बुधवार, 21 मार्च 2012

पश्चिम में प्रकाश - भारत के बाहर शाकाहार की परम्परा


बात सभ्यता की हो, अध्यात्म की, योग की या शाकाहार की, भारत का नाम ज़ुबान पर आना स्वाभाविक ही है। सच है कि इन सभी क्षेत्रों में भारत अग्रणी रहा है। वैदिक ऋषियों, जैन तीर्थंकरों, बौद्ध मुनियों और सिख गुरुओं ने अपने आचरण और उपदेश में वीरता, त्याग, प्रेम, करुणा और अहिंसा को अपनाया है मगर शाकाहार का प्रसार छिटपुट ही सही, भारत के बाहर भी रहा अवश्य होगा ऐसा सोचना भी नैसर्गिक ही है।

निरामिष पर एक पिछली पोस्ट में हमने इंग्लैंड में हुए एक अध्ययन के हवाले से देखा था कि वहाँ सर्वोच्च बुद्धि-क्षमता वाले अधिकांश बच्चे 30 वर्ष की आयु तक पहुँचने से पहले ही शाकाहारी हो गये थे। इसी प्रकार बेल्जियम के नगर घेंट में नगर प्रशासन ने सप्ताह के एक दिन को शाकाहार अनिवार्य घोषित करके शाकाहार के प्रति प्रतिबद्धता का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया था। पश्चिम जर्मनीअमेरिका में बढते शाकाहार की झलकियाँ भी हम निरामिष पर पिछले आलेखों में देख चुके हैं। शाकाहार के प्रति वैश्विक आकर्षण कोई नई बात नहीं है। आइये आज इस आलेख में हम यह पड़ताल करते हैं कि भारत के बाहर शाकाहार के बीज किस तरह पड़े और निरामिष प्रवृत्ति ने वहाँ किस प्रकार एक आन्दोलन का रूप लिया।
पायथागोरस इतने बुद्धिमान थे कि उन्होंने कभी मांस नहीं खाया और मांसाहार को सदा पाप कहा
~ पायथागोरस की जीवनी खंड 23
आज के भारत में शाकाहारी होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हमारे पास भूतदया, करुणा और शाकाहार की इतनी पुरानी और सुदृढ परम्परा है कि शाकाहार पर नहीं, आश्चर्य तो मांसाहार पर होना चाहिये। लेकिन सरसरी तौर पर देखने से पश्चिमी जगत में शाकाहार के लिए पर्याप्त उदाहरण, उपदेश और प्रेरणाएं नज़र नहीं आतीं बल्कि वह कुछ असाधारण व्यक्तियों के हृदय में स्वतः ही उत्पन्न हुआ लगता है। निश्चित रूप से इसके पीछे अच्छे स्वास्थ्य की कामना और पर्याप्त ज्ञान तो है ही, जीवदया और करुणा का महत्व भी कम नहीं है।

जिन लोगों ने आरम्भिक गणित पढा होगा उन्हें धर्मसूत्र के रचनाकार के रूप मे प्रसिद्ध बौधायन (800 ईसा पूर्व) की समकोण त्रिकोण प्रमेय (Pythagoras theorem) को पश्चिम में स्वतंत्र रूप से सिद्ध करने वाले पाइथागोरस (इटली 570 - 495  ईसा पूर्व) की याद तो होगी ही। एक समय में पायथागोरस और उनका गणित इतना आदरणीय था कि उनके वैसे ही अनेक अनुसरणकर्ता बन गये थे जैसे कि किसी धर्मगुरु के अनुयायी होते हैं। किमाश्चर्यम् कि घनघोर मांसाहारी यूरोप का यह प्रसिद्ध गणितज्ञ और विचारक पूर्णतया शाकाहारी था। वैसे पायथागोरस को पुनर्जन्म में भी न केवल विश्वास था बल्कि उनका दावा यह था कि उन्हें अपने चार पिछले जन्मों की बातें याद हैं। पायथागोरस के प्रमुख शिष्यों ने भी शाकाहारी जीवन अपनाया। ये लोग न केवल मछली, अंडा आदि खाने के विरोधी थे बल्कि धर्म के बहाने से की जाने वाली पशुहत्या को भी अमानवीय मानते थे।

होमर के ग्रंथों में कमलपोषित कहकर उत्तरी अफ़्रीका की शाकाहारी प्रजातियों के और इथोपिया के शाकाहारियों के सन्दर्भ आये हैं। पाँचवीं शताब्दी  ईसा पूर्व के दार्शनिक एम्पेडोक्लीज़ भी अपने शाकाहार के लिये जाने गये थे। उस समय के यूरोप के शाकाहारी विद्वानों और मांसाहारी आमजनों के बीच अनेक शास्त्रार्थ होने के बावजूद उनमें इस बात पर सहमति थी कि एक आदर्श समाज में जीवहत्या, शिकार आदि के लिये कोई स्थान नहीं होना चाहिये, ऐसी जानकारी प्लेटो, हेसोइड व ओविड आदि दार्शनिकों के आलेखों से ज्ञात है। प्लेटो और उसके अनुयायी भी पूर्णतः शाकाहारी थे। इनसे इतर विचारधारा का दार्शनिक स्टोइक यद्यपि स्वयं शाकाहारी नहीं था पर उसके प्रसिद्ध शिष्य सेनेका शाकाहारी थे।

विश्व भर में विभिन्न चैम्पियन खिलाड़ियों ने शाकाहार अपनाकर अपने को शिखर पर बनाये रखा है। मगर पश्चिम में भी क्षमतावान होने के लिये शाकाहार का यह प्रयोग कोई नई बात नहीं है। सिकन्दर के विश्वविजयी सैनिकों को युद्धकाल में शाकाहारी रहने के निर्देश थे। अध्ययनों से यह सिद्ध हुआ है कि रोम के विश्वविख्यात ग्लैडियेटर्स अधिक शक्ति, स्फूर्ति व गति के लिये न केवल शाकाहारी बल्कि वीगन हुआ करते थे।

यूरोप में ईसाई धर्म के प्रसार के साथ विद्वानों व संतों के बीच शाकाहार की अनिवार्यता समाप्त हो गयी तथापि अनेक ईसाई संत या तो शाकाहारी रहे या शाकाहार के साथ मत्स्याहारी। परंतु धीरे-धीरे चर्च और विद्वानों के बीच टकराव बढता गया। शक्तिशाली चर्च ने विद्वानों के दमन की नीति अपनाई। यहाँ तक कि कई विद्वानों, विचारकों, दार्शनिकों, वैज्ञानिकों को धर्मविरोधी होने के आरोप में मार दिया गया। ऐसे अन्धकारमय काल के यूरोपीय जीवन में  हिंसा और मांसाहार सामान्य सा हो गया। इंग्लैंड में तो कई समूह यह दावा करते दिखते थे कि पशुओं को ईश्वर ने उनके आहार के लिये ही बनाया है। यूरोप के पुनर्जागरण के काल (रेनेसां = Renaissance) में एक लगभग पूर्ण मांसाहारी यूरोप में जन्मी विभूतियों जैसे लियोनार्दो दा विंची (1452–1519) और पियरे गासेन्दी (1592–1655) ने शाकाहार अपनाकर उसे फिर से विद्वानों के भोजन की प्रतिष्ठा दिलाई। इनके कुछ समय बाद इंग्लिश लेखक टॉमस ट्रायन (1634–1703) ने इंग्लैंड में शाकाहार की वकालत की।

अमेरिका में शाकाहार का जन्म मेरे वर्तमान राज्य पेंसिल्वेनिया में 1732 में योहान कॉनराड द्वारा स्थापित एफ़्राटा क्लॉइस्टर (Ephrata Cloister) समुदाय में हुआ। तत्कालीन इंगलैंड में अनेक कवि, लेखक, विचारक और विद्वान शाकाहार अपना रहे थे। सन 1809 में विलियम काउहर्ड द्वारा शाकाहारी सिद्धांतों पर आधारित बाइबल क्रिस्चियन चर्च की स्थापना हुई। 1838 में लंडन के पास खुले कंकॉर्डियम स्कूल ने मांसाहार को पूर्णतः प्रतिबन्धित कर दिया। भारत के बाहर शाकाहार के आधुनिक इतिहास में एक प्रमुख घटना 30 सितम्बर 1847 को घटी जब 140 अंग्रेज़ों ने एक स्वयंसेवी संस्था "वेजीटेरियन सोसायटी" को पंजीकृत कराया। इसके बाद तो शाकाहार की ऐसी धूम मची कि सन 1853 में 889 सदस्यों की संस्था में सन 1897 तक 5,000 सदस्य थे। जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, महात्मा गान्धी और पॉल मैककॉर्टनी जैसे महानुभाव इस संस्था के सदस्य रह चुके हैं। वेजीटेरियन सोसायटी आज भी कार्यरत है और अन्य ज़िम्मेदारियों के साथ-साथ विभिन्न आहारों को शाकाहारी प्रमाणित करने का काम भी करती है। जिलेटिन और पशु रेनेट (animal rennet) युक्त खाद्य पदार्थों को भोजन से हटाने या स्पष्टतः मांसाहार के रूप में लिखे जाने का दवाब बनाना जैसे कार्य भी इसकी सूची में हैं।

जीवदया के उद्देश्य से सन 1980 में स्थापित संस्था पीटा (PETA = People for the Ethical Treatment of Animals) अपने तीस लाख सदस्यों के साथ शायद इस समय संसार की सबसे बड़ी पशु संरक्षक संस्था है जिसका एक सहयोगी उद्देश्य शाकाहार को बढावा देना भी है। पीटा का मुख्यालय नॉर्फ़ोक वर्जिनिया (अमेरिका) में है।

इस प्रकार हमने देखा कि विश्व भर में अलग-अलग बिखरे हुए विद्वानों व बुद्धिजीवियों द्वारा अपनाई जाने वाली निरामिष आहार शैली किस प्रकार जनमानस के सामान्यजीवन का अंग बनी। भारत में भी यही सब लगभग इसी प्रकार से हुआ होगा। हाँ इतना अवश्य है कि इस मामले में हम शेष विश्व से कई हज़ार साल आगे निकल आये थे और इसीलिये आज भी भारत शाकाहारियों के लिये स्वर्ग है। प्रसन्नता की बात है कि विज्ञान की प्रगति और नित नये अध्ययनों के आधार पर शाकाहार के संतुलित और सम्पूर्ण होने का ज्ञान विद्वानों से आगे बढकर आम जनता तक पहुँच रहा है।

इंसानियत तो दुनियाभर में शाकाहार की प्रगति का मुख्य कारण है ही परंतु मांस उद्योग द्वारा किये जा रहे पर्यावरण प्रदूषण, संसाधन हानि और मानव स्वास्थ्य पर मांस द्वारा पड़ने वाले दुष्प्रभावों के कारण भी विदेश में शाकाहार का प्रचलन बढ रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने आधुनिक विश्व में अहिंसा के पुरोधा महात्मा गान्धी के जन्मदिन को अंतर्राष्ट्रीय शाकाहार दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। ब्रिटेन में 1985 मे जहॉ कुल जनसंख्या का 2.6 प्रतिशत शाकाहारी था वही आज बढ़कर 7 प्रतिशत से अधिक हो गया है। परम्परागत रूप से मांसाहारी ताइवान में पिछले वर्ष पर्यावरण संरक्षण के लिये "नो मीट नो हीट" अभियान में लगभग दस लाख नागरिकों ने शाकाहार अपनाने की शपथ ली जिसमें ताइवान की संसद के प्रमुख और ताइपेइ तथा काओस्युंग के मेयर भी शामिल हैं।

शाकाहार के सम्बन्ध में यदि आपको कोई भी जानकारी अपेक्षित हो तो आप इन संस्थाओं (वेजीटेरियन सोसायटी व पीटा) से सीधे भी सम्पर्क कर सकते हैं और यदि उचित समझें तो हमसे भी पूछ सकते हैं। इस विषय में आपकी सहायता करने में हमें हार्दिक प्रसन्नता होगी।
   * सम्बन्धित कड़ियाँ * 
* पायथागोरस एवम पशु अधिकार
* वेजीटेरियन सोसायटी
* पीटा

सोमवार, 19 मार्च 2012

संतुलित पोषण के लिए शाकाहार का योजनाबद्ध प्रयोग



भारत में प्राच्यकाल से ही अहिंसा, स्वास्थ्य और पोषण के लिए ‘सात्विक आहार गुण' नाम से संतुलित पोषण उपदेशित होता रहा है। भारतीय संस्कृति में शाकाहार शैली एक श्रेष्ठ आहार शैली के रूप में स्थापित है। किन्तु अब पश्चिमी दुनिया में भी शाकाहार सजगता बढ़ी है। अमेरिकन डायटिंग एसोसिएशन और कनाडा के आहारविदों का कहना है कि “जीवन के सभी चरणों में शाकाहार का यदि योजनाबद्ध प्रयोग और पदार्थों का उचित नियोजन किया जाय तो शाकाहार पर्याप्त पोषक और स्वास्थ्यवर्धक है। निसंदेह शाकाहार रुग्णावस्था में परहेज विकल्प तो है ही साथ ही कुछ बीमारियों की रोकथाम और इलाज में असरकारक है।”


पोषण के साधारणतया तीन प्रकार होते है-

(1.) जो शरीर को उर्जा प्रदान करता है: कार्बोहाइड्रेट, वसा युक्त पदार्थ
जैसे- अनाज, कंदमूल, फल, मेवा, गुड़ तेल आदि

(2.) जो शरीर का वृद्धि-विकास और क्षतिपूर्ति करता है: प्रोटीन युक्त पदार्थ
जैसे- दूध, फलीदार अनाज, दालें, सोयाबीन, मूंगफली, मेवे गिरीवाले फल आदि

(3.) जो स्वास्थ्य सुरक्षा करते है: विटामिन खनिज युक्त पदार्थ
जैसे- हरी सब्ज़ी, हरी पत्तेदार सब्ज़ी, दुग्ध पदार्थ, दालें, फलों का रस आदि

आहार विशेषज्ञ शाकाहारी पदार्थों में निम्नानुसार पौष्टिक तत्त्व प्रकाशित करते हैं:-

1. प्रोटीन: यह शारीरिक वृद्धि-विकास, कोषों की क्षतिपूर्ति करता है। यह दालों, अनाज, चना, मटर, सोयाबीन, मूँगफली, काजू, बादाम, हरी सब्जियों, दूध, दही, पनीर, सेव, फल, मेवे आदि में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता है।

2. वसा: इसे चिकनाई कह सकते है जो बलवर्धक होती है शरीर में इसका संचय होता है और आपूर्ति के अभाव के समय यही वसा, उर्जा व बल प्रदान करती है। यह दूध, घी, मक्खन, मलाई, सरसों, नारियल तथा तिल के तेल एवं बादाम, अखरोट व अन्य सूखे मेवे आदि से प्रचुर मात्रा में प्राप्त होती है। इसे पचाने के लिये शारीरिक श्रम और व्यायाम आवश्यक है।

3. कार्बोहाइड्रेट्स: यह शरीर में उर्जा, शक्ति,स्फूर्ति और उष्मा पैदा करता है। यह गेहूँ, चावल, मक्का, ज्वार, बाजरा, गन्ना, खजूर, दूध, मेवा, मीठे फल, गुड, शक्कर, बादाम, दाल, ताजी सब्जियाँ आदि में बहुतायत से पाया जाता है। कार्बोहाइड्रेटस का पूरा लाभ उठाने के लिये भोजन को खूब चबा कर खाना चाहिये। जितनी लार भोजन में मिलेगी उतना ही अधिक कार्बोहाइड्रेट्स शरीर को प्राप्त होगा।

4. खनिज लवण  

  • (अ.) कैल्शियम : यह हड्डियों और दाँतों को मजबूत बनाता है, बाल घने और मजबूत बनाता है और दिल को भी स्वस्थ रखने में सहयोग करता है। यह हरी सब्जियों, गेहूँ, चावल, दालों, दूध, छाछ, पनीर, बादाम, समस्त मीठे फल, शक्कर, मुरब्बा आदि से प्राप्त होता है।

  • (ब.) फॉस्फोरस: बढते शरीर और दिमाग की ताकत के लिये यह विशेष लाभदायक है और पनीर, दही, गेहूँ, मक्का, दाल, दूध, छाछ, पनीर, बादाम, समस्त मीठे फल, शक्कर, मुरब्बा आदि में पाया जाता है।

  • (स.) आयरन: यह खून बनाता है और हिमोग्लोबिन बढ़ाता है साथ ही शरीर के प्रत्येक तंतु तक ऑक्सीजन पहुँचाता है। इसकी कमी को साधारण तया खून की कमी कहा जाता है, यह हरे पत्तेदार शाक, हरी तरकारी, अनाज, दाल, सेम, मटर, सूखे मेवे, सेव, अनार आदि फल व दूध में पाया जाता है।

  • (द.) मैग्नीशियम: अतिअल्प मात्रा में आवश्यक मैग्नीशियम हमारे रक्तचाप को नियंत्रित रखता है। यह ताजा सब्ज़ियों से पर्याप्त मात्रा में मिल जाता है।

5. विटामिन्स

  • विटामिन A- हरी सब्जियों, नीबू, अमरूद, आँवला, संतरा, मौसमी आदि में मिलता है।

  • विटामिन B- हरी पत्तेदार सब्जियों तथा अनाज व दुग्ध पदार्थों में पाया जाता है।

  • विटामिन C- हरी सब्जियों, नीबू, अमरूद, आँवला, संतरा, मौसमी आदि में मिलता है।
  • विटामिन D- यद्यपि इसका प्रमुख प्रेरक स्त्रोत सूर्य की किरणें है । तथापि दुग्ध-पदार्थों तथा पौधों से भी प्राप्त होता है।

  • विटामिन E- यह घी मक्खन में बहुतायत से होता है।

  • विटामिन K- यह हरी सब्जियों से पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो जाता है।

6. आहारीय रेशे: शरीर से विषाणु और प्रतिकूल पदार्थों का विसर्जन करने में सहायक होते है यह शाक फल सब्ज़ी सूखे मेवे साबुत धान्य चोकर आदि में प्रचुरता से प्राप्त होते है।

अपनी रुचि और स्थिति के अनुसार पदार्थों का चयन कर संतुलित पोषक आहार नियोजित किया जा सकता है. मांसाहार की अपेक्षा शाकाहार सस्ता होने के साथ-साथ स्वादिष्ट, रोगप्रतिरोधक क्षमता से भरपूर और शक्तिवर्धक भी होता है। फल सब्जियों व अन्न-दालों से मिलने वाले फाइबर तो अनेक रोगों को दूर रखने में अचूक औषधि का काम करते हैं। जब सभी प्रकार के विटामिन्स, उत्तमप्रकार के प्रोटीन, आवश्यक खनिज आदि पौष्टिक तत्त्व शाकाहार से पूर्ण संतुलित हो सकते है तो जीवित प्राणियों की हत्या से उपार्जित अनैतिक आहार की भ्रमणा में फंसने की क्या आवश्यकता?

कुछ सावधानियाँ-

  1. ज्यादा कैलोरी युक्त वस्तुएं लें तो उसे खर्च करने के लिए श्रम भी करें।
  2. आवश्यक कैलोरी न लेने से आंते कमजोर होती हैं।
  3. हर रोज 6 से 8 घंटे की नींद ब्लड प्रेशर मधुमेह और दिल की बीमारी, हार्मोनल असंतुलन को दूर करती है।
  4. हर रोज सूर्य निकलने से पहले चारपाई छोड़ें और कम से कम 15 से 45 मिनट व्यायाम जरूर करें।
  5. खाने में फल सब्जियां साबित अनाज तनाव दूर करने में सहायक है।
  6.  भोजन में नमक का इस्तेमाल संतुलित करें। मीठी वस्तुएं मोटापा बढ़ाती हैं अति से बचें।
  7. प्रत्येक व्यक्ति का मेटाबोलिज्म स्वभाव भिन्न हो सकता है, संतुलित और पोषक आहार के उपरांत भी शरीर में पदार्थ आवश्यक उर्जा तत्व में परिणित नहीं होते तो अपने चिकित्सक की सलाह अवश्य लें और उसी आधार पर सप्लीमेंट ग्रहण करें।
  8. शारिरिक शक्ति के लिए उचित उर्जा चाहिए। शरीर को पुष्ट करने वाली उर्जा और उष्मा के लिए प्रोटीन, शर्करा, विटामीन, खनिज, वसा आदि पदार्थ उचित अनुपात और पर्याप्त मात्रा में चाहिए। उसकी गुणवत्ता हमारे आहार के संयोजन पर निर्भर करती है। किसी तत्व की अधिकता भी प्रतिकूल परिणाम देती है।
  9. भोजन में ऐसे पदार्थ भी होने चाहिए जो हमारी रोग-प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करे। और ऐसे पदार्थों की भी उपस्थिति हो जो शरीर में उपभोग के बाद व्यर्थ बचे खुचे व हानिकारक तत्वों का सहजता से निष्कासन करनें में सहायक हो। भोज्य-पदार्थों में रोगोत्पादक, संक्रमण सम्भाव्य और अनावश्यक हार्मोन रसायन उत्प्रेरक तत्व न हो। और ऐसे उत्तेजक पदार्थ भी न हो जो मानसिक आवेगों को जन्म दे और मानस को असंयमित करने का कार्य करे।

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

शाकाहार अपनाइये प्रसन्न रहिये।

शाकाहार अपनाइये प्रसन्न रहिये।

शाकाहार स्वास्थ्यप्रद है, इस तथ्य में किसी को भी शंका नहीं है। आज के समय में हर किसी को पता है कि विश्व के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी अच्छे स्वास्थ्य के कारण शाकाहार की ओर प्रवृत्त हो रहे हैं। भारतीय विचारधारा और हमारे व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर यह समझा जाता है कि मनुष्य के मानसिक स्वास्थ्य पर भी शाकाहार का अनुकूल प्रभाव पड़ता है। अभी तक इस विषय पर कोई वैज्ञानिक अध्ययन न होने के कारण वैज्ञानिक दायरों में विशेषकर मांसाहार-मत्स्याहार को प्रोत्साहन देने वाले विभागों में शायद यह बात खुलकर नहीं कही जा रही हो, लेकिन अब स्थिति बदल रही है। पश्चिम में शाकाहार का प्रचलन बढने के साथ-साथ उसके स्वास्थ्य प्रभावों के वैज्ञानिक अध्ययन बढ रहे हैं और निरामिष भोजन शैली के पक्ष में नई-नई अकाट्य जानकारियाँ सामने आ रही हैं।

पिछले दिनों देखा गया था कि अज्ञानवश अफ़वाहें फैलाने वाले कुछ लोग तो शाकाहार को अल्ज़ाइमर और बौद्धिक बौनेपन से भी जोड़ने का अधकचरा प्रयत्न कर रहे थे। ऐसी अफ़वाहों के पीछे कुछ सामान्य भ्रम थे, जैसे मत्स्य या मांस को आवश्यक पोषक तत्वों का अकेला आपूर्तिकारक मानना।

ऐसे ही भ्रमों के बारे में सत्य जानने के लिये एक अध्ययन अमेरिका के ऐरिज़ोना राजकीय विश्वविद्यालय के पोषण विभाग में डॉ बॉनी बीज़होल्ड (Bonnie L Beezhold) के नेतृत्व में हुआ था जिसकी रिपोर्ट जून 2010 से अंतर्जाल पर उपलब्ध है। इस अध्ययन में संयुक्त राज्य के दक्षिण पश्चिम क्षेत्र के सेवेंठ डे ऐड्वेंटिस्ट समुदाय से स्वस्थ भागीदारों को लेकर उन्हें पहले शाकाहारी या मांसाहारी भोजन उपलब्ध कराया गया और फिर उनसे 152 प्रश्नों की निम्न तीन प्रश्नावलियों के आधार पर जाँच की गयी:

  • भोजन की आवृत्ति
  • अवसाद, बेचैनी, तनाव की मात्रा (DASS=Depression Anxiety Stress Scale)
  • बदनुमाई की माप (POMS=Profile of Mood States) 


इस अध्ययन से एक बार फिर यह बात स्पष्ट हुई कि शाकाहार करने से जीवन में प्रसन्नता पढती है, तनाव और अवसाद कम होता है और यह हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिये मांसाहार से कहीं अधिक हितकर है। इस अध्ययन में यह बात भी सामने आयी कि मछली खाने वालों के मुकाबले कुछ कम ओमेगा-3 की मात्रा होने पर भी शाकाहारियों पर इसका कोई भी प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता है।

इस अध्ययन के लिये तैयार हुये स्त्री व पुरुषों में 64 शाकाहारी और 79 मांसाहारी थे जिनमें से गर्भवती लोगों को अध्ययन से हटाने के बाद 138 लोग बचे। मांसाहारियों में अवसाद, बेचैनी व तनाव की मात्रा शाकाहारियों से दोगुनी थी। बदनुमाई की मात्रा में भी मांसाहारी शाकाहारियों से कहीं आगे थे। शाकाहारी भोजन में वसा की मात्रा भी मांसाहारियों से कम पाई गयी।  इस अध्ययन ने इस जानकारी को फिर से पुष्ट किया है कि शाकाहार अपनाने में ही बुद्धिमानी है और शरीर और मस्तिष्क का हित भी है।

अधिक जानकारी के लिये इस अध्ययन की झलक देने के लिये परिणामों की एक तालिका यहाँ प्रस्तुत है। और अधिक जानकारी के इच्छुक न्युट्रिशन जर्नल पर पूरी रिपोर्ट पढ सकते हैं।

* शाकाहारी बनें, प्रसन्न रहें, स्वस्थ रहें!*

परिणाम तालिका - बायोमेड सेंट्रल से साभार (© 2010 Beezhold et al; licensee BioMed Central Ltd.)

DASS and POMS scores by diet group

OMNVEGP

Mean± SEMean± SEvalue

n = 78n = 60*



DASS-total117.511.888.320.880.000
     DASS-D4.810.691.670.280.000
     DASS-A4.310.531.530.240.000
     DASS-S8.400.925.120.520.024






POMS-total215.333.100.101.990.007
     Tension-anxiety6.043.833.830.400.031
     Depression-dejection8.990.804.364.100.000
     Anger-hostility7.086.724.280.550.010
     Fatigue7.590.665.030.470.021
     Confusion4.650.433.240.380.085
     Vigor19.150.7120.610.710.133

* < 0.05 is significant.
1 DASS normative scores: D-5.55, A-3.56, S-9.27, total 18.38.
2 POMS normative scores, M-F: T 7.1-8.2, D 7.5-8.5, A 7.1-8.0, V 19.8-18.9, F 7.3-8.7, C 5.6-5.8, total 14.8-20.3.
Beezhold et al. Nutrition Journal 2010 9:26   doi:10.1186/1475-2891-9-26


 कीवर्ड: Bonnie L Beezhold, Carol S. Johnston, Deanna R. Daigle, Arizona State University

सोमवार, 12 मार्च 2012

खाद्य शृंखला, विवेकाहारी

खाद्य शृंखला में सभी जीव (organisms) की सामान्यतया तीन कडि़यां होती हैं -
1-उत्पादक
2-उपभोक्ता
3-अपघटक

दूसरे उपभोक्ता के अन्तर्गत खाद्य उपभोग के आधार पर जीव को इन तीन कक्षाओं में वर्गीकृत किया जा सकता हैं।
1-शाकाहारी जीव (Herbivores)
2-माँसाहारी जीव (Carnivores)
3-सर्वाहारी जीव (Omnivores)

शाकाहारी जीव (Herbivores) हिरण, गाय, भैस, बैल, घोडा, हाथी आदि
माँसाहारी जीव (Carnivores) शेर चिता लोमडी भेड़िया आदि
सर्वाहारी जीव (Omnivores) भालू, सुअर (कुछ कुछ कुत्ता बिल्ली भी)आदि

तो मानव की कक्षा क्या है?

सर्वाहारी? खाने को तो मानव कुछ भी खा सकता है, पचा भी लेता है। धूल, काँच, जहर आदि कुछ भी!! पर क्या इस कौतुक भरी आदतों को सामान्य आहर कहकर ग्रहण किया जा सकता हैं? माँसाहार भी मानव का अभ्यास उपार्जित कौशल मात्र ही है। यह प्राकृतिक सहज स्वभाव नहीं है। इसलिए मानव सर्वाहार लेकर भी सर्वाहारी नहीं है।

तो फिर खाद्य उपभोग कक्षा में मानव का स्थान क्या है?

वस्तुतः मानव इन तीनो वर्गों से इतर विशिष्ट वर्ग का जीव है।

वह है “विवेकाहारी (विवेकाचारी) जीव”!!

‘विवेकाहारी’ कैसे?

1-वह विवेक से खाद्य प्रबंध करता है ताकि उर्ज़ा-चक्र और जैव-चक्र बाधित न हो
2-वह विवेक से अपनी भोजन आवश्यकता की पूर्ति के लिए सम्भवतया हिंसा और अहिंसा में से अहिंसक आहार का चुनाव करता है।
3-वह सुपोषण और कुपोषण में अन्तर करके विवेक से अल्प किन्तु सुपोषण अपनाता है।
4-वह सुपाच्य दुपाच्य में चिंतन करके विवेक से सुपाच्य ग्रहण करता है।
5-अपने आहार स्वार्थ की प्रतिपूर्ति से कहीं अधिक, समस्त जीव-जगत के हित हेतु विवेक से संयम को सर्वोपरि स्थान देता है।
6-स्वाद, मनमौज से उपर उठकर विवेक से आरोग्य को महत्व देता है।
7-अल्पकालीन व दीर्घकालीन प्रभावों पर चिंतन करके विवेक से दीर्घकालीन प्रभावों पर क्रियाशील रहता है।

मानव का विवेक उसे निरामिष रहने को प्रेरित करता है। 

बुद्धिमान मनुष्य का वर्गीकरण ‘विवेकाहारी’ (विवेकाचारी) में ही हो सकता है।

बुधवार, 7 मार्च 2012

शुभ होली - कुछ गणमान्य ब्लॉगर्स के उद्गार

होलिका दहन के पावन अवसर पर निरामिष की ओर से आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें। होली आसुरी संस्कारों और मनोविकारों को भस्म करने और हिंसा और क्रूरता के दम्भ के मान-मर्दन का पर्व है। आइये, इस शुभ अवसर पर शाकाहार विषय पर पर कुछ चिर-परिचित ब्लॉगर्स के चुने हुए उद्गार पढें।
(निरामिष डायरी के पन्नों से दो शब्द)

करुणा अपनाइये - ऋचा जोशी
एक बार मैं बकरा ईद पर अपने एक परिचित के घर बधाई देने गई। उस दिन मैने पहली बार मौत का खौफ उस बकरे की आंखों में देखा। शायद उसे अपनी मौत का अहसास हो चुका था। शायद उसने अपने कुछ भाईयों की कुर्बानी देखी हो। बकरे की आंख में अगर आप आंसू या मौत का भय देख पाते तो उस दिन से शाकाहारी हो जाते।
शाकाहार विवेक का मार्ग है - कविता वाचक्नवी

जो लोग वास्तव में आहार सम्बन्धी प्रश्नों व जिज्ञासा के समाधान चाह्ते हैं और सही व गलत में विवेक से सही को अपनाना चाहते हैं उन्हें एक विश्वविख्यात कम्बशन-वैज्ञानिक डॊ.हरिश्चन्द्र की अन्ग्रेज़ी में लिखित A Thought for Food और The Human Nature and Human Food नामक २ पुस्तकें अवश्य पढ़नी चाहिएँ। ये ऐसी अमर कृतियाँ हैं, जिनकी बिक्री हजारों में नहीं लाखों में हुई है और अनेक सन्स्थाएँ व व्यक्ति ऐसे हैं जो इन्हें अपने पैसे से १०,००० या उससे भी अधिक की संख्या में खरीद कर जनहित में बाँटते हैं। यहाँ तक कि योरोप,अमेरिका,अफ़्रीका आदि सहित २५ से अधिक देशों में लोग व अनेक सन्स्थाएँ विभिन्न माध्यमों से इन्हें खरीद-मँगा कर पढ़ते-बाँटते हैं। विशेष जानकारी के लिए http://www.centerforinnersciences.org/publications/पर भी देख सकते हैं।
मांसाहार पशुओं पर अत्याचार है - राज भाटिया

मैंने और मेरे बच्चों ने काफ़ी साल माँस खाया, एक दिन हम सब टीवी पर एक प्रोग्राम देख रहे थे कि जिन जानवरो का मांस हम खाते हैं, उन्हे कैसे रखा जाता है और कैसे इधर से उधर ले जाया जाता हैं। वह कार्यक्रम करीब एक घण्टा चला और उस दिन के बाद हम सब ने मांसाहार बन्द कर दिया। पहले जब मांस खाते थे ओर जब उसे छोड कर सब्जियां खानी शुरु कीं तो कई बातो में हमें अपने आप मे परिवर्तन लगा।
मनुष्‍य मूलत: शाकाहारी ही है - विष्णु बैरागी

यह कहना बिलकुल सही है कि मनुष्‍य ने देश, काल और परिस्थितियों के वशीभूत हो, मांसाहार अपनाया होगा। मनुष्‍य मूलत: शाकाहारी ही है। राजस्‍थान के एक लोक सन्‍त हुए हैं, 'पीपाजी महाराज।' वे कबीर की तरह ग्रहस्‍थ सन्‍त थे। उनके रचित भजन और दोहे प्रचुरता से उपलब्‍ध हैं। उनका एक दोहा मांसाहार का सशक्‍त प्रतिकार है -
जिव मारै, जीमण करे, खातां करे बखाण।
पीपा परतख देख ले, थाली मांहि मसाण।।
शाकाहार भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है - ताऊ रामपुरिया

देखा जाए तो शाकाहार भारतीय संस्कृति का अंग रहा है और अगर हम बहस में ही जायेंगे तो बहुत कुछ उटपटांग लिखा भी मिलता है! खैर ... आज हमें या कहें कि मानव जाति को शाकाहार की हर अर्थ में आवश्यकता है और आप इस तरह लोगो का ध्यान शाकाहार की तरफ़ आकर्षित करके मानवता के लिए भलाई का नेक काम ही कर रहे हैं! ईश्वर आपको इसमे सफलता दे, यही प्रार्थना है!
शाकाहार सर्वश्रेष्ठ है - शास्त्री जे सी फिलिप

इस में कोई दो राय नहीं हो सकती कि शाकाहार हर तरह से मांसाहार से श्रेष्ठ है। मांसाहार हर तरह से मानव शरीर को विकृत करता है।
मांसाहार अप्राकृतिक है - दिनेशराय द्विवेदी
शाकाहार के बिना मानव का बेहतर जीवन संभव नहीं था। भोजन की और से निश्चिंतता केवल शाकाहार ही प्रदान करता है। संकट के लिए गोदामों में मांस को संग्रह नहीं किया जा सकता और न ही मांस प्रदान करने वाले जानवरों को। जानवरों को कर भी लें तो उन्हें बचाए रखने को भी शाकाहार चाहिए।

कुल मिला कर शाकाहार मनुष्य जाति के लिए दीर्घकाल तक जीवित बने रहने की अनिवार्य शर्त है। यह भी कि आप मांसाहार के बिना रह सकते हैं शाकाहार के बिना नहीं। जरा मांसाहारियों से यह निवेदन कर देखिए की वे शाकाहार बिलकुल त्याग दें। यह संभव नहीं। जब कि मांसाहार त्याग कर मनुष्य जीवन को अनेक सदियों तक चलाया जा सकता है। शाकाहार के बिना शायद एक वर्ष भी नहीं। इस तरह अप्राकृतिक है तो मांसाहार, न कि शाकाहार।