प्राकृतिक ढंग से जब मानव, करता आहार विहार नहीं.
जब प्रकृति अवज्ञा करता है, अरु प्रकृति उसे दरकार नहीं.
तब उसे स्वस्थ रह जाने का, रहता कोई अधिकार नहीं.
फिर उसका कोई भी सपना, है हो पाता साकार नहीं.
शारीरिक वात पित्त और कफ़, यह ही त्रिदोष कहलाते हैं.
त्रिदोष विषमता आते ही, मानव रोगी हो जाते हैं.
हम किसे चिकित्सा कहते हैं, त्रिदोषों में समता लाना.
मन्दाग्नि से ही होता है, रोगों का पैदा हो जाना.
जिस घर में तुलसी होती है, उस घर में वैद्य न आता है.
यह चलता फिरता अस्पताल, वास्तव में प्रिय गौमाता है.
मानव शरीर कफ़ पित्त वात से, सदा प्रभावित पाते हैं.
काया के सारे रोगों में, यह ही त्रिदोष दिखलाते हैं.
कफ़ सदा मनुज वक्षस्थल के, ऊपरी भाग में रहता है.
कफ़ ही से तो मस्तिष्क और सर सदा प्रभावित रहता है.
मल मूत्र द्वार के ऊपर अरु, जो उदर भाग में रहता है.
त्रिदोषों में दूसरा दोष, है पित्त - चरक यह कहता है.
तीसरा रोग है वात वायु, सारे शरीर में भ्रमण करे.
जब यह संतुलन बिगाड़े तो, मानव रोगों में रमण करे.
यह बात नियंत्रित होते ही, हर रोग नियंत्रण पाता है.
यह चलता फिरता अस्पताल, वास्तव में प्रिय गौमाता है.
[श्री सतीश चन्द्र चौरसिया 'सरस' जी द्वारा रचित 'गौ अभिनन्दन ग्रन्थ' से साभार] __________________________________________________________________________
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उपर्युक्त छंद में अंतिम पंक्ति सम्पूर्ण सौपान की टेक है. कृति के षष्ठम सौपान में गाय को एक चलता फिरता अस्पताल एक पावर स्टेशन सिद्ध किया गया है. इसलिए पाठकों को यह टेक अभी असंगत-सी प्रतीत होगी. इसके साथ ही कृति में शाकाहार और गाय की मनुष्य जीवन में महत्ता बतायी गयी है. मेरा उद्देश्य 'निरामिष' ब्लॉग के माध्यम से उन कई बातों को सामने लाना होगा जो कम प्रचारित-प्रसारित हैं.
जब प्रकृति अवज्ञा करता है, अरु प्रकृति उसे दरकार नहीं.
तब उसे स्वस्थ रह जाने का, रहता कोई अधिकार नहीं.
फिर उसका कोई भी सपना, है हो पाता साकार नहीं.
शारीरिक वात पित्त और कफ़, यह ही त्रिदोष कहलाते हैं.
त्रिदोष विषमता आते ही, मानव रोगी हो जाते हैं.
हम किसे चिकित्सा कहते हैं, त्रिदोषों में समता लाना.
मन्दाग्नि से ही होता है, रोगों का पैदा हो जाना.
जिस घर में तुलसी होती है, उस घर में वैद्य न आता है.
यह चलता फिरता अस्पताल, वास्तव में प्रिय गौमाता है.
मानव शरीर कफ़ पित्त वात से, सदा प्रभावित पाते हैं.
काया के सारे रोगों में, यह ही त्रिदोष दिखलाते हैं.
कफ़ सदा मनुज वक्षस्थल के, ऊपरी भाग में रहता है.
कफ़ ही से तो मस्तिष्क और सर सदा प्रभावित रहता है.
मल मूत्र द्वार के ऊपर अरु, जो उदर भाग में रहता है.
त्रिदोषों में दूसरा दोष, है पित्त - चरक यह कहता है.
तीसरा रोग है वात वायु, सारे शरीर में भ्रमण करे.
जब यह संतुलन बिगाड़े तो, मानव रोगों में रमण करे.
यह बात नियंत्रित होते ही, हर रोग नियंत्रण पाता है.
यह चलता फिरता अस्पताल, वास्तव में प्रिय गौमाता है.
[श्री सतीश चन्द्र चौरसिया 'सरस' जी द्वारा रचित 'गौ अभिनन्दन ग्रन्थ' से साभार] __________________________________________________________________________
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उपर्युक्त छंद में अंतिम पंक्ति सम्पूर्ण सौपान की टेक है. कृति के षष्ठम सौपान में गाय को एक चलता फिरता अस्पताल एक पावर स्टेशन सिद्ध किया गया है. इसलिए पाठकों को यह टेक अभी असंगत-सी प्रतीत होगी. इसके साथ ही कृति में शाकाहार और गाय की मनुष्य जीवन में महत्ता बतायी गयी है. मेरा उद्देश्य 'निरामिष' ब्लॉग के माध्यम से उन कई बातों को सामने लाना होगा जो कम प्रचारित-प्रसारित हैं.
विचारणीय बातें हैं। आभार।
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अंतरिक्ष में वैलेंटाइन डे।
अंधविश्वास:महिलाएं बदनाम क्यों हैं?
त्रिदोषों का महत्व समझती सुन्दर कविता. कहते हैं कि तुलसी के दस पत्तों का सुबह खाली पेट यदि नित्य सेवन किया जाय तो शरीर के त्रिदोष नियंत्रित रहते हैं. मैंने इस बात पर अमल करना शुरू किया तो कुछ ही दिनों में हमारी तुलसी मैय्या अनावृत हो गयी अतः मुझे ये प्रयोग रोकना पड़ा.
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर सारगर्भित जानकारी ..... प्रतुल जी का इस लेख के लिए और सुज्ञ जी का इस ब्लॉग के लिए आभार और शुभकामनाएं ...
जवाब देंहटाएंअब अगर किसी अक्लमंद[?] को हिंदी में लिखी होने या फ्री में ये जानकारी मिलने की वजह से महत्वपूर्ण ना लगे तब तो कुछ भी नहीं किया जा सकता :))
भारतीय नस्ल की गायें सर्वाधिक दूध देती थीं और आज भी देती हैं। ब्राजील में भारतीय गोवंश की नस्लें सर्वाधिक दूध दे रही हैं। अंग्रेजों ने भारतीयों की आर्थिक समृद्धि को कमजोर करने के लिए षडयंत्र रचा था। कामनवेल्थ लाइब्रेरी में ऐसे दस्तावेज आज भी रखे हैं। आजादी बचाओ आंदोलन के प्रणेता प्रो. धर्मपाल ने इन दस्तावेजों का अध्ययन कर सच्चाई सामने रखी है। खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की रिपोर्ट में कहा गया है-‘ब्राजील भारतीय नस्ल की गायों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। वहां भारतीय नस्ल की गायें होलस्टीन, फ्रिजीयन (एचएफ) और जर्सी गाय के बराबर दूध देती हैं।
जवाब देंहटाएंसंयुक्त राज्य अमेरिका में भी भारतीय गोवंश की एक जीवट प्रजाति है, बॉस्टन ब्राह्मण - जिसका ज़िक्र यहाँ है : http://pittpat.blogspot.com/2010/07/26.html
हटाएं~~~~~गाय का दूध और पीलापन ~~~~
जवाब देंहटाएंज्योतिष शास्त्र के अनुसार भारतीय गोवंश की रीढ़ में सूर्य केतु नामक एक विशेष नाड़ी होती है। जब इस पर सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तब यह नाड़ी सूर्य किरणों के तालमेल से सूक्ष्म स्वर्ण कणों का निर्माण करती है। यही कारण है कि देशी नस्ल की गायों का दूध पीलापन लिए होता है।
गाय का गोबर और गौ मूत्र और उनका महत्त्व
जवाब देंहटाएंदेशी गाय का गोबर व गोमूत्र शक्तिशाली है। रासायनिक विश्लेषण में देखें कि खेती के लिए जरुरी 23 प्रकार के प्रमुख तत्व गोमूत्र में पाए जाते हैं। इन तत्वों में कई महत्वपूर्ण मिनरल, लवण, विटामिन, एसिड्स, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होते हैं।
गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। हिंदुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश उनकी माता पार्वती को गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है। गौरी-गणेश के बाद ही पूजा कार्य होता है। गोबर में खेती के लिए लाभकारी जीवाणु, बैक्टीरिया, फंगल आदि बड़ी संख्या में रहते हैं। गोबर खाद से अन्न उत्पादन व गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
http://www.hindi.indiawaterportal.org/node/26902
कोई कमेन्ट अनावश्यक लगे तो बिना कारण बताये हटाया जा सकता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .... आभार इस सुंदर सार्थक और जानकारीपरक रचना को साझा करने का....
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना पढ़वाने के लिए प्रतुल जी का आभार और शुभकामनाएँ। कविता के भाव पसंद आए। अग्रवाल जी के कमेंटस भी ज्ञानवर्धक हैं। इसीलिए आपका भी आभार और शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंमित्र ग्लोबल
फिलहाल मेरा मनोबल टूटा हुआ है. मैं अपनी मनोदशा के साथ हमेशा न्याय करता हूँ. इसलिए चाहकर भी आपकी जानकारी से भरपूर टिप्पणियों को पढ़ते हुए भी मस्तिष्क तक नहीं ले पा रहा हूँ.
मेरे आजीविका के साथ त्रासदी हो गयी है. इसलिए केवल आपके इस वर्ष फिर से प्रकट होने पर स्वागत भर कर पा रहा हूँ. शायद कुछ दिन में युक्तियुक्त उत्तर देने में समर्थ हो पाऊँ.
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प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंगौमाता की यह स्तुति वास्त्विकता में तो पर्यावरण स्तुति है,उसी से मानव सहित सर्व-जग-जीव हितार्थ है।
यह मंगल-भावना है,प्रकृति स्नेह से उपजा गान है।
निरामिष को इसीप्रकार समृद्ध करते रहें।
शुभकामनाएं आपके साथ है, गौमाता की दुआएं व्यर्थ न जायेगी,दृढता रखें। सदा मंगलम्!!
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जवाब देंहटाएंग्लोबल जी
आपकी समस्त जानकारियों से भरी टिप्पणियों को फिर से पढ़ा, आपकी दी जानकारियाँ पोस्ट से अधिक उपयोगी बन पड़ी हैं.
आप अपने विचार बिना अपेक्षा के यूँ ही प्रकट करते रहें. .......... कुछ ही समय में आपकी इस जागृति लहर से मुफ्तखोर लापरवाह व्यक्ति भी चेतने लगेंगे.
मुझ जैसे कई पाठक उपयोगी जानकारियों को चुपके से गाँठ तो बाँध लेते हैं लेकिन धन्यवाद ज्ञापित नहीं करते इसलिए आप अपने कहे को निरर्थक न मानना. इसे मानवीय दुर्बलता जान क्षमा भाव बनाये रखना.
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जवाब देंहटाएंआदरणीय सुज्ञ जी,
आपने पत्र द्वारा और इस ब्लॉग-टिप्पणी संवाद से भी मुझे मानसिक हिम्मत दी.
पत्र में व्यक्तित्व के उपरी आवरण / मुखौटे का उजला पक्ष दिखाया.
आपकी समस्त शुभ इच्छायें अपनत्व की अनुभूति कराती हैं.
गौमाता का आशीर्वाद मुझे मिले मैं भी चाहता हूँ.
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प्रतुल जी,
जवाब देंहटाएंगाय सरल सौम्य प्राणी है,स्वभाव से वह हिंसक नहीं फ़िर भी उसे सिंग मिले है। जिसे हिलाकर-दिखाकर वह प्रतिरोध अवश्य करती है कि मेरी सरलता कमजोरी नहीं,उपकार है।
गौमाता के आशिर्वाद में निहित है समस्त जगत के जीवों का आशिर्वाद!!
दीपक पाण्डेय जी,
जवाब देंहटाएंहमारे स्वस्थ रहने के सारे उपाय प्रकृति पर ही निर्भर है,किन्तु जब हमारी स्वस्थता की अभिलाषा,अनियंत्रित होकर अतुल बल और अमरता की तृष्णा बन जाती है तो प्रकृति का अनियंत्रित शोषण होता है। इसीलिये हमें संयम का पाठ भी पढाया जाता है।
औषधियों का संयमित और नियोजित उपयोग ही बेहतर पर्यवरणहित उपाय है।
PRATUL जी,
जवाब देंहटाएंसारा का सारा "क्रेडिट" गोज टू सुज्ञ जी एंड यू सर
लेखा शास्त्र से जुड़े लोग "क्रेडिट" का मतलब "उधार" ना समझें :))
और अगर समझ भी लें तो भी सुज्ञ जी और आप तो संस्कृति का उधार चुका रहे हैं .... जो पैदा होने से बड़े होने तक हम सब पर बढ़ता रहता है (माना जाये तो)
रही बात चुपचाप उधार लेने वालों की तो जी अब सबको परिवार में शामिल कर लिया है (मानव मात्र को ) लोजिक : वसुधैव कुटुम्बकम
अपने ही भाई बहन हैं ...... धीरे धीरे सब समझ जायेंगे..... हम सभी (समझ चुके ) आपके साथ हैं .. अभी और भी आएंगे
सार्थक रचना!
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