश्चर्य नहीं यदि प्राचीन युग में या वैदिक काल में कोई मनुष्य माँसाहार भी करते हों इसीलिए शास्त्रों में जनमानस को मांसाहार त्याग करवाने के उल्लेख अधिक प्रमाण में प्राप्त होते है, उपदेश तो सात्विक रहने के ही है तभी तो उन्हें माँस व हिंसा छुडवानें के व्रत दिये जाते होंगे। निश्चित ही अप्राकृतिक रूप से मानव सर्वभक्षी है। यहां तक कि हम उसे जहर खाते, पचाते व अभ्यस्त होते देख सकते है इसका यह अर्थ नहीं कि जहर मानव का आहार है। शारीरिक संरचना और स्वयं मानव की स्वभाविक वृति और प्रकृति के अनुरूप वह पूर्णतः शाकाहारी ही है। अर्थार्त प्राकृतिक और तकनिकि रूप से वह शुद्ध शाकाहारी है। मनुष्य की वृति और उसकी कायिक प्रकृति दोनो ही शाकाहारी है।
बेहद सुन्दर और आवश्यक लेख है
जवाब देंहटाएंआभार.....
वैसे एक बात तो है सुज्ञ जी अब किसी शाकाहार समर्थक को उत्तर देने के लिए सिर्फ एक ही ब्लॉग (निरामिष) का लिंक देना ही पर्याप्त हो जायेगा ..आपने तो सच में क्रान्ति ला दी है
ग्लोबल जी,
जवाब देंहटाएंआप मित्रों का सात्विक योगदान है।
लोगों को आधुनिकता की डेफिनेशन समझनी चाहिए .अगर ख़बरों की माने तो .......
जवाब देंहटाएंfor Mugdha, health was always a priority, so she decided to give up meat for good, said a source
http://naarijagat.blogspot.com/2011/03/mughda-godse-turns-vegetarian.html
Welcome to the land of vegetarians. First Kareena Kapoor gave up meat and now, it is Mangalorian beauty Sameera Reddy who has given up meat and fish.
जवाब देंहटाएंhttp://articles.timesofindia.indiatimes.com
Kim Sharma
जवाब देंहटाएंSo why has she turned vegetarian now?
To support a cause, that’s why! Kim feels that modern methods of factory farming are exceptionally cruel and distressing to the animals, and so does not wish to support it.
Kim says, “I decided to give up meat and fish for ethical reasons. And a vegetarian diet is very healthy for all ages.” Well said Kim!
www.bollywood.ac
बस आज के लिए इतना ही...
जवाब देंहटाएंKim Sharma
Sameera Reddy
Kareena Kapoor
mughda godse
को हम शाकाहारियों की ओर से शुभकामनाएं
जो सभ्य आहार से जंगली आहार की तरफ ले जाय वह कैसी आधुनिकता?
जवाब देंहटाएंमुग्धा का निर्णय सच्चे अर्थो में आधुनिकता अर्थार्त सभ्यता की तरफ़ गमन है।
@जो सभ्य आहार से जंगली आहार की तरफ ले जाय वह कैसी आधुनिकता?
जवाब देंहटाएंमुग्धा का निर्णय सच्चे अर्थो में आधुनिकता अर्थार्त सभ्यता की तरफ़ गमन है।
सही कहा सुज्ञ जी
@सभी से
इन ख़बरों का कोई भी खंडन हो तो दे देना दोस्तों ....... कोई परेशानी नहीं है ....इस बहाने आपकी भी थोड़ी शाकाहार रिलेटेड नेट सर्फिंग भी हो जाएगी ..है ना :))
लेकिन ये तो साबित हो गया की शाकाहार ही आधुनिकता की पहचान है